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समावेशी शहर की अवधारणा

(प्रारंभिक परीक्षा : शहरीकरण, रोज़गार, सकल घरेलू उत्पाद, अनौपचारिक क्षेत्र, गरीबी, उत्पादकता, एस.डी.जी.)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 3 : महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी एवं विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय; समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय)

संदर्भ 

  • वर्तमान में शहर दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में लगभग 80% का योगदान देते हैं। 50% से अधिक लोग शहरी बस्तियों में निवास करते हैं और संभवत: वर्ष 2050 तक यह आंकड़ा 70% तक पहुंच जाएगा। 
  • भविष्य में शहरों की जनसांख्यिकी एवं विकास में महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र समावेशी शहर की अवधारणा अपनाने पर जोर दे रहा है।

समावेशी शहर की अवधारणा

  • समावेशी शहर की अवधारणा का विकास संयुक्त राष्ट्र द्वारा सतत विकास लक्ष्य (SDG)-2030 के माध्यम से किया गया है। 
  • एस.डी.जी. 11 का लक्ष्य ‘शहरों एवं मानव बस्तियों को समावेशी, सुरक्षित, लचीला व टिकाऊ बनाना’ है।
    • एस.डी.जी. 'विकासपूर्ण समावेशन' पर ध्यान केंद्रित करते हैं जिसका लक्ष्य गरीबी एवं भूख को समाप्त करना और स्वास्थ्य व शिक्षा सुनिश्चित करना है। 
    • एस.डी.जी. का उद्देश्य सार्वभौमिक लैंगिक समानता, जल एवं स्वच्छता, आधुनिक ऊर्जा व सभी के लिए सभ्य कार्य के अवसर प्रदान करना है। 

समावेशी शहर की प्रमुख विशेषताएं 

  • शहरी परिप्रेक्ष्य से सभी लोगों की जरूरतों व योगदान को समान रूप से महत्व देते हो।
  • शहरी कामकाजी गरीबों सहित सभी निवासियों को शासन, योजना एवं बजट प्रक्रियाओं में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करते हो।
  • कामकाजी गरीबों को सुरक्षित व सम्मानजनक आजीविका, किफायती आवास, पानी/स्वच्छता एवं विद्युत आपूर्ति जैसी बुनियादी सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करते हो।

समावेशी शहरों में शामिल प्रमुख कारक 

  • विश्व बैंक के अनुसार, समावेशी शहरों की अवधारणा में कई स्थानिक, सामाजिक व आर्थिक कारक शामिल हैं।
    • स्थानिक समावेशन : शहरी समावेशन के लिए आवास, पानी व स्वच्छता जैसी किफायती जरूरतें प्रदान करने की आवश्यकता होती है। आवश्यक बुनियादी ढांचे एवं सेवाओं तक पहुंच का अभाव कई वंचित परिवारों के लिए दैनिक संघर्ष की तरह होता है। 
    • सामाजिक समावेशन : एक समावेशी शहर को सर्वाधिक हाशिए पर रहने वाले लोगों सहित सभी के समान अधिकारों व भागीदारी की गारंटी देने की आवश्यकता है। वर्तमान में शहरी गरीबों के लिए अवसरों की कमी एवं सामाजिक रूप से बहिष्कृत लोगों की आवाज ने शहरों में सामाजिक उथल-पुथल को बढ़ा दिया है। 
    • आर्थिक समावेशन : नौकरियाँ सृजित करना और शहरी निवासियों को आर्थिक विकास के लाभों का प्रयोग करने का अवसर देना समग्र शहरी समावेशन का एक महत्वपूर्ण घटक है।

भारत में शहरीकरण की स्थिति 

  • भारत में 1991-2011 के दौरान कुल जनसंख्या में 35% की वृद्धि हुई, जबकि शहरी आबादी में 85% की वृद्धि हुई।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 65.5 मिलियन लोग मलिन बस्तियों में निवास करते हैं, जो इसकी शहरी आबादी का 17.4% है। 
  • भारतीय शहरों में सामान्यतः नियोजित विस्तार के बजाए सहज विकास हुआ है। 
  • भारत में शहरी क्षेत्रों के विकास के समक्ष कई चुनौतियां हैं; जैसे-
    • आवास की समस्या एवं झुग्गियों में वृद्धि; 
    • बुनियादी ढांचे एवं सामाजिक सुविधाओं की मांग के साथ तालमेल की चुनौती; 
    • शहरों में मानव संसाधन का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करना। 

समावेशी शहरीकरण के समक्ष चुनौतियां 

रोजगार का अभाव 

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने 'वैश्विक रोजगार एवं सामाजिक आउटलुक प्रवृत्ति: 2024' रिपोर्ट में वर्ष 2024 में वैश्विक बेरोजगारी दर 5.2% होने का अनुमान लगाया है, जो वर्ष 2023 में 5.1% से अधिक है। 
    • इसका अर्थ है कि वर्ष 2024 में अतिरिक्त 20 लाख कर्मचारी नौकरियों की तलाश में होंगे। 
    • इस बात की भी संभावना है कि रोजगार के क्षेत्र में श्रम बाज़ार का परिदृश्य एवं वैश्विक बेरोज़गारी की स्थिति बदतर हो जाएगी।  
  • इसलिए, शहरों में अनेक प्रयासों के बावजूद हमेशा ऐसे नागरिकों की संख्या पाई जाती है जो रोजगार पाने में असमर्थ रहे हैं।

आश्रय की अनुपलब्धता

  • रोजगार के अलावा किफायती एवं सार्वभौमिक आश्रय की उपलब्धता समावेशिता मापन का एक महत्वपूर्ण मानक है। 
    • न्यूयॉर्क शहर में प्रत्येक 83 नागरिकों में से एक बेघर है।
    • लंदन के 25 प्रतिशत लोग गरीबी में रहते हैं। लंदन में भी नींद की समस्या (पर्याप्त आश्रय के बिना बेघर और सड़कों पर सोने वाले लोग) में सर्वाधिक वृद्धि देखी गई है। 
  • एशियाई विकास बैंक ने 26 देशों के 211 शहरों के नमूने का अध्ययन किया और पाया कि 90% से अधिक शहरों में औसत आय वाले परिवारों के लिए घर की कीमतें गंभीर रूप से महंगी थीं।
  • किफायती औपचारिक आवास तक पहुंच की कमी के कारण अधिकांश शहरी प्रवासी झुग्गियों, अनधिकृत मकानों एवं उप-शहरी क्षेत्रों में बस्तियों में आश्रय लेते हैं।
  • सभी बड़े शहर 'रोज़गार योग्यता' एवं 'आश्रय योग्यता' के विरोधाभास से ग्रस्त हैं। 
    • एक ओर सबसे बड़े शहर नौकरियां प्रदान करने की सर्वाधिक संभावना (ज्यादातर अनौपचारिक क्षेत्र में) रखते हैं। 
    • दूसरी ओर वे रहने योग्य स्थान को अप्राप्य बना देते हैं। 

संवेदनशील वर्ग की सुरक्षा 

  • लैंगिक समावेशन या बुजुर्गों संबंधी मुद्दों में शहरों का प्रदर्शन बेहतर नहीं दिखता है। दुनिया भर में कार्यबल में महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में कम है। विश्व स्तर पर महिलाओं को समान कार्यों के लिए पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है। 
  • इसी तरह शहरों में रहने पर बुजुर्गों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए, लंदन में कई क्षेत्रों में इसका परिवहन नेटवर्क वृद्धों या कम गतिशीलता वाले दिव्यांगों के लिए दुर्गम है।
  • महिलाओं, अश्वेतों, एशियाई लोगों, अन्य अल्पसंख्यक समूहों व दिव्यांगों को रोज़गार एवं वेतन अंतराल का सामना करना पड़ता है।
  • स्वभावत: शहर ऐसी अर्थव्यवस्थाएँ हैं जो दक्षता एवं उत्पादकता पर बल देती हैं और दुर्भाग्य से वृद्ध लोगों की ज़रूरतें उत्पादकता की ज़रूरतें नहीं हैं। ये नैतिकता एवं मानवता के मुद्दे हैं।

आगे की राह 

  • आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय के अनुसार, भारत के विकास पथ के लिए शहरों/कस्बों को बढ़ने, फलने-फूलने, निवेश व उत्पादकता के जीवंत केंद्र बनने के लिए पर्याप्त अवसर पैदा करने की आवश्यकता है।
  • समावेशी शहरीकरण प्राप्त करने के लिए समावेशन, पारिस्थितिक संतुलन, बेहतर प्रशासन, कुशल संसाधन प्रबंधन एवं समुदायों, शहरों व क्षेत्रों के लिए एक विशिष्ट पहचान के आधार पर स्थिरता को बढ़ावा देने वाला एक विकास मॉडल आवश्यक है।
  • शहर अभूतपूर्व प्रवासन से उत्पन्न होने वाली मांगों के प्रति असमर्थ रहे हैं, इसके लिए अपर्याप्त बुनियादी ढांचे में सुधार और अनौपचारिक बस्तियों की अनियंत्रित वृद्धि को नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
  • वर्तमान में शहरी गरीबों, विकलांग व्यक्तियों, महिलाओं, बच्चों, युवाओं व बुजुर्गों सहित शहरों में सबसे कमजोर समूहों पर ध्यान केंद्रित करके सभी के लिए शहरी उत्पादकता और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने की आवश्यकता है।
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