New
July Offer: Upto 75% Discount on all UPSC & PCS Courses | Offer Valid : 5 - 12 July 2024 | Call: 9555124124

पुराने कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को बंद करने का निर्णय

(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र -3; पर्यावरण संरक्षण, प्रदूषण  और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

  • वित्त वर्ष 2020-21 के बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 25 वर्ष से अधिक पुराने कोयला आधारित विद्युत् संयंत्रो को बंद करने का विचार व्यक्त किया था।
  • पुराने कोयला विद्युत संयंत्र कार्बन उत्सर्जन में प्रमुख योगदानकर्ता हैं, अतः इन्हें बंद किये जाने से भारत द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित उत्सर्जन लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता मिलेगी।

ंयंत्रों को बंद करने के लाभ 

  • 25 वर्ष से पुराने कोयला विद्युत संयंत्रो को बंद करने से आर्थिक एवं पर्यावरणीय सुधार होंगे। पुराने और अक्षम संयंत्रों के स्थान पर नई और अधिक कुशल तकनीक के प्रयोग से कोयले के उपयोग में कमी आएगी तथा दक्षता में सुधार होगा। इससे लागत में भी कमी आएगी।
  • पर्यावरण मंत्रालय द्वारा निर्धारित उत्सर्जन मानकों को पूरा करने के लिये पुराने संयंत्रों में आवश्यक प्रदूषण नियंत्रण उपकरण स्थापित करना गैर-लाभकारी प्रक्रिया होगी। अतः इन संयंत्रों को बंद करना ही बेहतर होगा। 
  • हाल ही में, केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) ने दिल्ली की विद्युत वितरण कंपनी बी.एस..एस. को राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (NTPC) के दादरी-I  जेनरेटिंग स्टेशन (कोयला आधारित विद्युत स्टेशन, उ०प्र०) के साथ 25 वर्ष पूर्व के विद्युत खरीद समझौते से बाहर आने की अनुमति प्रदान की है। आयोग के इस निर्णय को इसी दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
  • 25 वर्ष से अधिक पुराने विद्युत संयंत्रों की देश के विद्युत् उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। ये संयंत्र देश की कुल तापीय विद्युत क्षमता का लगभग 20 प्रतिशत उत्पादित करते हैं। अतः इन संयंत्रो को बंद करने के संबंध में लिया गया निर्णय संयंत्रो से होने वाली वास्तविक क्षति के आकलन के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।

ुराने कोयला विद्युत संयंत्रो का लाभ

  • सी..आर.सी. के आदेशानुसार, कुछ पुराने संयंत्र महँगे विद्युत खरीद समझौतों से बंधे है तथा कुछ संयंत्रों में विद्युत उत्पादन की लागत काफी कम है। 
  • उदाहरस्वरूप- रिहंद, सिंगरौली (उ०प्र०) और विंध्याचल (म०प्र०) आदि संयंत्र 30 वर्ष से अधिक पुराने हैं तथा इनकी उत्पादन लागत 1.7 रुपए/किलोवाट घंटा है। यह लागत राष्ट्रीय औसत उत्पादन लागत से काफी कम है। 
  • इसका प्रमुख कारण इनकी दक्षता होकर इनका कोयला स्रोतों के नजदीक स्थापित होना है। इससे इनकी कोयला परिवहन लागत कम हो जाती है।

ुराने संयंत्रो को बंद करने का संभावित बचत विश्लेषण

  • एक आकलन के अनुसार, 25 वर्ष से पुराने संयंत्रों को बंद करने से उत्पादन लागत में लगभग 5000 करोड़ रुपए की वार्षिक बचत होगी। यह बचत कुल विद्युत उत्पादन लागत का मात्र 2 प्रतिशत है।
  • 25 वर्ष पुराने कोयला संयंत्रों से होने वाले विद्युत उत्पादन को नए कोयला संयंत्रों से प्रतिस्थापित करने पर कोयले की खपत में मात्र 1 से 2 प्रतिशत की कमी की संभावना है।
  • 25 वर्ष से पुराने संयंत्रो में उत्सर्जन में कमी के उद्देश्य से प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने को अलाभकारी मानना पुर्णतः तर्कसंगत नहीं है। कुछ संयंत्र ऐसे भी हैं, जो प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों के प्रयोग के साथ भी आर्थिक रूप से लाभकारी बने रह सकते हैं, क्योंकि उनकी वर्तमान निश्चित लागत, जो प्रदूषण नियंत्रण उपकरण की स्थापना के साथ बढ़ेगी, काफी कम है।
  • गौरतलब है कि 25 वर्ष से पुराने लगभग आधे संयंत्रों ने प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने के लिये टेंडर जारी कर दिये हैं।

ोयला विद्युत संयंत्रों से पर्यावरणीय प्रदूषण

  • भारत के कुल विद्युत उत्पादन का  लगभग 70 प्रतिशत कोयला आधारित संयंत्रों से किया जाता है। इन संयंत्रों से कई प्रदूषक तत्त्व भी उत्सर्जित होते हैं। इन प्रदूषकों में सल्फर डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, ओज़ोन, लेड, सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैंट इत्यादि प्रमुख हैं।
  • इसके अतिरिक्त इन संयंत्रों से जल प्रदूषण , ध्वनि प्रदूषण एवं भूमि के क्षरण जैसी समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं। इसके स्वास्थ्य पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।
  • मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर संयंत्रों के हानिकारक उत्सर्जन  से पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव के मद्देनजर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दिसंबर 2015 में ताप विद्युत संयंत्रो के संबंध में विशिष्ट उत्सर्जन मानकों का निर्धारण किया गया।
  • इन मानकों में संयंत्र की क्षमता के आधार पर भेद किया गया था। हालाँकि, इन मानकों का अनुपालन अभी संभव नहीं हो पाया है।

परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम करने के लिये सरकार द्वारा किये गए प्रयास

  • सरकार ने परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम करने तथा गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाने के उद्देश्य से वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट (वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट) अक्षय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है। 
  • इसके अंतर्गत 100 गीगावाट सौर ऊर्जा, 60 गीगावाट पवन ऊर्जा, 10 गीगावाट पवन ऊर्जा तथा 5 गीगावाट पवन ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य है। इस दिशा में वर्ष 2020-21 के आँकड़ों के अनुसार 92.54 गीगावाट उत्पादन क्षमता प्राप्त की जा चुकी है। 
  • गैर-परम्परागत ऊर्जा की दिशा में सरकार द्वारा किये जा रहे प्रमुख प्रयास निम्नलिखित हैं

★ प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम)- इस योजना को ऊर्जा क्षमता विकसित करने के लिये किसानों की सहायता करने के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया है। इस योजना में वर्ष 2022 तक 25700 मेगावाट विद्युत उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
सौर पार्कों की स्थापना- सौर पार्कों के विकास की योजना में 40 गीगावाट क्षमता का लक्ष्य रखा गया है। इन पार्कों को केंद्र/राज्य सरकार की एजेंसियों तथा निजी उद्यमियों द्वारा विकसित किया जा रहा है।
हरित ऊर्जा गलियारा- इस योजना का प्रारंभ वर्ष 2015 में किया गया। इसका उद्देश्य अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं में बिजली की निकासी को सुविधाजनक बनाना है।
सौर शहर-  प्रत्येक राज्य में कम से कम एक शहर (राज्य की राजधानी या कोई महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल) को सौर शहर के रूप में विकसित किया जाएगा। शहर की विद्युत आवश्यकताओं को पूरी तरह से अक्षय स्रोतों मुख्यतः सौर ऊर्जा से पूर्ण किया जाएगा।
अपतटीय पवन- देश में पवन ऊर्जा की व्यापक संभावना है। तमिलनाडु और गुजरात के अपतट पर लगभग 70 गीगावाट अपतटीय पवन ऊर्जा की संभाव्यता है। देश के अपतटीय पवन ऊर्जा कार्यक्रम हेतु एक उपक्रम रणनीति को अंतिम रूप देने के लिये एक समिति का गठन किया गया है।

निष्कर्ष

  • कोयला आधारित संयंत्रों से उत्सर्जित  होने वाले प्रदूषण  को कम करना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिये  संयंत्रों में नवीन तकनीक के प्रयोग को वरीयता दी जानी चाहिये। इन्हें बंद करने के संबंध में कोई भी निर्णय लेने से पूर्व उससे होने लाभ एवं हानि पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना चाहिये। 
  • सरकार द्वारा गैर-परंपरागत ऊर्जा के संदर्भ में किये जा रहे प्रयास सराहनीय हैं। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर बढ़ रही पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य समस्याओं को देखते हुए हरित ऊर्जा का प्रयोग ही श्रेष्ठ विकल्प होगा।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR