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रेखीय से चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर उन्मुख भारत

संदर्भ

भारत अपनी अर्थव्यवस्था को रेखीय से चक्रीय की ओर ले जाने के लिये नीति-निर्माण, विभिन्न नियमों व परियोजनाओं को बढ़ावा दे रहा है। इसके लिये प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन, ई-अपशिष्ट प्रबंधन, निर्माण तथा विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन नियम एवं धातु पुनर्चक्रण संबंधी नीतियों को अधिसूचित किया गया है।

क्या है चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल?

  • चक्रीय अर्थव्यवस्था उत्पादन व उपभोग का एक ऐसा मॉडल है, जिसमें उपलब्ध संसाधनों तथा उत्पादों का पुन: उपयोग, जीर्णोद्धार, नवीनीकरण तथा पुनर्चक्रण किया जाता है। इससे उत्पादों के जीवन-चक्र या उपयोग की अवधि को बढ़ाया जा सकता है।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था से तात्पर्य आर्थिक विकास के संबंध में व्यवसाय, समाज तथा पर्यावरण को लाभ पहुँचाने के लिये एक प्रणालीगत दृष्टिकोण को अपनाना है। ‘टेक-मेक-वेस्ट’ रेखीय मॉडल के विपरीत चक्रीय अर्थव्यवस्था पुनर्योजी है, इसका उद्देश्य सीमित संसाधनों का उपयोग कर सतत् विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
  • ‘यूज़ एंड थ्रो’ दृष्टिकोण के विपरीत चक्रीय अर्थव्यवस्था की अवधारणा में संसाधनों का उपयोग ‘5R’ सिद्धांत के अनुरूप करने को प्राथमिकता दी जाती है। ‘5R’ सिद्धांत के अंतर्गत शामिल घटक हैं- कम करना (Reduce), पुन: उपयोग (Reuse), पुनर्चक्रण (Recycle), पुनर्विनिर्माण (Re-Manufacture), मरम्मत/नवीनीकरण (Repair/Refurnish)।

संबंधित चुनौतियाँ

  • वैश्विक स्तर पर सिर्फ 2% भू-भाग तथा 4% जल संसाधनों की सीमित उपलब्धता के साथ रेखीय अर्थव्यवस्था मॉडल भारत के विनिर्माण क्षेत्र को प्रभावित करेगा, परिणाम स्वरूप समग्र अर्थव्यवस्था बाधित होगी।
  • उत्पादन में वृद्धि तथा उपभोग प्रतिमानों में परिवर्तन से रोज़गार सृजन के साथ-साथ प्रति व्यक्ति आय में भी वृद्धि होगी। यद्यपि उच्च उत्पादन वाले कारकों के प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभावों के कुशल प्रवंधन एवं नियंत्रण की आवश्यकता होगी।
  • स्थायी संवृद्धि आत्मनिर्भर भारत की कुंजी है। देश के वर्तमान विकास मॉडल के लक्ष्य को प्राप्त के लिये संसाधनों के इष्टतम उपयोग की आवश्यकता है। तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या, तीव्र शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन तथा पर्यावरण प्रदूषण के कारण भारत चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • नीति आयोग के गठन के बाद से ही स्थायी आर्थिक संवृद्धि को सुनिश्चित करने के लिये अनेक नीतियाँ अपनाई गई हैं। अपशिष्ट पदार्थों को संसाधन के रूप में उपयोग किये जाने संबंधी चुनौतियों के समाधान और देश में पुनर्चक्रण उद्योग को विकसित करने के लिये विभिन्न कदम उठाए गए हैं। अन्य उत्पादन क्षेत्रों में इस्पात उद्योग के उप-उत्पादों जैसे फ्लाई ऐश तथा स्लैग के उपयोग को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
  • नीति आयोग ने ‘राष्ट्रीय पुनर्चक्रण के माध्यम से सतत् विकास’ पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था। साथ ही, भारत ने यूरोपीय संघ के शिष्टमंडल के साथ ‘संसाधन दक्षता’ संबंधी रणनीति पत्र तैयार किया है।
  • इसके अतिरिक्त, चार अन्य क्षेत्रों- इस्पात (इस्पात मंत्रालय), एल्यूमीनियम (खान मंत्रालय), निर्माण और विध्वंस (आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय) तथा ई-कचरे (इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय) में संसाधन दक्षता प्राप्त करने के लिये रणनीति समझौता किया गया है।
  • रेखीय से चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर उन्मुखता के लिये 11 समितियों का गठन किया गया है, जिनका नेतृत्व संबंधित मंत्रालयों द्वारा किया जाएगा। इसके अंतर्गत 11 फोकस क्षेत्रों के लिये पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा नीति आयोग के अधिकारी, क्षेत्रों के विशेषज्ञ, शिक्षाविद् एवं उद्योगों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा।
  • ये समितियाँ फोकस क्षेत्रों के संबंध में देश को रेखीय अर्थव्यवस्था से चक्रीय अर्थव्यवस्था में रूपांतरित करने के लिये व्यापक कार्य योजनाएँ तैयार करेंगी। अपने निष्कर्षों तथा सिफारिशों के समुचित क्रियान्वयन के लिये ये समितियाँ आवश्यक तरीके अपनाएंगी।
  • फोकस क्षेत्रों में 11 अंत-जीवन उत्पाद (End of Life Products), पुनर्नवीनीकरण वस्तुओं तथा अपशिष्ट सामग्रियों को शामिल किया गया है, जो पहले से ही चुनौतियों का सामना कर रही हैं अथवा चुनौती के नए क्षेत्रों के रूप में उभर रहीं हैं। इन पर समग्र रूप से विचार किये जाने की आवश्यकता है।

चक्रीय अर्थव्यवस्था से होने वाले लाभ

  • चक्रीय अर्थव्यवस्था से भीड़भाड़ तथा प्रदूषण में कमी के साथ-साथ पर्याप्त वार्षिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है, इसका अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। संसाधन दक्षता को अधिकतम करने की हमारी क्षमता तथा सीमित संसाधनों के निम्नतम उपयोग से अधिकतम लाभ अर्जित करके नए व्यवसाय मॉडल तथा उद्यमों को बढ़ावा मिलेगा, इससे आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की प्राप्ति में मदद मिलेगी।
  • इसके अंतर्गत अपशिष्ट उत्पाद को योजनाबद्ध ढंग से पृथक कर पुन: उपयोग तथा पुनर्चक्रण हेतु डिज़ाइन किया जाता है, जिससे इनके निपटान हेतु अधिक मात्रा में ऊर्जा व श्रम की आवश्यकता नहीं होती है।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था आर्थिक गतिविधियों की नकारात्मक बाह्यताओं जैसे भूमि निम्नीकरण, जल प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन आदि के जोखिम तथा संभावित आर्थिक प्रभाव को रेखांकित करने के साथ-साथ प्रणालीगत दक्षता पर ध्यान केंद्रित करेगी।
  • आर्थिक विकास हेतु भारत द्वारा चक्रीय अर्थव्यवस्था के मॉडल को अपनाना विकास दर के वर्तमान परिदृश्य की तुलना में वर्ष 2050 तक 624 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वार्षिक लाभ को प्राप्त कर सकती है, जो वर्तमान सकल घरेलू उत्पाद के 30% के बराबर होगा।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था पर्यावरणीय दृष्टि से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम कर वर्तमान स्तर के सापेक्ष वर्ष 2030 तक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को आधा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। ज़ीरो इफेक्ट-ज़ीरो डिफेक्ट, वेस्ट टू एनर्जी जैसी नीतियाँ तथा पहलें भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना में चक्रीय अर्थव्यवस्था को समावेशित तथा एकीकृत करने के लिये आदर्श हैं।

निष्कर्ष

आर्थिक तथा पर्यावरणीय लाभ की दृष्टि से विनिर्माण प्रक्रिया को मज़बूती प्रदान करने के लिये चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इससे देश में उपलब्ध सीमित संसाधनों का इष्टतम उपयोग कर अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

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