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चरम मौसमी घटनाएँ एवं शहरी नियोजन

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : आपदा एवं आपदा प्रबंधन, पर्यावरण प्रभाव का आकलन, आर्थिक विकास, समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय, आधारभूत ढाँचे का निर्माण)

संदर्भ

चरम मौसमी घटनाओं के कारण शहरों में संभावित जोखिम को कम करके आँका जा रहा है। हाल में चेन्नई में अप्रत्याशित बारिश के कारण जलप्लावन और शहरी अव्यवस्था की समस्या इस गंभीर चेतावनी का संकेत है। नीति-निर्माताओं को तत्काल इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

चरम मौसमी घटनाओं का शहरों पर तात्कालिक प्रभाव

  • यातायात, संचार एवं विद्युत् आपूर्ति पर संकट : बड़े महानगरों में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों, विशेषतः अपतटीय महानगरों में बड़े बंदरगाहों, मेट्रों रेल सेवाओं एवं विद्युत आपूर्ति के लिये पॉवर ग्रिड के संचालन को बंद करना पड़ता है।
  • आकस्मिक सेवाओं पर प्रभाव : महानगरों की विशाल अबादी की कुछ आकस्मिक जरूरतों, जैसे- स्वास्थ्य एवं एम्बुलेंस सेवाएँ, खाद्यान्न की आपूर्ति आदि पर भी प्रभाव पड़ता है।
  • आजीविका संकट : दैनिक वेतनभोगी श्रमिकों, रेहड़ी व्यापारियों और फेरी वालों की आजीविका पर भी संकट उत्पन्न हो जाता है।
  • जनजीवन का संकट : जलप्लावन के कारण (महामारी, गंदे जल आदि) शहर में रहने वाले समुदायों के जीवन के लिये गंभीर संकट उत्पन्न हो जाता है।

शहरी नियोजन की समस्या

  • स्थानीय सरकारों द्वारा प्राथमिकताओं और जवाबदेहिता का आभाव, सशक्तिकरण की कमी और नगरपालिका अधिकारियों के बीच क्षमता निर्माण में विफलता ने चरम मौसमी घटनाओं से उत्पन्न शहरी अव्यवस्था को प्रेरित किया है।
  • उल्लेखनीय है कि आधे से अधिक भारतीय महानगरों का अपना कोई मास्टर प्लान नहीं है एवं अनौपचारिक क्षेत्र होने के कारण प्रभावशाली अभिजात्य और गरीब वर्ग दोनों ने ही वेटलैंड्स तथा नदी तट पर अतिक्रमण किये हैं।
  • वस्तुतः प्रत्येक बाढ़ के बाद जल निकासी नेटवर्क पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, किंतु महानगर के प्राकृतिक जल स्पंजों (जैसे चेन्नई की पल्लीकरनई आर्द्रभूमि एवं मुबई की मीठी नदी का अपवाह क्षेत्र) के व्यावसायिक अतिक्रमण पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है।
  • आवासों की बढ़ती कीमतों के कारण मध्य वर्ग शहर के उपनगरीय क्षेत्रों में स्थानांतरित हो रहे हैं। नगर विकास प्राधिकरण शहर के अतार्किक विस्तार को मंजूरी दे देते हैं, जिससे नई प्रकार की अन्य समस्याएँ जन्म लेती हैं।
  • शहरी जनसंख्या में वृद्धि और भारतीय शहरों के क्षेत्रफल में विस्तार से पारंपरिक प्राकृतिक संपत्ति, जैसे- आर्द्रभूमि, जलाशय और जलकुंड आदि तेजी से नष्ट हो रहे हैं।

नीति आयोग के सुझाव

शहरी नियोजन क्षमता में सुधार रिपोर्ट, 2021

  • नीति आयोग ने सितंबर 2021 में भारत में शहरी नियोजन क्षमता में सुधार रिपोर्ट प्रकाशित किया। इसमें कोविड-19 महामारी को एक अदृश्य आपदा के रूप में उद्धृत करते हुए वर्ष 2030 तक सभी शहरों को स्वस्थ्य शहर बनाने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। साथ ही, जलवायु प्रभावों को शहरों के मौलिक एवं स्थायी स्वरूप में परिवर्तन करने वाले तत्त्व के रूप में रेखांकित किया गया है।
  • नीति आयोग ने 500 प्राथमिकता वाले शहरों को प्रतिस्पर्धात्मक ढाँचे (Captive Framework) में शामिल करने की सिफारिश की है, जिससे सहभागी नियोजन के तरीके, सर्वेक्षण एवं लक्षित समूह के साथ विचार-विमर्श को अपनाना शामिल है ताकि नागरिकों की जरूरतों और आकांक्षाओं का आकलन किया जा सके। 
  • शहरी संपत्ति की पहचान करने और स्थानिक रूप से योजना निर्माण के लिये तकनीकी उपकरणों, निजी क्षेत्र और मानचित्रण रणनीतियों को पर्याप्त महत्व दिया गया है। अधिकतम समावेश और समुदायिक भावना सुनिश्चित करने में स्थानीय सरकारों को केंद्रीय भूमिका निभाने की आवश्यकता है। 

शहरी विकास की धारणीय रूपरेखा

  • यदि जलवायु परिवर्तन को मार्गदर्शक सिद्धांत माना जाए तो शहरी विकास अधिक टिकाऊ और न्यायसंगत हो सकता है। यह दृष्टिकोण महानगरीय सौन्दर्यीकरण पर पारिस्थितिक और धारणीयता संबंधी चिंताओं को प्राथमिकता देगा।
  • जलवायु परिवर्तन का विचार बाजारोन्मुख 'आकर्षक परियोजनाओं' के निर्माण को पर्यावरण पर प्राथमिकता नहीं देगा और रूफ़ टॉप फार्मिंग, इलेक्ट्रिक वाहनों एवं सौर ऊर्जा का अधिक प्रयोग किया जाएगा। इससे प्राकृतिक बाढ़ के मैदानों, नदियों, मैंग्रोव, दलदल और उद्यानों को प्रतिस्थापित करने की आवश्यकता नहीं होगी। यह भविष्य में शहरों को चरम जलवायु घटनाओं के कारण उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाएगा।

अन्य समाधान

  • बुनियादी ढाँचे के निर्माण के दौरान बायोफिलिक डिजाइन और हरित सामग्री का उपयोग करके कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिये एक शीर्ष-स्तरीय विभाग का निर्माण किया जाना चाहिये जो एकीकृत तौर पर राज्य के सभी संबंधित विभागों, जैसे आवास एवं शहरी विकास, परिवहन, जलापूर्ति, ऊर्जा, भूमि उपयोग, सार्वजनिक कार्यों और सिंचाई के मध्य समन्वय स्थापित कर सके।
  • वर्ष 2005 में मुंबई एवं वर्ष 2015 में चेन्नई की विनाशकारी बाढ़ जैसी अभूतपूर्व घटनाओं के बाद विशाल सामुदायिक समर्थन और सक्रिय लामबंदी के बावजूद भी शहरों में उदासीनता बनी रही। अत: शहरी विकास की प्राथमिकताओं को तय करने एवं नीतिगत परिवर्तनों की आवश्यकता है।
  • शहरी क्षेत्र में कानूनों में कोई व्यापक परिवर्तन नहीं किया गया। साथ ही, पारिस्थितिकी तंत्र की लागत पर स्थायी निर्माण कार्यों का समर्थन भी किया गया। विकास के इस एकांगी दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता है।
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