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ग्रीन हाउस गैसें और समुद्री प्रदूषण

संदर्भ 

हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून न्यायाधिकरण (International Tribunal for the Law of the Sea : ITLOS) ने जलवायु परिवर्तन के संबंध में समुद्री प्रदूषण की परिभाषा का विस्तार करते हुए पृथ्वी के सम्पूर्ण महासागरीय क्षेत्र के उपयोग और संसाधनों के लिए विवाद समाधान तंत्र एवं जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर देशों के दायित्वों को रेखांकित किया है।

ITLOS का ऐतिहासिक निर्णय

  • न्यायाधिकरण ने संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (United Nations Convention on the Law of the Sea : UNCLOS) के तहत समुद्री प्रदूषण की परिभाषा का विस्तार करते हुए “ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) को भी समुद्री प्रदूषण में शामिल” कर लिया है।
    • यह घोषणा जलवायु परिवर्तन और अंतर्राष्ट्रीय कानून पर लघु द्वीपीय राष्ट्रों के आयोग (Commission of Small Island States on Climate Change and International Law : COSIS) द्वारा दिसंबर 2022 में प्रस्तुत अनुरोध पर जारी की गई है।
    • UNCLOS के तहत, "समुद्री प्रदूषण" की परिभाषा के लिए तीन-आयामी परीक्षण होता है:
      1. समुद्री प्रदूषण के लिए कोई पदार्थ या ऊर्जा अवश्य होनी चाहिए। 
      2. इस पदार्थ या ऊर्जा को मानव द्वारा, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, समुद्री पर्यावरण में लाया गया हो।  
      3. इस तरह के पदार्थ या उर्जा के प्रकटीकरण के परिणामस्वरूप हानिकारक प्रभाव परिलक्षित होना निश्चित है या भविष्य में नकारात्मक प्रभाव की आशंका है।
  • न्यायाधिकरण ने अपने निष्कर्ष में माना है कि मानवजनित GHGs उत्सर्जन सभी तीन मानदंडों को पूरा करता है, इसलिए इसे भी UNCLOS के तहत समुद्री पर्यावरण के प्रदूषण के दायरे में शामिल किया जाना चाहिए।

अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून न्यायाधिकरण

  • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून न्यायाधिकरण, UNCLOS के अधिदेश द्वारा बनाया गया एक अंतर-सरकारी संगठन है।
  • इसकी स्थापना 10 दिसंबर, 1982 को जमैका के "मोंटेगो बे" में की गई थी। 
  • यह न्यायाधिकरण जर्मनी के हैम्बर्ग में स्थित है।
  • यह UNCLOS के अनुच्छेद 287 में सूचीबद्ध चार विवाद समाधान तंत्रों में से एक है।
    • यद्यपि इस न्यायाधिकरण की स्थापना संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा की गई थी, लेकिन यह संयुक्त राष्ट्र का "अंग" नहीं है।

महासागर-जलवायु अंतर्संबंध (Ocean-Climate Nexus)

  • UNCLOS में स्पष्ट रूप से "जलवायु परिवर्तन" शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है। 
    • समुद्री प्रदूषण के संदर्भ में, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून न्यायाधिकरण की यह सलाहकारी घोषणा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। 
    • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून न्यायाधिकरण ने पहली UNCLOS प्रावधानों की व्याख्या जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने के रूप में की है। 
    • महासागर-जलवायु अंतर्संबंध को देखते हुए, जलवायु परिवर्तन को वर्तमान UNCLOS व्यवस्था में शामिल किया गया है।
  • महासागर-जलवायु अंतर्संबंध महासागर के स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों और वैश्विक जलवायु विनियमन में महासागर की भूमिका को संदर्भित करता है।
  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन की वैश्विक जलवायु रिपोर्ट 2023 के अनुसार, 2023 के अंत तक, 90 प्रतिशत से अधिक महासागर ने वर्ष के दौरान किसी न किसी समय हीटवेव की स्थिति का अनुभव किया है।

UNCLOS के बारे में 

  • समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन 1982  (UNCLOS), एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जो दुनिया के समुद्रों और महासागरों के उपयोग के लिए एक नियामक ढांचा प्रदान करती है। 
  • यह संधि 16 नवंबर 1994 को लागू हुई थी। 
  • इसका मुख्यालय हैम्बर्ग, जर्मनी में स्थित है। 
  • यह समुद्री पर्यावरण के संरक्षण, समुद्री संसाधनों के न्यायसंगत उपयोग को सुनिश्चित करने और समुद्र के जीवित संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए कार्य करता है।
  • UNCLOS समुद्री संप्रभुता, समुद्री क्षेत्रों में उपयोग के अधिकार और नौवहन अधिकार जैसे अन्य मामलों को भी संबोधित करता है।

UNCLOS और पेरिस समझौता 

  • UNCLOS और पेरिस समझौते के तहत दायित्वों के बीच संबंधों के बारे में, ITLOS का मानना ​है, कि पेरिस समझौता UNCLOS के लिए ‘लेक्स स्पेशलिस’ (lex specialis) नहीं है। 
    • लेक्स स्पेशलिस अंतरराष्ट्रीय कानून का एक सिद्धांत है जिसका अर्थ है कि जब दो कानूनों के बीच संघर्ष होता है तो एक विशिष्ट कानून सामान्य कानून पर वरीयता लेगा। 
  • पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन को संबोधित करता है, जबकि UNCLOS महासागरों और समुद्रों को नियंत्रित करता है। 
  • हालाँकि, पेरिस समझौता UNCLOS के अनुच्छेद 194 के तहत मानवजनित GHG उत्सर्जन से समुद्री प्रदूषण को रोकने, कम करने और नियंत्रित करने के दायित्वों का अतिक्रमण नहीं करता है। 
  • इसके स्थान पर, यह UNCLOS के साथ मिलकर काम करता है, और इन दायित्वों को पूरा करता है।

आगे की राह 

  • ITLOS के अनुसार, राज्यों को वायुमंडल में मानवजनित GHGs उत्सर्जन से समुद्री प्रदूषण को रोकने, कम करने और नियंत्रित करने के लिए “सभी आवश्यक उपाय” करने की आवश्यकता है। 
  • राज्य सदस्यों द्वारा किए जाने वाले उपायों को “सर्वोत्तम उपलब्ध विज्ञान एवं तकनीक” द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए। 
  • वैज्ञानिक तकनीक एवं निश्चितता के अभाव में, राज्यों को सावधानीपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। 
  • उपायों में जलवायु परिवर्तन संधियों जैसे कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन और पेरिस समझौते, विशेष रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस मार्ग को ध्यान में रखना चाहिए।
  • बेहतर स्थिति वाले देशों का दायित्व है कि वे कम क्षमता वाले देशों की सहायता करें। 
    • यह विशेष रूप से विकासशील और कम विकसित देशों को संदर्भित करता है जो समुद्री पर्यावरण पर GHGs उत्सर्जन के प्रभावों से सबसे अधिक सीधे और गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं।  
    • सहायता को क्षमता निर्माण, वैज्ञानिक विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से GHGs उत्सर्जन से समुद्री प्रदूषण को दूर करने की दिशा में निर्देशित किया जाना चाहिए।
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