New
July Offer: Upto 75% Discount on all UPSC & PCS Courses | Offer Valid : 5 - 12 July 2024 | Call: 9555124124

बॉण्ड यील्ड में वृद्धि: आर्थिक संवृद्धि के लिये चुनौती

(प्रारंभिक परीक्षा: विषय- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, आर्थिक और सामाजिक विकास) (मुख्य परीक्षा: विषय- भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

अमेरिका एवं जापान जैसे विकसित देशों तथा भारत में सरकारी प्रतिभूतियों या बॉण्ड्स पर बढ़ती बॉण्ड यील्ड पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने चिंता व्यक्त करते हुए इसे अर्थव्यवस्था की संवृद्धि में बाधक बताया है।

क्या है बॉण्ड यील्ड?

  • बॉण्ड यील्ड, किसी निवेशक को उसके बॉण्ड या सरकारी प्रतिभूति पर मिलने वाला एक प्रतिफल (Return) है।
  • ब्याज दरों में वृद्धि के कारण बॉण्ड की कीमतें गिरने लगती हैं तथा बॉण्ड यील्ड बढ़ जाती है, जबकि ब्याज दर कम होने पर बॉण्ड की कीमतें बढ़ने से बॉण्ड यील्ड में गिरावट आती है।
  • केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति, विशेष रूप से ब्याज दरों के संदर्भ में बॉण्ड यील्ड को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक है। इसके अतिरिक्त, सरकार की राजकोषीय स्थिति, सरकारी उधारियाँ, वैश्विक बाज़ार तथा मुद्रास्फीति जैसे कारक भी इसे प्रभावित करते हैं।

बॉण्ड यील्ड में बढ़ोतरी से संबंधित चिंताएँ

  • भारतीय रिज़र्व के अनुसार, बॉण्ड यील्ड में बढ़ोतरी कोविड-19 के कारण कमज़ोर वैश्विक अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने की दिशा में किये जा रहे सुधारों को बाधित कर सकती है।
  • उच्च बॉण्ड यील्ड केंद्रीय बैंकों को अधिक मात्रा में बॉण्ड खरीदने के लिये प्रेरित कर सकती है। इससे ब्याज दरों में वृद्धि होती है, परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में तरलता में कमी आती है तथा उत्पादन एवं उपभोग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • हालाँकि, यह ‘यील्ड कर्व’ के क्रमिक विकास को सुनिश्चित करता है किंतु इससे वित्तीय बाज़ारों को अस्थिरता का सामना करना पड़ेगा। साथ ही, यह उभरते बाज़ारों से पूँजी निर्गमन (Capital Outflow) को बढ़ा सकता है।
  • बजट 2021-22 में केंद्र सरकार द्वारा वर्तमान वित्त वर्ष के लिये 80,000 करोड़ रुपए और आगामी वित्त वर्ष के लिये 12.80 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त उधारी के कारण घरेलू बॉण्ड यील्ड में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है। आर.बी.आई. द्वारा बॉण्ड यील्ड पर 6% की उच्चतम सीमा आरोपित किये जाने के बावजूद 10 वर्ष के बेंचमार्क बॉण्ड पर बॉण्ड यील्ड में लगातार वृद्धि हो रही है।
  • वर्तमान समय भारत द्वारा आर्थिक संवृद्धि को पुनः प्राप्त करने की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण है, ऐसे में बॉण्ड बाज़ार अनेक उपायों के बावजूद लाभहीन बना हुआ है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था में एक तरफ जहाँ पूँजीगत व्यय में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो रहा है और कॉर्पोरेट से प्राप्त आय भी उम्मीदों के अनुरूप है; वहीं दूसरी तरफ, उच्च मुद्रास्फीति के कारण दबाव की स्थिति बनी हुई है।
  • ऐसे समय में जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 5.8-6.4% की दर के साथ मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण की अधिकतम सीमा को पार करने की दिशा में बढ़ रही है, बॉण्ड यील्ड में वृद्धि अर्थव्यवस्था की संवृद्धि को प्रभावित करेगी।
  • बॉण्ड यील्ड में वृद्धि से सरकार की उधारियों में वृद्धि होती है, जो बैंक प्रणाली में उपलब्ध निम्न तरलता को प्रभावित करती हैं। इसके चलते अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय बॉण्ड की क्रेडिट रेटिंग भी कमज़ोर होगी।
  • इसके अतिरिक्त, बॉण्ड यील्ड में नवीनतम वृद्धि अन्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में रुपए को मज़बूती प्रदान करेगी, जो वित्तीय बाज़ार को प्रभावित करेगा। साथ ही, इससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बहिर्प्रवाह की गति भी बढ़ेगी।
  • इससे निवेशक अधिक जोखिम के कारण दीर्घावधिक के निवेश फंड की बजाय अल्पावधिक फंड में निवेश करेंगे, जिससे दीर्घावधिक विकास परियोजनाएँ प्रभावित होंगी।

आर.बी.आई. द्वारा किये गए उपाय

  • बॉण्ड यील्ड में हो रही वृद्धि को नियंत्रित करने के लिये आर.बी.आई. मौद्रिक नीति उपकरण के रूप में ‘खुले बाज़ार परिचालन’ (OMO) को अपनाता है, इसके अंतर्गत सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है।
  • वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिये आर.बी.आई. अब तक ओ.एम.ओ. के माध्यम से 07 ट्रिलियन रुपए की सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय कर चुका है। इसके अलावा, राज्य विकास ऋण के माध्यम से 30,000 करोड़ रुपए का क्रय भी किया गया है।
  • आर.बी.आई. ‘यील्ड कर्व’ को लचीला बनाने के लिये प्रायः द्वितीयक बाज़ार में भी हस्तक्षेप करता है। ‘यील्ड कर्व के क्रमिक विकास’ के लिये आर.बी.आई. ने बॉण्ड बाज़ार के सहभागियों से भी सहयोग माँगा है और इसके बदले केंद्रीय बैंक ने तरलता निकासी न करने का आश्वासन दिया है।
  • बॉण्ड यील्ड में लगातार वृद्धि होने की स्थिति में आर.बी.आई. बॉण्ड खरीद को बढ़ा सकता है। हालाँकि, इससे बाज़ार में स्थिरता तो आ जाएगी, किंतु बाज़ार की गतिविधियाँ व्यापक स्तर पर प्रभावित होंगी।

निष्कर्ष

  • भारत जैसे विकासशील देश की आर्थिक संवृद्धि एवं विकास के लिये बॉण्ड बाज़ार महत्त्वपूर्ण है, अतः बॉण्ड बाज़ार में अस्थिरता को नियंत्रित करने हेतु अतिशीघ्र आवश्यक उपाय किये जाने चाहिये। इसके लिये, सरकारी तथा मौद्रिक नीतिगत उपायों के साथ-साथ निवशकों द्वारा भी सहयोग प्रदान किया जाना आवश्यक है।
  • निवेशकों को बाज़ार की अस्थिरता का लाभ उठाने की बजाय इसमें निहित जोखिमों पर भी ध्यान देना चाहिये। उन्हें ‘ट्रेज़री इंफ्लेशन-प्रोटेक्टेड सिक्योरिटी’ (TIPS), हानिरहित व्यापार तथा प्रोत्साहन नीति के माध्यम से लाभान्वित होने की बजाय यह समझना होगा कि वर्तमान स्थिति में अर्थव्यवस्था उच्च ब्याज दरों को सहन करने में सक्षम नहीं है।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR