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म्यांमार शरणार्थियों के मुद्दे पर कितना तर्कसंगत है भारत का पक्ष?

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत एवं इसके पड़ोसी संबंध, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव, अंर्तराष्ट्रीय कानून)

संदर्भ

म्यांमार में सैन्य तानाशाही को लेकर विश्व में चिंताएँ बढ़ रही हैं। वहाँ शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध अत्याचार की घटनाएँ सामने आ रही हैं। म्यांमार के लोकतंत्र समर्थक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से समर्थन की अपील कर रहे है और ऐसे में उसके पड़ोसी देशों से आशा की जाती है कि वे कानून के शासन, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिये सहयोग करें। साथ ही, म्यांमार से कई शरणार्थी भारत में आश्रय की माँग कर रहे है।

 म्यांमार में जाँच की बढ़ती माँग  

  • म्यांमार में हो रहे अत्याचारों की जाँच उन पुलिस एवं सुरक्षा कर्मियों के हितों के अनुकूल है, जो प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध अवैध आदेशों का पालन करने से इंकार कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ, विभिन्न संगठनों एवं राष्ट्रों ने म्यांमार में हो रहे अत्याचारों को मानवता के खिलाफ संभावित अपराध के रूप में जाँच किये जाने की माँग की है।
  • इस बीच वर्ष 2011 के बाद से म्यांमार में हुये अंतर्राष्ट्रीय अपराधों की जाँच के लिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा गठित निकाय- ‘म्यांमार के लिये स्वतंत्र जाँच तंत्र’ (Independent Investigative Mechanism for Myanmar: IIMM) ने भी जाँच में सहयोग के लिये सुरक्षा कर्मियों से सार्वजनिक सहयोग की माँग की है।

भारत और म्यांमार : इतिहास और भूगोल

  • आधुनिक काल में वर्ष 1937 तक म्यांमार (बर्मा) ब्रिटिश राज के अधीन भारत का ही अंग था। बौद्ध बहुल होने के कारण दोनों देशों के मध्य प्राचीन सांस्कृतिक संबंध भी हैं।
  • वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता रहे बहादुरशाह ‘ज़फर’ को निर्वासित करके रंगून भेज दिया गया था, जहाँ उनकी समाधि है। ब्रिटिश नीतियों के विरोध के कारण बाल गंगाधर तिलक को भी मांडले जेल में रखा गया था।
  • भारत की अंतर्राष्ट्रीय थल सीमा सात देशों से लगती है, जिनका लंबाई के अनुसार क्रम इस प्रकार है- बांग्लादेश > चीन > पाकिस्तान > नेपाल > म्यांमार > भूटान > अफगानिस्तान।
  • भारत और म्यांमार के बीच 1643 किमी. की सीमा साझा होती है। पूर्वोत्तर में चार राज्यों- अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड की सीमा म्यांमार से लगती है। म्यांमार सीमा की सुरक्षा का उत्तरदायित्त्व असम राइफल्स के पास है।

म्यांमार शरणार्थियों के मुद्दे पर भारत का पक्ष

  • भारत में कई लोग म्यांमार के लोकतंत्र समर्थको के पक्ष में हैं, वहीं इस मामले में भारत सरकार का रवैया कथित तौर पर कुछ अस्पष्ट नज़र आ रहा है। एक ओर जहाँ भारत ने म्यांमार में लोकतंत्र के समर्थन में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में अपेक्षाकृत मज़बूत और सराहनीय पक्ष रखा हैं। वहीं दूसरी ओर, सरकार रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार भेजने की तैयारी कर रही है।
  • इसके अतिरिक्त, भारत ने म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों को रोकने के लिये सीमावर्ती राज्यों को अवैध प्रवासन को नियंत्रित करने का भी आदेश दिया है। भारत सरकार ने वर्ष 1951 के ‘शरणार्थियों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय’ पर हस्ताक्षर न किये जाने के आधार पर इनको शरणार्थी न मानते हुए घुसपैठी मान रही है।

शरणार्थियों की समस्या और मानवाधिकार

  • इन शरणार्थियों को घुसपैठी मानना और वापस भेजना अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुरूप नहीं है क्योंकि ऐसे व्यक्ति शरणार्थियों की कानूनी परिभाषा के दायरे में आते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि कोई भी राष्ट्र इन व्यक्तियों को खतरे की स्थिति में वापस नहीं भेज सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के अंतर्गत ‘नॉन-रिफ़ाउलमेंट’ (Non-refoulment : किसी को वापस न भेजने के संदर्भ में प्रयुक्त) का सिद्धांत इस बात का आश्वासन देता है कि किसी को भी उस देश में वापस नहीं भेजा जा सकता है, जहाँ उसको उत्पीड़न, निर्दयता, अमानवीय व्यवहार और भेदभावपूर्ण दण्ड का सामना करना पड़े।

भारत में आंतरिक समस्या

  • भारत (मिज़ोरम) और म्यांमार के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले चिन समुदाय का नृजातीय रूप से बहुत गहरा संबंध है और सीमा-पार क्षेत्रों में इनके पारिवारिक संबंध भी हैं। इस कारण शरणार्थियों को रोकने के मुद्दा मिज़ोरम में बहुत ही भावनात्मक और संवेदनशील बन गया है।
  • भारत के भीतर भी इससे समस्या पैदा हो रही है, क्योंकि मिज़ोरम सरकार म्यांमार के शरणार्थियों को देश में प्रवेश व आश्रय देने की पक्षधर है। साथ ही, ज़मीनी स्तर पर स्थिति को संभालने और समन्वय में सुरक्षा एजेंसियों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • विदित है कि भारत और म्यांमार के बीच एक ‘मुक्त आवागमन व्यवस्था’ (Free Movement Regime: FMR) लागू है जो दोनों देशों के स्थानीय निवासियों को कुछ किमी. तक अंदर जाने और 14 दिनों तक ठहरने की अनुमति प्रदान करता है।
  • म्यांमार के हजारों नागरिक काम के सिलसिले में और रिश्तेदारों से मिलने के लिये नियमित रूप से भारत आते हैं, जो दोनों देशों के मध्य मज़बूत संबंधों का आधार है। भारत के इस दृष्टिकोण से नागरिक-से-नागरिक संबंध तथा संस्कृति संबंधों पर प्रभाव पड़ेगा।

भारत के लिये क्यों आवश्यक है म्यांमार?

  • तख्तापलट के विरुद्ध भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सख्त प्रतिक्रियाएँ म्यांमार के सैन्य शासन को चीन की ओर रुख करने के लिये मज़बूर कर सकती है।
  • अभी तक भारत, म्यांमार में सैन्य और लोकतांत्रिक, दोनों प्रकार के शासन के साथ अनुकूलन में रहा है और इसलिये भारत तख्तापलट के प्रति स्पष्ट प्रतिक्रिया को लेकर दुविधा में है। सिद्धांत और व्यवहार के बीच एक मुश्किल विकल्प के कारण भारत की म्यांमार नीति अभी तक आकार नहीं ले पाई है।
  • म्यांमार की सेना उत्तर-पूर्वी उग्रवाद को रोकने में भारत की सहायता कर सकती है। पिछले दिनों दोनों देशों की सेनाओं के बीच समन्वित कार्रवाई और खुफिया जानकारी के साझा होने से भारत को सहायता मिली है।
  • इसके अतिरिक्त सैन्य तख्तापलट से रोहिंग्या मामले में भी भारत के लिये असहज स्थिति उत्पन्न हो गई है। रोहिंग्या की समस्याओं को दूर न करने या उनके अधिकारों के उल्लंघन से इस समुदाय के भीतर चरमपंथ का उदय हो सकता है, जो कि दीर्घावधि के लिये भारत के हित में नहीं है। साथ ही इससे भारत-बांग्लादेश संबंधों पर भी असर पड़ेगा।

निष्कर्ष

भारत को इन शर्निर्थियों को आश्रय प्रदान करने के बारे में विचार करना चाहिये और आई.आई.एम.एम. की जाँच में सहयोग करना चाहिये, जिससे अंतर्राष्ट्रीय जाँच में सहयोग की भारत की इच्छा का संदेश दिया जा सके। साथ ही, अंतर्राष्ट्रीय  अपराध न्यायालय के अभियोजक रोहिंग्या के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय अपराधों की जाँच कर रहे हैं और ऐसे में देश में रह रहे रोहिंग्यों को हिरासत में लेना और उनको वापस म्यांमार भेजना भारत की मानवाधिकारों एवं शरणार्थियों के प्रति प्रतिबद्धता को संदेह के घेरे में खड़ा कर सकती है। इसके अतिरिक्त, भारत को म्यांमार में राजनीतिक सुलह के लिये विवेकपूर्ण तरीकों पर ध्यान देते हुए दोनों पक्षों के मध्य व्यापारसंपर्क और सुरक्षा संबंधों को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिये। 

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