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वैश्विक कंपनियों का बंद होना : रोज़गार पर संकट 

(मुख्य परीक्षा: सामान्य , प्रश्न पत्र- 3 विषय- भारतीय अर्थव्यवस्था, योजना, संसाधन, विकास, रोज़गार से संबंधित मुद्दे)

संदर्भ

हाल ही में, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी (CMIE) द्वारा अगस्त 2021 के लिये बेरोज़गारी के आँकड़ें जारी किये गए हैं। इन आँकड़ों के अनुसार, जुलाई माह में बेरोज़गारी की दर 6.96 प्रतिशत थी, जो अगस्त माह में बढ़कर 8.3 प्रतिशत हो गई है। आँकड़ों से ज्ञात होता है कि, जुलाई माह में रोज़गार की कुल संख्या 399.7 मिलियन थी, जो अगस्त माह में घटकर 397.8 मिलियन रह गई है। इस प्रकार 1 माह में लगभग 1.9 मिलियन लोगों ने अपना रोज़गार खोया है।

कृषि क्षेत्र के रोज़गार में कमी

  • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि कृषि क्षेत्र में सृजित होने वाले रोज़गारों में सर्वाधिक कमी आई है। इस क्षेत् के कुछ रोज़गारों को गैर कृषि क्षेत्रों के द्वारा अवशोषित किया गया है। परंतु इन रोज़गारों की निम्न गुणवत्ता चिंता का विषय है।
  • आँकड़ों के अनुसार, कृषि क्षेत्र के रोज़गार में 8.7 मिलियन की कमी आई तथा गैर कृषि रोज़गारों (मुख्यतः छोटे व्यापार) में 6.8 मिलियन की वृद्धि हुई है। इस प्रकार कृषि क्षेत्र के रोज़गारों में आई कमी का बड़ा भाग निम्न स्तरीय सेवा गतिविधियों में समा गया है।

िवेश में बढ़ोतरी-रोज़गारों में वृद्धि

  • सामान्य अवधि में कृषि क्षेत्र से मुक्त मौसमी श्रमिकों को विनिर्माण क्षेत्र में समायोजित किया जाता है। परंतु वर्तमान में विनिर्माण क्षेत्र में भी नौकरियों में कमी आई है। अतः श्रमिकों को घरेलू क्षेत्र एवं निम्न स्तरीय सेवाओं में रोज़गार खोजने के लिये विवश होना पड़ा है।
  • विनिर्माण एवं उच्चतर सेवाओं में आई नौकरियों की कमी चालू वित्त वर्ष की तिमाही में आर्थिक सुधार के लिये बाधा उत्पन्न कर सकती है। प्राथमिक आर्थिक सिद्धांत के अनुसार, निवेश स्तर में बढ़ोत्तरी से उत्पादन में वृद्धि एवं रोज़गारों का  सृजन होता है। अतः सार्वजनिक निवेश महत्त्वपूर्ण है।
  • वर्तमान संदर्भ में माँग में आई कमी को दूर करने के लिये सार्वजनिक निवेश के साथ ही निजी निवेश को बढ़ाने की भी  आवश्यकता है। अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये निजी निवेश अत्यधिक आवश्यक है, परंतु इसका स्तर बहुत ही कम रहा है। इससे बेरोज़गारी में वृद्धि हुई है।
  • घरेलू पूँजी निर्माण को बढाने के लिये भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सहारा ले रहा है। इसमें और अधिक वृद्धि के लियेईज ऑफ़ डूइंग बिज़नेसको और अधिक आकर्षक बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि करके उत्पादन गतिविधियों को बढ़ाकर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों रूपों में रोज़गार को बढाया जा सकता है।

टो क्षेत्र: रोज़गार में योगदान

  • विनिर्माण के क्षेत्र में रोज़गार की धीमी वृद्धि भारत के लिये कोई नई बात नही है। यद्यपि विनिर्माण क्षेत्र के कुछ उपक्षेत्रों ने विदेशी निवेश को आकर्षित करके तथा उत्पादन के वैश्विक नेटवर्क से जुड़कर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में रोज़गार का सृजन किया है।
  • ऑटो सेक्टर को प्रायः विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन और रोज़गार में वृद्धि के चालक के रूप में जाना जाता है। एक अनुमान के अनुसार, ऑटोमोबाइल क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 19.1 मिलियन कर्मचारी कार्यरत हैं।
  • वर्तमान में लगभग 70 प्रतिशत से अधिक ऑटो अवयव (पुरजा) कंपनियाँ छोटे और मध्यम उद्यम हैं। वर्ष 2022 तक इस क्षेत्र में रोज़गारों के 38 मिलियन (अप्रत्यक्ष रोज़गार सहित) तक पहुँच जाने की संभावना है।

ैश्विक कंपनियों का पलायन 

  • हाल ही में अमेरिकी वाहन निर्माता कंपनी फोर्ड के भारत में उत्पादन बंद करने के निर्णय लिया है, इससे बड़ी संख्या में नौकरियों के प्रभावित होने की संभावना है। कंपनी के इस निर्णय से 4000 प्रत्यक्ष एवं 35000 अप्रत्यक्ष कर्मचारियों के प्रभावित होने की संभावना है।
  • इसके अतिरिक्त, अप्रैल 2020 में सिटी बैंक ने भी भारत में अपने रिटेल बैंकिंग कारोबार को बंद करने का निर्णय लिया है। इस बैंक की देश में 35 शाखाएँ हैं तथा इससे लगभग 4000 लोगों का रोज़गार प्राप्त होता था।
  • वर्ष 2014 में मोबाईल फ़ोन निर्माता कंपनीनोकियाने भारत में उत्पादन को बंद कर दिया था। तमिलनाडु के पेराम्बदुर में स्थित इस कंपनी के निम्न संयंत्र में लगभग 8,000 स्थायी कर्मचारी काम करते थे।

रोज़गार सृजन पर प्रभाव

  • उच्च स्तरीय वैश्विक कंपनियों द्वारा किसी देश में व्यवसाय को बंद करने पर रोज़गार दो रूपों में प्रभावित होता है

* इससे नए निवेशकों के मध्य उस देश में सुविधाओं एवं कार्ट संस्कृति को लेकर आशंका उत्पन्न होती है तथा वे निवेश के निर्णय पर पुनर्विचार करते हैं। अतः निवेश में कमी से रोज़गार में गिरावट आती है।
* द्वितीय- अच्छी कंपनियों के बाज़ार से बाहर होने पर श्रम बाज़ार में असंतुलन पैदा होता है, अर्थात उच्च कुशल श्रमिकों के अचानक से बेरोज़गार होने से बाज़ार में नए श्रमिकों का प्रवेश प्रभावित होता है। इससे मजदूरी का स्तर कम हो जाता है।

िष्कर्ष

मुक्त व्यापार नीतियों के प्रति बढ़ते संदेह और संरक्षणवाद ने नीतिगत वातावरण जोखिम एवं अप्रत्याशितता में वृद्धि की है। इससे वैश्विक फर्मों द्वारा मौजूदा एवं नए निवेशों पर गहन चिंतन किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में घरेलू पूँजी निर्माण एवं निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता है, तभी रोज़गारों में भी वृद्धि संभव हो सकेगी।

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