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करुणामय नेतृत्व : सफलता का अपरिहार्य तत्व

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-4: सिविल सेवा के लिये अभिरुचि तथा बुनियादी मूल्य)

संदर्भ

वर्तमान मानव समाज में, विशेषकर राजनीतिक व कॉर्पोरेट क्षेत्रों से सम्बद्ध नेतृत्वकर्ताओं में ‘करुणा’ का अभाव देखा जा रहा है। इसलिये करुणामय नेतृत्व की चर्चा अति प्रासंगिक है।

करुणा क्या है 

  • करुणा को दूसरों के प्रति दयालु होने और मदद की भावना रखने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसका अर्थ है दूसरों के जीवन और अनुभवों के बारे में विचारशील और जागरूक होना।
  • यह निष्ठुरता या उदासीनता के विपरीत की अवस्था है, और यह उन आवश्यक गुणों में से एक है जो यह निर्धारित करते हैं कि कोई व्यक्ति एक सभ्य मानव है या नहीं।
  • यह सहानुभूति और समानुभूति के गुणों से भी उच्च अवस्था है, जो मूलभूत रूप में समझ की गहरी भावना को दर्शाती है।
  • करुणा से आशय अन्य व्यक्तियों को अलग-अलग प्राणियों के रूप में देखने से परे है। इसका आशय है कि उन्हें अपने हिस्से के रूप में देखना और जो वे अनुभव कर रहे हैं उससे बहुत गहरे स्तर पर संबंधित होना। इसमें न केवल दूसरे व्यक्तियों के प्रति समानुभूतिक चिंतन करना बल्कि आवश्यकतानुरूप उनकी सहायता के लिये तत्पर होना भी शामिल है।

करुणामय नेतृत्वकर्ता कौन है

  • करुणायुक्त नेतृत्वकर्ता प्रत्येक सदस्य की भूमिका को महत्ता प्रदान करते हुए उसे संगठन के ताने-बाने का आवश्यक सूत्र मानता है।
  • करुणामय नेतृत्व अल्पकालिक या तात्कालिक लक्ष्य की प्राप्ति पर केंद्रित नहीं है; बल्कि, यह इस बात पर केंद्रित है कि व्यक्ति, या संगठन के लिये सबसे अच्छा क्या है, और यह अन्य कारकों पर विचार करता है जो स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं।

हमें करुणा से निर्देशित नेताओं की आवश्यकता क्यों है

भावनात्मक संकट

आज दुनिया एक भावनात्मक संकट का सामना करती दिख रही है। तनाव, चिंता और अवसाद की दर पहले से कहीं अधिक है। उच्च व निम्न वर्ग के बीच की खाई बढ़ रही है। लाभकेंद्रित विकास ने व्यक्तिगत, पर्यावरणीय व सामाजिक प्रतिबद्धता को आघात पहुँचाया है।

परस्पर निर्भरता की अज्ञानता

  • परस्पर निर्भरता की अज्ञानता से एक-दूसरे को 'हम’ और ‘वे' के रूप में देखने की हमारी प्रवृत्ति उत्पन्न होती है।एक ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में सहभागियों के रूप में, हम एक दूसरे पर निर्भर हैं, जबकि जलवायु और वैश्विक पर्यावरण में परिवर्तन हम सभी को प्रभावित करते हैं। एक मनुष्य के तौर पर हम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से समान हैं।
  • उदाहरण के लिये, मधुमक्खियों के पास कोई संविधान, पुलिस या नैतिक प्रशिक्षण नहीं है, लेकिन वे अपनी आजीविका के लिये एक साथ काम करती हैं। दूसरी ओर, मनुष्य के पास संविधान, कानूनी प्रणाली और पुलिस बल हैं; हमारे पास बुद्धि है और प्रेम और स्नेह के रूप में संवेदन क्षमता है। फिर भी, हमारे अनेक असाधारण गुणों के बावजूद हम सहयोग करने में कम सक्षम प्रतीत होते हैं। यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि कोई भी समाज सहयोग की भावना पर ही निरंतर अस्तित्व में रह सकता है।

दया और देखभाल का अभाव 

  • किसी भी संगठन में लोग प्रतिदिन एक साथ मिलकर काम करते हैं, लेकिन इसके बावजूद कई लोग अकेलेपन और तनाव से ग्रस्त हैं। सामाजिक प्राणी होते हुए भी हमें एक-दूसरे के प्रति उत्तरदायित्व का अभाव है।
  • भौतिक विकास और धन संचय पर अधिक ध्यानकेंद्रण ने दया और देखभाल के रूप में बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं की उपेक्षा की है। इसलिये, हमें आंतरिक मूल्यों के विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

करुणामय नेतृत्व के लिये उठाए जाने वाले कदम 

  • मनुष्य के रूप में हमारे पास प्रकृति प्रदत्त बुद्धि है जो हमें भविष्य के लिये विश्लेषण और योजना बनाने की अनुमति देती है। हमारे पास ऐसी भाषा है जो हमें अपनी बातों को दूसरों तक पहुँचाने में सक्षम बनाती है। चूँकि, क्रोध और मोह जैसी विनाशकारी भावनाएँ स्पष्ट रूप से अपनी बुद्धि का उपयोग करने की हमारी क्षमता को प्रभावित करती हैं, इसलिये हमें उनसे निपटने की आवश्यकता है। आधुनिक समाज को मानसिक शांति की आवश्यकता है। 
  • भय और चिंता सरलतापूर्वक क्रोध और हिंसा का रूप ले लेती है। भय के विपरीत विश्वास सौहार्दता को बढ़ावा देता है। करुणा भय को भी कम करती है, जिससे व्यक्ति दूसरों के कल्याण के लिये चिंतन करता है। जब हम क्रोध या मोह के प्रभाव में होते हैं, तो हम स्थिति के बारे में पूर्ण और यथार्थवादी दृष्टिकोण लेने की अपनी क्षमता में सीमित होते हैं। वहीं जब मन करुणामय होता है, तो वह शांत होता है और हम व्यावहारिक रूप से दृढ़ संकल्प के साथ अपने तर्क-बोध का उपयोग करने में सक्षम होते हैं।
  • हम स्वाभाविक रूप से अपनी आजीविका के लिये स्वार्थ से प्रेरित होते हैं। लेकिन हमें दूसरों के हितों को ध्यान में रखते हुए तर्कपूर्ण स्व-हित की आवश्यकता है जो उदार और सहयोगी हो। सहयोग मित्रता से आता है, मित्रता विश्वास से आती है और विश्वास दयालुता से आता है। एक बार जब आप दूसरों के लिये वास्तविक चिंता का भाव रखते हैं, तो वहाँ ईर्ष्या व शोषण के लिये कोई जगह नहीं होती है। इसकी बजाय व्यक्ति का आचरण सत्यनिष्ठ और जवाबदेह से ओत-प्रोत होता है। 
  • सुखी जीवन का अंतिम स्रोत सौहार्दता है। यहाँ तक ​​कि जानवर भी करुणा की भावना प्रदर्शित करते हैं। जब मनुष्य की बात आती है, तो करुणा को बुद्धि के साथ जोड़ा जा सकता है। तर्क के प्रयोग के द्वारा करुणा को समस्त विश्व तक पहुँचाया जा सकता है। विनाशकारी भावनाएँ अज्ञान से संबंधित हैं, जबकि करुणा बुद्धि से संबंधित एक रचनात्मक भावना है। परिणामतः इसे सिखाया और सीखा जा सकता है।
  • करुणा और दूसरों के प्रति चिंता से प्रेरित कार्य सामान्यतया शांतिपूर्ण होते हैं। हम केवल प्रार्थना करने से दुनिया में शांति नहीं लाएँगे; हमें शांति भंग करने वाली हिंसा और भ्रष्टाचार से निपटने के लिये कदम उठाने होंगे। अगर हम कोई कदम नहीं उठाते हैं तो हम बदलाव की उम्मीद नहीं कर सकते।

निष्कर्ष

बौद्ध दर्शन करुणामय नेतृत्व की तीन शैलियों का वर्णन करता है- पहला है ‘अग्रणी’, जो सामने से नेतृत्व करता है, जोखिम लेता है और एक उदाहरण स्थापित करता है। दूसरा है ‘फेरीवाला’, जो वास्तविक दुनिया व ज्ञानोदय के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करता है। और तीसरा है ‘चरवाहा’, जो अपनी तुलना में अपने समूह के प्रत्येक सदस्य की सुरक्षा को वरीयता देता है। तीनों शैलियों में तीन अलग-अलग दृष्टिकोण हैं लेकिन उनमें जो समान है, वह है उन लोगों के कल्याण के लिये एक व्यापक चिंता, जिनका वे नेतृत्व करते हैं।

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