संदर्भ
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) खाद्य पैकेटों के अगले हिस्से पर स्वास्थ्य लेबल्स के लिये एक मसौदा विनियमन जारी करने की योजना बना रहा है। इस विनियम में किसी उत्पाद में नमक, चीनी और वसा की मात्रा अधिक होने की सूचना उपभोक्ताओं के लिये प्रदर्शित करने का प्रावधान है। हालाँकि, इसको विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
वर्तमान घटनाक्रम
- एफ.एस.एस.ए.आई. द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले मसौदे में उत्पादों को ‘हेल्थ-स्टार रेटिंग’ प्रदान करने का प्रस्ताव है।
- इस प्रणाली को सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों एवं उपभोक्ता संगठनों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इनका मत है कि यह प्रणाली भ्रामक और अप्रभावी सिद्ध होगी।
- स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसके स्थान पर ‘चेतावनी लेबल’ प्रणाली को लागू करने का सुझाव दे रहे हैं, जो उपभोक्ता के व्यवहार में बदलाव लाने में सक्षम है।
फ्रंट-ऑफ़-पैकेज लेबलिंग की आवश्यकता
- विगत तीन दशकों में मातृ और नवजात पोषण संबंधी बीमारियों के साथ-साथ संचारी रोगों के कारण मृत्यु दर में गिरावट आई है और भारत में जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है, जबकि गैर-संचारी रोग (NCD) एवं चोटों (Injuries) का समग्र बीमारी में सर्वाधिक योगदान है।
- देश में वर्ष 2016 में होने वाली असामयिक मृत्यु और विकलांगता के 55% मामलों के लिये गैर-संचारी रोग जिम्मेदार हैं। भारतीयों में उदर के आसपास अत्यधिक चर्बी होने के परिणामस्वरूप हृदय रोग एवं टाइप 2 मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-2021) के अनुसार, 47.7% पुरुषों और 56.7% महिलाओं में कमर से नितंब का अनुपात अत्यधिक जोखिम युक्त है।
- पैकेज्ड और जंक फूड के बढ़ते सेवन से बच्चों पर कुपोषण और अतिपोषण का दोहरा बोझ बढ़ गया है। भारत में व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (2016-2018) के अनुसार, आधे से अधिक बच्चों और किशोरों को हृदय रोगों का खतरा होता है।
- गैर-संचारी रोगों के रोकथाम और नियंत्रित करने के सर्वोत्तम तरीकों में चीनी, नमक एवं वसा के सेवन को कम करना शामिल हैं।
- एफ.एस.एस.ए.आई. के अनुसार वर्तमान में पैकेट पर पोषण संबंधी जानकारी अंकित करना अनिवार्य एवं आवश्यक है, किंतु इन जानकारियों के पैकेट के पिछले हिस्से पर अंकित होने के कारण इन पर ध्यान नहीं जा पाता है।
एफ.एस.एस.ए.आई. का निर्णय
- 15 फरवरी, 2022 को पैकेट में आगे की ओर लेबलिंग पर मसौदा नियमों के संदर्भ में तीन महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गए-
- एफ.एस.एस.ए.आई. द्वारा किसी खाद्य उत्पाद में चीनी, नमक और वसा के उच्चतम स्तर का निर्धारण।
- नियमों के कार्यान्वयन को अनिवार्य करने से पूर्व चार वर्ष की अवधि तक स्वैच्छिक अनुपालन।
- हेल्थ-स्टार रेटिंग प्रणाली को एफ.एस.एस.ए.आई. द्वारा कमीशन और भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद द्वारा संचालित एक अध्ययन के आधार पर लेबल के रूप में उपयोग।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक निर्धारित उच्चतम स्तर उदार प्रकृति का है, जबकि उपभोक्ता संगठनों ने इन तीनों निर्णयों का विरोध किया है।
- सबसे बड़ा विवाद हेल्थ-स्टार रेटिंग प्रणाली के उपयोग को लेकर है जो किसी उत्पाद के समग्र पोषण प्रोफ़ाइल को इंगित करने के लिये आधे से लेकर पांच सितारों का उपयोग करता है।
अन्य देशों की स्थिति
- चीनी, नमक और वसा की उच्च मात्रा वाले उत्पादों के लिये चिली में विशिष्ट प्रतीक वाले ‘चेतावनी लेबल’ और इज़राइल में ‘लाल लेबल’ का प्रयोग किया जाता है।
- इसी प्रकार फ़्रांस में 'न्यूट्री-स्कोर' और यूनाइटेड किंगडम में ‘मल्टीपल ट्रैफिक लाइट’ का इस्तेमाल किया जाता है।
रेटिंग प्रणाली के विरोध का कारण
- वर्ष 2014 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में हेल्थ-स्टार रेटिंग प्रणाली की शुरूआत की गई। इसमें उत्पाद को सकारात्मक (जैसे- फल, अखरोट, प्रोटीन सामग्री, आदि) और जोखिम पोषक तत्वों (जैसे- कैलोरी, संतृप्त वसा, कुल शर्करा, सोडियम) का आकलन करने हेतु कैलकुलेटर का उपयोग कर स्टार रेटिंग दी जाती है।
- यह प्रणाली पोषण विज्ञान को सही तरीके से नहीं प्रस्तुत करती हैं और फलों के जूस में उपस्थित फल अतिरिक्त शर्करा (Added Sugar) के प्रभाव को ऑफसेट नहीं करती है।
- साथ ही, अभी तक इस रेटिंग प्रणाली से उपभोक्ता व्यवहार को परिवर्तित करने का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
- 40 से अधिक वैश्विक विशेषज्ञों ने भी भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद के अध्ययन की डिजाइन और व्याख्या को त्रुटिपूर्ण बताया है।