(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 3: जलवायु परिवर्तन एवं आपदा प्रबंधन से संबंधित मुद्दे)
संदर्भ
- वर्तमान समय पूरी दुनिया के लिये अत्यंत कठिन है। इस समय पूरी दुनिया दो प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रही है। पहली, कोविड-19 महामारी और दूसरी, जलवायु परिवर्तन। इन चुनौतियों के समाधान हेतु सभी देशों को एक-साथ आने की ज़रूरत है।
- विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) दुनिया भर के देशों को जलवायु परिवर्तन पर आत्म-अवलोकन के लिये एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।
भारत की प्रतिक्रिया और अक्षय ऊर्जा
- जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के संदर्भ में भारत का एक अच्छा रिकॉर्ड रहा है। इसके अंतर्गत वर्ष 2030 तक 450GW नवीकरणीय ऊर्जा का प्रभावशाली घरेलू लक्ष्य और 'अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन' तथा 'आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (CDRI) जैसी पहलें शामिल हैं।
- भारत ने वर्ष 2015 में जलवायु परिवर्तन के लिये हुए ऐतिहासिक पेरिस समझौते को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी वर्ष नवंबर में ब्रिटेन के ग्लासगो में आयोजित होने वाले कॉप-26 के लिये अन्य देश भारत के साथ मिलकर कार्य कर सकते हैं।
- हाल ही में, भारत और यू.के. के प्रधानमंत्रियों ने यूके-इंडिया रोडमैप, 2030 के माध्यम से हरित विकास एजेंडे के संचालन के लिये सर्वोत्तम तरीकों पर मिलकर काम करने हेतु प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- भारत पहले ही अपनी नवाचार क्षमता और राजनीतिक इच्छाशक्ति को साबित कर चुका है। भारत ने पिछले एक दशक में पवन और सौर क्षमता को चौगुना कर दिया है।
कार्बन उत्सर्जन में कटौती की आवश्यकता
- वैश्विक तापन को सीमित करने के संदर्भ में, प्रति डिग्री परिवर्तन से फर्क पड़ता है। 1.5 डिग्री सेल्सियस की तुलना में 2 डिग्री सेल्सियस की औसत वैश्विक तापमान वृद्धि से करोड़ों लोग प्रभावित होंगे।
- क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर का अनुमान है कि देशों के मौजूदा उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य निश्चित रूप से 2.4 डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान में वृद्धि के लिये हैं।
- वैश्विक तापन को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये हमें वर्ष 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन को आधा करना होगा। अतः यह दशक निर्णायक सिद्ध होगा।
प्रमुख लक्ष्य
- पहला, वैश्विक स्तर पर तापमान वृद्धि को 1.5°C की सीमा में रखने के लिये इस सदी के मध्य तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य तक पहुँचना होगा। इसे हासिल करने के लिये अगले दशक में कठोर रणनीति अपनानी होगी।
- दूसरा लक्ष्य, लोगों और प्रकृति को जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचाना है। ऐसे समय में जब विश्व कोविड-19 महामारी से जूझ रहा है, जलवायु परिवर्तन के खतरे और अधिक स्पष्ट होते जा रहे हैं।
- हाल ही में भारत में आए दो चक्रवात, 'ताउते और यास', यह स्पष्ट करते हैं कि हमें बाढ़ से बचाव, चेतावनी प्रणाली और जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान एवं क्षति को कम करने व टालने के लिये वास्तविक प्रयासों पर कार्य करना चाहिये।
- तीसरा लक्ष्य विकसित देशों के लिये है कि वे विकासशील देशों को समर्थन देने के लिये सालाना 100 अरब डॉलर की सहायता राशि देने का वादा करें।
- यू.के. सभी विकसित देशों पर कॉप-26 से पहले जलवायु वित्त प्रतिबद्धताओं को बढ़ाने पर ज़ोर दे रहा है, ताकि विकासशील देशों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये वित्त एवं प्रौद्योगिकी का सही प्रवाह प्रदान किया जा सके।
- चौथा, इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिये सभी को एक साथ मिलकर काम करना चाहिये। इसमें महत्त्वाकांक्षी, संतुलित एवं समावेशी परिणाम के लिये सरकारों के बीच आम सहमति बनाना शामिल है, ताकि ग्लासगो में वार्ता सफल हो।
- साथ ही, कॉप-26 लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु अन्य हितधारकों तथा नागरिक समाज को शामिल करना और महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना भी आवश्यक है।
निष्कर्ष
- अगले दशक में उत्सर्जन को कम करने के लिये ठोस प्रयासों की आवश्यकता है, जिसके लिये अभी से कार्य करना होगा।
- कॉप सम्मेलन जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से सर्वाधिक संवेदनशील समुदायों के लिये कार्य करेगा। सभी देशों को इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये प्रयास तेज़ करने होंगे, ताकि एक उज्जवल भविष्य का निर्माण किया जा सके।
अन्य स्मरणीय तथ्य
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन
- स्थापना - वर्ष 2015, कॉप- 21 के समय पेरिस में
- मुख्यालय - गुरुग्राम, हरियाणा (भारत)
- संस्थापक सदस्य - फ्रांस एवं भारत
- शामिल सदस्य - मुख्यतः कर्क रेखा तथा मकर रेखा के मध्य स्थित देश
- उद्देश्य - सदस्य देशों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने में आने वाली चुनौतियों का समाधान करना।
- पहला सम्मेलन - वर्ष 2018 अक्तूबर, ग्रेटर नोएडा (भारत)
- दूसरा सम्मेलन - वर्ष 2019 नवंबर, नई दिल्ली (भारत )
- तीसरा सम्मेलन - वर्चुअल/आभासी, अक्तूबर 2020