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सड़क सुरक्षा पर भारत की स्थिति

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: बुनियादी ढाँचा और सुरक्षा)

संदर्भ

हाल ही में, केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 में संशोधन करते हुए एक अधिसूचना जारी की है, जिसमें चार वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिये दो सुरक्षा उपकरणों को अनिवार्य कर दिया गया है।

हालिया संशोधन

  • केंद्रीय मोटर वाहन नियम में किये गए संशोधन के अनुसार, दुपहिया वाहनों पर सवार नौ महीने से चार वर्ष के बच्चों के लिये हेलमेट और सेफ्टी हार्नेस (सुरक्षा कवच) को अनिवार्य कर दिया गया है। साथ ही, नवीनतम संशोधन के अनुसार यह भी निर्धारित किया गया है कि चार वर्ष की उम्र तक के बच्चों के साथ यात्रा करते समय दुपहिया वाहनों की गति 40 किमी. प्रति घंटे से अधिक नहीं होगी।
  • इसके अलावा, कार में यात्रा करते समय 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को सीटबेल्ट या बाल संयम प्रणाली (Child Restraint System) द्वारा सुरक्षित किया जाना अनिवार्य होगा। विदित है कि इन संशोधनों को केंद्रीय मोटर वाहन (द्वितीय संशोधन) नियम, 2022 के प्रकाशन की तारीख से एक वर्ष पश्चात् लागू किया जाएगा।

सड़क दुर्घटनाओं की भयावह स्थिति

  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार सड़क दुर्घटनाओं में मौतों की संख्या वर्ष 2011 में 1,42,485 से बढ़कर वर्ष 2019 में 1,51,113 हो गई है।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2020 में 1,33,201 मौतें सड़क दुर्घटना में दर्ज की गईं। वर्ष 2020 में दुर्घटनाओं में यह कमी मुख्य रूप से विभिन्न क्षेत्रों में कोविड-19 की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के कारण थी।
  • इन हादसों से संबंधित मृत्यु दर (अर्थात् प्रति 100 दुर्घटनाओं में मौतों की संख्या) वर्ष 2011 में 28.63% से बढ़कर वर्ष 2020 में 37.54% हो गई है।
  • इसके अतिरिक्त, वर्ष 2020 में सड़क दुर्घटनाओं में 14 वर्ष से कम उम्र के 2,700 से अधिक और 18 वर्ष से कम उम्र के 14,000 से अधिक बच्चों की मृत्यु हुई है।

भारत के लक्ष्य 

  • वर्ष 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मृत्यु की भयावह स्थिति पर विचार करने के पश्चात् सड़क सुरक्षा पर दशकीय वैश्विक योजना 2011-2020 को अपनाया। इसका उद्देश्य वर्ष 2020 तक सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मृत्यु को 50% तक कम करना था। इस वैश्विक योजना को भारत सहित विश्व के अधिकाँश देशों ने स्वीकार किया है।
  • विदित है कि वर्ष 2020 में स्वीडन में संपन्न हुए ‘2030 तक वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये सड़क सुरक्षा पर तीसरा उच्च स्तरीय वैश्विक सम्मेलन’ में भारत ने वर्ष 2025 तक 50% सड़क दुर्घटनाओं को कम करने तथा वर्ष 2030 तक सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु दर को शून्य तक लाने की प्रतिबद्धता को प्रस्तुत किया है।

सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2012 में न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में सड़क सुरक्षा पर एक समिति गठित की थी।
  • इसके पश्चात् सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में सड़क सुरक्षा के संबंध में कई दिशानिर्देश जारी किये, जिसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं-
    • राज्य सड़क सुरक्षा परिषद् का गठन
    • संबंधित प्रमुख एजेंसी की स्थापना
    • सड़क सुरक्षा कोष की स्थापना 
    • सड़क की अधिसूचना 
    • सुरक्षा कार्य योजना 
    • ज़िला सड़क सुरक्षा समिति का गठन 
    • इंजीनियरिंग सुधार 
    • ब्लैक स्पॉट की पहचान और सुधार 
    • सड़क सुरक्षा ऑडिट करना 
    • सड़क सुरक्षा उपकरणों का अधिग्रहण 
    • ट्रॉमा केयर सेंटर की स्थापना 
    • स्कूलों के शैक्षणिक पाठ्यक्रम में सड़क सुरक्षा शिक्षा को शामिल करना 

सड़क सुरक्षा संबंधी प्रयासों में कमी 

राज्यों के प्रयासों में कमी 

  • वर्ष 1988 के मोटर वाहन अधिनियम को वर्ष 2019 में आंशिक रूप से संशोधित किया गया। इसके तहत यातायात उल्लंघन संबंधी नियमों को कठोर बनाया गया। हालाँकि, अधिकांश राज्यों ने इन नियमों के अनुसार अभी तक यातायात उल्लंघन शुल्क में वृद्धि नहीं की है।
  • सरकारी आँकड़ों के अनुसार सड़क हादसों के शिकार लोगों में लगभग दो-तिहाई दुपहिया वाहन चालक और पीछे बैठे सवार शामिल हैं। हालाँकि, पीछे बैठे व्यक्तियों के लिये सुरक्षा हेलमेट पहनना अनिवार्य है, लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी के कारण इसे सभी राज्यों में सख्ती से लागू नहीं किया गया है।
  • इमरजेंसी रिस्पांस सपोर्ट सिस्टम (ई.आर.एस.एस.) के तहत अखिल भारतीय स्तर पर आपातकालीन प्रतिक्रिया नंबर 112 के माध्यम से दुर्घटना पीड़ितों के जीवन को सुरक्षित समय (Golden Hour) में बचाना संभव हुआ है, लेकिन यह योजना भी सभी राज्यों में समान रूप से लागू नहीं की गई है।

अपर्याप्त प्रबंधन 

  • देश में वाहनों की बढ़ती संख्या तथा सड़कों पर यातायात की समस्या से निपटने के लिये वर्तमान में उपलब्ध प्रवर्तन जनशक्ति (ट्रैफिक पुलिस) अपर्याप्त है। 
  • एक अनुमान के अनुसार 60% से अधिक सड़क दुर्घटनाएँ वाहनों की तेज़ गति के कारण होती हैं, जबकि इससे संबंधित ‘स्पीड लिमिट’ साइन बोर्ड को पर्याप्त मात्रा में सड़कों पर नहीं लगाया गया है।
  • परिवहन कंपनियों (सरकारी निगमों को छोड़कर) में अधिकांश चालकों, सह-चालकों और अन्य कर्मचारियों को संगठित क्षेत्र का लाभ नहीं मिल पाता है। सामान्यतया इन्हें  अल्प वेतन प्राप्त होता है तथा साप्ताहिक अवकाश भी नहीं मिल पाता है। इसके अलावा, उन्हें निर्धारित समयावधि से अधिक समय तक कार्य करने के लिये विवश भी किया जाता है। 
  • वर्तमान में वाहन चालकों के ड्राइविंग कौशल में सुधार करना सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण है। आज भी ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिये कठोर व्यावहारिक मानदंडों की कमी हैं। साथ ही, कई राज्यों में टेस्ट ड्राइविंग ट्रैक भी विद्यमान नहीं हैं। 

बेहतर डाटा संग्रह की आवश्यकता

  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय का दुर्घटना डाटा संग्रह प्रारूप अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (Crime and Criminal Tracking Network & Systems : CCTNS) का एक हिस्सा है। विदित है कि दुर्घटनाओं के डाटा संग्रह की इस प्रक्रिया में अत्यधिक समय लगता है।
  • विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की पहल ‘एकीकृत सड़क दुर्घटना डाटाबेस’ (Integrated Road Accident Database : iRAD) परियोजना का मुख्य उद्देश्य दुर्घटना डाटाबेस को व्यापक करके देश में सड़क सुरक्षा की स्थिति में सुधार करना है। आई.आर.ए.डी. मोबाइल और वेब एप्लिकेशन का उपयोग करके विभिन्न हितधारकों से डाटा एकत्र करता है।

सड़क सुरक्षा परिदृश्य में सुधार हेतु सुझाव

  • पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो ने किसी भी ज़िले में आवश्यक यातायात पुलिसकर्मियों की संख्या की गणना और नियुक्ति उस ज़िले में पंजीकृत मोटर वाहनों की संख्या के आधार पर करने का सुझाव दिया है।
  • ब्लैक स्पॉट (सड़क दुर्घटना बाहुल्य क्षेत्र) क्षेत्रों में सुधार के लिये पर्याप्त धन का आवंटन किया जाना चाहिये।
  • राजमार्गों और अन्य प्रमुख सड़कों पर इंटेलिजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम’ लागू करकेहिट एंड रन’ मामलों की संख्या में कमी की जा सकती है। 
  • भारत में सड़क सुरक्षा उपायों के नीति-निर्धारण में सड़क दुर्घटनाओं और उपलब्ध बुनियादी ढाँचे के पिछले रिकॉर्ड को नज़रअंदाज नहीं किया जाना चाहिये।
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