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अफगानिस्तान मुद्दे से दूर होते खाड़ी देश 

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)  

संदर्भ

वर्तमान में अफगानिस्तान संकट महत्त्वपूर्ण मोड़ पर पहुँच गया है। तालिबान ने कई प्रमुख राज्यों, राजधानियों और सीमा चौकियों पर कब्ज़ा कर लिया है। इसके अतिरिक्त, अमेरिका ने अफगानिस्तान में 20 वर्ष लंबे युद्ध को समाप्त करने पर जोर दिया है। 

अफगानिस्तान में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात

  • अफगान राष्ट्रपति ने दक्षिण और मध्य-एशियाई देशों के बीच व्यापार और संपर्क (कनेक्टिविटी) विस्तार पर ताशकंद (उज़्बेकिस्तान) में आयोजित एक सम्मेलन के दौरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। इन घटनाओं से दो महत्त्वपूर्ण देशों- सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने दूरी बनाए रखी। ये दोनों देश भी इस कांफ्रेंस में भाग ले रहे थे।
  • सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात का अफगानिस्तान (तालिबान सहित) और पाकिस्तान के साथ ऐतिहासिक संबंध रहा है। दोनों खाड़ी देशों ने वर्ष 2018 में दोहा, कतर में शुरू हुई अफगान शांति प्रक्रिया वार्ता से एक सापेक्ष दूरी बनाए रखी है।
  • संयुक्त अरब अमीरात की वर्ष 2003 से अफगानिस्तान में अमेरिकी आक्रमण के दौरान छोटी सैन्य उपस्थिति बनी हुई थी। इस दौरान सऊदी अरब, अफगानिस्तान को एक मज़बूत धार्मिक दृष्टिकोण से देख रहा था। पाकिस्तान में अपने महत्त्वपूर्ण प्रभाव की तरह सऊदी अफगानिस्तान में भी अपने प्रभाव को विस्तारित करने का प्रयास कर रहा था।
  • वर्ष 2012 में सऊदी अरब अपने प्रभाव को मज़बूत करने के लिये अफगानिस्तान में इस्लामी संस्थानों के वित्त पोषण का विस्तार करना चाहता था क्योंकि वहां अमेरिकी सेना के कारण कुछ स्थिरता थी।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 1980 से 1989 के बीच अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ मुजाहिदीनों को लड़ाई के लिये वित्त और मानव संसाधनों का महत्त्वपूर्ण स्रोत खाड़ी क्षेत्र था और अंततः रूस को अमू दरिया नदी से वापस जाना पड़ा।
  • पाकिस्तानी पत्रकार अहमद रशीद की पुस्तक 'तालिबान’ के अनुसार, सऊदी अरब ने वर्ष 1980 से 1990 के बीच मुजाहिदीनों को लगभग 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता प्रदान की, जिसमें इस्लामिक फाउंडेशनों, दान, राजकुमारों से प्राप्त निजी सहायता और मस्जिदों द्वारा एकत्रित धन शामिल नहीं थे। 

          प्रमुख खाड़ी देशों के दृष्टिकोण में बदलाव

          • वर्ष 2021 में खाड़ी क्षेत्रों में परिस्थितियाँ बहुत अलग हैं। अफ़ग़ानिस्तान पर सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और इस क्षेत्र के अन्य देशों के दृष्टिकोण में बदलाव का प्रमुख कारण मध्य-पूर्व में हो रहे कुछ मूलभूत बदलाव हैं।
          • पिछले कुछ वर्षों में संयुक्त अरब अमीरात इस क्षेत्र का एक प्रमुख वित्तीय केंद्र बनकर उभरा है और यह स्वयं को 'मध्य पूर्व के सिंगापुर' के रूप में स्थापित कर रहा है। यह बदलाव यू.ए.ई. के लिये तेज़ी से विकसित हो रही वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीतिक व्यवस्था की तैयारी के लिये तेल पर निर्भरता को कम करके अपने आर्थिक पोर्टफोलियो में विविधता लाने के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
          • इस क्षेत्र में संयुक्त अरब अमीरात की सफलताओं ने सऊदी अरब को भी प्रभावित किया। वहां के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने तेल-निर्भर अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के लिये मौलिक, महत्त्वपूर्ण और मुश्किल सुधारों की शुरुआत की है। इसके लिये सऊदी अरब ने न केवल आर्थिक उदारीकरण का सहारा लिया बल्कि सबसे महत्त्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक पुनर्विन्यास में लचीलेपन का प्रयास भी किया। 
          • इस तरह के बदलाव पूर्ववर्ती भू-राजनीतिक दृष्टिकोण और मुजाहिदीन के पसंद के साथ पूरी तरह से मेल नहीं खाती है। प्रिंस मोहम्मद बिन जायद के नेतृत्व में यू.ए.ई. ने मुस्लिम ब्रदरहुड के वैचारिक विस्तार के खिलाफ इसी तरह का आक्रामक रुख अपनाया है। मुस्लिम ब्रदरहुड मिस्र के विद्वान और इमाम ‘हसन अल-बन्ना’ द्वारा स्थापित लगभग एक सदी पुराना इस्लामिक आंदोलन है।
          • जून 2017 में यू.ए.ई. और सऊदी अरब ने मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करने के लिये खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के एक सदस्य कतर की नाकेबंदी कर दी थी। इसने आधिकारिक तौर पर वर्ष 2018 में दोहा में प्रारंभ हुई अफगान शांति प्रक्रिया में सऊदी या यू.ए.ई. की किसी भी भूमिका की संभावना को जटिल बना दिया।

          आंतरिक सुरक्षा को चुनौती 

          • खाड़ी क्षेत्र में वैचारिक बदलाव इन देशों के घरेलू सुरक्षा के लिये भारी चुनौतियों से भरा हुआ है। शांति बनाए रखने के लिये इन परिवर्तनों से संबंधित सबसे बड़ी घरेलू चुनौती का सामना सऊदी अरब कर रहा है क्योंकि यह वैचारिक दृष्टिकोण को नई दिशा (उदार इस्लाम) देने का प्रयास कर रहा है। 
          • इससे समाज के रूढ़िवादी वर्ग नाराज हो सकते हैं, जिसमें युवाओं का एक वर्ग भी शामिल है। उदाहरण के लिये 9/11 हमले के बाद अमेरिका पर अल-कायदा से जुड़ा एकमात्र आतंकी हमला दिसंबर 2019 में फ्लोरिडा में हुआ था, जिसमें सऊदी वायु सेना का 21 वर्षीय जवान शामिल था। 
          • मई में सऊदी अरब ने मस्जिदों को लाउडस्पीकरों की आवाज कम करने और नमाज के बाद उन्हें बंद करने का आदेश दिया। साथ ही, प्रार्थना के समय दुकानों और व्यवसायों को अनिवार्य रूप से बंद करने के नियमों में भी ढील दी गई। कुख्यात सऊदी धार्मिक पुलिस (मुत्तावा) को धार्मिक शिष्टाचार तोड़ने के लिये लोगों को सार्वजनिक रूप से चेतावनी देने की बजाय एक सलाहकार की भूमिका में ला दिया गया है।

          बदलावों का प्रभाव

          • खाड़ी क्षेत्र के शक्ति केंद्रों में हो रहे इन परिवर्तनों से जैसा समर्थन सोवियत संघ के खिलाफ अफगान युद्ध के दौरान मुजाहिदो को प्राप्त होता था वैसा समर्थन वर्तमान में प्राप्त नहीं हो पा रहा है।
          • अफगानिस्तान में गृहयुद्ध से उत्पन्न संकट सऊदी अरब जैसे देशों के लिये घरेलू मोर्चे पर एक चुनौती है। अपनी छवि में बदलाव लाने व उसको कायम रखने के लिये सऊदी अरब को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लड़ाकू गुटों या चरमपंथी गतिविधियों के वित्त पोषण का केंद्र न बनें।
          • मुस्लिम वर्ल्ड लीग के तहत सऊदी अरब, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के धार्मिक विद्वानों ने जून में हुई बैठक में माना कि तालिबान द्वारा की जा रही हिंसा 'अनुचित' है और इसे जिहाद नहीं कहा जा सकता। इससे पूर्व इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के महासचिव ने भी तालिबानी हिंसा को ‘मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार’ कहा था। यह दृष्टिकोण सऊदी अरब के नए लक्ष्यों के अनुरूप है।

            निष्कर्ष 

            • ‘नियोम’ में दुनिया के एक भविष्यवादी और आर्थिक शहर को विकसित करने की सऊदी अरब की योजना से लेकर यू.ए.ई. द्वारा दुबई में एक्सपो-2020 की मेजबानी के रूप में वैश्विक व्यापार में अपनी जगह बनाने के लिये सर्वव्यापी सुरक्षा और स्थिरता को नया मंत्र बनाना होगा।
            • इसे हासिल करने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयास पहले ही किये जा चुके हैं। एक तरफ संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और इज़राइल के बीच अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर हो चुके हैं तो दूसरी ओर सबसे बड़ी वैचारिक और भू-राजनीतिक दरार को दूर करने की कोशिश में सऊदी अरब और ईरान के बीच रुक-रुक कर बातचीत हो रही है। 
            • 90 के दशक में पाकिस्तान के साथ केवल सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने काबुल में तालिबान सरकार को आधिकारिक रूप से मान्यता दी थी किंतु वर्ष 2021 में अफगानिस्तान को लेकर खाड़ी क्षेत्र के दृष्टिकोण में काफी बदलाव आ रहा है।
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