संदर्भ
- उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम तथा पुडुचेरी में विधानसभा चुनावों से पहले नए चुनावी बॉण्ड की बिक्री पर रोक लगाने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया है।
- विदित है कि ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (ADR) ने राजनीतिक दलों को प्राप्त होने वाले वित्त तथा खातों में पारदर्शिता की कमी संबंधी एक मामले के लंबित रहने और आगामी विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी बॉण्ड की बिक्री की पर रोक लगाने संबंधी एक याचिका दायर की थी।
चुनावी बॉण्ड क्या हैं?
- केंद्रीय बजट 2017 में घोषित, चुनावी बॉण्ड राजनीतिक दलों को गुप्त रूप से धन दान करने के लिये उपयोग किये जाने वाले ब्याज मुक्त वाहक उपकरण हैं। इसमें खरीदार या प्रदाता तथा उपकरण धारक (राजनीतिक दल जिसको इसका मालिक माना जाता है) के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी जाती है।
- चुनावी बॉण्ड 1,000; 10,000; 1 लाख; 10 लाख; तथा 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किये जाते हैं। भारतीय स्टेट बैंक इन्हें बेचने के लिये अधिकृत एकमात्र बैंक है।
- बॉण्ड खरीदकर्ता बॉण्ड खरीद कर उसे अपनी पसंद की पार्टी को दान कर सकते हैं। किसी व्यक्ति या कंपनी द्वारा बॉण्ड की खरीद के संदर्भ में कोई संख्या या सीमा निर्धारित नहीं की गई है। एस.बी.आई. उन को जमा करता है, जो किसी राजनीतिक पार्टी ने 15 दिनों के भीतर प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा नहीं किये हैं।
- अधिसूचना के अनुसार व्यक्तियों, व्यक्तियों के समूहों, गैर-सरकारी संगठनों, धार्मिक समूहों व अन्य ट्रस्टों को भी अपने विवरण का खुलासा किये बिना चुनावी बॉण्ड के माध्यम से दान करने की अनुमति है।
चुनावी बॉण्ड की पारदर्शिता संबंधी विवाद
- इसके संबंध में विवाद का मुख्य बिंदु दानदाताओं द्वारा चुनावी बॉण्ड के माध्यम से गुप्त रूप से दान करना है। केंद्र सरकार ने वित्त अधिनियम 2017 में संशोधन कर राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त दान का खुलासा करने से छूट प्रदान की है।
- दूसरे शब्दों में, उन्हें प्रत्येक वर्ष निर्वाचन आयोग को अनिवार्य रूप से प्रस्तुत अपनी योगदान रिपोर्ट में चुनावी बॉण्ड के माध्यम से योगदान करने वालों के विवरण का खुलासा नहीं करना पड़ता है।
- इससे मतदाता यह नहीं जान पाते कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को कितनी धनराशि दान की है। चुनावी बॉण्ड की शुरुआत से पहले राजनीतिक दलों को उन सभी दानदाताओं के विवरण का खुलासा करना होता था, जिन्होंने 20,000 रुपए से अधिक का दान दिया है।
- पारदर्शिता की माँग करने वाले कार्यकर्ताओं के अनुसार, यह परिवर्तन नागरिकों के ‘राइट टू नो’ का उल्लंघन करता है तथा राजनीतिक वर्ग को और भी अधिक अनुत्तरदायी बनाता है।
- नागरिक चुनावी बॉण्ड के संबंध में कोई विवरण प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं, जबकि सरकार, भारतीय स्टेट बैंक से डाटा प्राप्त कर दाता के विवरण तक पहुँच सकती है। इसका अर्थ यह है कि इन दान के स्रोत के बारे में केवल करदाता को अंधेरे में रखा जाता है।
- हालाँकि, केंद्र सरकार द्वारा इन बॉण्ड्स की छपाई तथा क्रय-विक्रय की सुविधा के लिये एस.बी.आई. को किया जाने वाला भुगतान करदाताओं के धन से ही किया जाता है।
चुनावी बॉण्ड की लोकप्रियता
- चुनावी बॉण्ड की शुरुआत को अभी केवल 3 वर्ष हुए हैं। इतने कम समय में चुनावी बॉण्ड दान के सबसे लोकप्रिय उपकरण बन गए हैं। ए.डी.आर. द्वारा किये गए विश्लेषण के अनुसार वित्तीय वर्ष 2018-19 में राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों को प्राप्त कुल आय की आधी से अधिक चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त हुई है।
- ए.डी.आर. की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय जनता पार्टी इस योजना की सबसे बड़ी लाभार्थी है। वर्ष 2017-18 व 2018-19 में राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त कुल आय 2,20 करोड़ थी, जिनमें से 1,660.89 करोड़ या 60.17% भाजपा को प्राप्त हुई।
चुनावी बॉण्ड पर चुनाव आयोग का रुख
- चुनाव आयोग ने मई 2017 में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय संबंधी स्थायी समिति को एक प्रतिवेदन प्रस्तुत कर, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act), 1951 में संशोधनों पर आपत्ति जताई थी। जो राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त दान का खुलासा करने से छूट प्रदान करता है। इसे एक ‘प्रतिगामी कदम’ (Retrograde Step) के रूप में देखा गया।
- आयोग ने कानून मंत्रालय को उपरोक्त संशोधन पर ‘पुनर्विचार’ करने तथा इसे ‘संशोधित’ करने के लिये भी कहा था।
- चुनाव आयोग ने इस संबंध में सरकार से सिफारिश की थी कि ‘ऐसी स्थिति में जहाँ चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त योगदान की रिपोर्ट नहीं की जाती है, राजनीतिक दलों की योगदान रिपोर्ट के अवलोकन से, यह पता नहीं लगाया जा सकता है कि राजनीतिक दलों ने इन बॉण्ड्स के माध्यम से दान प्राप्त करने हेतु जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29 (B) के प्रावधानों का उल्लंघन तो नहीं किया है। यह अधिनियम राजनीतिक दलों को सरकारी कंपनियों एवं विदेशी स्रोतों से चंदा/दान लेने से रोकता है।