New
July Offer: Upto 75% Discount on all UPSC & PCS Courses | Offer Valid : 5 - 12 July 2024 | Call: 9555124124

भारत में आर्थिक सुधार और गठबंधन सरकार

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : आर्थिक विकास, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

18वीं लोकसभा के लिए किसी एक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। वास्तविक अर्थों में अब गठबंधन सरकार होगी। आर्थिक शासन के संदर्भ में विगत दो लोकसभाओं को आर्थिक सुधारों की दिशा में सकारात्मक माना जा रहा था क्योंकि वर्ष 1991 के आर्थिक सुधारों की शुरुआत के बाद पहली बार किसी एक दल के बहुमत वाली सरकार थी।

गठबंधन सरकारें और आर्थिक सुधार

  • वर्ष 1991 के बाद से सभी लोकसभा चुनाओं के बाद गठबंधन की सरकारें थीं और प्रमुख दल भी पूर्ण बहुमत (272 सीट) के आँकड़े से काफी दूर थे।
    • यह भारत को अपनी अर्थव्यवस्था खोलने एवं नियोजित अर्थव्यवस्था मॉडल को छोड़ने का दौर था।
  • योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के शब्दों में अग्रणी दल की इस स्पष्ट कमजोरी के कारण भारत में हमेशा ‘कमज़ोर सुधारों के लिए एक मजबूत आम सहमति’ थी।
  • यद्यपि आर्थिक सुधारों की आवश्यकता पर आम सहमति थी तथापि गठबंधन के दल प्राय: विशिष्ट मुद्दों पर असहमत थे, जिससे सुधार उपाय कमजोर हुए।

पिछली गठबंधन सरकारों के उल्लेखनीय आर्थिक सुधार

पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार : आर्थिक उदारीकरण

  • आंतरिक आर्थिक सुधार : पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली तत्कालीन अल्पमत सरकार ने बड़े आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। केंद्रीकृत योजना का त्याग किया और लाइसेंस-परमिट राज को हटाकर भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए खोल दिया।
  • वैश्विक एकीकरण : भारत ने उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति को लागू किया और इस अवधि में भारत विश्व व्यापार संगठन का सदस्य भी बना।

एच.डी. देवेगौड़ा सरकार : ड्रीम बजट

  • वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने ‘ड्रीम बजट’ पेश किया, जिसमें व्यक्तिगत आयकर, कॉर्पोरेट करों एवं सीमा शुल्क के लिए कर दरों में कटौती की गई, जिससे भारतीय करदाताओं में विश्वास बढ़ा।
  • ‘ड्रीम बजट’ से पूर्व यह धारणा बढ़ती जा रही थी कि सुधारों को रोका और रद्द किया जा सकता है किंतु वर्ष 1997 के बजट ने यह विश्वास वापस ला दिया कि सुधार निरंतर एवं अपरिवर्तनीय हैं।

वाजपेयी सरकार : राजकोषीय एवं बुनियादी ढाँचा सुधार

  • एफ.आर.बी.एम. ढांचा : पहली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार के दौरान राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम लागू किया गया और सरकारी उधारी को सीमित करने तथा राजकोषीय अनुशासन को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया।
  • विनिवेश एवं बुनियादी ढांचा विकास : सरकार ने घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश को आगे बढ़ाया और पीएम ग्राम सड़क योजना के साथ ग्रामीण बुनियादी ढांचे को बढ़ावा दिया।
    • पूरे देश में आधुनिक सड़कों का जाल बिछाने के साथ-साथ सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों को रेल नेटवर्क से जोड़ने के निर्णय लिए गए।
  • ई-कॉमर्स क्षेत्र की नींव : सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 ने भारत में एक मजबूत ई-कॉमर्स क्षेत्र की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

मनमोहन सिंह सरकार : अधिकार-आधारित सुधार

  • शिक्षा का अधिकार : मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के तहत भारत ने पूर्ववर्ती सरकार के सर्व शिक्षा अभियान को आगे बढ़ाते हुए शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू किया।
  • पारदर्शिता : सूचना का अधिकार अधिनियम पारित करके भारत के लोकतंत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया गया।
  • जन-कल्याण : राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत भोजन का अधिकार, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूनतम रोजगार प्राप्त करने जैसे अधिकार आधारित जन-कल्याण सुधार लागू किए गए।
  • आर्थिक एवं तकनीकी प्रगति : ईंधन की कीमतों को नियंत्रित करने से लेकर प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, आधार एवं जीएसटी कार्यान्वयन जैसे कार्यक्रमों को भी शुरु करने का प्रयास किया गया।

गठबंधन सरकार में आर्थिक सुधारों को विकृत करने वाले कारक

  • भारत में गठबंधन सरकारों को गठबंधन सहयोगियों के बीच अलग-अलग प्राथमिकताओं के कारण मज़बूत आर्थिक सुधारों को लागू करने में ऐतिहासिक रूप से चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार कारक हैं:
  • गठबंधन सहयोगियों की प्राथमिकताएँ
    • गठबंधन साझेदारों के प्राय: अपने अलग-अलग राजनीतिक एवं आर्थिक एजेंडे होते हैं, जिससे समझौता करना पड़ता हैं और सुधार कमजोर होते हैं।
    • इससे आर्थिक सुधारों की गति धीमी हो सकती है या बदल सकती है।
  • सर्वसम्मति बनाना कठिन
    • यद्यपि गठबंधन सरकारें व्यापक आम सहमति को बढ़ावा दे सकती हैं, फिर भी विभिन्न गुटों का समर्थन बनाए रखने की आवश्यकता कमजोर सुधार उपायों को जन्म देती है।
    • जटिल आर्थिक मुद्दों पर एकीकृत रुख हासिल करना कठिन हो जाता है।
  • नीतिगत अस्थिरता
    • गठबंधन में सहयोगियों के समर्थन में बार-बार बदलाव या आंतरिक असहमति से नीतिगत अस्थिरता बढ़ती है, जिससे निवेशकों का विश्वास एवं दीर्घकालिक आर्थिक योजना प्रभावित हो सकती है।

वर्तमान गठबंधन सरकार का आर्थिक सुधार दृष्टिकोण

  • विगत दशक में पूर्ण बहुमत वाली सरकार का उद्देश्य गठबंधन सरकारों की कमज़ोरियों को दूर करना, नीतिगत स्थिरता सुनिश्चित करना और निवेशकों का विश्वास बढ़ाना था।
  • वस्तु एवं सेवा कर (GST) और दिवाला एवं दिवालियापन संहिता जैसे महत्वपूर्ण सुधार प्रस्तुत किए गए। हालाँकि, ये लक्ष्य पूर्णतया हासिल नहीं किए जा सके।
  • सरकार को चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें भूमि अधिग्रहण में सुधार करने में विफल होना और व्यापक विरोध के बाद कृषि सुधारों को रद्द करना शामिल था।
  • विमुद्रीकरण की घोषणा से भी महत्वपूर्ण आर्थिक अनिश्चितता पैदा हुई।

निष्कर्ष

  • यह कथन कि गठबंधन सरकार अनिवार्य रूप से भारत के आर्थिक सुधारों की गति को पटरी से उतार सकती है, सामान्य तौर पर सत्य नहीं है। वर्ष 1991 के बाद से भारत का आर्थिक इतिहास यह स्पष्ट करता है कि गठबंधन सरकारों ने कई ऐसे साहसिक एवं दूरदर्शी सुधार किए हैं, जिन्होंने भारत के पुनरुत्थान की नींव रखी है।
  • हालाँकि, यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि गठबंधन सरकार आर्थिक सुधार की राह में चुनौतियां उत्पन्न कर सकती है किंतु प्रभावी नेतृत्व, स्पष्ट संवाद एवं रणनीतिक समझौते इन जोखिमों को कम कर सकते हैं तथा सुधार की गति को बनाए रख सकते हैं।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR