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तटीय विनियमन क्षेत्र तथा पर्यावरण संरक्षण

(सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

हाल ही में, बृहन्मुंबई नगर निगम (Brihan Mumbai Municipal Corporation : BMC) ने तटीय विनियमन क्षेत्र (Coastal Regulation Zone: CRZ) के नियमों के उल्लंघन और अवैध निर्माण की शिकायत के बाद एक केंद्रीय मंत्री के जुहू स्थित बंगले का निरीक्षण किया।

तटीय विनियमन क्षेत्र नियम : पृष्ठभूमि

  • सी.आर.ज़ेड. नियम, ‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम,1986’ के तहत निर्मित किये गए हैं। सर्वप्रथम वर्ष 1991 इस संबंध में अधिसूचना ज़ारी की गई थी, तब से लगभग 34 बार इनमें संशोधन प्रस्तुत किये गए हैं।
  • वर्ष 1991 में प्रस्तुत अधिसूचना में समुद्री लहरों के सक्रिय क्षेत्र में जनसंख्या तथा  वाणिज्यिक गतिविधियों को विनियमित करना प्रमुख उद्देश्य था।
  • इसके माध्यम से उच्च ज्वार रेखा (High Altitude Line: HTL) से 500 मीटर तक के क्षेत्र का सीमांकन करते हुए विभिन्न भूमि उपयोग, विकासात्मक गतिविधियों तथा संवेदनशीलता के आधार पर तटीय क्षेत्र को 4 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया।
  • वर्ष 1991 में अधिसूचित नियमों में वर्ष 2011 में संशोधन प्रस्तुत किये गए तथा बाद में वर्ष 2018 में तटीय विनियमन हेतु सरकार ने सार्वजनिक रूप से एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया। वर्ष 2019 में इस संबंध में एक अधिसूचना जारी की गई।
  • नवीनतम अधिसूचना के माध्यम से महत्त्वपूर्ण बदलाव प्रस्तुत किये गए, जिससे पहले प्रतिबंधित क्षेत्रों में विभिन्न वाणिज्यिक गतिविधियों की अनुमति दी गई।

नवीनतम तटीय विनयमन क्षेत्र नियम, 2018

  • इसके तहत तटीय क्षेत्र को निम्नवत श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है :
    • सी.आर.ज़ेड. I- इसमें पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र, जैसे- मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियाँ, खारा दलदली क्षेत्र, कछुओं का प्रजनन क्षेत्र और अंतर-ज्वारीय क्षेत्र शामिल हैं।
    • सी.आर.ज़ेड. II- तटरेखा के करीब के क्षेत्र और वे क्षेत्र जिन्हें विकसित (शहरी क्षेत्र) किया गया है।
    • सी.आर.ज़ेड. III- ग्रामीण तटीय क्षेत्रों सहित वे तटीय क्षेत्र जो पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हैं।
    • सी.आर.ज़ेड. IV- निम्न ज्वार रेखा (LTL) से भारत के क्षेत्रीय जल की सीमा तक का जल क्षेत्र।
  • वर्ष 2018 की अधिसूचना के अनुसार केवल सी.आर.ज़ेड. I और सी.आर.ज़ेड. IV के तहत परियोजनाओं को पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी की आवश्यकता होगी। जबकि, सी.आर.ज़ेड.II और सी.आर.ज़ेड.III से संबंधित परियोजनाओं की मंजूरी के लिये संबंधित राज्य सरकारों को सशक्त किया गया है।
  • यह सी.आर.ज़ेड. III (ग्रामीण क्षेत्र) को दो श्रेणियों में उप-वर्गीकृत करता है :
    • सी.आर.ज़ेड. III A – ऐसी घनी आबादी वाले सी.आर.ज़ेड. III क्षेत्र, जहाँ वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जनघनत्व 2161 प्रतिवर्ग किमी. से अधिक हो, उन्हें सी.आर.ज़ेड. III A के रूप में नामित किया जाएगा। ऐसे क्षेत्रों में सी.आर.जेड. अधिसूचना 2011 में निर्धारित एच.टी.एल. से 200 मीटर की तुलना में एच.टी.एल. से 50 मीटर का क्षेत्र ‘नो डेवलपमेंट ज़ोन’ होगा।
    • सी.आर.ज़ेड. III B – इसमें वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 2161 प्रति वर्ग किमी. से कम जनसंख्या घनत्व वाले ग्रामीण क्षेत्रों को नामित किया जाएगा। ऐसे क्षेत्रों में सी.आर.जेड. नियम, 2011 के अनुसार एच.टी.एल. से 200 मीटर का ‘नो डेवलपमेंट ज़ोन’ होगा।
  • सी.आर.जेड. 2018 अधिसूचना, सी.आर.जेड.II क्षेत्रों में तल-क्षेत्र अनुपात या तल-क्षेत्र सूचकांक की आवश्यकता को समाप्त करती है, ताकि ऐसे क्षेत्रों के पुनर्विकास तथा उभरती जरूरतों को पूरा करने के लिये निर्माण परियोजनाओं की अनुमति मिल सके।
  • यह समुद्र तटों पर अस्थायी पर्यटन सुविधाओं, जैसे- छोटे कमरों, शौचालय, पेयजल सुविधाओं इत्यादि के निर्माण की अनुमति देती है। वर्तमान में सी.आर.जेड.-III के ‘नो डेवलपमेंट ज़ोन’ क्षेत्रों में भी इसकी अनुमति दी गई है, लेकिन ऐसी सुविधाओं की स्थापना के लिये न्यूनतम दूरी एच.टी.एल. से 10 मीटर दूर होनी चाहिये।
  • इस अधिसूचना में मुख्य भूमि तट के नजदीक सभी द्वीपों और मुख्य भूमि में स्थित सभी पश्चजल द्वीपों के 20 मीटर तक का क्षेत्र ‘नो डेवलपमेंट ज़ोन’ घोषित किया गया है।
  • यह अधिसूचना पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों के संरक्षण और प्रबंधन के लिये विशिष्ट दिशानिर्देश प्रदान करती है।
  • यह अधिसूचना तटीय क्षेत्रों में प्रदूषण के मुद्दे को हल करने के लिये उपचार सुविधाओं को पारगम्य गतिविधियों के रूप में अनुमति देती है। साथ ही, रक्षा और रणनीतिक परियोजनाओं के लिये आवश्यक छूट भी प्रदान करती है।

          तटीय क्षेत्रों के विनियमन का महत्त्व

          • मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियों जैसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों का संरक्षण के साथ-साथ सुनामी और चक्रवात के विरुद्ध सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है।
          • मछुआरों व अन्य तटीय समुदायों के जीवन में सुधार करने के दृष्टिकोण से भी इनकी महत्ता है।
          • जलवायु परिवर्तन और उच्च तीव्रता वाले चक्रवातों के प्रभावों को कम करने के लिये आपदा-पूर्व तैयारी में सहायता सुनिश्चित हो जाती है।
          • तटीय पर्यावरण संरक्षण के साथ विकास को संतुलित करने में भी इनकी अहम भूमिका है।

          चिंताएँ

          • नवीनतम अधिसूचना पर्यावरण संरक्षण की अपेक्षा विकासात्मक गतिविधियों पर अधिक बल देती है।
          • संवेदनशील क्षेत्रों में अत्यधिक विकासात्मक गतिविधयों की अनुमति से वहाँ की प्रजातीय विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जो निकट भविष्य में खाद्य-शृंखला के समक्ष संकट उत्पन्न कर सकती है।
          • असंतुलित विकास से इन क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता में वृद्धि होगी, जो व्यापक स्तर पर इन क्षेत्रों में जान-माल को क्षति पहुचाएँगे।

          निष्कर्ष

          विकासशील देश होने के नाते भारत में विकासात्मक गतिविधियों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। भारत को विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण पर भी समान रूप से बल देना चाहिये, ताकि वह अपनी जलवायु परिवर्तन से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के साथ-साथ सतत विकास लक्ष्यों को भी प्राप्त कर सके।

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