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जियोइंजीनियंरिंग : जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोकने का तकनीकी उपाय

संदर्भ 

  • जियोइंजीनियरिंग (भू-अभियांत्रिकी) जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोकने के लिए पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं में एक बड़े पैमाने पर तकनीकी हस्तक्षेप है, जो वैश्विक तापमान को कम करने और वैश्विक जलवायु को बदलने के लिए भौतिक तरीकों का उपयोग करने पर जोर देता है। 
  • एक तरफ जियोइंजीनियरिंग की अवधारणा प्रदूषण उत्सर्जन और समग्र जलवायु जोखिमों को कम करने में मददगार हो सकती है, तो दूसरी तरफ यह द्वारा बड़े पैमाने के हस्तक्षेप से प्राकृतिक प्रणालियों में बदलाव का जोखिम भी पैदा कर सकती है। 

क्या है जियोइंजीनियरिंग

  • जियोइंजीनियरिंग, जिसे जलवायु इंजीनियरिंग अथवा भू-अभियांत्रिकी के रूप में भी जाना जाता है, बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को परिवर्तित करने के लिए पृथ्वी की जलवायु प्रणाली का उद्देश्यपूर्ण परिवर्तन है। 
  • इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) के अनुसार, जियोइंजीनियरिंग विभिन्न विधियों और प्रौद्योगिकियों का एक व्यापक समूह है जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए जानबूझकर जलवायु प्रणाली को बदलना है।
  • जियोइंजीनियरिंग के अंतर्गत मुख्य रूप से सौर विकिरण प्रबंधन, कार्बन डाइऑक्साईड प्रबंधन एवं क्लाउड सीडिंग जैसी प्रक्रियाओं को अपनाया जाता है। 
    • इसके अतिरिक्त इन प्रक्रियाओं में महासागरों में कार्बन भंडारण, प्राकृतिक जंगल बनाना, बादलों में सिल्वर आयोडाइड/ ड्राई आइस का छिड़काव, स्ट्रेटोस्फेरिक एरोसॉल इंजेक्शन और कार्बन कैप्चर जैसी अवधारणाएं शामिल हैं।

जियोइंजीनियरिंग के अंतर्गत अपनाई जाने वाली विभिन्न भौतिक प्रक्रियाओं 

क्लाउड सीडिंग

  • क्लाउड सीडिंग प्रक्रिया में विभिन्न पदार्थों (सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड ड्राई आइस तथा लिक्विड प्रोपेन) को बादलों में प्रवेश कराया जाता है, जो संघनन नाभिक या बर्फ नाभिक के रूप में कार्य करते हैं और बारिश या बर्फबारी के अनुकूल परिस्थितियाँ को पैदा करते हैं।
    • क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयोग अमेरिकी रसायनविद और मौसम विज्ञानी विंसेंट जे. शेफर द्वारा 1946 में किया गया था।
  • इस प्रक्रिया में मुख्य रूप से ठोस कार्बन डाइऑक्साइड (सूखी बर्फ) और सिल्वर आयोडाइड सबसे प्रभावी हैं। 

मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग

  • मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग (एमसीबी) प्रक्रिया के अंतर्गत बादलों को चमकाने की घटना छोटे क्लाउड ड्रॉपलेट्स की सघनता को बढ़ाने पर घटित होती है।
  • एमसीबी में बड़ी मात्रा में छोटे कणों जैसे समुद्री सॉल्ट एयरोसॉल को मरीन क्लाउड में प्रसारित किया जाता है। 
    • ये कण संघनन केंद्र के रूप में कार्य करते हैं और जलवाष्प के अणु इस संघनन केंद्र के चारों ओर एकत्रित होते हैं और छोटे-छोटे बादल का निर्माण करते हैं।
  • चमकीले बादल सैद्धांतिक रूप से पृथ्वी पर पहुँचने वाले सौर विकिरण को कम कर सकते हैं और इस प्रकार वातावरण तथा समुद्र का तापमान कम हो सकता है। 

माइक्रोबबल(समुद्री झाग)

  • सोलर जियोइंजीनियरिंग की इस सैद्धांतिक परिकल्पना के अंतर्गत जल-निकायों में माइक्रोबबल भरे जाते हैं। इसके अंतर्गत समुद्र की सतह पर समुद्री झाग का स्प्रे किया जाता है।
    • इसका उद्देश्य जल सतह की परावर्तकता को बदलकर अधिकाधिक प्रकाश अंतरिक्ष में वापस परावर्तित करना होता है ताकि वातावरण के तापमान को कम किया जा सके। 
  • इस प्रक्रिया के अंतर्गत जल सतह जितना अधिक चमकीला होगा, उतनी अधिक परावर्तकता होगी।
  • इसके अंतर्गत लम्बे समय तक बने रहने वाले झाग को उत्पन्न करने के लिए दो भिन्न प्रयोग किए जाते हैं:
    • बड़ी मात्रा में सूक्ष्म झाग को उत्पन्न करने वाली प्रौद्योगिकी - नोजल प्रौद्योगिकी अथवा मैकेनिकल शेकर्स से लैस समुद्री जहाज का प्रयोग।
    • सूक्ष्म झागों को स्थिर बनाने के लिए रसायन पदार्थ जिन्हें पृष्ठ संक्रियक कहा जाता है, को इसमें मिलाया जा सकता है, जैसे-एम्फीफैलिक नैनोपार्टिकल अथवा फॉस्फोलिपिड्स।

सिरस क्लाउड थिनिंग

  • सिरस क्लाउड थिनिंग एक सोलर जियोइंजीनियरिंग परिकल्पना है जिसका उद्देश्य पक्षाभ मेघ को मुक्त अथवा विरलित करना है ताकि ऊष्मा को अंतरिक्ष में परावर्तित किया जा सके। 
  • इसके अंतर्गत पक्षाभ मेघ के निर्माण होने वाले क्षेत्र में हिम केन्द्रक जैसे बिस्मथ ट्राइयोडाइड अथवा ऐरोसॉल कणों जैसे सल्फ्यूरिक अथवा नाइट्रिक एसिड को अंतःक्षेपित किया जाता है।
    • इससे उत्पन्न होने वाले पक्षाभ मेघ बड़े बर्फ क्रिस्टल के साथ लघुकालिक होते हैं। इससे उनकी ऑप्टिकल डेप्थ भी कम होती है।
    • इसके परिणामस्वरूप अधिकाधिक दीर्घ तरंग स्थलीय विकिरण अंतरिक्ष में प्रसारित होता है। 
  • हालाँकि, शोधकर्ताओं का मानना है कि अधिक मात्रा में हिमकेन्द्रक कणों का पक्षाभ मेघ में अंतःक्षेपण विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकता है। 
    • इसके परिणामस्वरूप और अधिक घने बादल उत्पन्न हो सकते हैं। 
    • इससे और अधिक ऊष्मा उत्पन्न हो सकती है जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

कार्बन कैप्चर और स्टोरेज प्रौद्योगिकी

  • कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS) उन प्रौद्योगिकियों के संग्रह को संदर्भित करता है जो कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) उत्सर्जन को कम करके जलवायु परिवर्तन का मुकाबला कर सकते हैं।
  • सी.सी.एस. प्रौद्योगिकी का उपयोग जीवाश्म ईंधन को जलाने से उत्पन्न गैस को वायुमंडल में फैलने से पहले संग्रहित करना है।
  • सी.सी.एस. परियोजनाएं प्रति वर्ष लगभग 45 मिलियन टन CO₂ का भंडारण कर रही हैं, जो 10 मिलियन यात्री कारों द्वारा उत्पन्न CO2 उत्सर्जन की मात्रा के बराबर है। 
    • यह कैप्चर आमतौर पर CO₂ के बड़े स्थिर स्रोतों पर होता है, जैसे बिजली संयंत्र या औद्योगिक संयंत्र जो सीमेंट, स्टील और रसायन बनाते हैं।
  • CO₂ को एक बार भंडारण स्थल पर 2,500 फीट से अधिक नीचे कुओं में पंप किया जाता है इसे उपयोग किए जा चुके तेल और गैस भंडारण जैसे भूवैज्ञानिक संरचनाओं के साथ-साथ ही उन संरचनाओं में जिनमें अनुपयोगी, नमकीन पानी होता है, में पम्प किया जाता है।

जियोइंजीनियरिंग प्रक्रियाओं से जुडी चिंता 

  • जियोइंजीनियरिंग जलवायु परिवर्तन से बचाव के साथ-साथ अप्रत्याशित जलवायु जोखिम की चिंताओं को भी उजागर करती है। विशेषज्ञों का तर्क है कि जियोइंजीनियरिंग प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग से उत्सर्जन में कमी के साथ पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर भी पड़ सकता है। 
  • जियोइंजीनियरिंग तकनीकों को कभी-कभी जलवायु परिवर्तन को कम करने के व्यवहार्यपूरक विकल्प के रूप में माना जाता है। 
  • वैज्ञानिक अपने इस विश्वास में एकजुट हैं कि सोलर जियोइंजीनियरिंग और कार्बन डाइऑक्साइड को हटाना उत्सर्जन को कम करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। 
  • जलवायु परिवर्तन समाधानों के सभी रूपों की आर्थिक, राजनीतिक और भौतिक सीमाओं को देखते हुए, जियोइंजीनियरिंग तकनीकों को अंततः जलवायु बहाली के लक्ष्य के साथ प्रतिक्रियाओं के एक समूह के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

निष्कर्ष 

  • जियोइंजीनियरिंग तकनीकों का बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप प्राकृतिक प्रणालियों को बदलने का एक बड़ा जोखिम पैदा कर सकता है। यह एक ऐसी दुविधा पैदा कर सकता है जिसमें अत्यधिक जलवायु जोखिम को कम करने में अत्यधिक किफायती तकनीकें स्वयं महत्वपूर्ण जोखिम पैदा कर सकती हैं। नैतिक दृष्टिकोण से, मनुष्यों को जानबूझकर जलवायु को बदलने का कोई अधिकार नहीं है। इसके अलावा, यदि वे ऐसा करते हैं तो किन परिस्थितियों में करते हैं, इसका एक स्पष्ट रोडमैप होना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए ग्लोबल वार्मिंग को कम करने हेतु जियोइंजीनियरिंग और जलवायु में सुधार के लिए जियोइंजीनियरिंग के बीच नैतिक अंतर हो सकता है। 
  • इसके अलावा नैतिक बहस अक्सर व्यापक विश्वदृष्टि के मुद्दों को संबोधित करती है, जिसके अंतर्गत व्यक्तिगत और सामाजिक-आर्थिक विश्वास निहित होते हैं।
  • इसप्रकार यह कहा जा सकता है कि विविध संबंधित मुद्दों पर विचार करते हुए तथा ऐसे अनुप्रयोगों के अप्रत्याशित खतरों का मूल्यांकन करने के पश्चात् ही मानवहित में इन प्रौद्योगिकियों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
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