(प्रारंभिक परीक्षा: पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र – 3: विषय- संरक्षण, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
संदर्भ
हाल ही में, पेरिस समझौते (2015) को पाँच वर्ष पूरे हुए हैं। इस अवसर पर भारत और यूरोपीय संघ सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ‘जलवायु परिवर्तन तथा इसके दुष्प्रभावों से निपटने की दिशा में किये गए प्रयासों और आगे की रणनीति’ पर विचार-विमर्श के लिये ‘जलवायु महत्त्वाकांक्षी शिखर सम्मेलन-2020’ में एकत्रित हुए।
पेरिस समझौते के पाँच वर्ष : एक समीक्षा
- पेरिस समझौते के पाँच वर्ष बाद, विश्व अभी भी निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने से दूर है। इस समझौते के अनुसार, वर्ष 2030 तक वैश्विक ताप-वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर के ताप-स्तर की तुलना में 2℃ से अधिक न होने देना तथा इस सदी के अंत तक ताप-वृद्धि को 1.5℃ तक सीमित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
- वर्तमान उत्सर्जन स्तर को देखते हुए 1.5℃ के लक्ष्य को प्राप्त करने में वर्ष 2030 तक विश्व का कार्बन बजट खत्म हो जाएगा, क्योंकि वर्तमान में भारत समेत विश्व का एक बड़ा हिस्सा सस्ते कोल ईंधन और प्राकृतिक गैस के उपयोग संबंधी अधिकारों की माँग कर रहा है और ऐसा होने पर कार्बन उत्सर्जन और बढ़ेगा। यह भी स्पष्ट है कि अक्षय ऊर्जा आधारित नई ऊर्जा व्यवस्था को पूर्णतया लागू करने में अभी अधिक समय लगेगा।
- एक समस्या यह भी है कि तय लक्ष्य तक पहुँचने के लिये कोई विशेष रणनीति तैयार नहीं की गई है जिससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम हो सके। ऐसे बहुत कम देश हैं जिन्होंने वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में कटौती का कठिन लक्ष्य निर्धारित किया है।
- इस समझौते में कार्रवाई के लिये एक रूपरेखा तैयार की गई थी और सहकारी समझौते की नींव रखी गई थी, लेकिन अमेरिका जो सबसे बड़ा उत्सर्जनकर्ता है, इस समझौते से बाहर हो गया जिससे यह समझौता कमज़ोर हुआ है।
- हालाँकि कोविड-19 महामारी से पूर्व इस दिशा में कुछ उत्साहजनक संकेत प्राप्त हुए थे, जैसे इंडोनेशिया और अमेरिका ने कोयला उत्पादन के लिये अपने अनुमानों को कम कर दिया था। लेकिन अब ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका और रूस ने अपने तेल एवं गैस उत्पादन में और अधिक वृद्धि का अनुमान व्यक्त किया है।
- अगर निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने की संभावनाओं के देखें तो भारत वर्ष 2030 तक 2℃ तक के लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम है लेकिन इसकी नीतियाँ भविष्य के 1.5 ℃ के लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम नहीं लग रहीं।
- अमेरिका, रूस, चीन और जापान के वर्तमान प्रयासों के अनुसार ये देश वर्ष 2030 तक 4℃ तथा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अन्य देश 3℃ तक उत्सर्जन के स्तर को प्राप्त कर सकेंगे।
- ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट’ के अनुसार, वर्ष 2030 तक 2℃ तक के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये वैश्विक जीवाश्म ईंधन के उत्पादन में अगले एक दशक तक वार्षिक रूप से औसत 6% की गिरावट दर्ज की जानी चाहिये।
- भविष्य के 1.5 ℃ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये वर्ष 2030 तक कोयला उत्पादन को वार्षिक 11% तथा तेल एवं गैस के उत्पादन को 4% से 3% तक घटाना होगा, लेकिन कुछ देशों का लक्ष्य वर्ष 2030 तक जीवाश्म ईंधनों के उत्पादन में 50% तक की वृद्धि करनी है, जो निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये संगत या अनुकूल नहीं है।
- एक संभावना यह भी व्यक्त की गई है कि यदि सभी देश पेरिस समझौते में तय प्रतिबद्धताओं को पूरा कर भी लेते हैं, तो भी वर्ष 2030 तक ग्लोबल वार्मिंग 3℃ से अधिक होगी।
ग्रीन रिकवरी के लिये प्रयास
- समृद्ध भविष्य के लिये वैश्विक अर्थव्यवस्था को हरित अर्थव्यवस्था में बदलना आवश्यक है। साथ ही, कोविड महामारी की रिकवरी के लिये भी ग्रीन रिकवरी का होना आवश्यक है।
- वर्ष 2050 तक यूरोपीय संघ ने जलवायु तटस्थता की स्थिति को प्राप्त करने के लिये दिसंबर 2019 में एक नए विकास मॉडल एवं रोडमैप- ‘हमारे भविष्य का यूरोपीय संघ’ की शुरुआत की और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये दीर्घकालिक बजट में एक ट्रिलियन यूरो की राशि का प्रावधान किया है।
- साथ ही, यूरोपीय संघ के नेताओं ने सर्वसम्मति से वर्ष 1990 के स्तरों की तुलना में 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को लगभग 55% तक कम करने के लक्ष्य के प्रति भी सहमति व्यक्त की। यूरोपीय संघ द्वारा 55% के लक्ष्य को प्राप्त करने से वर्ष 2030 में 100 बिलियन यूरो तथा वर्ष 2050 तक 3 ट्रिलियन यूरो तक की बचत होगी।
यूरोपीय संघ का भारत के साथ कार्य करना
- यूरोपीय संघ और भारत पेरिस समझौते के पूर्ण कार्यान्वयन के लिये प्रतिबद्ध हैं। भारत ने इस संबंध में कई महत्त्वपूर्ण पहलें की हैं, जैसे- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, आपदा प्रतिरोधक अवसंरचना के लिये गठबंधन तथा उद्योग संक्रमण के लिये नेतृत्व समूह का गठन।
- भारत और यूरोपीय संघ आगामी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों (जलवायु परिवर्तन पर ग्लासगो में COP-26 और जैवविविधता पर कुनमिंग सम्मेलन में COP-15 की सफलता के लिये भी एक-साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं।
- साथ ही, यूरोपीय संघ हरित निवेश और सर्वोत्तम प्रथाओं और प्रौद्योगिकियों के साझाकरण पर भारत के साथ मिलकर काम करना जारी रखेगा।
आगे की राह
- कोई भी देश या सरकार अकेले जलवायु परिवर्तन से नहीं निपट सकती, इसके लिये विश्व भर के साझेदारों को एक-साथ मिलकर सहयोग को बढ़ावा देने के लिये सभी मार्गों का अनुसरण करना होगा।
- इस वैश्विक प्रयास में भारत भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसी संदर्भ में भारत द्वारा पिछले कुछ वर्षों में सौर एवं पवन ऊर्जा का तेज़ी से विकास आवश्यक कार्रवाई का एक अच्छा उदाहरण है।
- पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने और सभी के भविष्य को सुरक्षित रखने की दिशा में वैश्विक गतिशीलता की भावना का भी विकास हो रहा है।
- पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने के पाँच वर्ष बाद, यह पहले से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ‘नेट ज़ीरो उत्सर्जन’ के लिये स्पष्ट रणनीतियों और वर्ष 2030 तक 2℃ तक के लक्ष्य को प्राप्त के लिये वैश्विक स्तर पर प्रयासों को बढ़ाने के लिए आगे आए।
- आवश्यक रणनीतियों एवं प्रयासों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचा जा सकता है। वर्तमान समय इस संदर्भ में वैश्विक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय, स्थानीय और व्यक्तिगत प्रयासों के माध्यम से 'बेहतर निर्माण करने का एक अवसर हैं'।
- अगर अभी जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयास तेज़ नहीं किये गए तो आने वाली पीढ़ी को जलवायु परिवर्तन का बोझ उठाना पड़ेगा।
निष्कर्ष
- जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये सार्वजनिक नीतियाँ अपरिहार्य हैं लेकिन पर्याप्त नहीं हैं। एक बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये छोटे स्तर भी व्यक्तिगत कार्यों को बढ़ावा देना होगा। यह प्रयास पेरिस समझौते के माध्यम से शुरू हो चुके हैं और तेज़ी से बढ़ भी रहे हैं।
- जलवायु तटस्थता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये विश्वभर के वैज्ञानिकों, व्यवसायियों, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और नागरिकों को एकजुट होना होगा, जिससे हम सभी सीमाओं से परे जाकर पर्यावरण व पृथ्वी को साझा कर सकेंगें और एक बेहतर भविष्य के निर्माण में भागीदार होंगे।