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भारत में भालू का अवैध कारोबार

(प्रारंभिक परीक्षा: पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

‘भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी’ (WPSI) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2009 से 2019 के बीच भारत में भालू के अंगों के अवैध व्यापार और उनकी ज़ब्ती की 149 घटनाएँ दर्ज की गई हैं। इनमें कम से कम 264 भालूओं का शिकार किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत में भालू के अवैध शिकार और ज़ब्ती के सर्वाधिक मामले उत्तराखंड में और इसके पश्चात् मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में सामने आए। वन्यजीवों की अवैध तस्करी के लिये ट्रांस-हिमालयी भूमि मार्ग अत्यधिक सुभेद्य है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, एशियाई ब्लैक बियर (Asiatic Black Bear) के पित्ताशय का पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग करने के लिये अत्यधिक शिकार किया गया, जबकि ‘स्लॉथ बियर’ (Sloth Bear) का शिकार उनकी त्वचा और पंजों के लिये किया गया।
  • विदित है कि भालू के पित्ताशय और हड्डियों का उपयोग पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता है, जबकि उनके माँस का उपयोग खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता है।
  • वर्ष 1981 से ही भारत से जापान, सिंगापुर, ताइवान, चीन, म्याँमार और नेपाल में भालू के पित्ताशय की अंतर्राष्ट्रीय तस्करी की सूचनाएँ मिली हैं।

एशियाई ब्लैक बियर और स्लॉथ बियर

  • ‘एशियाई ब्लैक बियर’ का वैज्ञानिक नाम ‘उर्सस थिबेटानस’ (Ursus thibetanus) है, जबकि ‘स्लॉथ भालू’ का वैज्ञानिक नाम ‘मेलर्सस उर्सिनस’ (Melursus ursinus) है।
  • वर्तमान में, ‘प्रकृति के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ’ (IUCN) की संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में भालुओं की इन दोनों प्रजातियों को सुभेद्य (Vulnerable) श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।
  • इन दोनों प्रजातियों को ‘भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972’ के तहत भी संरक्षित किया गया है। इसके अनुसार, भालू का अवैध शिकार करने पर 3 से 7 वर्षों की कैद या भारी ज़ुर्माना या दोनों की सज़ा दी जा सकती है।
  • भालू की ये दोनों प्रजातियाँ ‘लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन’ (Convention on International Trade in Endangered Species – CITES) के परिशिष्ट-I में भी सूचीबद्ध हैं। साइट्स इन प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करता है।
  • विदित है कि भारत में भालू की चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें एशियाई ब्लैक बियर व स्लॉथ बियर के अलावा, हिमालयन ब्राउन बियर व सन बियर भी शामिल हैं।

भालूओं के संरक्षण हेतु प्रयास

  • वर्ष 1994 में स्थापित ‘भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी’ (WPSI) भारत में वन्यजीवों के संरक्षण को समर्पित एक प्रतिष्ठित संगठन है। इसका उद्देश्य जागरूकता, समर्थन और प्रशिक्षण के माध्यम से लुप्तप्राय प्रजातियों की और उनके आवासों की रक्षा करना है। यह संगठन पूरे देश में अवैध शिकार और वन्यजीव व्यापार को रोकने के लिये स्थानीय समुदायों और सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर काम करता है।
  • वर्ष 2011 में ‘दक्षिण एशिया वन्यजीव प्रवर्तन नेटवर्क’ (The South Asia Wildlife Enforcement Network – SAWEN) की शुरुआत में की गई थी। यह दक्षिण एशिया में वन्यजीवों के अवैध व्यापार से निपटने हेतु सदस्य देशों, यथा– अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका के साथ मिलकर कार्य कर रहा है। यह नेटवर्क वन्यजीव कानूनों को लागू करने के लिये स्थानीय पुलिस, सीमा शुल्क अधिकारीयों और समुद्री रक्षकों के साथ मिलकर कार्य करता है।
  • भारत में वर्ष 2012 में ‘राष्ट्रीय भालू संरक्षण और कल्याण कार्य योजना’ विकसित की गई थी। यह शिकार और अवैध व्यापार से भालू की सुरक्षा, भालू-मानव संघर्ष के प्रबंधन, उनके आवासों की सुरक्षा और बहाली, भालुओं के लिये नीतियों और विनियमों की समीक्षा पर केंद्रित है।

आगे की राह

वन्यजीव अपराधों से निपटने के लिये त्रिस्तरीय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इसमें प्रभावी कानून का निर्माण, उसका प्रवर्तन और जन जागरूकता शामिल हैं। लोगों को बताया जाए कि भालू का शिकार, उसके अंगों का व्यापार व स्वामित्व गैर-कानूनी है। इस संबंध में स्कूलों या अन्य स्थानीय मंचों के माध्यम से जन-समुदाय के बीच जागरूकता बढ़ाई जा सकती है।

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