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नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत नागरिकता प्रमाण पत्र का वितरण

संदर्भ

हाल ही में, केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 के प्रावधानों के अंतर्गत आवेदन करने वाले 300 से अधिक लोगों को नागरिकता प्रमाण पत्र प्रदान किए हैं।

क्या है नागरिकता संशोधन अधिनियम

  • इस अधिनियम के माध्यम से नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया गया है। 
  • संशोधन : अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय के ऐसे व्यक्ति, जो 'धार्मिक उत्पीड़न या धार्मिक उत्पीड़न के डर' के कारण 31 दिसंबर, 2014 को या उसके पूर्व भारत में प्रविष्ट हुए हैं उसे भारत की नागरिकता प्राप्त करने के लिए सामान्य नियमों से छूट का प्रावधान किया गया है।
  • देशीयकरण की प्रक्रिया में छूट : इस संशोधन के तहत छह साल में प्रवासियों को फास्ट ट्रैक भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी। 
    • इन प्रवासियों के देशीयकरण के लिए निवास की आवश्यकता को ग्यारह वर्ष से घटाकर पांच वर्ष कर दिया गया है।
  • आपराधिक मामलों एवं निर्वासन से छूट : विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 के तहत किसी भी नियम या आदेश को सी.ए.ए. के प्रयोजनों के लिए अवैध प्रवासी के रूप में नहीं माना गया है।
  • अपवाद : अपवादों में बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन 1873 के तहत 'इनर लाइन' परमिट द्वारा विनियमित राज्य शामिल हैं। 
    • इस अधिनियम में संविधान की छठी अनुसूची में शामिल कुछ क्षेत्रों, अर्थात असम, मेघालय व त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों को शामिल नहीं किया गया है।
  • प्रवासी नागरिक पंजीकरण की समाप्ति : सी.ए.ए.  के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति ने केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किसी भी कानून का उल्लंघन किया है तो भारत के प्रवासी नागरिक का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।

नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत नागरिकता प्राप्त करने के नियम

  • नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन जमा करने के लिए एक विशेष प्रावधान किए गए हैं।  
  • सी.ए.ए. के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति को नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6बी के तहत आवेदन करना होता है। 
  • वैध पासपोर्ट की अनिवार्यता समाप्त : नये नियमों में पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान के पासपोर्ट व भारत द्वारा जारी आवासीय परमिट की अनिवार्यता  को समाप्त कर दिया गया है।
  • नए नियमों के अनुसार निम्नलिखित दस्तावेज़ों में से कोई भी इन देशों की राष्ट्रीयता या नागरिकता के प्रमाण के रूप में मान्य होगा-
    • जन्म या शैक्षणिक संस्थान का प्रमाण पत्र
    • किसी भी प्रकार का पहचान दस्तावेज
    • कोई लाइसेंस या प्रमाणपत्र
    • भूमि या किरायेदारी का कोई दस्तावेज
    • इन देशों द्वारा जारी किया गया कोई अन्य दस्तावेज़ जो उनकी नागरिकता साबित करता हो
    • ऐसा कोई भी दस्तावेज़ जो यह दर्शाता हो कि आवेदक के माता-पिता या दादा-दादी या परदादा में से कोई एक तीन देशों में से किसी एक का नागरिक है या रहा है।
  • वीज़ा की अनिवार्यता नहीं : नये नियमों में वीज़ा की अनिवार्यता को भी हटाया गया है और प्रावधान किया गया है कि स्थानीय निकाय के निर्वाचित सदस्य द्वारा जारी प्रमाण पत्र भी पर्याप्त होगा।
  • आठवीं अनुसूची की भाषाओं के लिए प्रमाणपत्र : नए नियमों ने किसी शैक्षणिक संस्थान से यह प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता को समाप्त कर दिया है कि आवेदक संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भाषाओं में से एक जानता है।
    • नए नियमों के अनुसार, इस आशय की घोषणा और भाषा बोलने में सक्षम होना ही पर्याप्त होगा।
  • 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में प्रवेश का प्रमाण : नए नियम में 20 दस्तावेजों एक सूची प्रदान की गई है जिसमें से कोई भी एक स्वीकार्य होगा। प्रमुख दस्तावेज हैं-
    • वैध वीज़ा
    • भारत में जनगणना अधिकारी द्वारा जारी पर्ची
    • भारतीय जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र, शैक्षणिक प्रमाणपत्र
    • ड्राइविंग लाइसेंस, आधार कार्ड, राशन कार्ड
    • सरकार या अदालत द्वारा जारी कोई भी पत्र, भूमि या किरायेदारी रिकॉर्ड
    • केंद्र, राज्य, पीएसयू या बैंक द्वारा जारी दस्तावेज़
    • किसी ग्रामीण या शहरी निकाय के निर्वाचित सदस्य या उसके अधिकारी या राजस्व अधिकारी द्वारा जारी प्रमाण पत्र
    • डाकघर खाता, बीमा पॉलिसी, ईपीएफ दस्तावेज़
    • नगर पालिका व्यापार लाइसेंस और विवाह प्रमाणपत्र
  • नए नियम के अनुसार, नागरिकता के लिए इलेक्ट्रॉनिक रूप से जमा किए गए आवेदनों की जांच अधिकार प्राप्त समिति, जिला-स्तरीय समिति के माध्यम से करेगी।
    • अधिकार प्राप्त समिति की संरचना 
      • अधिकार प्राप्त समिति का अध्यक्ष- निदेशक (जनगणना कार्य)
      • सदस्य– 
        • सहायक खुफिया ब्यूरो का एक अधिकारी
        • विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण अधिकारी
        • राज्य के राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के राज्य सूचना विज्ञान अधिकारी
        • राज्य या केंद्र शासित क्षेत्र के पोस्ट मास्टर जनरल (या उनके द्वारा नामित कोई अन्य अधिकारी)
      • आमंत्रित सदस्य- 
        • गृह विभाग (राज्य) का एक प्रतिनिधि- प्रमुख सचिव (गृह) या अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह)
        • रेलवे के क्षेत्राधिकार वाले मंडल रेल प्रबंधक का एक प्रतिनिधि
    • जिला स्तरीय समिति में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक या पुलिस अधीक्षक (नामित अधिकारी) शामिल होंगे। आवश्यक सदस्यों में केंद्र सरकार का एक नामित व्यक्ति भी शामिल होगा।
  • जिला-स्तरीय समिति की भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आवेदक द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों को सत्यापित करेगी जबकि अधिकार प्राप्त समिति के पास भारतीय नागरिकता की जांच करने और अस्वीकार करने या देने का अधिकार है।

संशोधित नागरिकता कानून की उपयोगिता

  • शरणार्थियों को मान्यता : सी.ए.ए. लम्बे समय से शरणार्थी के रूप में रह रहे व्यक्तियों के पुनर्वास और उनकी नागरिकता के लिए कानूनी बाधाओं को दूर करता है।
  • अधिकारों की सुरक्षा : शरणार्थियों को नागरिकता अधिकार मिलने से उनके मानवाधिकारों के साथ-साथ सांस्कृतिक, भाषाई एवं सामाजिक पहचान की रक्षा सुनिचित हो सकेगी। 
    • नागरिकता प्राप्त होने के बाद वे भी आर्थिक, वाणिज्यिक, मुक्त आवाजाही एवं संपत्ति धारण के अधिकार का लाभ उठा सकते हैं।
  • विभाजन की ऐतिहासिक पीड़ा से मुक्ति : यह संशोधन अधिनियम उनको आसान नागरिकता प्राप्ति के विकल्प देता है जो पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफ़ग़ानिस्तान जैसे इस्लामी गणराज्यों में धार्मिक अल्पसंख्यक होने के कारण प्रताड़ित हैं या धार्मिक प्रताड़ना से बचने के लिए भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे है। 

सी.ए.ए. की आलोचना

  • समानता के विरुद्ध : आलोचकों के अनुसार, किसी व्यक्ति को नागरिकता प्रदान करने के लिए धर्म को आधार मानना संविधान के अनुच्छेद 14 द्वारा प्रदत्त समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
  • पंथनिरपेक्षता के विरुद्ध : भारतीय संविधान एक पंथनिरपेक्षता सरकार को बढ़ावा देता है। एक पंथनिरपेक्ष राज्य वह है जिसमें राष्ट्र और उसके लोगों के लिए किसी एक धर्म को प्राथमिकता नहीं दी जाती है। 
    • किसी विदेशी को भारत की नागरिकता प्रदान करने के लिए धर्म को आधार बनाया जाना संविधान की मूल भावना के विपरीत है।
  • इस्लाम धर्म के प्रति भेदभावपूर्ण : सी.ए.ए. इस्लाम धर्म को मानने वालों को छोड़कर सभी अन्य धर्म आप्रवासियों को नागरिकता प्रदान करता है जबकि भारतीय संविधान के अनुसार राज्य, धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है। 
    • हालाँकि, सरकार का मानना है कि चूंकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश मुस्लिम बहुमत वाले इस्लामी गणराज्य हैं, इसलिए मुसलमानों को उत्पीड़ित अल्पसंख्यक नहीं माना जा सकता है।
  • उत्तर-पूर्वी राज्यों की चिताएं : इस अधिनियम को लेकर उत्तर-पूर्वी राज्यों ने चिंता व्यक्त की है कि अवैध प्रवासी उनकी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। इसके आलावा, संसाधनों एवं आर्थिक अवसरों पर भी अधिक दबाव बढ़ सकता है।
  • असम अकॉर्ड का उल्लंघन : असम अकॉर्ड के अनुसार, 25 मार्च 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले विदेशियों का पता लगाकर उन्हें बाहर किया जाना है। जबकि सी.ए.ए. 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आने वाले गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देने का प्रावधान करता है, जोकि स्पष्ट रूप से असम अकॉर्ड एक का खंडन करता है।
  • राज्य सरकारों की सीमित शक्तियाँ : पुराने नियमों में नागरिकता के लिए जिला कलेक्टर के कार्यालय में आवेदन किया जाता था, जो राज्य सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में आता है।
    • नए नियम के अनुसार, नागरिकता के लिए इलेक्ट्रॉनिक रूप से जमा किए गए आवेदनों की जांच अधिकार प्राप्त समिति, जिला-स्तरीय समिति के माध्यम से करेगी।

आगे की राह

  • मुस्लिम समुदाय के डर को दूर करना  : ऐसी आशंकाएं और भ्रांतियाँ हैं कि सी.ए.ए. के बाद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) का देशव्यापी संकलन किया जाएगा। एन.आर.सी., मुस्लिम समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। मुस्लिम समुदाय में यह डर है कि सी.ए.ए. से गैर-मुसलमानों का एन.आर.सी. से बचाव होगा और मुसलमानों को नागरिकता साबित करनी होगी।
    • अतः सरकार को मुस्लिम समुदाय के बीच राष्ट्रव्यापी एन.आर.सी. की आशंकाओं को दूर करना चाहिए। 
  • अन्य उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को शामिल करने पर विचार : तमिल समुदाय, जिन्हें श्रीलंका में गृह युद्ध के दौरान नृजातीय संघर्ष का सामना करना पड़ा था, इसके अलावा म्यांमार से विस्थापित रोहिंग्या समुदाय को भी नागरिकता देने पर विचार किया जा सकता है। 
    • पाकिस्तान, अफगानिस्तान में अहमदिया व हजारा जैसे अल्पसंख्यक मुस्लिम संप्रदायों का धार्मिक उत्पीडन होता है और एक पक्ष उन्हें भी नागरिकता देने की वकालत करता है। 
    • मानवता के आधार पर सरकार ऐसे उत्पीडित समुदायों को भी धीरे-धीरे अधिनियम में शामिल किया जाना चाहिए।
    • हालाँकि, सरकार ने आश्वस्त किया है कि अन्य समुदायों के आवेदनों की समीक्षा मामले-दर-मामले आधार पर की जाएगी।
  • याचिकाओं पर सुनवाई : इस अधिनियम के आलोचकों ने इसकी संवैधानिकता को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की हैं, न्यायालय को शीघ्रता के साथ इन याचिकायों की सुनवाई करके अपना एक संविधान सम्मत निर्णय देना चाहिए। 
    • साथ ही केंद्र सरकार भी न्यायालय का निर्णय आने तक नागरिकता देने की प्रक्रिया को स्थगित करने पर विचार किया जा सकता है।
  • संघीय सहयोग : केंद्र सरकार द्वारा राज्यों, विशेष उत्तर-पूर्व और सीमावर्ती राज्य, के साथ सहमति बनाकर प्रक्रिया को आगे बढ़ाना महत्वपूर्ण होगा। असम जैसे उत्तर-पूर्वी राज्यों की सांस्कृतिक और जातीय पहचान पर सी.ए.ए. के प्रभाव के बारे में आशंकाओं को दूर करना आवश्यक है।
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