(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश; भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव, भारतीय अर्थव्यवस्था)
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ‘जी-11’ (G-11) नाम से एक नए समूह का प्रस्ताव दिया है।
G-11समूह
- G-11समूह एक प्रकार से G-7 समूह का विस्तार होगा। G-7 या ‘ग्रुप ऑफ सेवन’ एक अंतरसरकारी आर्थिक संगठन है।
- G-7 समूह में विश्व की सात विकसित अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं। इसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली के साथ-साथ जापान, यूनाइटेड किंगडम व संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
- ‘G-11’समूह में‘G-7’के देशों के अलावा भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और रूस शामिल होंगे। व्यापक रूप से इसे ‘चीनी विरोधी मंच’ के रूप में देखा जा रहा है।
G-11 की पहल का कारण
- G-11 पहल का एक प्रमुख कारण G-7 समूह का अप्रचलित होना हैं। श्री ट्रम्प ने G-7 शिखर सम्मेलन को कोविड-19 महामारी के कारण रद्द कर दिया। मूल रूप से यह सम्मलेन इस वर्ष जून में कैंप डेविड में होना निर्धारित किया गया था।
- श्री ट्रम्प ने 45 वर्ष पुराने इस संगठन को वर्तमान समय और परिस्थितयों के परिप्रेक्ष्य में अप्रचलित करार दिया है क्योंकि उनके अनुसार यह समूह विश्व का सही प्रतिनिधित्व नहीं करता है।
G-7 समूह
- G-7 समूह का गठन वर्ष 1975 में दुनिया के प्रमुख औद्योगिक देशों को एक अनौपचारिक मंच प्रदान करने के लिये किया गया था।
- वर्ष 1998 में रूस को G-7 समूह में एक औपचारिक सदस्य के रूप में शामिल किये जाने के बाद यह समूह G-8 बन गया।
- रूस द्वारा पूर्वी यूक्रेन के क्रीमिया पर सैनिक कार्रवाई के परिणाम स्वरूप रूस की सदस्यता रद्द कर दी गई। इस प्रकार, वर्ष 2014 में यह समूह पुनः G-7 के स्वरुप में आ गया।
- G-7 द्वारा लिये गए फैसले कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते हैं परंतु ये एक मज़बूत राजनीतिक प्रभाव डालते हैं।
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- यह एक वैध दावा है क्योंकि जिस समूह ने पिछली आधी सदी के दौरान वैश्विक आर्थिक शक्ति का अहसास कराया है उसके पुनर्निर्धारण का समय आ गया है।
- यूनाइटेड किंगडम की पहले से ही गिरती हुई वैश्विक हैसियत को ब्रेक्ज़िट के बाद स्थिति और कमजोर करेगी।
- इसके अलावा, सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के मामले में इटली भारत से पीछे हो गयाहै।
- हालाँकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन को इस समूह से बाहर रखने के निर्णय ने ट्रम्प के विश्व के सही प्रतिनिधित्व के इरादें पर सवाल खड़े कर दिये हैं।
भारत की स्थिति
- भारत के लिये बड़ा सवाल यह है कि चीन के साथ अपने मौजूदा तनाव पूर्ण सम्बंधों को देखते हुए इस समूह में शामिल होने के लिये आमंत्रित किये जाने की स्थिति में इसे स्वीकार किया जाना चाहिये अथवा नहीं।
- संतुलित रूप से देखा जाए तो भारत के भू-सामरिक हित तथा तात्कालिक व दीर्घ कालिक भारत-चीन सम्बंधों की गतिशीलता के अनुसार, दोनों स्थितियों में जवाब हाँ होना चाहिये।
- हालाँकि चीन को इस समूह से बाहर रखने के कारण भारत को खुद इस समूह से बाहर नहीं हो जाना चाहिये, बल्कि इसमें प्रभुत्त्व बनाये रखना चाहिये।
भारत को लाभ
- G-11 जैसा मंच भारत के लिये महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर विचारों के आदान-प्रदान का अवसर प्रदान करता है जो भारत के लिये काफी मूल्यवान हो सकता है।
- विशेष रूप से, यह दुनिया के कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण नेताओं के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव पर चर्चा करने का अवसर प्रदान कर सकता है।
- यह समूह समन्वित प्रतिक्रिया के लिये रूपरेखा तैयार करने में मददगार साबित होगा।
चीन द्वारा भारत की स्वीकृति पर दृष्टिकोण
- ऐसे समय में जब चीन सीमा मुद्दे पर भारतीय क्षेत्रों में पैठ बढ़ाने के लिये आक्रामक रुख अख्तियार कर रहा है तो ऐसे किसी भी आमंत्रण पर भारत की स्वीकृति का प्रश्न इस समय चीन को भड़काने वाला माना जा सकता है।
- इस कदम को भारत सरकार द्वारा अमेरिका की ओर बढ़ते झुकाव के परिप्रेक्ष्य में चीन के विरुद्ध आंशिक प्रतिशोध के रूप में देखा जा सकता है क्योंकी अमेरिका का रवैया हालिया वर्षों में चीन के प्रति लगातार प्रतिकूल रहा है।
- हालिया घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुए भारत को G-11 समूह में शामिल होना चाहिये।
भारत का पक्ष क्या होना चाहिये?
- इस समूह में शामिल होने या न होने के निर्णय द्वारा भारत के पास इस संदेश को प्रसारित करने का मौका होगा कि कोई अन्य देश भारत की विदेशनीति को निर्धारित नहीं कर सकता है।
- चीन की सेना द्वारा सिक्किम और लद्दाख में बार-बार तनाव की घटनाएँ और कूटनीतिक स्तर पर ऐसे मामलों को सुलझाने में होने वाली देरी के कारण भारत को चीन पर दबाव बनाने के लिये जापान व ऑस्ट्रेलिया के साथ साझेदारी को गहरी करने की जरुरत है।
- जापान और ऑस्ट्रेलिया दोनों अमेरिका के साथ मिलकर 13 वर्षीय चतुष्कोणीय सुरक्षा सम्वाद का हिस्सा हैं।
- इसके अलावा, भारत उन बड़े समूहों में भी शामिल है जिसका सदस्य चीन नहीं है। ‘इंडियन ओशियनरिम एसोसिएशन’ (IORA) इनमें से एक है।
- इसलिये सम्भावित रूप से G-11 की सदस्यता स्वीकार करने को किसी नई मिसाल के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।
इंडियन ओशियन रिम एसोसिएशन (IORA)
- ‘इंडियन ओशियन रिम एसोसिएशन’ (Indian Ocean Rim Assosiation- IORA) एक गतिशील अंतर-सरकारी संगठन है। हिंद महासागर की सीमा से लगे 22 तटीय देश इस समूह के सदस्य हैं।
- इस संगठन का उद्देश्य अपने सदस्य राज्यों और 10 सम्वाद भागीदारों के माध्यम से हिंद महासागर क्षेत्र के भीतर सहयोग और सतत विकास को मज़बूत करना है।
- आई.ओ.आर.ए. का समन्वय सचिवालय एबेने (Ebene), मॉरीशस में स्थित है। आई.ओ.आर.ए. दिवस 07 मार्च को मनाया जाता है।
- इस संगठन की प्राथमिकताएँ और लक्षित क्षेत्र निम्न हैं:
I. समुद्री सुरक्षा, व्यापार और निवेश सुविधा, मत्स्य प्रबंधन तथा नीली अर्थव्यवस्था
II. आपदा जोख़िम प्रबंधन, पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान, शैक्षणिक, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण।
- पूर्व में इस संगठन को हिंद महासागर रिम पहल और इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (IOR-ARC) के रूप में जाना जाता है।
चतुष्कोणीय सुरक्षा सम्वाद (Quadrilateral Security Dialogue- Quad)
- QSD चार देशों भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका का सम्वृत समूह है। इसकी शुरुआत वर्ष 2007 में जापान ने की थी।
- इस मंच को समुद्रिक लोकतांत्रिक गठबंधन के रूप में माना जाता है। इसके मार्गदर्शक सिद्धांतों में नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था, उदार व्यापार प्रणाली और नेविगेशन की स्वतंत्रता में विश्वास प्रमुख है।
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