New
IAS Foundation New Batch, Starting from 27th Aug 2024, 06:30 PM | Optional Subject History / Geography | Call: 9555124124

बसोहली चित्रकला को जीआई टैग

प्रारंभिक परीक्षा के लिए - बसोहली चित्रकला, जीआई टैग 
मुख्य परीक्षा के लिए :  सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र 1, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र 3 - भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप,  बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषय

संदर्भ 

  • हाल ही में, बसोहली चित्रकला को भौगोलिक संकेतक(जीआई टैग) प्रदान किया गया।

बसोहली चित्रकला

  • बसोहली चित्रकला का विकास, जम्मू क्षेत्र के बसोहली क्षेत्र में हुआ। 
  • यहाँ लघु चित्रकारियों की एक अनूठी शैली को जन्म मिला, जिसमें पौराणिक कथाओं और पारंपरिक लोक कलाओं का मिश्रण पाया जाता है।
  • बसोहली चित्रकला का जन्म हिन्दू, मुग़ल तथा पहाड़ी शैलियों के समन्वय से हुआ है, जिसमें मुग़ल शैली की भाँति झीने परदों तथा पुरुषों के कपड़ों का प्रयोग किया गया है, जबकि चेहरे स्थानीय लोक कला पर आधारित हैं।
  • बसोहली चित्रकला शैली हिन्दू धर्म एवं परम्परा से अधिक प्रभावित रही और विष्णु एवं उनके दशावतारों का अधिक चित्रण किया गया।
  • बसोहली चित्रकला शैली के अंतर्गत रामायण, महाभारत तथा गीत गोविन्द पर आधारित चित्रों की भी रचना की गयी है।
  • संग्राम पाल (1635-1673 ई.) और कृपाल पाल (1678-1693 ई.) के शासनकाल में बसोहली चित्रकला का असली विकास हुआ।  
  • संग्राम पाल के शासनकाल में वैष्णववाद अपनाया गया था, जिसके कारण बसोहली की प्रारंभिक चित्रकारियाँ, जिनमें विशेष रूप से रसमंजरी श्रृंखला शामिल है, जो कृष्ण को नायक के रूप में दर्शाती हैं। 
  • किनारों और एक औसतन सपाट पृष्ठभूमि में लाल, पीले और नीले जैसे चमकीले और गहरे रंगों का प्रयोग, इन चित्रकला की अनोखी विशेषताएँ थी।
  • चेहरे की विशेषताओं, जैसे उभरी नाक और कमल के आकार की आँखों का चित्रण, इनका एक अन्य विशिष्ट भाग था।
  • पुरुषों और महिलाओं, दोनों की पोशाकें मुगल या राजपूत दरबार में पहने जाने वाले कपड़ों से मेल खाती हैं।
  • इनके वास्तुकला-संबधी तत्व, मुगल और राजपुताना वास्तुकला की याद दिलाते हैं, जो अपनी जटिल जड़ाइयों, आलों और भव्य रूप से सुसज्जित अंदरूनी हिस्सों के लिए प्रसिद्ध थे।
  • आभूषणों का चित्रण इस चित्रकला की सबसे अनोखी विशेषता थी, जिनमें मोतियों को दर्शाने के लिए उभरते सफ़ेद रंगों का और पन्ना रंग दिखाने के लिए झींगुर के पंख के आवरणों का प्रयोग किया जाता था।
  • कृपाल सिंह के आश्रय में, बसोहली चित्रकला के उत्तरवर्ती चरण का विकास हुआ।
  • इस चरण में प्रकृतिवाद की प्रमुखता के साथ-साथ, रचनाएँ अधिक परिष्कृत भी हो गई थीं।
  • उत्तरवर्ती काल में मनकू द्वारा रचित 'गीत गोविंद श्रृंखला' का बहुत महत्व है।
  • बसोहली शैली 18वीं शताब्दी के मध्य तक जारी रही और अन्य शहरों में भी इसका विस्तार हुआ।

जीआई टैग 

  • जीआई टैग मुख्य रूप से कृषि संबंधी, प्राकृतिक या विनिर्मित्त वस्तुओं के लिए प्रदान किया जाता है, जिनमें अनूठे गुण, ख्याति या इसके भौगोलिक उद्भव के कारण जुड़ी अन्य लक्षणगत विशेषताएं होती है।
  • जीआई टैग एक प्रकार का बौद्धिक संपदा अधिकार(आईपीआर) होता है, जो आईपीआर के अन्य रूपों से भिन्न होता है, क्योंकि यह एक विशेष रूप से निर्धारित स्थान में समुदाय की विशिष्टता को दर्शाता है।
  • वर्ल्‍ड इंटलैक्‍चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइजेशन (WIPO) के अनुसार जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग एक प्रकार का लेबल होता है, जिसमें किसी उत्पाद को विशेष भौगोलि‍क पहचान दी जाती है। 
  • जीआई टैग वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड द्वारा दिया जाता है।
  • भारत में, जीआई टैग के पंजीकरण को ‘वस्तुओं के भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 द्वारा विनियमित किया जाता है।
  • इसका पंजीकरण 10 वर्ष  के लिए मान्य होता है तथा 10 वर्ष बाद पंजीकरण का फिर से नवीनीकरण कराया जा सकता है।

जीआई टैग के लाभ 

  • यह भारत में भौगोलिक संकेतों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है, दूसरों द्वारा पंजीकृत भौगोलिक संकेतों के अनधिकृत उपयोग को रोकता है। 
  • यह भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित/निर्मित वस्तुओं के उत्पादकों की आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देता है।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR