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चीन के परमाणु शस्त्रागार में वृद्धि

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2  : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

संदर्भ

हाल में ऐसे साक्ष्य सामने आए हैं कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) अधिक मिसाइल साइलो (Missile Silos) का निर्माण करके अपने परमाणु शस्त्रागार के आकार का विस्तार कर रहा है।

पृष्ठभूमि

  • चीन के परमाणु कार्यक्रम को लेकर चल रही बहस विवादों में घिरी हुई है। विवाद का स्रोत पी.आर.सी. की परमाणु क्षमताओं का ‘दायरे और संभावित आकार’ है।
  • पश्चिमी चीन के शिनजियांग क्षेत्र में परमाणु साइलो फील्ड का निर्माण इंगित करता है कि पी.आर.सी. ‘स्थिर भूमि-आधारित क्षमताओं’ के आधार पर एक बड़ी परमाणु शक्ति तैनात कर रहा है।
  • माना जा रहा है कि इस स्थान पर 110 साइलो मौजूद हैं। इसी तरह चीन ने गांसु प्रांत में स्थित युमेन के शुष्क क्षेत्र में 120 साइलो के साथ एक साइट बनाई थी।

परमाणु शस्त्रागार में वृद्धि के कारण

  • चीन द्वारा परमाणु हथियारों में वृद्धि के पीछे संभावित कारण है, अपने परमाणु विरोधियों के ‘फर्स्ट स्ट्राइक’ से अपने शस्त्रागार का बचाव करना, विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका से।
  • अमेरिका के पास 3,800 आयुधों के साथ एक बड़ा शस्त्रागार है, जो इसकी बढ़ती मिसाइल रक्षा क्षमताओं के साथ युग्मित होकर चीन की ‘जवाबी परमाणु शक्ति’ के लिये खतरा बन गया है। 
  • हालाँकि, वर्तमान में रूस और भारत जैसे देश भी परमाणु विस्तार पर बल देने वाले अन्य बड़े देश हैं, लेकिन वर्तमान में चीन ही चिंता का प्रमुख विषय है।

उत्पादन की दर और सीमा

  • मुख्य प्रश्न यह नहीं है कि पी.आर.सी. अपने शस्त्रागार का विस्तार क्यों कर रहा है, बल्कि प्रश्न उत्पादन की दर और सीमा को लेकर है।
  • क्या चीन एक प्रयोग और तैनात करने योग्य परमाणु भंडार (Atomic Stockpile) चाहता है, जहाँ हज़ारों ‘वारहेड’ हो, या वह एक उन्नत शस्त्रागार चाहता है? पी.आर.सी. की परमाणु शक्ति का सटीक अनुमान लगाना आसान नहीं है।
  • हालाँकि, ‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (SIPRI) तथा ‘फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स’ (FAS) के अनुसार, चीनी परमाणु शक्ति लगभग 250 से 350 परमाणु हथियारों के मध्य है।
  • विगत वर्ष, ‘यूनाइटेड स्टेट्स स्ट्रेटेजिक कमांड’ के प्रमुख ने कहा था कि चीन अपने मौजूदा परिचालन भंडार को दोगुना कर सकता है, जो आगामी दशक में अभी भी ‘निम्न 200’ में ही है।
  • हालाँकि, पी.आर.सी. द्वारा किया जा रहा मौजूदा साइलो-आधारित मिसाइल विस्तार भ्रामक हो सकता है, क्योंकि ऐसा परमाणु हथियारों की संख्या को छुपाने के लिये किया जा रहा हो।

‘फर्स्ट स्ट्राइक’ रणनीति

  • ‘भूमि-आधारित परमाणु क्षमताएँ’ चीन को ‘फर्स्ट स्ट्राइक’ में बड़ी संख्या में दुश्मन की मिसाइलों को नष्ट करने में सक्षम बना सकती हैं।
  • वस्तुतः, कुछ नकली सिलोस दुश्मन की फर्स्ट स्ट्राइक परमाणु शक्ति के एक हिस्से को अवशोषित और नष्ट करने के लिये होते हैं।
  • इस प्रकार, किसी भी संभावित प्रतिद्वंद्वी की लक्ष्य सूची जितनी बड़ी होगी, चीन के शस्त्रागार के पहले हमले से बचने की संभावना उतनी ही अधिक होगी तथा ‘परमाणु निवारक’ की विश्वसनीयता भी बढ़ेगी।
  • पी.आर.सी. अपनी परमाणु शक्ति का निरंतर विस्तार कर रहा है, लेकिन अभी भी उसकी परमाणु क्षमता अमेरिका और रूस से कम है। हालाँकि, यदि कोई देश चीन पर ‘पहले परमाणु हमला’ (First Strike) करता है, तो चीन अपनी रक्षा करने तथा उस पर जवाबी हमला करने की क्षमता रखता है।

चीन की मिसाइल क्षमता

  • चीन की बैलिस्टिक मिसाइल क्षमता में, चाहे स्थल आधारित हो या समुद्र आधारित, निश्चित रूप से ‘मात्रात्मक और गुणात्मक’ सुधार हुआ है।
  • पी.आर.सी. की ‘इंटरकांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल’ (ICBM) और ‘इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल’ (IRBM) क्षमताएँ क्रमशः डोंगफेंग -41 (DF-41) और डी.एफ. -26 सबसे शक्तिशाली स्थल-आधारित मिसाइल प्रणाली हैं।
  • डी.एफ.-26 के लगभग 16 लॉन्चर चीन-भारत सीमा के करीब शिनजियांग क्षेत्र में तैनात किये गए हैं।
  • शिनजियांग और गांसु में बनाए जा रहे साइलो में डी.एफ.-41 हो सकते हैं, जो अपने साथ कई वारहेड ले जाने में सक्षम हैं।

भारत को नज़र रखने की आवश्यकता

  • साइलो का नवीनतम विकास विश्व और भारत के लिये एक गंभीर समस्या उत्पन्न कर सकता है।
  • पी.आर.सी. ने अमेरिका और रूस के साथ किसी भी प्रकार के ‘त्रिपक्षीय हथियार नियंत्रण वार्ता’ में शामिल होने से इनकार किया है, जो अधिक संख्यात्मक रूप से मज़बूत परमाणु शस्त्रागार की तैनाती को रोक सकता है।
  • चीन के परमाणु शस्त्रागार में वृद्धि का भारत पर तत्काल प्रभाव नहीं हो सकता है, लेकिन शिनजियांग प्रांत में भूमि-आधारित परमाणु साइलो के विकास से भारत के निर्णय निर्माताओं और रणनीतिक वर्ग को चिंतित होना चाहिये।
  • इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों के मध्य चल रहे सीमा गतिरोध पर इसके असर पड़ने की संभावना है।
  • मुख्य मुद्दा भारत के विरुद्ध पी.आर.सी. के वास्तविक परमाणु उपयोग नहीं है, लेकिन स्थल-आधारित परमाणु क्षमताओं का जबरदस्त लाभ चीन को देपसांग, डेमचोक और गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स में अपने क्षेत्रीय लाभ को मज़बूत करने में मिल सकता है।
  • भारत के लिये सबसे ‘चरम और प्रतिकूल’ परिणाम यह है कि उसके पास चीन के विश्वास को स्वीकार करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं बचा है।

निष्कर्ष

चीनी परमाणु विस्तार के कारण चीन और भारत के मध्यरणनीतिक संतुलनमें परिवर्तन की संभावना नहीं है, किंतु भारत को अपने पड़ोसी  पर कड़ी नज़र रखनी होगी तथा अपनी रणनीतिक क्षमताओं को भी बढ़ाना होगा, क्योंकि महाशक्ति बनने की स्पर्द्धा तेज़ होने के कारण परमाणु मुद्दा नीति-निर्माताओं के समक्ष चुनौती प्रस्तुत करता रहेगा।

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