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कृत्रिम बुद्धिमत्ता का भविष्य

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता) 

संदर्भ

  • विगत कुछ वर्षों में भारत ने कृत्रिम बुद्धिमता (Artificial Intelligence –AI) प्रौद्योगिकी को अपनाने की दिशा में कई महत्त्वपूर्ण प्रयास किये हैं। हालाँकि अभी भी ऐसे कई क्षेत्र हैं, जिनमें भारत को यह तकनीक अपनाने के लिये और अधिक मेहनत करने की आवश्यकता है।
  • यह भी ध्यान रखा जाना चाहिये कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना समाज मेंसामाजिक और आर्थिक असमानता काफी ज़्यादा बढ़ सकती है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता क्या है?

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता कंप्यूटर विज्ञान की वह शाखा है, जो कंप्यूटर को इंसानों की तरह व्यवहार करने में समर्थ बनाती है। इसके द्वारा मशीनों में सोचने, समझने, सीखने, समस्या हल करने और निर्णय लेने संबंधी क्षमताओं का विकास किया जाता है। जॉन मैकार्थी इसके जनक माने जाते हैं।
  • बहुत से लोग कृत्रिम बुद्धिमत्ता को निजता के अधिकार के लिये जोखिम के रूप में देखते हैं, वहीं कुछ का मानना है कि इसके चलते प्रौद्योगिकीय बेरोज़गारी को बढ़ावा मिलेगा। कुछ लोग इसे इसलिये भी खतरनाक मानते हैं क्योंकि इससे जुड़े आँकड़ों के माध्यम से कोई भी व्यक्ति किन्हीं भी गतिविधियों, पुरानी बातों या किसी अन्य प्रकार की जानकारी को बड़ी आसानी से प्राप्त कर सकता है।

समाज और कृत्रिम बुद्धिमत्ता

  • चेक लेखक कारेल केपेक (KarelČapek) ने पहली बार 1920 के दशक में अपने नाटकों में रोबोट का उल्लेख किया था, जिसमें मनुष्य ने बुद्धिमान मशीनों की परिकल्पना की थी।किंतु, यदि रोबोट पुलिस की तरह व्यवहार करने लग जाए या नैनी-बॉट बच्चे व बुज़ुर्गों की देखभाल करने लगे तो यह निश्चित रूप से समझ लेना चाहिये कि वे मनुष्यों से भी अधिक बुद्धिमान हो गए हैं।
  • चौथी औद्योगिक क्रांतिके वाहक के रूप में कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमारी ज़िंदगी में काफी हद तक प्रवेश कर चुकी है।
  • चाहे हमारी पसंदीदा स्ट्रीमिंग या खरीदारी वाली वेबसाइट्स हों या जी.पी.एस. तकनीक या ई-मेल लिखते समय लेख का पूर्वानुमान करना हो;यह तकनीक बहुत गहरे स्तर तक हमारे दैनिक क्रियाकलापों में शामिल हो गई है।
  • हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हम जितना अधिक ए.आई. तकनीक का उपयोग करेंगे, यह उतनी अधिक बेहतर होती जाएगी।
  • पिछले एक दशक में ए.आई. के प्रयोग में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। इस तकनीक के उपयोग का स्तर इतना अधिक बढ़ चुका है कि हाल ही में एक विश्व चैंपियन खिलाड़ी ने अपनी जीत के लिये आवश्यक प्रोटीन को भी डिकोड कर लिया था।

सतत् विकास लक्ष्यों और समाजिक आवश्यकताओं पर प्रभाव

  • सतत् विकास लक्ष्यों पर ए.आई. के प्रभावों की समीक्षा करते हुए प्रसिद्ध पत्रिका नेचर ने अपने एक अध्ययन में पाया कि तकनीक 79% सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक हो सकती है।किंतु इसी अध्ययन में यह भी स्पष्ट किया गया है कि सहायक होने के साथ ही यदि इस तकनीक के विनियमन पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह लगभग 35% सतत् विकास लक्ष्यों को बाधित भी कर सकती है।
  • ए.आई. की संगणक क्षमता को व्यापक पैमाने पर बढ़ाने के लिये अधिक विद्युत् शक्ति की आवश्यकता होगी, जिससे कार्बन फुटप्रिंट बढ़ने की संभावना है।
  • रोबोटिक्स और ए.आई. कंपनियाँ ऐसी मशीनों का निर्माण कर रही हैं जो कम आय वाले या अकुशल श्रमिकों द्वारा किये जाने वाले कार्यों का स्थान ले लेंगी, जैसे कैशियरों की जगह स्वयं सहायता किओस्क।
  • वह दिन दूर नहीं जब ए.आई. द्वारा डेस्कजॉब को भी समाप्त कर दिया जाएगा, जैसे एकाउंटेंट, वित्तीय निवेशक या प्रबंधक आदि।
  • श्रमिकों के कौशल विकास से जुड़ी स्पष्ट नीतियों के अभाव में, नए रोज़गार सृजन के लिये सरकारों द्वारा किये गए वादे न सिर्फ असमानताओं को, बल्कि असंतोष को भी जन्म देंगे।

ए.आई. की वैश्विक पहुँच

  • वैश्विक स्तर पर उन देशों में निवेश की संभावनाएँ भी ज़्यादा हैं, जहाँ ए.आई. संबंधित कार्य पहले से ही सकुशल चल रहे हों, जिससे देशों के बीच असमानताएँ भी बढ़ रही हैं।
  • इस क्षेत्र से जुड़ी यदि चार सबसे बड़ी कंपनियों गूगल(अल्फाबेट), अमेज़न, एप्पल तथा फेसबुक की बात की जाए तो इनकी कुल निवल संपत्ति 5 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है, जो कि विश्व के लगभग 99% देशों की जी.डी.पी. से ज़्यादा है। जब सम्पूर्ण विश्व कोविड-19 महामारी से जूझ रहा था, तब इन कंपनियों की निवल संपत्ति में 2 ट्रिलियन डॉलर से ज़्यादा की वृद्धि देखी गई।

ए.आई. और व्यावहारिक चुनौतियाँ

  • हमें यह ध्यान रखना होगा कि जिस तरह ए.आई. में अरबों लोगों का जीवन बेहतर बनाने की क्षमता है, वैसे ही यह विद्यमान समस्याओं को और अधिक बढ़ा भी सकती है।
  • चेहरे की पहचान या निगरानी तकनीक द्वारा गोरे या काले रंग के आधार पर व्यक्ति की पहचानहो या यह बताना कि क्यों कार्यस्थल पर पुरुष, महिलाओं से बेहतर हैं यह स्पष्ट करता है कि यह तकनीक भी सामजिक पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो सकती है।
  • दूसरी बात, हम जितना ज़्यादा इन तकनीकों का प्रयोग कर रहे हैं, हम अपने डिजिटल फुटप्रिंट्स छोड़ते जा रहे हैं, इससे हम निरंतरडाटा अनुकूलित वातावरण की ओर बढ़ रहे हैं। जहाँ हम वही देख, पढ़, सुन या खरीद रहेहैं जो हम चाहते हैंया उन्हीं लोगों से बात कर रहे हैं, जिनसे हम बात करना चाहते हैं।
  • सरल शब्दों में कहा जाए तो हमारे डिजिटल फुटप्रिंट्स के कारण ये ए.आई. एल्गोरिदम हमें हमसे ज़्यादा बेहतर तरीके से जानने लगे हैं।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता से जुड़ी पहलें

  • भारत ने सरकारी तथा निजी निवेश के माध्यम से पिछले कुछ वर्षों में ए.आई. क्षमता-निर्माण में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। ए.आई. के उपयोग व अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लियेभारत सरकार ने‘सामाजिक सशक्तीकरण के लिये जवाबदेह कृत्रिम बुद्धिमत्ता, 2020’ नामक सम्मलेन का आयोजन किया था।
  • नीति आयोग ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रौद्योगिकी आधारित समावेशी विकास के लिये‘सभी के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ नामक एक महत्त्वपूर्ण रणनीति भी प्रस्तुत की थी। इसके तहत स्वास्थ्य देखभाल, कृषि, शिक्षा, स्मार्ट सिटीज़ तथा बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु ए.आई. आधारित समाधानों की पहचान की जाएगी।
  • हाल ही में, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र ने ए.आई. तकनीक को अपनाने के लिये नई नीतियों एवं रणनीतियों की घोषणा की है। प्रौद्योगिकी कंपनियों ने भी अपने ग्राहकों की समस्याओं के समाधान हेतु वैश्विक स्तर पर ए.आई. उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये हैं।
  • भारत में कैंसर स्क्रीनिंग तथा स्मार्ट कृषि जैसे क्षेत्रों में ए.आई. तकनीक को विकसित करने के प्रयास भी किये जा रहे हैं।
  • मानव-केंद्रित विकास तथा सकारात्मक उपयोग में सहायता करने के लिये भारतपिछले वर्ष ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(Global Partnership on Artificial Intelligence- GPAI) में संस्‍थापक सदस्‍य के तौर पर सम्मिलित हुआ।
  • भारत के अलावा इस पहल से जुड़ने वाले अन्य सदस्यों में विश्व की अनेक बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ, जैसे- अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ (EU), ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान, मैक्सिको, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर आदि शामिल हैं। 

क्या है जी.पी.ए.आई.?

  • जी.पी.ए.आई., कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) द्वारा मानवाधिकारों, समावेशन, विविधता, नवाचार और आर्थिक विकास से जुड़े क्षेत्रों में कुशल मार्गदर्शन हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय और बहु-हितधारक पहल है।
  • प्रतिभागी देशों के विविध अनुभवों का उपयोग करके कृत्रिम बुद्धिमत्ता से जुड़ी चुनौतियों और अवसरों की बेहतर समझ विकसित करने का यह अपने किस्‍म का पहला प्रयास भी है।
  • इस पहल के द्वारा अनुसंधानव आवश्यक गतिविधियों की सहायता से ए.आई.से जुड़े सिद्धांतों (Theory) और व्यवहार (Practical) के बीच के अंतर को समाप्त करने की कोशिश की जाएगी।
  • इस पहल द्वारा अनेक उद्योगों, नागरिक समाज, सरकारों और शिक्षाविदों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास को बढ़ावा देने के लिये एक-साथ लाया जाएगा।

भारत में ए.आई. संबंधी समस्याएँ तथा सुझाव

  • भारत ने कौशल विकास के माध्यम से कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में कार्यबल में अभूतपूर्व वृद्धि की है लेकिन कार्यबल की बढ़ती माँग की तुलना में इसकी आपूर्ति अत्यधिक कम है।
  • इसलिये भारत को ए.आई. तथा मशीन लर्निंग से संबंधित मानव संसाधन की पर्याप्त उपलब्धता के लिये क्षेत्रीय स्तर पर कौशल विकास कार्यक्रमों तथा तकनीकी रूप से उत्कृष्ट केंद्रों के निर्माण हेतु प्रयास करने चाहिये।
  • ए.आई. अर्थव्यवस्था के निर्माण में डाटा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिये गोपनीयता के अधिकार को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित दृष्टिकोण के साथ डाटा का उपयोग किया जाना चाहिये। साथ ही, डाटा कोनियंत्रित करने तथा उसके नैतिक उपयोग के लिये एक सशक्त क़ानूनी ढाँचे की भी आवश्यकता है।
  • भारत में कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित क्षेत्रों में उपयोग के लिये डाटा विश्लेषण तथा वर्गीकरण के लिये ‘डाटा प्रबंधन केंद्रों’ का अभाव है। अतः सरकार को निजी क्षेत्र की सहायता से डाटा प्रबंधन अवसंरचना में निवेश करने की ज़रूरत है।

भविष्य की राह

  • ऑटोमेशन, बिग डाटा और एल्गोरिदम तब तक हमारे जीवन में नए आयाम खोजते रहेंगें, जब तक ये पुरानी चीज़ों को पूर्णतः प्रतिस्थापित नहीं कर देते।जिस प्रकार विद्युत शक्ति की खोज ने वैश्विक स्तर पर आमूल-चूल परिवर्तनों की नींव राखी थी, ए.आई. तकनीक भी भूख, गरीबी और विभिन्न बीमारियों के उन्मूलन की दिशा में सहायक हो सकती है।
  • यह जलवायु परिवर्तन से जुड़े शमन उपायों, शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरी और नई वैज्ञानिक खोजों के लिये भी नई राहों के निर्माण में सक्षम है।
  • पूर्व में हमने देखा है कि किस तरह ए.आई. तकनीक फसलों की पैदावार बढ़ाने में, व्यावसायिक उत्पादकता बढ़ाने में, ऋण सुधारों में तथा कैंसर जैसे रोगों का तेज़ी व सटीकता के साथ पता लगाने में सहायक रही है।
  • ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2030 तक यह तकनीक वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगभग 14% बढ़ाने या लगभग 15 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का योगदान देने में सक्षम होगी।
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