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लैंगिक असमानता को बढ़ावा देते ‘बाल विवाह’

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र– 1 और 2: सामाजिक सशक्तीकरण; स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय; केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन)

संदर्भ

कुछ रिपोर्ट्स दर्शाती हैं कि कोविड-19 महामारी के दौरान बाल विवाहों की संख्या में वृद्धि हुई है।

भारत में बाल विवाह की स्थिति

  • वर्ष 2015-16 में जारी किये गए चौथे ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (NFHS4) में उल्लेख किया गया था कि भारत में प्रत्येक 4 में से 1 लड़की का विवाह 18 वर्ष की आयु से पूर्व ही हो जाता है तथा भारत में 8% महिलाएँ ऐसी हैं, जो 15 से 19 वर्ष की आयु में ही या तो गर्भधारण कर लेती हैं या माँ बन जाती हैं।
  • वर्ष 2019-20 में पाँचवें ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (NFHS5) का प्रथम खंड जारी किया गया। इसके अनुसार, बाल विवाह की स्थिति में लगभग कोई सुधार नहीं हुआ है।

बाल विवाह के कारण

  • बाल विवाह के लिये सामाजिक और आर्थिक स्थितियाँ मुख्य रूप से ज़िम्मेदार होती हैं।
  • समाज की यह मान्यता कि सुरक्षा की दृष्टि से लड़कियों का जल्दी विवाह कर देना चाहिये।
  • आर्थिक बोझ और पारिवारिक प्रतिष्ठा धूमिल होने की आशंका से भी बाल विवाह को बढ़ावा मिलता है।

बाल विवाह रोकने के प्रयास

  • बाल विवाह रोकने के लिये अधिकांश राज्यों ने विगत 2 दशकों से ‘सशर्त नगद हस्तांतरण’ (Conditional Cash Transfers – CCTs) की नीति अपनाई है। इसके माध्यम से सरकार ने ‘सभी पर एक समान नीति’ लागू करने का प्रयास किया, जो व्यावहारिक तरीका नहीं है। वस्तुतः नगद हस्तांतरण की नीति किशोरियों के लिये प्रभावी सिद्ध नहीं हुई है।
  • कर्नाटक सरकार ने ‘बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2017’ में संशोधन कर ‘बाल विवाह’ को संज्ञेय अपराध बना दिया है तथा बाल विवाह को बढ़ावा देने वालों के लिये सश्रम कारावास की एक न्यूनतम सीमा निर्धारित की है।
  • इस दिशा में सरकार ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना, सुकन्या समृद्धि योजना जैसे प्रयास भी किये हैं।
  • सरकार ने वर्ष 1988 में ‘महिला समाख्या कार्यक्रम’ की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य देश में सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में महिला शिक्षा और उनके सशक्तीकरण को बढ़ावा देना था। यह कार्यक्रम महिलाओं के ‘सामुदायिक मेलजोल’ (Community Engagement) पर आधारित था।

बाल विवाह के परिणाम

  • बाल विवाह से लड़कियों के मानवाधिकार का उल्लंघन होता है, उनके खिलाफ भेदभाव में वृद्धि होती है तथा उनके लिये अवसरों की कमी हो जाती है।
  • इससे महिलाओं के समक्ष शिक्षा में बाधा, स्वास्थ्य हानि, क्षमताओं के अपर्याप्त विकास जैसी समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं और उनकी सामाजिक भागीदारी में कमी आती है।
  • किशोरावस्था में विवाह होने पर उन्हें सामान्यतः सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी, सामाजिक अलगाव, घरेलू हिंसा, अल्पपोषण, रक्ताल्पता आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • इसके अलावा, उन्हें अपेक्षाकृत अधिक घरेलू श्रम करना पड़ता है तथा कम उम्र में ही माँ बनना पड़ता है। इससे महिला व बच्चे, दोनों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है।
  • कम उम्र के कारण घरेलू मामलों में निर्णय लेने की उनकी शक्ति अत्यंत सीमित होती है।
  • निम्नस्तरीय शिक्षा, कुपोषण और जल्दी गर्भवती होने से ‘कम वजनी बच्चे’ पैदा होते हैं तथा कुपोषण-चक्र पीढ़ी-दर-पीढ़ी अनवरत जारी रहता है।
  • इन सबके चलते जनसंख्या वृद्धि, बौनापन, खराब अधिगम परिणाम (Learning Outcome), श्रम बल में महिलाओं की कम भागीदारी आदि समस्याएँ भी जन्म लेती हैं।

आगे की राह

  • देश के सभी भागों में माध्यमिक शिक्षा का विस्तार किया जाना चाहिये तथा किशोरियों को निमियत रूप से विद्यालय भेजा जाना चाहिये।
  • हमें सभ्य समाज का परिचय देते हुए लड़कियों का विवाह तब तक नहीं करना चाहिये, जब तक कि वे वयस्क न हो जाएँ।
  • सरकारों को अपने आवासीय विद्यालयों, बालिका छात्रावासों और सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क का विस्तार देश के वंचित क्षेत्रों में करना चाहिये, ताकि लड़कियाँ शिक्षा छोड़ने को विवश न हों।
  • महिलाओं को प्रेरित करना चाहिये कि वे अपनी शिक्षा का उपयोग आजीविका अर्जित करने के लिये करें।
  • माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में लड़कियों के क्लब बनाकर ‘सामूहिक अध्ययन’ (Group Study) का बढ़ावा दिया जाना चाहिये, ताकि वैचारिक आदान-प्रदान के माध्यम से बाल विवाह के विरुद्ध चेतना बढ़ाई जा सके।
  • विद्यालयों में अध्यापकों द्वारा ‘लैंगिक समानता’ विषय पर कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहियें तथा बालक-बालिकाओं को व्याख्यान दिये जाने चाहियें, ताकि बच्चों में लड़कियों के प्रति ‘प्रगतिशील अभिवृत्ति’ (Progressive Attitude) विकसित की जा सकेगा।
  • ‘महिला समाख्या कार्यक्रम’ जैसे कुछ अन्य ‘सामुदायिक मेलजोल’ कार्यक्रम भी लॉन्च किये जाने चाहियें, ताकि देश के पिछड़े क्षेत्रों में भी महिला सशक्तीकरण के प्रति चेतना लाई जा सके।
  • देश की लगभग 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में स्थापित ‘बाल ग्राम सभाएँ’ (Children’s Village Assemblies) देशभर में बाल विवाह के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिये बेहतर मंच सिद्ध हो सकती हैं।
  • विभिन्न विभागों के ऐसे कर्मचारियों को, जो नियमित रूप से ग्रामीण लोगों से मेल-मिलाप करते हैं, ‘बाल विवाह निषेध अधिकारी’ के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिये। इनमें शिक्षक, आँगनबाड़ी पर्यवेक्षक, पंचायत व राजस्व कर्मचारी आदि शामिल हो सकते हैं।
  • अंत में, जन्म व विवाह पंजीकरण करने के अधिकारों का विकेंद्रीकरण किया जाना चाहिये और ये अधिकार ग्राम पंचायतों को दिये जाने चाहियें, ताकि लड़कियों को उनके अधिकार व्यावहारिक रूप से सुनिश्चित कराए जा सकें।

अभ्यास प्रश्न: बाल विवाह से आप क्या समझते हैं? बाल विवाहों को नियंत्रित करने की आवश्यकता की चर्चा करते हुए इसके समाधान के उपाय बताइए। (250 शब्द)

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