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भारत-तुर्कमेनिस्तान संबंध 

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: द्विपक्षीय संबंध, भारत से संबंधित और भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ 

हाल ही में, भारत के राष्ट्रपति द्वारा तुर्कमेनिस्तान और नीदरलैंड की राजकीय यात्रा की गई, जिसके पहले चरण में ये तुर्कमेनिस्तान की राजधानी अश्गाबात पहुँचे। यह किसी भारतीय राष्ट्रपति द्वारा तुर्कमेनिस्तान की पहली यात्रा है। विदित है कि इस वर्ष भारत और तुर्कमेनिस्तान के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना के 30 वर्ष पूरे हुए हैं।

प्रमुख बिंदु

  • तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति सर्दार बर्दीमुहामेदोव के साथ भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने द्विपक्षीय संबंधों की संभावनाओं पर विस्तृत चर्चा की। 
  • दोनों देशों ने आपदा प्रबंधन, वित्तीय खुफिया तंत्र, कला एवं संस्कृति तथा युवा मामलों में सहयोग के क्षेत्र में चार समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये हैं। 
  • इसके अतिरिक्त, दोनों देशों के राजनयिक संबंधों की स्थापना की 30वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में भारत-तुर्कमेनिस्तान स्मारक डाक टिकट को जारी किया गया।

द्विपक्षीय संबंध

  • दोनों देशों के मध्य क्षेत्रीय एवं वैश्विक भू-राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर व्यापक सहमति है। हालिया दिनों में तुर्कमेनिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी सदस्यता के समर्थन के साथ-साथ अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत की पहलों को स्वीकृति प्रदान की है।
  • भारत ने भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम वर्ष 1964 में शुरू किया था, जिसका मुख्य उद्देश्य क्षमता निर्माण और जनशक्ति के प्रशिक्षण में सहायता करना था। विदित है कि वर्ष 1993 से अब तक 400 से अधिक तुर्कमेनिस्तान के नागरिकों को आई.टी.ई.सी. पाठ्यक्रमों से लाभान्वित किया जा चुका है।
  • इस क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिये तापी गैस पाइपलाइन एक अति महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जो तुर्कमेनिस्तान से शुरू होकर अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान होते हुए भारत तक पहुँचने वाली एक प्राकृतिक गैस की पाइपलाइन है।

तापी गैस पाइपलाइन परियोजना

  • प्रस्तावित परियोजना चार देशों में चलने वाली एक 1,814 किमी. लंबी ट्रांस-कंट्री प्राकृतिक गैस पाइपलाइन है।
  • यह पाइपलाइन तुर्कमेनिस्तान के गल्किनेश गैस फील्ड से अफगानिस्तान होते हुए पाकिस्तान और फिर भारत में प्राकृतिक गैस की पूर्ति करेगी।
  • यह पाइपलाइन अफगानिस्तान को 14 मिलियन स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर प्रतिदिन (MMSCMD) प्राकृतिक गैस मुहैया कराएगी, वहीं भारत और पाकिस्तान को 38 एम.एम.एस.सी.एम.डी. प्राकृतिक गैस मिलेगा।
  • यह पाइपलाइन भारतीय शहर फाजिल्का (भारत-पाक सीमा के पास) के माध्यम से भारत में प्रवेश करेगी।
  • इस परियोजना को एशियाई विकास बैंक द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा है।
  • दोनों देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) एवं अश्गाबात समझौते के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय परिवहन और पारागमन कॉरिडोर की स्थापना  को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • दोनों देश अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के साथ-साथ समावेशी सरकार के लिए प्रतिबद्ध है। इस संदर्भ में भारत ने नवंबर 2021 में नई दिल्ली में 'अफगानिस्तान पर क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता' का आयोजन किया था। इसके अलावा, इस वर्ष जनवरी में हुए पहले भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन में एक समावेशी और लोकतांत्रिक सरकार के साथ शांतिपूर्ण, स्थिर और सुरक्षित अफगानिस्तान की वकालत भी की गई थी।

भावी संभावनाएँ

  • भारत की 'विस्तारित पड़ोस' की नीति के माध्यम से तुर्कमेनिस्तान सहित अन्य सभी मध्य एशियाई देशों को भारतीय विदेश नीति के प्रमुख क्षेत्रों में शामिल किया जा रहा है।
  • भारत-मध्य एशिया संवाद फ्रेमवर्क के तहत वर्ष 2020 में स्थापित किये गए भारत-मध्य एशिया व्यापार परिषद् की सहायता से क्षेत्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये। 
  • तुर्कमेनिस्तान के तेल एवं गैस क्षेत्रों को विकसित करने तथा पेट्रो-रसायन क्षेत्र में विविधता लाने के लिये भारतीय कंपनियों की तकनीकी क्षमताओं का उपयोग किया जा सकता है।  
  • भारत अर्थव्यवस्था और सेवा वितरण के डिजिटलीकरण में एक वैश्विक नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभा रहा है। तुर्कमेनिस्तान द्वारा अपने डिजिटल क्षेत्र को बेहतर बनाने के लिये भारतीय कंपनियों की विशेषज्ञता का उपयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, दोनों देशों के मध्य अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी आपसी सहयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है। 
  • भारत एवं तुर्कमेनिस्तान सहित अन्य मध्य एशियाई देशों के द्वारा आतंकवाद, उग्रवाद, कट्टरपंथ, नशीले पदार्थों की तस्करी जैसी चुनौतियों का सामना किया जा रहा हैं। इन चुनौतियों से निपटने में दोनों देश आपस में सहयोग कर सकते हैं।
  • ईरान में भारत की ओर से निर्मित चाबहार पत्तन का उपयोग भारत और मध्य एशिया के बीच व्यापार में सुधार के लिये किया जा सकता है। यह पत्तन मध्य एशियाई देशों के लिये समुद्र तक एक सुरक्षित, व्यवहार्य और निर्बाध पहुँच को प्रदान करेगा।
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