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जलवायु परिवर्तन: प्राकृतिक आपदाओं एवं आंतरिक विस्थापन में वृद्धि 

(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र -3; संरक्षण, पर्यावरण प्रदुषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

हाल ही में, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा ‘भारतीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का आकलन’ नामक रिपोर्ट जारी की गई। इसके अनुसार, वर्ष 1901 से लेकर 2018 तक देश के तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। 2010-2019 का दशक 0.36 डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान वृद्धि के साथ सबसे गर्म रहा।

प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि

  • अगस्त 2021 में जारी आईपीसीसी की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि वैश्विक तापन के बढ़ने पर चरम जलवायुवीय घटनाओं की तीव्रता एवं बारंबारता में वृद्धि हो सकती है। इन घटनाओं का कृषि एवं सवास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • कोरोना महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियों में कमी के बावजूद ग्रीनहॉउस गैसों के उत्सर्जन में विशेष कमी नहीं हुई है। इसके साथ ही हीटवेव में वृद्धि हुई है। गर्मी में होने वाली वृद्धि का गरीबों पर अधिक नकारात्मक प्रभाव रहा है, क्योंकि वे अत्यधिक गर्मी से निपटने के उपाय करने में असमर्थ हैं।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के आकलन से ज्ञात होता है कि देश में इस सदी के अंत तक तापमान में  4.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है।
  • देश ने पिछले दो वर्षों में कई गंभीर आपदाओं का सामना किया है। इन आपदाओं में जीवन की हानि के साथ ही बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान भी हुआ है।
  • वर्ष 2020 में बंगाल की खाड़ी में आने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातअम्फानने देश के पूर्वी राज्यों में भारी तबाही मचाई। इसके कारण लगभग 24 लाख लोग विस्थापित हुए एवं लगभग 300 से अधिक लोगों की जानें गईं। इस चक्रवात से देश को लगभग 14 अरब डॉलर की आर्थिक क्षति होने का अनुमान व्यक्त किया गया है।
  • वर्ष 2020 के जून-अक्तूबर माह में आई बाढ़ से लगभग 10 बिलियन डॉलर की आर्थिक क्षति का अनुमान व्यक्त किया गया है। इस आपदा में लगभग 1600 लोगों की जानें गई थी। यह पिछले 25 वर्षों में भारत की सबसे भारी मानसूनी तथा दुनिया की सातवीं सर्वाधिक आर्थिक क्षति वाली बारिश थी।
  • वर्ष 2021 में देश को दो और चक्रवातों ताऊ-ते एवं यास का सामना करना पड़ा। मई माह में देश के पश्चिमी तट पर ताऊ-ते तूफ़ान ने भारी तबाही मचाई। इसके कारण बड़ी संख्या में लोगों को तटीय क्षेत्रों से सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया। यास चक्रवात का प्रभाव देश के पूर्वी तटों पर देखा गया। इसने ओडिशा एवं बंगाल में काफी तबाही मचाई।

    ंतरिक विस्थापन में वृद्धि 

    • आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र के अनुसार, बढ़ती जलवायुवीय आपदाओं के कारण देश में आंतरिक विस्थापन में वृद्धि हुई है। वर्ष 2013 में केदारनाथ आपदा के बाद वहाँ के लोगों ने अपने स्थानीय आवास को छोड़ दिया।
    • जलवायु परिवर्तन के कारण देश में वर्ष 1990-2016 के मध्य समुद्र के जल स्तर में वृद्धि, भूमि के कटाव एवं उष्णकटिबंधीय चक्रवातों जैसी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हुई है। इससे लगभग 235 वर्ग किमी.तटीय भूमि का क्षरण हुआ  है।
    • वर्ष 2008-2018 के मध्य तटीय क्षेत्रों में निवास करने वाले 170 मिलियन लोगों में से 3.6 मिलियन लोग विस्थापित हुए, जबकि वर्ष 2020 में 3.9 मिलियन लोग विस्थापित हुए हैं। 2020 में बड़ी संख्या में हुए विस्थापन का प्रमुख कारण अम्फान चक्रवात है।
    • दक्कन का पठारी क्षेत्र गंभीर आपदाओं से प्रभावित रहा है। वर्ष 1876 के बाद दे अभी तक इस क्षेत्र में 18 गंभीर सूखे पड़े हैं। महाराष्ट्र और कर्नाटक में गंभीर जल संकट के कारण 2019 में कई परिवारों को वहाँ से विस्थापित होना पड़ा है।

    ठोर नीतियों की आवश्यकता

    • जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक में वर्ष 2020 में भारत को लगातार दुसरे वर्ष शीर्ष 10 देशों में रखा गया है। भारत ने अक्षय ऊर्जा को छोड़कर इस सूचकांक के सभी घटकों में अच्छा प्रदर्शन किया है। अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में देश का प्रदर्शन मध्यम रहा है।
    • वर्ष 2015 में भारत ने फ्रांस के साथ अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत की। इसका उद्देश्य सौर ऊर्जा तीव्र प्रसार के जरिये पेरिस जलवायु समझौते को लागू करने में योगदान देना था। गठबंधन में भारत की अग्रणी भूमिका के बावजूद भारत ने जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक में अक्षय ऊर्जा में सबसे कम प्रदर्शन किया है। इससे इस गठबंधन के उद्देश्यों के क्रियान्वयन एवं भारत की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है।
    • भारत जलवायु परिवर्तन पर हुए महत्त्वपूर्ण पेरिस समझौते का हस्ताक्षरकर्ता देश है। यह वर्ष 2030 तक हरित ऊर्जा संसाधनों से उत्पादित विद्युत् क्षमता को कुल विद्युत् क्षमता के 40 प्रतिशत तक करने के लिये प्रयत्नशील है।
    • विशेषज्ञों का मानना है कि भारत कोपेनहेगन घोषणापत्र (COP-15) में निर्धारित वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। परंतु यह पेरिस समझौते के अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान को प्राप्त करने के लिये प्रयत्नशील है।
    • भारत के कार्बन उत्सर्जन दृष्टिकोण के अनुसार, देश वर्ष 2030 तक निर्धारित कार्बन सिंक लक्ष्य का आधा ही प्राप्त कर सकता है। पेरिस समझौते के अंतर्गत निर्धारित राष्ट्रीय स्तर पर योगदान लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये भारत को वर्ष 2030 तक 25 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र की आवश्यकता है। यह वर्तमान भारतीय वनों एवं पेड़ों का एक-तिहाई है।

    गे की राह 

    • ग्लासगो सम्मलेन (COP-26) में भारत को निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान को अद्यतन करने का अवसर प्राप्त हुआ है। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये और भी तत्परता से कार्य करने की आवश्यकता है।
    • वर्ष 2027 तक भारत के चीन को पीछे छोड़कर दुनिया के सर्वाधिक आबादी वाला देश बनने की संभावना है। अतः इसे अपने उत्सर्जन में कमी लाने के लिये प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है।
    • चूँकि जलवायु परिवर्तन वैश्विक समस्या है। अतः विश्व के सभी देशों को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान को प्राप्त करने के लिये एकजुट होकर प्रयास करने चाहिये।
    • देश को पर्यावरण संरक्षण के लिये निर्धारित लक्ष्यों पर अधिक तत्परता से कार्य करने की आवश्यकता है, अन्यथा इन लक्ष्यों को प्राप्त करना कठिन हो जाएगा।
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