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शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएँ: चुनौतियाँ तथा संबंधित मुद्दे

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ तथा संबंधित विषय)

संदर्भ

हाल ही में, वित्त मंत्रालय के अधीन वित्त विभाग ने स्थानीय निकायों को 8453.92 करोड़ रूपए स्वास्थ्य अनुदान के रूप में जारी किया। यह आवंटन 70,051 करोड़ रूपए के स्वास्थ्य अनुदान के एक हिस्से के रूप में किया गया है। यह अनुदान पंद्रहवें वित्त आयोग की सिफारिश पर आधारित है, जिसे वित्त वर्ष 2021-22 से 2025-26 तक पाँच वर्षों में जारी किया जाना है।

प्रमुख बिंदु

  • यह अनुदान ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे में चिन्हित कमियों को दूर करने के लिये निर्धारित है।
  • वित्त वर्ष 2021-22 में इस अनुदान के अंतर्गत आवंटित की जाने वाली धनराशि भारत में 5,66,644 करोड़ रूपए के कुल स्वास्थ्य व्यय (सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में) का 2.3% तथा वार्षिक सरकारी स्वास्थ्य व्यय (संघ और राज्य दोनों) का लगभग 5.7% होगी। 
  • यह अनुदान वित्त वर्ष 2021-22 के लिये केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के बजट आवंटन के 18.5% और जुलाई 2021 में घोषित दूसरे कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया पैकेज के लगभग 55% के बराबर है।

ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएँ: तुलनात्मक अध्ययन

  • वर्ष 1992 में 73वें तथा 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों को प्राथमिक देखभाल और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने की जिम्मेदारी हस्तांतरित की गई।
  • यह निर्णय शहरी स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये सकारात्मक नहीं रहा क्योंकि संसाधनों की कमी या स्वास्थ्य सेवाओं से सम्बंधित जिम्मेदारियों की अस्पष्टता या एक प्रकार से बिल्कुल नए खर्च प्राथमिकताओं के कारण शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिये सरकारी वित्त पोषण राज्य के स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से नहीं किया गया। 
  • साथ ही, शहरी स्थानीय निकायों (जो विभिन्न राज्यों में विभिन्न विभागों/प्रणालियों के अंतर्गत आते हैं) में स्वास्थ्य आवंटन में असमान वृद्धि हुई जबकि इस दौरान ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं को विभिन्न राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों के तहत वित्तीय सहायता प्राप्त होती रही। फलत: ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी स्वास्थ्य सेवाएँ कमज़ोर रह गईं।
  • स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय न करने वाले ग्रामीण स्थानीय निकायों ने भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को मजबूत करने के लिये प्रारंभ राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (वर्ष 2005) को प्रभावित किया है। जबकि वर्ष 2013 में प्रारंभ राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन का वित्तीय आवंटन कभी भी 100 करोड़ रूपए से अधिक नहीं रहा।
  • इन संशोधनों के 25 साल बाद वर्ष 2017-18 में भी भारत में ग्रामीण व शहरी स्थानीय निकायों की हिस्सेदारी भारत के कुल वार्षिक स्वास्थ्य व्यय में 1-1.3% तक ही रही। अधिकांश शहरी स्थानीय निकाय अपने वार्षिक स्वास्थ्य बजट का मात्र 1-3% तक व्यय कर रहे थे, जो स्ट्रीट लाइटों की स्थापना और उनकी मरम्मत पर शहरी स्थानीय निकायों द्वारा किये जाने वाले व्यय से भी कम है। 

चुनौतियाँ

  • शहरी भारत में कुल ग्रामीण जनसंख्या का लगभग आधा हिस्सा निवास करता है जबकि ग्रामीण क्षेत्र के कुल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की तुलना में मात्र 1/6 केंद्र ही शहरी क्षेत्रों में विद्यमान है।
  • विभिन्न दृष्टिकोणों के विपरीत शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ ग्रामीण भारत में उपलब्ध सेवाओं की तुलना में कमज़ोर हैं। इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि डेंगू तथा चिकनगुनिया जैसे सामान्य प्रकोप तथा नोवल कोरोनावायरस महामारी के दौरान लोगों को परीक्षण तथा परामर्श सेवाओं के लिये संघर्ष करना पड़ा है।
  • स्वास्थ्य देखभाल को कम प्राथमिकता, अपर्याप्त वित्तपोषण तथा उत्तरदायी विभिन्न एजेंसियों के मध्य समन्वय की कमी शहरी स्वास्थ्य निकायों की जटिलता में वृद्धि करती है।
  • स्वास्थ्य सेवाओं के संदर्भ में ग्रामीण क्षेत्रों की चुनौती उपलब्ध प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की खराब कार्यप्रणाली है, जबकि शहरी क्षेत्रों में चुनौती प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे और सेवाओं दोनों की कमी है।

आगे की राह

  • आवंटित अनुदान को प्राथमिक देखभाल और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के वितरण के लिये स्थानीय निकायों के प्रमुख हितधारकों को संवेदनशील बनाने के अवसर के रूप में प्रयोग किया जाना चाहिये।
  • स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में स्थानीय निकायों की जिम्मेदारियों के संदर्भ में नागरिकों के मध्य जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिये, जो जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये एक सशक्त उपकरण के रूप में कार्य कर सकता है।
  • स्वास्थ्य क्षेत्र में स्थानीय निकायों की भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने और स्वास्थ्य पहल में हुई प्रगति को ट्रैक करने के लिये स्थानीय डैशबोर्ड (जवाबदेही के एक तंत्र के रूप में) विकसित करने में नागरिक समाज संगठनों के सहयोग की आवश्यकता है।
  • पंद्रहवें वित्त आयोग के स्वास्थ्य अनुदान को स्थानीय निकायों द्वारा स्वास्थ्य व्यय के 'प्रतिस्थापन' के तौर पर न लेते हुए नियमित रूप से अपने स्वयं के स्वास्थ्य व्यय को बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में काम करने वाली विभिन्न एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय हेतु संस्थागत तंत्र बनाया जाना चाहिये। साथ ही, संकेतकों के मापन और रोड मैप के साथ समयबद्ध व समन्वित कार्य योजनाओं को विकसित करने की आवश्यकता है।
  • स्थानीय निकाय 'हेल्थ ग्रीनफील्ड' क्षेत्र बने हुए हैं। ऐसे में शहरी तथा ग्रामीण स्थानीय निकायों के प्रशासकों और सदस्यों को अभिनव स्वास्थ्य मॉडल विकसित करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • कोविद-19 महामारी से पूर्व विभिन्न राज्य सरकारों और शहरों ने ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के सामुदायिक क्लीनिक खोलने की योजना बनाई थी किंतु कोरोना महामारी के कारण ये परियोजनाएँ अधर में लटक गईं। आवंटित धन का उपयोग इनके पुनर्जीवन के लिये किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

15वें वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित स्वास्थ्य अनुदान में शहरी स्थानीय निकायों का हिस्सा राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन के वार्षिक बजट का लगभग पाँच गुना है और ग्रामीण निकायों का हिस्सा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के कुल स्वास्थ्य व्यय का डेढ़ गुना है। यह वर्ष 1992 हुए दो संशोधनों के तहत स्थानीय निकायों को प्राप्त जनादेश को पूर्ण करने का एक अभूतपूर्व अवसर है, जिसके लिये कुछ समन्वित कदमों की आवश्यकता है।

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