(प्रारंभिक परीक्षा : अंतर्राष्ट्रीय महत्व की सामयिक घटनाएँ) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 एवं 3 : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार एवं आर्थिक संबंध)
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संदर्भ
भारत को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं विदेशी निवेश कानूनों से निपटने के लिए एक स्पष्ट मुक्त व्यापार समझौता नीति की आवश्यकता है। भारत-यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) के मध्य व्यापार एवं आर्थिक साझेदारी समझौते (TEPA) से भारत निवेश के संबंध में बहुत कुछ सीख सकता है।
भारत-यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ व्यापार एवं आर्थिक साझेदारी समझौता (India-EFTA TEPA)
- भारत ने मार्च 2024 में चार यूरोपीय देशों- आइसलैंड, लिकटेंस्टीन, नॉर्वे एवं स्विट्जरलैंड के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर किए।
- इस समझौते में 14 अध्याय शामिल हैं, जिनमें मुख्य फोकस वस्तुओं से संबंधित बाजार पहुंच, उद्भव नियमों, व्यापार सुगमता, व्यापार उपचारों, स्वच्छता एवं पादप स्वच्छता उपायों, व्यापार से संबंधित तकनीकी बाधाओं, निवेश संवर्धन, सेवाओं पर बाजार पहुंच, बौद्धिक संपदा अधिकारों, व्यापार एवं सतत विकास तथा अन्य संबंधित कानूनी प्रावधानों पर है।
यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA)
- क्या है : आइसलैंड, लिकटेंस्टीन, नॉर्वे एवं स्विटजरलैंड का एक अंतर-सरकारी संगठन
- ये चारों यूरोपीय संघ का हिस्सा नहीं हैं।
- स्थापना : वर्ष 1960 में स्टॉकहोम अभिसमय द्वारा
- उद्देश्य : सदस्य देशों एवं विश्व में उनके व्यापारिक भागीदारों के लाभ के लिए मुक्त व्यापार और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना
- यूरोप के तीन प्रमुख महत्वपूर्ण आर्थिक ब्लॉक : EFTA, यूरोपीय संघ एवं ब्रिटेन।
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India-EFTA TEPA समझौते की मुख्य विशेषताएँ
- निवेश लक्ष्य : अगले 15 वर्षों में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के स्टॉक को 100 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने और ऐसे निवेशों के माध्यम से भारत में 1 मिलियन प्रत्यक्ष रोजगार के सृजन की सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से निवेश को बढ़ावा देना।
- यह निवेश विदेशी पोर्टफोलियो निवेश को कवर नहीं करता है।
- FTA के इतिहास में पहली बार लक्ष्योन्मुख निवेश को बढ़ावा देने और रोजगार सृजन के बारे में कानूनी प्रतिबद्धता जताई गई है।
- EFTA द्वारा टैरिफ रियायत : भारत के 99.6% निर्यात को कवर करते हुए EFTA द्वारा अपनी 92.2% टैरिफ लाइनों की पेशकश।
- EFTA के बाजार पहुंच प्रस्ताव में 100% गैर-कृषि उत्पाद एवं प्रसंस्कृत कृषि उत्पाद (PAP) पर टैरिफ रियायत शामिल है।
- भारत द्वारा टैरिफ रियायत : 95.3% EFTA निर्यात को शामिल करते हुए भारत द्वारा अपनी 82.7% टैरिफ लाइनों की पेशकश
- इसमें से 80% से अधिक आयात सोना है।
- डेयरी, सोया, कोयला एवं संवेदनशील कृषि उत्पाद जैसे क्षेत्रों को बहिष्करण सूची में रखा गया है।
- अधिकतम उप-क्षेत्रों तक पहुँच : भारत द्वारा EFTA को 105 उप-क्षेत्रों की पेशकश
- भारत ने स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, लिकटेंस्टीन एवं आइसलैंड से 100 से अधिक उप-क्षेत्रों में प्रतिबद्धताएं प्राप्त की हैं।
- सेवाओं का निर्यात प्रोत्साहन : TEPA द्वारा भारत की रुचि के क्षेत्रों, जैसे- आईटी सेवाओं, व्यावसायिक सेवाओं, व्यक्तिगत, सांस्कृतिक, खेल एवं मनोरंजक सेवाओं, अन्य शिक्षा सेवाओं, ऑडियो-विजुअल सेवाओं आदि के निर्यात को प्रोत्साहन।
- व्यावसायिक सेवाओं की मान्यता : TEPA में नर्सिंग, चार्टर्ड अकाउंटेंट, आर्किटेक्ट आदि जैसी व्यावसायिक सेवाओं में पारस्परिक मान्यता समझौतों के प्रावधान।
- बौद्धिक संपदा अधिकार एवं पेटेंट कानून : TEPA में ट्रिप्स स्तर की बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित प्रतिबद्धताएं
- जेनेरिक दवाओं में भारत के हितों एवं पेटेंट की सदाबहार की प्रक्रिया (एवरग्रीनिंग) में शामिल पेटेंट कानून और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून के विशिष्ट पहलू से संबंधित चिंताओं को पूरी तरह से संबोधित किया गया है।
- व्यापार अनुकूलता : भारत के निर्यातकों को विशेष इनपुट तक पहुंच को सशक्त बनाना और अनुकूल व्यापार एवं निवेश माहौल तैयार करना।
- इससे भारत में निर्मित वस्तुओं के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा और साथ ही सेवा क्षेत्र को अधिक बाजारों तक पहुंचने के अवसर मिलेंगे।
India-EFTA TEPA से लाभ
- व्यापार प्रक्रियाओं की पारदर्शिता, दक्षता, सरलीकरण, सामंजस्य एवं स्थिरता को बढ़ावा देना
- विभिन्न क्षेत्रों में घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करके ‘मेक इन इंडिया’ एवं आत्मनिर्भर भारत को गति देगा।
- TEPA से भारत में अगले 15 वर्षों में व्यावसायिक एवं तकनीकी प्रशिक्षण सुविधाओं सहित अधिक संख्या में प्रत्यक्ष रोजगार सृजन में तेजी।
- TEPA से सटीक इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य विज्ञान, नवीकरणीय ऊर्जा, नवोन्मेषण व अनुसंधान एवं विकास में प्रौद्योगिकी सहयोग और विश्व की अग्रणी प्रौद्योगिकियों तक पहुंच की सुविधा।
- TEPA से यूरोपीय संघ के बाजारों में एकीकृत होने का अवसर।
- स्विट्ज़रलैंड का 40% से अधिक वैश्विक सेवा निर्यात यूरोपीय संघ को होता है। भारतीय कंपनियां यूरोपीय संघ तक अपनी बाजार पहुंच बढ़ाने के लिए स्विट्जरलैंड को आधार के रूप में देख सकती हैं।
- EFTA देशों में से स्विट्जरलैंड भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है जिके बाद नॉर्वे का स्थान आता है।
भारत का अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता
- संयुक्त अरब अमीरात एवं ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत का मुक्त व्यापार समझौते है किंतु ऐसे मुक्त व्यापार समझौतों से भारत की निर्यात वृद्धि में बड़े पैमाने पर मदद नहीं मिली है।
- जापान के साथ भारत के वर्ष 2011 के व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते ने जापान को वर्ष 2011 में 8 बिलियन डॉलर से वर्ष 2023 में अपने निर्यात को दोगुना कर 16 बिलियन डॉलर से अधिक करने में सक्षम किया।
- हालाँकि, जापान को भारत का निर्यात वर्ष 2023 में 5.46 बिलियन डॉलर पर स्थिर रहा है, जो वर्ष 2011 में $5.09 बिलियन से थोड़ा अधिक है।
- वर्ष 2022-23 में भारत के वैश्विक व्यापार में आसियान की हिस्सेदारी 11.3% थी। हालांकि, वर्ष 2010 में आसियान के साथ वस्तु व्यापार समझौता (AITGA) के बाद से ही भारत को प्रतिवर्ष लगभग 7.5 अरब डॉलर के व्यापार घाटे का सामना करना पड़ रहा है।
- इसके तहत वर्ष 2022-23 में भारत का व्यापार घाटा लगभग 43 अरब डॉलर था, जबकि वर्ष 2010 में यह 7.5 अरब डॉलर था।
EFTA TEPA के अनुसार भारत को मुक्त व्यापार नीति में तत्त्वों को शामिल करने की आवश्यकता
- भारत को व्यापार के साथ-साथ उच्च निवेश प्रवाह के लिए दो महत्वपूर्ण तत्वों को एफटीए नीति में शामिल करना चाहिए :
- पहला, भारत को एक व्यापक आर्थिक संधि के हिस्से के रूप में व्यापार एवं निवेश पर बातचीत करनी चाहिए। व्यापार को निवेश से अलग करना अच्छा विचार नहीं है। दोनों के संयोजन से भारत को लाभकारी समझौते के लिए स्पष्ट बातचीत का लाभ मिलेगा।
- उदाहरण के लिए, निवेश के बदले व्यापार में अधिक रियायतों की मांग की जा सकती है।
- दूसरा, भारत को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत एक प्रभावशाली विवाद निपटान तंत्र के साथ निवेश के मुद्दों के दायरे को केवल सुविधा से प्रभावी सुरक्षा तक विस्तारित करने पर विचार करना चाहिए।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत विदेशी निवेशकों को प्रवर्तनीय कानूनी सुरक्षा प्रदान करने से उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा।
- उपरोक्त दोनों उपाय ऐसे समय में महत्वपूर्ण है जब भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के स्तर में कमी आ रही है। भारत को उच्च आर्थिक विकास पथ पर ले जाने के लिए एक स्पष्ट एवं व्यापक एफ.टी.ए. नीति आवश्यक है।
मुक्त व्यापार समझौता (FTA)
- यह दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात एवं निर्यात की बाधाओं को कम करने के लिए एक समझौता है।
- मुक्त व्यापार नीति के तहत वस्तुओं एवं सेवाओं को अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार बहुत कम या बिना किसी सरकारी टैरिफ, कोटा, सब्सिडी या उनके विनिमय को रोकने के निषेध के साथ खरीदा व बेचा जा सकता है।
विशेषताएँ
- टैरिफ एवं गैर-टैरिफ बाधा को समाप्त करना
- डाटा स्थानीयकरण जैसे डिजिटल मुद्दों को शामिल करना
- बौद्धिक संपदा अधिकार को शामिल करना
- निवेश प्रोत्साहन, सुविधा एवं सुरक्षा।
अन्य व्यापार समझौते
- तरजीही व्यापार समझौता (PTA) : इसका उद्देश्य दो देशों या देशों के समूहों के बीच व्यापार को सुविधाजनक बनाना है।
- व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA) और व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA) : यह मुक्त व्यापार क्षेत्र से अधिक व्यापक समझौते हैं जो वस्तुओं, सेवाओं, निवेश तथा आर्थिक सहयोग के चिह्नित अन्य क्षेत्रों को समाहित करते हैं।
- इन समझौतों के अंतर्गत सदस्य देशों के मध्य आर्थिक लेनदेन को और अधिक व्यापक बनाने के उद्देश्य से प्रावधान किए जाते हैं।
- चूंकि, ये दोनों समझौते वस्तुओं/सेवाओं/वौद्धिक संपदा अधिकार तथा निवेश आदि से संबद्ध होते हैं, इसलिये ये व्यापक कहे जाते हैं।
CECA एवं CEPA में अंतर
- CECA आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करता है, जबकि CEPA आर्थिक भागीदारी पर बल देता है।
- सामान्यतः दो या दो से अधिक देश पहले CECA पर हस्ताक्षर करते है। बाद में आर्थिक व्यापार को बढ़ाने के लिए CEPA लागू किया जाता है।
- CEPA निवेश एवं सेवाओं जैसे अतिरिक्त क्षेत्रों पर बल देने के कारण CECA की अपेक्षा अधिक व्यापक है।
- भारत ने मलेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर एवं आसियान के साथ CECA समझौता, जबकि जापान, श्रीलंका एवं दक्षिण कोरिया के साथ CEPA समझौता किया है।
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