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क्यूबा मिसाइल संकट एवं शीत युद्धोत्तर युग का परिप्रेक्ष्य

संदर्भ

  • रूस-यूक्रेन युद्ध के बढ़ते तनाव के बीच, हाल ही में रूस द्वारा अपनी परमाणु सक्षम पनडुब्बी ‘K-561 कज़ान’ को उन्नत निर्देशित मिसाइल फ्रिगेट एडमिरल गोर्शकोव के साथ क्यूबा के हवाना में युद्धाभ्यास के लिए तैनात किया गया। इसकी प्रतिक्रिया में अमेरिका ने भी अपनी परमाणु ऊर्जा चालित पनडुब्बी ‘यू.एस.एस. हेलेना’ क्यूबा के नजदीक ग्वांतानामो-बे में तैनात की। 
  • रूस और अमेरिका के परमाणु सक्षम युद्धक वाहनों के इस प्रकार आमने-सामने आना सीत युद्ध की परिस्थितिओं को पुनर्जीवित कर सकता है।

क्या था क्यूबा मिसाइल संकट

  • अक्टूबर 1962 का क्यूबा मिसाइल संकट, शीत युद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच एक सीधा और खतरनाक टकराव था। यह वह क्षण था जब दो महाशक्तियाँ परमाणु संघर्ष के सबसे करीब आ गई थीं।

संकट के लिए उत्तरदायी परिस्थितियां

  • अमेरिका द्वारा सोवियत संघ पर नाभिकीय हथियारों से हमला करने में सक्षम 100 से अधिक मिसाइलें - 1958 में थोर आई.आर.बी.एम. (Intermediate-range ballistic missile : IRBM) ब्रिटेन में और 1961 में जुपिटर आई.आर.बी.एम. इटली और तुर्की में तैनात की गई थी। 
  • इसके परिणामस्वरूप जुलाई 1962 में सोवियत संघ के प्रमुख निकिता ख्रुश्चेव (Nikita Khrushchev) ने क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो के साथ क्यूबा में सोवियत परमाणु मिसाइलों को तैनात करने के लिए एक गुप्त समझौता किया, ताकि भविष्य में किसी भी आक्रमण के प्रयास को रोका जा सके। 
  • सितंबर 1962 में, क्यूबा और सोवियत सरकार ने गुप्त रूप से क्यूबा में संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकांश भागों पर हमला करने में सक्षम मिसाइलें तैनात कर दी।
  • इसकी प्रतिक्रिया में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी ने क्यूबा की नौसैनिक घेराबंदी करते हुए सोवियत मिसाइलों की और खेप को आने से रोकने का प्रयास किया।

संकट की समाप्ति

  • 28 अक्टूबर 1962 को अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी और संयुक्त राष्ट्र महासचिव यू थांट ने सोवियत प्रमुख निकिता ख्रुश्चेव के साथ एक समझौता करके क्यूबा मिसाइल संकट को समाप्त किया। 
  • समझौते के अनुसार:-
    • सोवियत संघ द्वारा क्यूबा में आक्रामक हथियारों को नष्ट करने या उन्हें सोवियत संघ वापस ले जामें पर सहमति।  
    • संयुक्त राष्ट्र की निगरानी इस प्रक्रिया को संपन्न किया जाना था।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा क्यूबा पर कभी भी आक्रमण न करने का वादा।

संकट के परिणाम 

  • मॉस्को तथा वाशिंगटन डी.सी. के बीच सीधे संचार संपर्क के लिए मॉस्को-वाशिंगटन हॉटलाइन की स्थापना।
  • परमाणु संघर्ष के कगार पर पहुंचने के बाद, दोनों महाशक्तियों ने परमाणु हथियारों की दौड़ पर पुनर्विचार कर 1963 में परमाणु परीक्षण-प्रतिबंध संधि पर हस्ताक्षर किए गए।

शीत युद्धोत्तर युग का परिप्रेक्ष्य

  • शीत युद्धोत्तर युग में विश्व द्विध्रुवीय से एक ध्रुवीय शक्ति संरचना में परिवर्तित हुआ अमेरिका के नेतृत्व में नाटो देशों ने वैश्विक व्यवस्था पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
  • हालांकि, सोवियत संघ के विघटन के पश्चात रूस उसके उत्तराधिकारी के रूप में अभी भी अपनी मजबूत स्थिति बनाए हुए है।
  • पूंजीवाद और साम्यवाद की विचारधाराओं के वैचारिक विभाजन का अंत और मुक्त बाजार पूंजीवाद का प्रभुत्व स्थापित हुआ।
  • 'वैश्विक गाँव' नामक एक नई अवधारणा का उदय और आर्थिक विकास, क्षेत्रीय सहयोग, व्यापार गलियारों की अवधारणाओं को प्राथमिकता दी जाने लगी।
  • सतत विकास, पर्यावरण संरक्षण, मानव अधिकारों की सुरक्षा, अंतर-क्षेत्रीय प्रवास से संबंधित मुद्दों को वैश्विक पहचान मिली। 
  • बहुराष्ट्रीय निगम, गैर-सरकारी संगठन, वैश्विक सामाजिक आंदोलन, स्वतंत्रता आंदोलन जैसे नए तत्व अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनकर उभरे।

वर्तमान चुनौतीपूर्ण स्थिति 

  • विगत दो वर्षों से रूस-यूक्रेन युद्ध के जारी रहने से रूस एवं पश्चिमी देशों के मध्य तनाव की स्थिति बनी हुई है। 
  • अमेरिका के नेतृत्व में नाटो देशों की यूक्रेन को आर्थिक एवं सामरिक सहायता की संकट को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाई है। 
    • हालाँकि, अक्टूबर 2023 में इजरायल पर हमास के हमले के बाद से नाटो देशों को पश्चिम एशिया में भी अपने संसाधन झोंकने पड़े हैं। 
  • लाल सागर से लेकर फारस की खाड़ी में पश्चिमी देशों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 
  • इसी बीच रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए रूस की अनुपस्थिति में स्विट्ज़रलैंड में शांति सम्मलेन का भी आयोजन किया गया है, जिसमें एकतरफ़ा यूक्रेन को मदद करने की सहमती बनी है। 
    • भारत ने इस सम्मलेन में रूस के शामिल न होने के कारण किसी भी समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है।
  • इसी क्रम में रूस द्वारा अमेरिका पर रणनीतिक दवाब बनाने के लिए क्यूबा में परमाणु चालित पनडुब्बी एवं युद्धपोतों को भेजा गया है।  

भविष्य की आवश्यकता 

  • बहुपक्षवाद का प्रसार : वर्तमान में बहुपक्षवाद के प्रसार की आवश्यकता है, इसमें BRICS, ग्लोबल साउथ, SCO, ASEAN, अफ्रीकी संघ जैसे संगठनों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
  • संयुक्त राष्ट्र में सुधार : वर्तमान संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद रूस-यूक्रेन या इस्रायल-हमास के मध्य संघर्षों को रोकने में पूरी तरह से विफल रही है, इसीलिए समय की मांग है कि सुरक्षा परिषद में सुधार किया जाए।
  • परमाणु हथियारों पर पूर्ण प्रतिबन्ध : अमेरिका एवं रूस के मध्य तनाव एवं रूस के बार-बार परमाणु हथियारों के प्रयोग की धमकी से तृतीय विश्व युद्ध का खतरा हमेशा बना रहता है, इसीलिए परमाणु हथियारों के प्रयोग एवं भण्डार को सभी देशों द्वारा आपसी सहमति से पूर्ण रूप से समाप्त किया जाना चाहिए।
  • मानव अधिकारों की रक्षा : इस्रायल-हमास संघर्ष एवं रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप अभी तक हजारों बच्चों, महिलाओं, आम लोगों ने अपनी जान गंवाई है, और लाखों लोगों को अपने निवास स्थान से विस्थापित होना पड़ा है। इस प्रकार की मानवीय त्रासदी को रोकने एवं मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए एक वैश्विक त्वरित तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष 

शीत युद्धोत्तर काल में शक्ति के क्षेत्रीय केन्द्रों के उदय से दुनिया एकध्रुवीय से धीरे-धीरे बहुध्रुवीय हो रही है। आज, क्यूबा मिसाइल संकट का प्रतीकात्मक महत्व एक फ्लैशपॉइंट के रूप में बना हुआ है, और रूस द्वारा परमाणु-सक्षम पनडुब्बी सहित अपने युद्धपोतों को भेजने के निर्णय को अमेरिका के लिए एक आधुनिक चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है। जिससे भविष्य में तनाव के गहराने की और अधिक सम्भावना है।

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