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भूमिगत 700 किलोमीटर गहरे महासागरीय जलाशय की खोज 

प्रारम्भिक परीक्षा – भूमिगत 700 किलोमीटर गहरे महासागरीय जलाशय की खोज , पृथ्वी की आंतरिक संरचना
मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन पेपर-1 (भूगोल)

संदर्भ

हाल ही में इवान्स्टन, इलिनोइस में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पृथ्वी की सतह के नीचे पानी के विशाल भंडार की खोज की।

underground-ocean

प्रमुख बिंदु :-

  • नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने  पूरे संयुक्त राज्य अमेरिका में लगाए गए 2000 सीस्मोग्राफ का उपयोग करके एक महासागर की खोज की है। 
  • इस शोध में वैज्ञानिकों ने  500 भूकंपों से आई भूकंपीय तरंगों का अध्ययन किया। 
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, जब भूकंपीय तरंगें पृथ्वी के कोर से गुजराती हैं, तो वे धीमी हो जाती हैं। 
  • इससे यह पता चलता है कि पृथ्वी के आंतरिक भाग एवं चट्टानों में पानी की मात्रा अत्यधिक है, जिससे तरंगे धीमी हो जाती हैं। 
  • यह भूमिगत जल स्रोत पृथ्वी के सभी महासागरों के आकार का 3 गुना है। 
  • यह पृथ्वी की सतह से लगभग 700 किलोमीटर नीचे स्थित है। 
  • यह शोध पृथ्वी के भू-विज्ञान और जल चक्र को समझने के लिए सहायक है।

ocean-reservoir

पृथ्वी की आंतरिक संरचना :-

  • पृथ्वी की आंतरिक भाग मानव के लिए दृश्यमान नहीं है।
  • इसके संबंध में जानकारी देने वाले स्रोतों को 3 वर्गों में विभाजित किया गया है। 
  1. अप्राकृतिक साधन (Artificial Sources)

(a) घनत्व (Density):

  • पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 है, जबकि भू-पर्पटी (Crust) का घनत्व लगभग 3.0 है। 
  • इससे स्पष्ट है कि आंतरिक भागों में घनत्व की अधिकता होगी। 
  • घनत्व सम्बंधी विभिन्न प्रमाणों से यह पता चलता है कि पृथ्वी के क्रोड़ (Core) का घनत्व सर्वाधिक है।

(b) दबाव (Pressure): 

  • क्रोड़ (Core) के अधिक घनत्व के सम्बंध में चट्टानों के भार व दबाव का संदर्भ लिया जा सकता है। 
  • यद्यपि दबाव बढ़ने से घनत्व बढ़ता है, किन्तु प्रत्येक चट्टान की अपनी एक सीमा है जिससे अधिक इसका घनत्व नहीं हो सकता है।चाहे दबाव कितना ही अधिक क्यों न कर दिया जाए। 
  • आंतरिक भाग के चट्टान अधिक घनत्व वाले भारी धातुओं से बने हैं।

(c) तापक्रम : 

  • सामान्य रूप से प्रत्येक 32 मीटर की गहराई पर तापमान में 1°C की वृद्धि होती है, परंतु बढ़ती गहराई के साथ तापमान की वृद्धि दर में भी गिरावट आती है। 
  • प्रथम 100 किमी. की गहराई में प्रत्येक किमी. पर 12°C की वृद्धि होती है। 
  • इसके बाद के 300 किमी. की गहराई में प्रत्येक किमी. पर 2°C एवं उसके पश्चात् प्रत्येक किमी. की गहराई पर 1°C की वृद्धि होती है। 
  • विवर्तनिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों में तापमान अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है। 
  • पृथ्वी के आंतरिक भाग से ऊष्मा का प्रवाह बाहर की ओर होता रहता है। 
  • यह प्रवाह तापीय संवहन तरंगों के रूप में होता है। 
  1. पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बंधित सिद्धांतों के साक्ष्य : 
  • ग्रहाणु परिकल्पना , पृथ्वी के आंतरिक (क्रोड़) भाग को ठोस मानती है, वहीं ज्वारीय परिकल्पना एवं वायव्य निहारिका परिकल्पना में पृथ्वी के अन्तरतम को तरल माना गया है। 
  • इस प्रकार पृथ्वी के आंतरिक भाग के सम्बंध में दो ही संभावना बनती है, या तो यह ठोस हो सकती है या तरल।
  1. प्राकृतिक साधनः

(a) ज्वालामुखी क्रिया :-

Seismograph

  • ज्वालामुखी उद्‌गार से निकलने वाला तत्व व तरल मैग्मा के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि पृथ्वी की गहराई में कहीं न कहीं ऐसी परत अवश्य है जो तरल या अर्द्धतरल अवस्था में है। 
  • ज्वालामुखी के उद्‌गार से भी पृथ्वी की आंतरिक बनावट के सम्बंध में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिल पाती।

(b) भूकम्प विज्ञान के साक्ष्य :-

  • इसमें भूकम्पीय लहरों का सिस्मोग्राफ यंत्र (Seismograph) द्वारा अंकन कर अध्ययन किया जाता है।
  • यह ऐसा प्रत्यक्ष साधन है, जिससे पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है।

पृथ्वी का रासायनिक संगठन एवं विभिन्न परतें :-

  • International Union of Geodesy and Geophysics (IUGG) के शोध के आधार पर पृथ्वी के आंतरिक भाग को तीन वृहद् मंडलों में विभक्त किया गया है, जो निम्न हैं-

Crust

भू-पर्पटी (Crust): 

  • IUGG ने इसकी औसत मोटाई 30 किमी. मानी है 
  • अन्य स्रोतों के अनुसार क्रस्ट की मोटाई 100 किमी. बताई गई है।
  • IUGG के अनुसार क्रस्ट के ऊपरी भाग में 'P' लहर की गति 6.1 किमी. प्रति सेकेंड तथा निचले भाग में 6.9 किमी. प्रति सेकेंड है। 
  • ऊपरी क्रस्ट का औसत घनत्व 2.8 एवं निचले क्रस्ट का 3.0 है। 
  • घनत्व में यह अंतर दबाव के कारण होता है। 
  • ऊपरी क्रस्ट एवं निचले क्रस्ट के बीच घनत्व सम्बंधी यह असंबद्धता 'कोनराड असंबद्धता' कहलाती है। 
  • क्रस्ट का निर्माण मुख्यतः सिलिका और एल्युमिनियम से हुआ है। 
  • अतः इसे SIAI परत भी कहा जाता है।

SIAI

मैंटल (Mantle):- 

  • क्रस्ट के निचले आधार पर भूकंपीय लहरों की गति में अचानक वृद्धि होती है तथा यह बढ़कर 7.9 से 8.1 किमी. प्रति सेकेंड तक हो जाती है। 
  • इससे निचले क्रस्ट एवं ऊपरी मेंटल के मध्य एक असंबद्धता (Discontinunty) का निर्माण होता है, जो चट्टानों के घनत्व में परिवर्तन को दर्शाता है। 
  • इस असंबद्धता की खोज 1000 ई. में रूसी वैज्ञानिक ए. मोहोरोविकिक (A. Mohorovicic) ने की। 
  • इनके नाम पर ही इसे 'मोहो-असंबद्धता' (Moho-Discontinuty) भी कहा जाता है। 
  • मोहो-असंबद्धता से लगभग 200 किमी. की गहराई तक मेंटल का विस्तार है। इसका आयतन पृथ्वी के कुल आयतन (Volume) का लगभग 83% एवं द्रव्यमान (Mass) का लगभग 68% है। 
  • मेंटल का निर्माण मुख्यतः मिलिका और मैग्नीशियम से हुआ है
  • इसलिए इसे SiMa परत भी कहा जाता है। 
  • मेंटल को IUGG ने भूकंपीय लहरों की गति के आधार पर पुनः तीन भागों में बाँटा है- 
    1. मोहों असंबद्धता से 200 किमी. 
    2. 200 किमी. से 700 किमी. 
    3. 700 किमी. से 2,900 किमी.
  • ऊपरी मेंटल में 100 से 200 किमी. की गहराई में भूकंपीय लहरों की गति मंद पड़ जाती है तथा यह 7.8 किमी. प्रति सेकेंड मिलती है। 
  • इस भाग को 'निम्न गति का मंडल' (Zone of Low Velocity) भी कहा जाता है। 
  • ऊपरी मेंटल एवं निचले मेंटल के बीच घनत्व सम्बंधी यह असंबद्धता रिपति असंबद्धता कहलाती है।

क्रोड़ (Core): -

  • निचले मैटल के आधार पर P तरंगों की गति में अचानक परिवर्तन आता है तथा यह बढ़‌कर 13.6 किमी. प्रति सेकेंड हो जाती है। 
  • यह चट्टानों के घनत्व में एकाएक परिवर्तन को दर्शाता है, जिससे एक प्रकार की असंबद्धता उत्पन्न होती है। 
  • इसे 'गुटेनबर्ग-विशार्ट असंबद्धता' भी कहते हैं। 
  • गुटेनबर्ग-असंबद्धता से लेकर 6.371 किमी. को गहराई तक के भाग को क्रोड़ कहा जाता है।
  • इसे भी दो भागों में बाँटकर देखते हैं- 2.900 से 5.150 किमी. और 5.150-6.371 किमी.। 
  • इन्हें क्रमशः बाह्य अंतरतम एवं आंतरिक अंतरतम (क्रोड़) कहते हैं। 
  • इनके बीच पाई जाने वाली घनत्व सम्बंधी असंबद्धता 'लैहमेन असंबद्धता' कहलाती है। 
  • कोड़ में सबसे ऊपरी भाग में घनत्व 10 होता है, जो अंदर जाने पर 12 से 13 तथा सबसे आंतरिक भागों में 13.6 हो जाता है। 
  • क्रोड़ का घनत्व मैटल के घनत्व के दोगुने से भी अधिक होता है। 
  • बाह्य अंतरतम में 'S' तरंगें प्रवेश नहीं कर पाती है। 
  • वहीँ अत्यधिक तापमान के कारण क्रोड़ को पिघली हुई अवस्था में रहना चाहिए किन्तु अत्यधिक दवाव के कारण यह अर्द्धतरल या प्लास्टिक अवस्था में रहता है। 
  • क्रोड़ का आयतन पूरी पृथ्वी का मात्र 16% है, परंतु इसका द्रव्यमान पृथ्वी के कुल द्रव्यमान का लगभग 32% है। 
  • इसका निर्माण मुख्य रूप से निकेल और लोहा से हुआ है। 
  • इसे NiFe परत भी कहते हैं।

प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न :- हाल ही में किस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पृथ्वी की सतह के नीचे पानी के विशाल भंडार की खोज की है? 

(a) स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी 

(b) ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी

(c) हार्वर्ड यूनिवर्सिटी

(d) नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी 

उत्तर (d)

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