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उत्तराखंड में जंगल की आग

(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 : विषय- पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण , पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

लगातार बढ़ते तापमान के साथ, उत्तराखंड में जंगल की आग या वनाग्नि लगातार बढ़ती ही जा रही है यद्यपि हाल ही में इस वनाग्नि से जुड़ी कुछ गलत तस्वीरें भी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर साझा की गई थीं, जिनका राज्य सरकार ने खंडन किया था। विगत कुछ वर्षों से जंगलों में आग लगने की अनेक खबरें आई थीं जिन्होंने पूरे विश्व को झकझोर दिया था।

प्रमुख बिंदु :

  • जंगलों में लगी आग मुख्यतः अनियोजित आग होती है जो अक्सर मानवीय गतिविधियों या आकाशीय बिजली गिरने जैसी प्राकृतिक घटना के कारण लगती है।
  • अंटार्कटिका को छोड़कर लगभग हर महाद्वीप में इस प्रकार की जंगल में आग लगने की घटनाएँ देखी गई हैं।
  • सामान्यतः जंगल की आग लगने के दो प्राथमिक कारण होते हैं, मानव जनित और प्राकृतिक।
  • मानव जनित कारण (Human Causes)
    • अध्ययनों के अनुसार लगभग 90% जंगलों की आग मानव जनित होती हैं।
    • मानव जनित लापरवाही, जैसे कि कैंपफायर को बिना बुझाए छोड़ दिया जाना या सिगरेट पीने के बाद कहीं भी लापरवाही से फेंक देना आदि इस प्रकार की आग फैलने की मुख्य वजहें हैं।
    • दुर्घटनाएँ, जानबूझकर की गई आगज़नी की हरकतें, कूड़े-मलबे आदि को ग़लत तरीके से जलाना और आतिश बाज़ी आदि भी जंगल की आग के अन्य प्रमुख कारणों में से हैं।
  • प्राकृतिक कारण (Natural Causes)
    • आकाशीय बिजली : जंगल में लगने वाली आग के पीछे आकाशीय बिजली प्रमुख कारणों में से एक है।
    • ज्वालामुखी विस्फोट: पृथ्वी की ऊपरी परत में उपस्थित गर्म मैग्मा आमतौर पर ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान लावा के रूप में बाहर निकल जाता है। गर्म लावा फिर बाद में बाहर आकर जंगल में आग का कारण बनता है।
    • तापमान: उच्च वायुमंडलीय तापमान और सूखापन जंगलों में आग लगने के लिये अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण धीरे-धीरे पृथ्वी की सतह पर हवा का तापमान बढ़ रहा है, जिससे कार्बन डाई ऑक्साइड और जंगल की आग फैलने की प्रतिशतता में वृद्धि हुईहै।

जंगल की आग के तीन बुनियादी प्रकार होते हैं :

  • क्राउन आग (Crown fires) से पेड़ अपनी पूरी लम्बाई अर्थात ऊपर तक जल जाते हैं। ये सबसे तीव्र और खतरनाक जंगली आग होती है।
  • सतह की आग केवल सतह कूड़े और मलबे को जलाती है। ये सबसे साधारण आग है जो जंगल को कम से कम नुकसान पहुँचाती है।
  • ग्राउंड फायर (कभी-कभी भूमिगत या उपसतह आग कहा जाता है) ह्यूमस, पीट और इसी तरह की मृत वनस्पति जलने के लिये पर्याप्त शुष्क हो जाते हैं , इनमें लगी आग को उपसतह की आग कहा जाता है। ये आग बहुत धीमी गति से चलती है, लेकिन पूरी तरह से इससे बाहर निकलना, या इस आग को बुझाना बहुत मुश्किल होता है।

पर्यावरण पर वन की आग के प्रभाव :

  • जंगलों की आग के मुख्य पारिस्थितिक, आर्थिक और सामाजिक प्रभाव निम्न हैं-
    • मूल्यवान लकड़ी संसाधनों का नुकसान।
    • जलग्रहण वाले क्षेत्रों का क्षरण।
    • जैव विविधता, पौधों और जानवरों के विलुप्त होने का डर।
    • वैश्विक तापमान का बढ़ना।
    • कार्बन सिंक संसाधन की हानि और वातावरण में CO2 के प्रतिशत में वृद्धि।
    • माइक्रॉक्लाइमेट (किसी विशेष छोटे जगह की जलवायु) में परिवर्तन।
    • मृदा अपरदन मिट्टी और उत्पादन की उत्पादकता को प्रभावित करता है।
    • ओज़ोन परत रिक्तीकरण।
    • आदिवासी लोगों और ग्रामीण तबके के लोगों की आजीविका का नुकसान।

भारत में वन अग्नि निवारण और प्रबंधन (Forest Fire Prevention and Management in India) :

  • वन, भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में दी गई समवर्ती सूची (42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से इस सूची के तहत लाया गया) में शामिल हैं।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के जंगलों की आग पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Forest Fires - NAPFF-2018) द्वारा भी इसका प्रबंधन होता है।
  • MoEFCC केंद्र द्वारा प्रायोजित वन अग्नि निवारण और प्रबंधन (Forest Fire Prevention and Management -FPM) योजना के तहत जंगल की आग से बचाव और प्रबंधन के उपायों की देखरेख की जाती है।
  • एफ.पी.एम. के तहत आवंटित धनराशि केंद्र-राज्य लागत-साझाकरण सूत्र के अनुसार है, जिसमें पूर्वोत्तर और पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों में केंद्रीय औरराज्य निधि का अनुपात 90:10 हैऔर अन्य सभी राज्यों के लिये 60:40 काअनुपात है।

आगे की राह :

  • जंगलों में लगने वाली आग भारत की प्रमुख आपदाओं में से एक है, जिससे अक्सर जन-धन की भारी हानि होती है और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है।
  • रोकथाम, शमन और नियंत्रण के बेहतर उपाय किये जाने से एवं एक समग्र योजना के माध्यम से जंगलों की आग पर काबू पाया जा सकता है साथ ही मानव जाति को मानव जनित कारकों को कम करने के लिये वृहत-स्तर पर प्रयास करने होंगें।

(स्रोत – डाउन टू अर्थ)

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