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आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22

संदर्भ

कोविड महामारी के बाद भविष्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए वर्ष 2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण में मुद्रास्फीति, वैश्विक तरलता उपायों और बढ़ती ऊर्जा कीमतों जैसे पहलुओं का विश्लेषण किया गया है। यह अर्थव्यवस्था में उत्पन्न भावी जोखिमों पर प्रकाश डालता है।

अर्थव्यवस्था की स्थिति

  • वर्ष 2020-21 में 7.3% के संकुचन के बाद वर्ष 2021-22 (प्रथम अग्रिम अनुमानों के अनुसार) में भारतीय अर्थव्यवस्था के वास्तविक रूप से 9.2% बढ़ने का अनुमान है।
  • वर्ष 2022-23 में जी.डी.पी. के वास्तविक रूप से 8-8.5% बढ़ने का अनुमान है।
  • आई.एम.एफ. के नवीनतम अनुमानों के अनुसार, भारत का वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2021-22 और वर्ष 2022-23 में 9% और वर्ष 2023-24 में 7.1% की दर से बढ़ने का अनुमान है, जो इसे 3 वर्षों के लिये दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना देगा।
  • वर्ष 2021-22 में कृषि और संबद्ध क्षेत्र के 3.9%, उद्योग क्षेत्र के 11.8% और सेवा क्षेत्र के 8.2% की संवृद्धि दर से बढ़ने की उम्मीद है।
  • वर्ष 2021-22 में मांग के अनुरूप खपत में 7%, सकल अचल पूंजी निर्माण (GFCF) में 15%, निर्यात में 16.5% और आयात में 29.4% की दर से बढ़ोत्तरी का अनुमान है।

राजकोषीय स्थिति

  • पूंजीगत व्यय की आवश्यकता पर बल देते हुए, सर्वेक्षण ने संकेत दिया है कि सरकार चालू वित्त वर्ष के लिये सकल घरेलू उत्पाद के 6.8% के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है।
  • अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान केंद्र की राजस्व प्राप्तियाँ वर्ष 2021-22 के बजट अनुमानों में 9.6% की अनुमानित वृद्धि के मुकाबले 67.2% बढ़ी हैं।
  • सर्वेक्षण में यह भी तर्क दिया गया है कि बैंकिंग क्षेत्र अर्थव्यवस्था को सहयोग करने के लिये पूरी तरह से तैयार है, क्योंकि यह "अच्छी तरह से पूंजीकृत है और गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के अतिरिक्त दबाव में संरचनात्मक रूप से गिरावट आई है"।
  • सकल कर राजस्व में वार्षिक आधार पर अप्रैल से नवंबर, 2021 के दौरान 50% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई।यह प्रदर्शन वर्ष 2019-20 के पूर्व-महामारी स्तरों की तुलना में भी बेहतर है।
  • सतत् राजस्व संग्रह और एक लक्षित व्यय नीति में अप्रैल से नवंबर, 2021 के लिये राजकोषीय घाटे को बजट अनुमान के 46.2% पर रखा गया है।

वैदेशिक क्षेत्र

  • चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत के निर्यात और आयात में उछाल आया और यह पूर्व-कोविड स्तरों को पार कर गया।
  • सितंबर 2021 के अंत में भारत का विदेशी ऋण बढ़कर 593.1 बिलियन डॉलर हो गया, जो एक वर्ष पहले 556.8 बिलियन डॉलर था।
  • विदेशी मुद्रा भंडार वर्ष 2021-22 की पहली छमाही में 600 बिलियन डॉलर को पार करके 31 दिसंबर, 2021 तक 633.6 बिलियन डॉलर हो गया।
  • नवंबर 2021 के अंत तक, भारत चीन, जापान और स्विट्ज़रलैंड के बाद दुनिया में चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार धारक देश था।

वैश्विक अनिश्चितता

  • सर्वेक्षण में बताया गया है कि वैश्विक व्यापार के लिये जोखिमों का समग्र संतुलन नीचे की ओर झुका हुआ है।
  • सबसे बड़ा जोखिम महामारी से उत्पन्न हुआ है, जिसमें लंबे समय तक बंदरगाह पर देरी, उच्च माल ढुलाई दर और शिपिंग कंटेनरों की कमी शामिल है।
  • मांग में सुधार के कारण आपूर्ति पक्ष में व्यवधान, वैश्विक व्यापार के लिये महत्त्वपूर्ण जोखिम उत्पन्न करते हैं।

मुद्रास्फीति दबाव

  • भारत की सी.पी.आई. मुद्रास्फीति वर्ष 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) में 5.2% की लक्षित उदार सीमा के अंदर है, जबकि डब्ल्यू.पी.आई. मुद्रास्फीति दोहरे अंकों में है।
  • हालाँकि, भारत को आयातित मुद्रास्फीति से सावधान रहने की आवश्यकता है, विशेष रूप से उच्च वैश्विक ऊर्जा कीमतों से।
  • उच्च मुद्रास्फीति दबाव, संभावित रूप से यू.एस. फेडरल रिज़र्व सहित महत्त्वपूर्ण केंद्रीय बैंकों द्वारा नकदी उपायों को समाप्त करने का कारण बन सकता है।

ऊर्जा जोखिम

  • सर्वेक्षण में, ऊर्जा के स्रोतों में विविधता लाने का आह्वान किया गया है, जिनमें से जीवाश्म ईंधन एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
  • साथ ही, यह मांग के अनुरूप ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये सौर और पवन के माध्यम से उत्पादित बिजली भंडारण पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • यह सरकार से पारंपरिक जीवाश्म ईंधन आधारित स्रोतों में बदलाव करने की गति पर ध्यान केंद्रित करने और ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के संबंध में एक सहज प्लेटफॉर्म सुनिश्चित करने के लिये अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता को प्रदर्शित करता है।

सतत् विकास

  • नीति आयोग एस.डी.जी. इंडिया इंडेक्स और डैशबोर्ड पर भारत का समग्र स्कोर वर्ष 2020-21 में बढ़कर 66 हो गया, जो वर्ष 2019-20 में 60 और वर्ष 2018-19 में 57 था।
  • फ्रंट रनर (65-99 स्कोरिंग) की संख्या वर्ष 2020-21 में बढ़कर 22 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हो गई, जो वर्ष 2019-20 में 10 थी।
  • भारत में विश्व का दसवाँ सबसे बड़ा वन क्षेत्र है। वर्ष 2020 में, भारत का वर्ष 2010-20 के दौरान अपने वन क्षेत्र को बढ़ाने में विश्व स्तर में तीसरा स्थान रहा है।
  • अगस्त 2021 में, ‘प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021’ को अधिसूचित किया गया था, जिसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक एकल उपयोग प्लास्टिक को समाप्त करना है।
  • प्लास्टिक पैकेजिंग के लिये विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व पर मसौदा विनियमन अधिसूचित किया गया था।
  • कॉप- 26 में प्रधानमंत्री ने उत्सर्जन में और कमी लाने संबंधी लक्ष्य को वर्ष 2030 तक प्राप्त करने की घोषणा की।

कृषि और खाद्य प्रबंधन

  • कृषि क्षेत्र ने पिछले दो वर्षों में तेज़ी से वृद्धि की। देश के सकल मूल्य वर्धित (GVA) में 18.8% हिस्सेदारी के साथ कृषि क्षेत्र ने वर्ष 2020-21 में 3.6% और 2021-22 में 3.9% की वृद्धि दर्ज की।
  • फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नीति का अपनाया गया है।
  • वर्ष 2014 की स्थिति आकलन सर्वेक्षण (SAS) रिपोर्ट की तुलना में नवीनतम एस.ए.एस. में फसल उत्पादन से शुद्ध प्राप्तियों में 22.6% की वृद्धि हुई है।
  • पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन सहित संबद्ध क्षेत्र लगातार उच्च विकास वाले क्षेत्रों के रूप में उभर रहे हैं और कृषि क्षेत्र में समग्र विकास के प्रमुख चालक हैं।
  • सरकार सूक्ष्म खाद्य उद्यमों को औपचारिक रूप देने के लिये बुनियादी ढाँचे के विकास, रियायती परिवहन और समर्थन के विभिन्न उपायों के माध्यम से खाद्य प्रसंस्करण की सुविधा प्रदान करती है।
  • सरकार ने पी.एम. गरीब कल्याण योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से खाद्य सुरक्षा नेटवर्क को और बढ़ा दिया है।

औद्योगिक विकास

  • सर्वेक्षण में कहा गया है कि औद्योगिक क्षेत्र, जो महामारी की वजह से प्रभावित हुआ है, के वर्ष 2021-22 में 11.8% की वृद्धि दर्ज करने की संभावना है। हालाँकि, वर्ष 2021 के दौरान इस क्षेत्र का प्रदर्शन धीमा रहा।
  • सर्वेक्षण में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे खोलना और विभिन्न क्षेत्रों के लिये पी.एल.आई. योजना जैसे उपायों के साथ-साथ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लिये आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी जैसी नीतिगत पहलों से रिकवरी की गति बढ़ेगी।
  • इस क्षेत्र में सुधार और वृद्धि में गति जारी रहने की संभावना है, क्योंकि सरकार के विभिन्न संरचनात्मक, राजकोषीय और ढाँचागत सुधारों के साथ-साथ उद्योगों को समर्थन देने के लिये कई उपायों व योजनाओं के अलावा लगातार प्रयास किये जा रहे हैं।

सेवा क्षेत्र

  • वर्ष 2021-22 की पहली छमाही के दौरान, सेवा क्षेत्र ने 16.7 बिलियन डॉलर से अधिक एफ.डी.आई. प्राप्त की, जो भारत में कुल एफ.डी.आई. प्रवाह का लगभग 54% है।
  • आई.टी.-बी.पी.एम. सेवाओं का राजस्व वर्ष 2020-21 में 194 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया और इसी अवधि के दौरान 1.38 लाख कर्मचारियों को इसमें शामिल किया गया।
  • प्रमुख सरकारी सुधारों में आई.टी.-बी.पी.ओ. क्षेत्र में दूरसंचार नियमों को हटाना और अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी लोगों के लिये खोलना शामिल है।
  • अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन गया है। नए मान्यता प्राप्त स्टार्टअप की संख्या वर्ष 2016-17 में 733 से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 14000 से अधिक हो गई है।
  • 44 भारतीय स्टार्टअप्स ने 2021 में यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल किया है और यूनिकॉर्न की कुल संख्या 83 हो गई है, जिनमें से अधिकांश सेवा क्षेत्र में हैं।

सामाजिक बुनियादी ढाँचा और रोज़गार

  • अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के साथ, रोज़गार संकेतक वर्ष 2020-21 की अंतिम तिमाही के दौरान पूर्व-महामारी के स्तर पर वापस आ गए।
  • मार्च 2021 के तिमाही ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ (PFLS) के आँकड़ों के अनुसार, महामारी से प्रभावित शहरी क्षेत्र में रोज़गार लगभग पूर्व-महामारी के स्तर तक पहुँच गया है।
  • सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में केंद्र और राज्यों द्वारा सामाजिक सेवाओं (स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य) पर व्यय वर्ष 2014-15 में 6.2% से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 8.6% हो गया।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार:
    • कुल प्रजनन दर (TFR) वर्ष 2019-21 में घटकर 2 हो गई, जो वर्ष 2015-16 में 2.2 थी।
    • वर्ष 2015-16 की तुलना में वर्ष 2019-21 में शिशु मृत्यु दर (IMR), पाँच वर्ष से कम आयु की मृत्यु दर और संस्थागत जन्म में सुधार हुआ है।
  • महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में असंगठित श्रमिकों के लिये आवश्यक रोज़गार प्रदान करने के लिये महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना में धन का आवंटन बढ़ाया गया है।
  • सर्वेक्षण के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में मंदी के बाद, केंद्र द्वारा पूंजीगत व्यय को अक्तूबर-दिसंबर के दौरान पुनः बढाया गया। पहली छमाही की मंदी मुख्य रूप से कोविड -19 के कारण लागू प्रतिबंधों के कारण थी।
  • अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान, सड़कों एवं राजमार्गों, रेलवे, आवास व शहरी मामलों जैसे बुनियादी ढाँचे पर ध्यान देने के साथ, पूंजीगत व्यय में 13.5% की वृद्धि हुई।
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