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मंत्रिपरिषद की संरचना और उत्तरदायित्व

संदर्भ

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने 9 जून, 2024 को शपथ ली। वर्तमान मंत्रिपरिषद में प्रधान मंत्री, 30 कैबिनेट मंत्री, 5 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री और 36 राज्य मंत्री शामिल हैं।

क्या होती है मंत्रिपरिषद

संवैधानिक प्रावधान 

  • अनुच्छेद 74 : राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रि-परिषद होगी जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में ऐसी सलाह के अनुसार कार्य करेगा। 
    • राष्ट्रपति मंत्रि-परिषद से ऐसी सलाह पर साधारणतया या अन्यथा पुनर्विचार करने की अपेक्षा कर सकता है और राष्ट्रपति ऐसे पुनर्विचार के पश्चात्‌ दी गई सलाह के अनुसार ही कार्य करता है।
    • मंत्रिपरिषद् द्वारा राष्ट्रपति को दी गई सलाह पर किसी न्यायालय में जांच नहीं की जा सकती है।
  • अनुच्छेद 75 : 
    • मंत्रियों की नियुक्ति : अनुच्छेद 75 (1) के अनुसार, प्रधान मंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और अन्य मंत्रियों को प्रधान मंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
    • कार्यालय की अवधि : अनुच्छेद 75 (2) के अनुसार, मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद धारण करते हैं।
    • सामूहिक उत्तरदायित्व : अनुच्छेद 75 (3) में यह प्रावधान है कि, मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है।
    • वेतन एवं भत्ते : अनुच्छेद 75 (6) के अनुसार,  मंत्रियों के वेतन और भत्ते संसद द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।

मंत्रिपरिषद की संरचना

  • मंत्रिपरिषद में कैबिनेट मंत्री, स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री, राज्य मंत्री या उप मंत्री शामिल होते हैं।
    • मंत्री को लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य होना चाहिए और यदि वह संसद का सदस्य नहीं है, तो अपनी नियुक्ति के छह महीने के भीतर सदस्य बन जाना चाहिए।
  • कैबिनेट मंत्री : जो सांसद सबसे अनुभवी होते हैं, उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया जाता है। 
    • कैबिनेट मंत्री सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करते हैं। उन्हें जो मंत्रालय दिया जाता है, उसकी पूरी जिम्मेदारी उनकी होती है। 
    • कैबिनेट मंत्री के पास एक से अधिक मंत्रालय भी हो सकते हैं। 
    • कैबिनेट की बैठक में कैबिनेट मंत्री का शामिल होना अनिवार्य होता है। सरकार अपने सभी फैसले कैबिनेट की बैठक में लेती है।
  • राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) : कैबिनेट मंत्री के बाद राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का नंबर आता है। ये भी सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करते हैं।
    • मंत्रालय की सारी जिम्मेदारी इनकी होती है। स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री कैबिनेट मंत्री के प्रति उत्तरदायी नहीं होते हैं, लेकिन ये कैबिनेट की बैठक में शामिल नहीं होते हैं।
  • राज्यमंत्री : राज्यमंत्री कैबिनेट मंत्रियों के सहयोगी के रूप में कार्य करते हैं। ये प्रधानमंत्री को नहीं, बल्कि कैबिनेट मंत्री को रिपोर्ट करते हैं। 
    • एक कैबिनेट मंत्री के अधीनस्थ एक या दो राज्यमंत्री बनाए जाते हैं, जो कैबिनेट मंत्री के नेतृत्व में काम करते हैं।
    • कैबिनेट मंत्री की अनुपस्थिति में मंत्रालय का सारा काम-काज सँभालते हैं।

मंत्रिपरिषद की भूमिका और जिम्मेदारी

  • सर्वोच्च निर्णय लेने वाला प्राधिकरण : मंत्रिपरिषद आर्थिक नीतियों, रक्षा, विदेशी मामलों और आंतरिक सुरक्षा सहित विभिन्न मुद्दों पर कार्यकारी निर्णय लेती है।
  • सरकार की नीति बनाने वाली मुख्य संस्था : मंत्रिपरिषद देश के लिए नीतियां और कार्यक्रम तैयार करने के लिए जिम्मेदार है। 
    • यह राष्ट्र को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों पर चर्चा, विचार-विमर्श और निर्णय लेती है।
  • सर्वोच्च कार्यकारी प्राधिकरण : प्रत्येक मंत्री उसे सौंपे गए विभाग के प्रशासन के लिए जिम्मेदार है।
    • वह सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करताहै।
  • केंद्र सरकार का मुख्य समन्वयक : प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति के कार्यों में सहायता और सलाह देती है। 
    • राष्ट्रपति अपने कार्यों के अभ्यास में ऐसी सलाह के अनुसार कार्य करता है। 
  • विधि निर्माण : मंत्रिपरिषद विधायी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मंत्री विधेयक पेश करते हैं, बहस में भाग लेते हैं और संसद में कानूनों का पारित होना सुनिश्चित करते हैं।
  • बजट एवं वित्तीय मामले : मंत्रिपरिषद केंद्रीय बजट तैयार करती है और सदन में प्रस्तुत करती है, जिसमें वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के राजस्व और व्यय की रूपरेखा होती है। 
  • विदेश नीति : मंत्रिपरिषद सरकार की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है, जो आवश्यक निर्देश देकर भारत के विदेशी संबंधों की दिशा निर्धारित करती है।

किचन कैबिनेट या आंतरिक कैबिनेट

  • मंत्रिपरिषद के एक छोटे और अनौपचारिक निकाय को किचन कैबिनेट या आंतरिक कैबिनेट के रूप से संबोधित किया जाता है। इसमें प्रधान मंत्री और उसके कुछ प्रभावशाली सहयोगी ही शामिल होते हैं। 
  • इसमें मत्रिपरिषद के बाहर से प्रधानमंत्री के विश्वासपात्र व्यक्ति भी शामिल हो सकते हैं।  

गुण 

  • यह एक छोटी इकाई होती है अतः एक बड़े मंत्रिमंडल की तुलना में अधिक कुशलता से निर्णय लिए जा सकते हैं। 
  • यह एक बड़े मंत्रिमंडल की तुलना में अधिक बार और शीघ्र बैठक आयोजित कर सकते हैं तथा कार्यों को अधिक तेजी से निपटा सकते हैं।
  • नीतिगत निर्णयों में गोपनीयता बनाए रखने में अधिक मदद मिलती है। 

दोष

  • सम्पूर्ण मत्रिपरिषद के अधिकार हतोत्साहित होते हैं और निर्णय लेने की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया सिमित होती है। 
  • चूँकि इसमें मंत्रिपरिषद के बाहर के सदस्य भी शामिल हो सकते हैं, जिससे संवैधानिक और कानूनी प्रक्रिया बाधित हो सकती है। 

मंत्रिपरिषद के विस्तार में संवैधानिक सीमा 

  • स्वतंत्रता के समय पहली मंत्रिपरिषद में प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में केवल 15 मंत्री थे।
  • 1952 में पहले आम चुनाव के बाद, प्रधान मंत्री नेहरू ने लगभग 30 मंत्रियों को अपनी मंत्रिपरिषद में शामिल किया था।
  • समय के साथ मंत्रिपरिषद का आकार धीरे-धीरे बढ़कर 50-60 सदस्यों तक पहुंच गया। 1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो उनकी मंत्रिपरिषद में 74 मंत्री थे। 
  • न्यायमूर्ति वेंकटचलैया की अध्यक्षता में संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग (2000) ने केंद्र/राज्य स्तर पर मंत्रियों की संख्या के लिए लोकसभा/विधानसभा की कुल संख्या का 10% की सीमा का सुझाव दिया।
  • 91वां संवैधानिक संशोधन (2003) ने प्रधान मंत्री/मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या को लोकसभा/राज्य विधान सभा की कुल ताकत के 15% तक सीमित कर दिया।
    • केंद्रीय स्तर पर कोई न्यूनतम आवश्यकता नहीं है, लेकिन छोटे राज्यों में कम से कम 12 मंत्री होने चाहिए।
    • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के लिए, अधिकतम सीमा इसकी विधानसभा की कुल ताकत का 10% है।

मंत्रिपरिषद से जुड़ी विसंगतियां 

  • संसदीय सचिवों की नियुक्ति: राज्य 91वें संशोधन द्वारा लगाई गई मंत्रियों की संख्या की सीमा को दरकिनार करने के लिए संसदीय सचिवों (PS) की नियुक्ति करते हैं।
      • संसदीय सचिव का कार्यालय ब्रिटिश प्रणाली से उत्पन्न हुआ है। यह पद पहली बार 1951 में बनाया गया था।
      • केंद्र सरकार में 1990 के बाद से संसदीय सचिव पद पर कोई नियुक्ति नहीं की गई है।
  • संसदीय सचिव के संबंध में न्यायिक हस्तक्षेप
      • पंजाब और हरियाणा, राजस्थान, बॉम्बे, कलकत्ता, तेलंगाना, कर्नाटक आदि के उच्च न्यायालयों ने अप्रत्यक्ष रूप से मंत्रिपरिषद पर अधिकतम सीमा का उल्लंघन करने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र के तहत राज्यों में संसदीय सचिवों की नियुक्ति को रद्द कर किया है या उस पर सवाल उठाया है। 
      • जुलाई 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी संसदीय सचिवों की नियुक्ति के लिए असम सरकार द्वारा 2004 में पारित कानून को असंवैधानिक घोषित किया है।
      • जनवरी 2024 में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में है राज्य में नियुक्त छह संसदीय सचिवों को मंत्री के रूप में कार्य करने या मंत्रियों को प्रदान की जाने वाली सुविधाओं का लाभ उठाने से रोक दिया था।
  • कोई कानूनी जिम्मेदारी नहीं 
      • भारत में, मंत्री की विधिक जिम्मेदारी की व्यवस्था का कोई प्रावधान नहीं है। यह आवश्यक नहीं है कि सार्वजनिक कार्य के लिए राष्ट्रपति के आदेश को किसी मंत्री द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित किया जाए।
      • इसके विपरीत ब्रिटेन में, किसी भी सार्वजनिक कार्य के लिए राजा के आदेश को संबंधित मंत्री द्वारा प्रतिहस्ताक्षर किया जाता है।
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