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पहचान-आधारित सार्वजनिक नीति

(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1- महिला सशक्तीकरण से संबंधित प्रश्न)

संदर्भ 

  • कुछ राजनीतिक दलों की मांग है कि जनगणना में जातीय जनगणना को शामिल किया जाए। यह मांग मुख्यतः अन्य पिछड़ा वर्ग की गणना से संबंधित है।
  • ध्यातव्य है कि अनुसूचित जाति तथा जनजाति की जनगणना पहले से ही की जा रही है।

प्रमुख बिंदु 

  • जातीय जनगणना की मांग के साथ यह तर्क भी दिया गया है कि पूरी आबादी के हितों की दृष्टि से सार्वजनिक नीति की प्रभावशीलता जाति आधारित जनगणना से जुड़ी हुई है।
  • इस तर्क की पड़ताल करने के लिये उन राज्यों के विकास परिणामों की तुलना करनी होगी, जहाँ राजनीतिक दलों ने उन राज्यों में जाति-आधारित लामबंदी को अपनाया है। 
  • साथ ही, राजनीतिक दलों ने अपनी पहचान की राजनीति का सहारा लिये बिना वंचना को समाप्त करने के लिये सामाजिक लोकतांत्रिक मार्ग को अपनाया है।

जाति जनगणना को प्रभावित करने वाले कारक

  • सामाजिक समूहों के पास आँकड़ों की सीमित उपलब्धता है। अतः जाति जनगणना को प्रभावित करने वाले तीन कारकों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है-
    • वयस्क साक्षरता (Adult literacy)
    • शिशु मृत्यु दर (Infant mortality rate)
    • उपभोग (Consumption)
  • इनमें से प्रत्येक संकेतकसंयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रमकेमानव विकास सूचकांकके तीन घटकों में से एक से संबंधित है।
  • विकास संकेतकों को चुनने के पश्चात् दो तरीकों से जनसंख्या में सबसे कम समृद्ध लोगों की स्थिति के अंतर का आकलन कर सकते हैं।
  • किसी भी संकेतक के लिये उसके वितरण के संदर्भ में किये गए प्रभाव पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
  • तमिलनाडु तथा केरल की तुलना करने पर ज्ञात होता है कि सामान्य आबादी और अनुसूचित जाति के मध्य आय के अनुपात में किये जाने वाले उपभोग का अंतर केरल में तमिलनाडु की तुलना में अधिक है, लेकिन अन्य दो संकेतकों के संदर्भ में यह कम है। 
  • हालाँकि, केरल की अनुसूचित जातियाँ तीनों संकेतकों पर तमिलनाडु की अनुसूचित जातियों से बेहतर स्थिति में हैं।
  • आश्चर्यजनक बात यह है कि केरल की अनुसूचित जाति भारत की सामान्य आबादी से भी बेहतर हैं, अर्थात् उनके पास बेहतर उपभोग, उच्च साक्षरता और शिशु मृत्यु दर भी निम्न है।
  • इन्हीं संकेतकों पर ध्यान केंद्रित करते समय यह भी देखा गया है कि एक से अधिक संकेतकों के लिये अनुसूचित जाति और सामान्य आबादी के मध्य का अंतर पूरे देश के लिये बहुत कम है। यदि इन्हीं संकेतकों का अध्ययन एक या दो राज्यों के मध्य किया जाए तो इनका अंतर अधिक है, भले ही राज्य द्वारा एक संकेतक के लिये बेहतर प्रदर्शन क्यों किया गया हो।
  • अब, केरल को बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्य के रूप में चुना जा सकता है, क्योंकि वहाँ वंचितों से संबंधित संकेतकों पर सर्वाधिक ध्यान दिया गया है।
  • यद्यपि, एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये अधिक विश्लेष्ण और नियंत्रणों के उपयोग की आवश्यकता होगी। 

महिला सशक्तीकरण 

  • महिलाओं में साक्षरता की कमी तथा उच्च शिशु मृत्यु-दर के कारण महिलाओं की सार्वजनिक नीतियों में भागीदारी बहुत कम रही है। 
  • अध्ययन आधारित दोनों राज्यों में केरल ने महिला सशक्तीकरण के मामले में निराशाजनक परिणाम दिये हैं। साथ ही, यह श्रम बल की भागीदारी, महिला विधायकों और न्यायाधीशों के अनुपात तथा महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के मामलों में तमिलनाडु से पीछे रहा है।
  • जनगणना के माध्यम से महिलाओं की संख्या की गणना करना उनके समक्ष आने वाली चुनौतियों और असमानता को खत्म करने के लिये अपर्याप्त साबित हुई हैं।

निष्कर्ष 

पहचान-आधारित सार्वजनिक नीति उतनी प्रभावी नहीं हो सकती है, जितनी कि एक पहचान-रहित या सार्वभौमिक दृष्टिकोण पर आधारित एक सामाजिक लोकतंत्र की पहचान है।

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