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जीएम सरसों की पर्यावरणीय मंजूरी पर असहमति

(प्रारंभिक परीक्षा : जीएम सरसों, आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति)
(मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र- 3 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों को पर्यावरण मंजूरी देने के विषय पर विभाजित फैसला (split verdict) सुनाया।  

जीएम सरसों (GM mustard) के बारे में  

  • इसे धारा मस्टर्ड हाइब्रिड-11 (DMH-11) के नाम से जाना जाता है।
  • इसका विकास, दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (Centre for Genetic Manipulation of Crop Plants : CGMCP) के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।
    • इसके लिए सरसों की भारतीय किस्म वरुणा की क्रॉसिंग पूर्वी यूरोप की किस्म अर्ली हीरा–2 से कराई गयी। 
  • डीएमएच-11 को ट्रांसजेनिक तकनीक के माध्यम से बनाया गया है, जिसमें मुख्य रूप से बार्नेस और बारस्टार जीन शामिल हैं। 
    • बार्नेस जीन, बाँझपन प्रदान करता है, जिससे यह स्व-परागण नहीं करती है 
    • जबकि बारस्टार जीन डीएमएच-11 की उपजाऊ बीज पैदा करने की क्षमता को पुनर्स्थापित करता है।
  • डीएमएच-11 एक कीट और रोग-रोधी किस्म है, जिससे इसकी खेती करने पर कीटनाशकों पर होने वाले खर्च में कमी आ सकती है।

सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मामला

पर्यावरणविद् अरुणा रोड्रिग्स और शोध एवं वकालत संगठन जीन कैम्पेन ने मधुमक्खियों और मिट्टी की सूक्ष्मजीव विविधता पर GM सरसों के दुष्प्रभावों को देखते हुए जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) द्वारा GM सरसों की पर्यावरणीय मंजूरी को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 

  • न्यायाधीश बी.वी. नागरत्ना और संजय करोल दो मुख्य पहलुओं पर असहमत थे : 
    • क्या जी.ई.ए.सी. की निर्णय लेने की प्रक्रिया कानूनी थी। 
    • क्या इसमें वैज्ञानिक नवाचारों के लिए ‘एहतियाती सिद्धांत’ (precautionary principle) का उल्लंघन किया।
      • एहतियाती सिद्धांत, पर्यावरण मुकदमेबाजी में एक मानक परीक्षण है, जिसे स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार (अनुच्छेद 21- जीवन का मौलिक अधिकार) के एक पहलू के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • न्यायमूर्ति नागरत्ना का मत : 
    • जी.ई.ए.सी. ने CGMCP के साथ मिलकर जो फील्ड परीक्षण करने का वादा किया था, वे नहीं हुए।
    • मई 2022 में जी.ई.ए.सी. ने अपना रुख बदल लिया और जीएम सरसों को पर्यावरण के अनुकूल बनाने की सिफ़ारिश पर मंजूरी दे दी। 
    • बिना कोई कारण बताये रुख में बदलाव दिखाता है कि जी.ई.ए.सी. ने सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत का घोर उल्लंघन (gross violation of the principle of public trust) किया है, साथ ही यह एहतियाती सिद्धांतों को ध्यान में रखने में विफल रही है।
  • न्यायमूर्ति करोल का मत :
    • पर्यावरण मंजूरी और उसके बाद के परीक्षण ‘वैज्ञानिक सोच के विकास’ (development of a scientific temper) के अनुरूप थे और एहतियाती सिद्धांत का पालन करते थे। 
    • जी.ई.ए.सी. की प्रक्रिया ‘स्वतंत्र’ और ‘तर्कसंगत’ थी। 
    • जी.ई.ए.सी. द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने पाया था कि मधुमक्खियां आनुवंशिक रूप संशोधित कैनोला जैसी अन्य जीएम फसलों के बीच भेदभाव नहीं करती हैं। 
    • जैव प्रौद्योगिकी विभाग और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग दोनों ने जीएम सरसों के पर्यावरणीय रिलीज की सिफारिश की थी।
  • हालाँकि, दोनों न्यायाधीशों ने भारत संघ को ‘जीएम फसलों के संबंध में एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने’ और इस प्रक्रिया के दौरान विशेषज्ञ, किसान उद्यमियों और राज्य संचय से परामर्श करने का निर्देश दिया। 

जीएम फसलों के लाभ

  • जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों के बीजों में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग कर वांक्षित बदलाव किये जा सकते है। 
  • अत: ये फसलें सूखा-रोधी होती है, जिससे प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में भी इनका उत्पादन किया जा सकता है। 
  • इनमें कीटनाशक तथा फर्टिलाइजर डालने की भी आवश्यकता भी परंपरागत फसलों की तुलना में कम पड़ती है। 
  • इनकी उत्पादन क्षमता भी परंपरागत फसलों की तुलना में कई गुना अधिक होती हैं, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।

जीएम फसलों के नुकसान

  • इन फसलों का सबसे बड़ा नकारात्मक पक्ष है, कि इनके बीज फसलों से विकसित नहीं किए जा सकते, तथा बीजों का दोबारा प्रयोग नहीं किया जा सकता है। 
  • इनके बीजों को कंपनीयों से ही खरीदना पड़ता है, कंपनियां इन बीजों पर अपना एकाधिकार रखती हैं, तथा महंगे दामों पर बेचती हैं। 
  • इनकी वजह से फसलों की स्थानीय किस्मों के लिए खतरा पैदा हो जाता है, तथा जैव-विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC)

  • यह भारत में जीएम फसलों के विनियमन के जिम्मेदार प्रमुख संस्था है जो पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करती है।
  • यह पर्यावरण के दृष्टिकोण से अनुसंधान एवं औद्योगिक उत्पादन में सूक्ष्मजीवों और पुनः संयोजकों के उपयोग से जुड़ी गतिविधियों का मूल्यांकन करती है।
  • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों और उनसे प्राप्त उत्पादों के व्यावसायिक प्रयोग से पहले जी.ई.ए.सी. की मंजूरी अनिवार्य होती है।
  • यह भारत में खतरनाक सूक्ष्मजीवों या आनुवंशिक रूप से संसोधित जीवों के उपयोग, निर्माण, भंडारण, आयात और निर्यात को नियंत्रित करती है।
  • इस समिति के पास पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम,1986  के तहत दंडात्मक कार्रवाई करने का अधिकार भी है।
  • बैसिलस थुरिंजिएंसिस कॉटन (या बीटी कॉटन) एकमात्र जीएम फसल है जिसे भारत में अब तक खेती के लिए मंजूरी दी गई है।

जीएम फसलों को विनियमित करने वाले अधिनियम और नियम

  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 
  • जैविक विविधता अधिनियम, 2002 
  • खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 
  • औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम (8वां संशोधन), 1988 
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