New
IAS Foundation Course (Pre. + Mains) - Delhi: 20 Jan, 11:30 AM | Prayagraj: 5 Jan, 10:30 AM | Call: 9555124124

कोविड-19 और महिलाओं के रोज़गार में गिरावट

(प्रारंभिक परीक्षा : सामाजिक-आर्थिक विकास, समावेशन तथा सामाजिक क्षेत्र में की गई पहलें)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र– 3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

कोविड-19 महामारी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में आई गिरावट का सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव महिलाओं पर पड़ा है क्योंकि इस दौरान पुरुषों की तुलना में महिलाएँ अधिक बेरोज़गार हुई हैं। इसके अलावा, उन्हें रोज़गार की पुनर्प्राप्ति में भी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि देश के श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी पहले से ही कम थी तथा कोविड-19 के कारण उसमें और गिरावट आई है।

कोविड-19 के दौरान महिलाओं के रोज़गार में गिरावट के प्रमुख कारण

  • वस्त्र उद्योग एवं अन्य संपर्क सेवा प्रदाता (Contact Service Provider) क्षेत्र पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक रोज़गार प्रदान करते हैं तथा कोविड-19 के दौर में ये क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इससे महिलाओं के रोज़गार में गिरावट आई है।
  • कोविड-19 के समय शिक्षण संस्थान बंद होने के कारण बच्चे घर पर ही रहने लगे। इसके चलते पारिवारिक इकाइयों पर भारी दबाव आया और उनकी देखभाल के लिये कामगार महिलाएँ कार्य छोड़कर पुनः घरेलू कार्यों में संलग्न हो गईं। इसके बाद वे फिर से रोज़गार प्राप्त न कर सकीं।
  • हालाँकि लॉकडाउन में ढील के बाद भी कई कारखानों एवं कंपनियों ने महिलाओं को परिवहन सुविधाएँ उपलब्ध नहीं कराई। अतः परिवहन सुविधा में कमी भी महिलाओं की बेरोज़गारी का प्रमुख कारण रही।

भारतीय श्रमबल में महिलाओं की स्थिति

  • किसी भी आर्थिक-अव्यवस्था की स्थिति में सर्वाधिक नुकसान महिलाओं को होता है तथा इससे उबरने में उन्हें अपेक्षाकृत अधिक समय भी लगता है। विमुद्रीकरण के बाद होने वाली आर्थिक क्षति से भी महिलाएँ सर्वाधिक प्रभावित हुई थीं तथा उन्हें रोज़गार में पुनः संलग्न करने में 2 से 3 वर्ष का समय लगा था।
  • शहरी रोज़गार के तिमाही आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल-जून 2020 में महिलाओं की बेरोज़गारी दर बढ़कर 21.2 प्रतिशत हो गई थी, जो एक वर्ष पूर्व इसी अवधि में 11.3 प्रतिशत थी। जबकि शहरी पुरुषों के लिये यह अप्रैल-जून 2020 में 20.8 प्रतिशत तथा 2019 में 8.3 प्रतिशत थी।
  • ‘अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय’ के आँकड़ों के अनुसार, लॉकडाउन में घर लौटने वाले प्रवासियों में से लगभग 70 प्रतिशत महिला-पुरुष बेरोज़गार हो गए थे। जबकि लॉकडाउन के बाद 15 प्रतिशत पुरुषों एवं 22 प्रतिशत महिलाओं को पुनः रोज़गार प्राप्त नहीं हो सका। इन आँकड़ों से रोज़गार में लिंगभेद की स्थिति स्पष्ट होती है।
  • भारत में महिलाओं की ‘श्रमबल सहभागिता दर’ (Labour Force Participation Rate – LFPR) में निरंतर गिरावट हो रही है। विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 में भारतीय श्रमबल में महिलाओं की सहभागिता दर 31.79 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2019 में घटकर 20.79 प्रतिशत हो गई है। विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, ‘श्रमबल में महिला सहभागिता दर’ की दृष्टि से ‘भारत’ ब्रिक्स (BRICS) व सार्क (SAARC) देशों में सबसे पीछे है।
  • श्रमबल में महिला सहभागिता दर का वैश्विक औसत 47% है। अर्थात् भारत में श्रमबल में महिला सहभागिता दर वैश्विक औसत के आधे से भी कम है। यह महिला श्रम सहभागिता में भारत की बदतर स्थिति का दर्शाता है। कुछ देशों के ‘श्रमबल में महिलाओं की सहभागिता दर’ निम्नानुसार है–

देश

श्रमबल में महिला सहभागिता दर (वर्ष 2019)

नेपाल

82%

चीन

61%

ब्राजील

55%

रूस

55%

दक्षिण अफ्रीका                          

50%

मालदीव

42%

बांग्लादेश

36%

श्रीलंका

34%

अफगानिस्तान

22%

पाकिस्तान

22%

भारत

21%

 महिलाओं के श्रमबल में कम भागीदारी के कारण

  • श्रमबल में महिलाओं की संख्या में कमी का प्रमुख कारण ग्रामीण महिलाओं का श्रमबल से बाहर होना है। इसके लिये कृषि का घटता स्तर प्रमुख रूप से ज़िम्मेदार है। साथ ही, कृषि क्षेत्र में होने वाले इस नुकसान की भरपाई विनिर्माण क्षेत्र भी नहीं कर पा रहा है।
  • महिलाओं को घरेलू ज़िम्मेदारियों एवं कार्यस्थल दोनों जगह दबाव का सामना करना पड़ता है। कई बार तो कार्यस्थल पर उनकी स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण ही जाती है। ऐसे में, उन्हें नौकरी तक छोड़नी पड़ती है।
  • देश में प्रचलित रूढ़ियाँ भी महिलाओं की घटती सहभागिता दर के लिये ज़िम्मेदार है, जिसके कारण महिलाओं को सेना, कारखाने एवं अन्य कार्यों के योग्य नहीं समझा जाता है।
  • आर्थिक रूप से सुदृढ़ परिवारों में भी महिलाओं को कार्य करने के लिये प्रोत्साहित नहीं किया जाता है।
  • पितृसत्तात्मक विचारधारा, स्थानीय सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराएँ, वेतन देने में लैंगिक विभेद, सामाजिक सुरक्षा की कमी, अनौपचारिक कार्य की उच्च दर इत्यादि अन्य प्रमुख कारण हैं, जो श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी को हतोत्साहित करते हैं। 

श्रमबल में महिलाओं को बढ़ावा देने के प्रयास

  • आने वाले दशक में पर्यटन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य क्षेत्रों में अधिक रोज़गार उत्पन्न होने की संभावना है। इनमें महिलाओं की भागीदारी को वरीयता देने का प्रयास किया जाना चाहिये।
  • महिलाओं के कौशल विकास के लिये सरकार द्वारा विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ करने के साथ ही महिला छात्रावास तथा कार्यस्थलों पर क्रेच की सुविधा सुनिश्चित की जानी चाहिये।
  • महिलाओं की सुरक्षा, विशेषकर देर रात काम करने वाली महिलाओं के लिये यह एक महत्त्वपूर्ण विषय है। यह महिलाओं के श्रमबल अनुपात को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। अतः महिला सुरक्षा में सुधार की आवश्यकता है। साथ ही, बेहतर परिवहन सुविधाओं के विकास के लिये भी प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

महिलाओं की  श्रमबल में भागीदारी बढ़ने से अर्थव्यवस्था के साथ ही समाज पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। किसी भी अर्थव्यवस्था में अच्छे परिणाम तभी प्राप्त किये जा सकते हैं, जब श्रमबल में महिला एवं पुरुष, दोनों की संतुलित भागीदारी हो। भारत सरकार ने वर्ष 2024-25 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचाने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इसकी प्राप्ति के लिये कार्यबल में महिलाओं की सहभागिता बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR