(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय महत्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित विषय)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 1 : चक्रवात, भू- भौतिकीय घटनाएँ तथा भौगोलिक विशेषताओं से संबंधित; सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 : आपदा एवं आपदा प्रबंधन से संबंधित मुद्दे)
संदर्भ
- वर्तमान में, अरब सागर में उत्पन्न हुए एक उष्णकटिबंधीय चक्रवात 'ताऊते' ने भारत के पश्चिमी तट पर भारी नुकसान पहुँचाया है। इस दौरान गुजरात में 'लैंडफॉल' (Landfall) की स्थिति भी देखने मिली। इस चक्रवात का नामकरण ‘म्याँमार' द्वारा किया गया। बर्मी भाषा में 'ताऊते' शब्द का अर्थ 'गेको' अर्थात् ‘अत्यधिक शोर करने वाली छिपकली’ होता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात
- उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति उत्तरी व दक्षिणी गोलार्द्धों में 8 डिग्री अक्षांश से 15 डिग्री अक्षांश के मध्य महासागर की सतह पर होती है। ये विध्वंसक प्राकृतिक आपदा माने जाते हैं। इन्हें हिंद महासागर में चक्रवात, चीन सागर में टाइफून, जापान सागर में टाइफू, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में विली-विली तथा कैरीबियन सागर में हरिकेन कहा जाता है।
- उत्तरी हिंद महासागर (बंगाल की खाड़ी और अरब सागर) में इन चक्रवातों की उत्पत्ति की औसत वार्षिक आवृत्ति लगभग 5 है। इनके विकसित होने की संभावना मई-जून तथा अक्टूबर-नवंबर के दौरान सर्वाधिक होती है। अरब सागर की अपेक्षा बंगाल की खाड़ी में अधिक चक्रवात विकसित होते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, ‘बंगाल की खाड़ी’ और ‘अरब सागर’ में विकसित होने वाले चक्रवातों का अनुपात 4:1 होता है।
- चक्रवात के केंद्र की तरफ चलने वाली वायु की गति के आधार पर ‘विश्व मौसम विभाग’ ने चक्रवातों को निम्नानुसार वर्गीकृत किया है–
- Low pressure area – 17 नॉट से कम (<31 कि.मी. प्रतिघंटा)
- Depression– 17-27 (3-49 कि.मी. प्रतिघंटा)
- Deep depression (DD)– 28-33 (50-61 कि.मी. प्रतिघंटा)
- Cyclonic storm (CS)– 34-47 (62-88 कि.मी. प्रतिघंटा)
- Severe cyclonic storm (SCS)– 48-63 (89-117 कि.मी. प्रतिघंटा)
- Very severe cyclonic storm (VSCS)– 64-89 (118-166 कि.मी. प्रतिघंटा)
- Extremely severe cyclonic Storm (ESCS)– 90-119 (167-221 कि.मी. प्रतिघंटा)
- Super cyclonic Storm (SCS)– >= 120 ( >= 220 कि.मी. प्रतिघंटा)
- उष्णकटिबंधीय चक्रवात को ऊर्जा की प्राप्ति संघनन के दौरान निष्कासित होने वाली उष्मा से होती है। संघनन के समय ऊष्मा के अधिक मात्रा में निष्कासन के लिये वायुमंडल की आर्द्रता का अधिक होना आवश्यक है।
- उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा वामावर्त (Counter Clockwise) और दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त (Clockwise) होती है।
- चक्रवात की उत्पत्ति के लिये समुद्र की सतह का तापमान कम से कम (Minimum Sea Surface Temperature) 27 डिग्री सेल्सियस होना चाहिये, ताकि वाष्पीकरण के साथ-साथ वायुमंडल की आर्द्रता भी अधिक हो सके और चक्रवात की उत्पत्ति के लिये अनुकूल दशाएँ निर्मित हो सकें।
अरब सागर के चक्रवात
- ‘ताऊते’ पूर्व-मानसून अवधि (अप्रैल-जून) में विकसित होने वाला चक्रवात है, इस तरह के चक्रवात अरब सागर में पिछले चार वर्षों से लगातार विकसित हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020 में ‘निसर्ग’ चक्रवात (Nisarga Cyclone ) ने महाराष्ट्र को, वर्ष 2019 में ‘वायु’ चक्रवात (Vayu Cyclone) ने गुजरात को तथा वर्ष 2018 में ‘मेकानू’ चक्रवात (Mekanu Cyclone) ने ओमान को प्रभावित किया था।
- वर्ष 2018 के बाद से इन सभी चक्रवातों को या तो 'गंभीर चक्रवात' (Severe Cyclone) या उससे ऊपर की श्रेणी में रखा गया है।
चक्रवातों का नामकरण
- आरंभ में इनको अक्षांश तथा देशांतर के आधार पर जाना जाता था, परंतु भ्रम की स्थिति होने पर इनका नामकरण आरंभ किया गया।
- 19 वीं सदी के उत्तरार्ध में एक ऑस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञानी ने महिलाओं के नाम पर इनका नामकरण शुरू किया था तथा वर्ष 1978 तक इसी परिपाटी का पालन किया जाता रहा, परंतु अब पुरुष तथा महिला दोनों के नामों पर इनका नामकरण किया जाता है।
- उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में नामकरण की शुरुआत वर्ष 2004 से की गई थी। जिसमें शामिल 13 देश (बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्याँमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका, थाईलैंड, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन) पहले ही नामों की सूची तैयार कर नामकरण करने वाली समिति को सौंप देते हैं। फिर वह समिति इस सूची में से देश के नाम के वर्णमाला क्रम के हिसाब से चक्रवातों का नामकरण करती है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMO)
- गठन– वर्ष, 1875
- मुख्यालय– नई दिल्ली
- क्षेत्रीय कार्यालय– चेन्नई, मुंबई, कोलकाता, नागपुर, गुवाहाटी, नई दिल्ली
- संबंधित मंत्रालय– पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय
- आई.एम.डी., विश्व मौसम विज्ञान संगठन के 6 क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्रों में से एक है।
- इसके पास उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के पूर्वानुमान, नामकरण और वितरण की ज़िम्मेदारी है। इसमें मलक्का जलडमरूमध्य, बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और फारस की खाड़ी शामिल हैं।
आई.एम.डी. मौसम संबंधी सूचना के लिये इनसेट उपग्रहों का उपयोग करता है। वर्तमान में INSAT-3D तथा INSAT-3A का प्रयोग मौसम संबंधी इमेजिंग और डेटा संग्रह में किया जा रहा है।
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विभिन्न मौसम उपग्रह
- कल्पना-1
- प्रक्षेपण तिथि– 12 सितंबर 2002
- प्रक्षेपण यान– PSLV-C4
- प्रक्षेपण स्थल– सतीश धवन प्रक्षेपण केंद्र
- स्थापित कक्षा– भू-स्थैतिक
- वर्तमान स्थिति– जीवन काल समाप्त
- यह पहला मौसम संबंधी समर्पित उपग्रह था। इसे ‘मैटसेट’ के नाम से भी जाना जाता था।
- INSAT-3A
- प्रक्षेपण तिथि– 10 अप्रैल 2003
- प्रक्षेपण यान– एरियन 5 - V160
- प्रक्षेपण स्थल– फ्रेंच, गुयाना
- स्थापित कक्षा– भू-स्थैतिक कक्षा
- समय सीमा– 12 वर्ष
- यह INSAT-3 श्रृंखला का तीसरा उपग्रह है। जो दूरसंचार, टेलीविजन प्रसारण, मौसम विज्ञान और खोज तथा बचाव सेवाएँ प्रदान करने को समर्पित एक बहुउद्देशीय उपग्रह है।
- INSAT-3D
- प्रक्षेपण तिथि– 26 जुलाई 2013
- प्रक्षेपण यान– एरियन 5 - VA-214
- प्रक्षेपण स्थल– फ्रेंच, गुयाना
- स्थापित कक्षा– भू-स्थैतिक कक्षा
- समय सीमा - 7 वर्ष
- INSAT-3D भारत का एक उन्नत मौसम उपग्रह है, जिसे बेहतर इमेजिंग सिस्टम और वायुमंडलीय ध्वनि के साथ जोड़ा गया है।
- यह मौसम संबंधी प्रेक्षणों में वृद्धि, भूमि और समुद्री सतह की निगरानी, मौसम की भविष्यवाणी और आपदा चेतावनी के लिये तापमान तथा आर्द्रता के संदर्भ में वातावरण की ऊर्ध्वाधर रूपरेखा तैयार करने के लिये विकसित किया गया है।