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भारत-अमेरिका: मज़बूत आर्थिक संबंध

(मुख्य परीक्षा; विषय- भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध। द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ

संयुक्त राज्य अमेरिका में नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन संभालने के बाद विशेषज्ञों द्वारा यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि भारत-अमेरिका के आर्थिक संबध पहले से अधिक प्रगाढ़ होंगे। दोनों देश आर्थिक क्षेत्र में जी.डी.पी, रोज़गार और उत्पादन जैसे विभिन्न पहलुओं पर परस्पर सहयोग से लाभ अर्जित कर सकते हैं।

भारत-अमेरिका आर्थिक संबंध: संबंधित तथ्य

  • 1990 के दशक में भारत की आर्थिक नीति में बदलाव के साथ ही भारत-अमेरिका आर्थिक संबंधों में व्यापक सुधार आया।
  • पिछले दो दशकों से वस्तु एवं सेवा व्यापार में अमेरिका भारत का महत्त्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार है। वर्ष 2018 में दोनों देशों के मध्य रिकॉर्ड 142.6 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था।

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  • वर्ष 2019-20 में भारत ने अमेरिका से कुल 7 बिलियन डॉलर का आयात किया, जबकि अमेरिका को 53 बिलियन डॉलर का निर्यात किया।   
  • वर्ष 2014-2019 के बीच दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार में वार्षिक चक्रवृद्धि बढ़ोतरी दर (CAGR) 7.7% रही। यदि दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार में 11.9% CAGR की वृद्धि होती है तो वर्ष 2036 तक दोनों के मध्य 500 बिलियन डॉलर के व्यापार लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
  • सामान्यतः भारत अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष की स्थिति में रहता है। वर्ष 2001-02 में जहाँ भारत का व्यापार अधिशेष 5.2 बिलियन डॉलर था, वहीं वर्ष 2019-20 में यह बढ़कर 17.3 बिलियन डॉलर हो गया है।
  • इसके अतिरिक्त, अमेरिका भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का पाँचवां सबसे बड़ा स्रोत है।

सहयोग के प्रमुख क्षेत्र

भारत और अमेरिका दोनों के ही आर्थिक हित प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। साथ ही, दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएँ भी एक-दूसरे की पूरक हैं, जैसे- यदि अमेरिका आर्थिक रूप से समृद्ध है, तो भारत मानव संसाधन एवं बौद्धिक संपदा से परिपूर्ण है; अमेरिका के पास उन्नत प्रौद्योगिकीय क्षमता है तो भारत विनिर्माण की क्षमता से संपन्न है। अतः दोनों देश विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के माध्यम से आर्थिक हितों को पूरा कर सकते हैं।

कोविड-19 महामारी की रोकथाम तथा निवारण के क्षेत्र में सहयोग

  • वैश्विक महामारी की रोकथाम, निदान तथा उपचार में दोनों देश एक-दूसरे का सहयोग कर सकते हैं। हालाँकि, भारत-अमेरिका पहले से ही वैश्विक स्तर पर कोविड वैक्सीन के निर्माण एवं वितरण में सहयोग कर रहे हैं।
  • वर्तमान में भारत विश्व में वैक्सीन वितरण का केंद्र बनकर उभरा है। इससे ‘यू.एस.-इंडिया हेल्थ डायलॉग’ को पुनर्जीवित करने और स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर परस्पर सहयोग में भी वृद्धि होगी। अतः अब आवश्यकता है कि अमेरिका भारत की बौद्धिक संपदा अधिकार से संबंधी नीतियों पर विश्वास कायम करे। 

व्यापारिक क्षेत्र में सहयोग

  • व्यापारिक संबंधों को अधिक विस्तार देने के लिये भारत-अमेरिका द्वारा आसान विकल्पों की खोज की जानी चाहिये, मुक्त व्यापार समझौता इस दिशा में महत्त्वपूर्ण विकल्प सिद्ध हो सकता है।
  • बाज़ार पहुँच जैसे मुद्दे पर विचार करने के लिये ‘यू.एस.-इंडिया ट्रेड पॉलिसी फोरम’ की बैठकों को पुनःसंचालित और ट्रेक-2 समूह की वार्ता का आयोजन किया जाना चाहिये।
  • साथ ही, सामान्य प्राथमिकता प्रणाली (GSP) के अंतर्गत भारतीय उत्पादों को शुल्क में मिलने वाली छूट की पुनर्बहाली पर भी विचार करना चाहिये, इससे भारतीय निर्यातों में वृद्धि होगी।

व्यावसायिक श्रम की गतिशीलता के मुद्दे पर सहयोग

  • व्यापक तथा सुगम व्यावसायिक श्रम गतिशीलता दोनों देशों के मध्य आर्थिक संबंधो को सुदृढ़ बनाने में महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
  • ट्रंप प्रशासन द्वारा H1-B वीज़ा सहित अन्य प्रकार वर्क-वीज़ा पर प्रतिबंध लगाने से श्रम की गतिशीलता प्रभावित हुई, अतः बाइडेन प्रशासन द्वारा वीज़ा मुद्दे को हल किया जाना चाहिये।
  • हाल ही में, भारत में श्रम संबंधी कानूनों में सुधार किया गया है। इस संदर्भ में वर्ष 2011 में दोनों देशों के मध्य हस्ताक्षरित ‘श्रम सहयोग समझौता ज्ञापन’ पर भी नए सिरे से विचार किया जा सकता है।
  • साथ ही, सामाजिक सुरक्षा से संबंधित ‘टोटलाइज़ेशन एग्रीमेंट’ पर भी पुनर्विचार किया जाना चाहिये। विदित है कि दोनों देश पहले ही अन्य साझेदार देशों के साथ इस तरह के समझौते कर चुके हैं।

रक्षा उद्योग में सहयोग

  • रक्षा उद्योग में अमेरिकी प्रौद्योगिकी और भारतीय विनिर्माण क्षमता के साथ समन्वय स्थापित करके दोनों देश अपने संबंधों को नए आयाम प्रदान कर सकते हैं।
  • दोनों देश अपने निजी क्षेत्र को शामिल करते हुए ‘रक्षा संवाद’ के माध्यम से रक्षा तथा एयरोस्पेस क्षेत्र में सह-उत्पादन एवं सह-विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।

सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों में सहयोग

  • छोटी अमेरिकी कंपनियाँ भारत में निवेश करके यहाँ से साधन प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण अवसरों को प्राप्त कर सकती हैं। इस प्रकार की साझेदारी को विकसित करने के लिये ‘यू.एस.-इंडिया एस.एम.ई.- सी.ई.ओ. फोरम’ की स्थापना की जा सकती है।

स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर सहयोग

  • स्वच्छ एवं नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे बाइडेन प्रशासन के लिये प्राथमिक मुद्दे हैं। भारत भी इन मुद्दों को लेकर गंभीर है और इन पर तेज़ी से प्रगति कर रहा है।
  • ‘यू.एस.-इंडिया स्ट्रेटेजिक एनर्जी पार्टनरशिप’ के माध्यम से औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन, कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने और हरित हाइड्रोजन जैसी पहलों में संयुक्त निवेश को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त, स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान, स्वच्छ ऊर्जा परिनियोजन और स्वच्छ ऊर्जा पहुँच को बढ़ावा देने के लिये भागीदारी कार्यक्रमों को पुन: शुरू किया जाना चाहिये।

डिजिटल अर्थव्यवस्था में सहयोग

  • दोनों देश डिजिटल अर्थव्यवस्था में सहयोग के माध्यम से अनेक नए अवसरों को सृजित कर सकते हैं।
  • भारत ने रोबोटिक्स, अंतरिक्ष, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में अपनी क्षमताओं को साबित किया है। अमेरिका भारत की इस क्षमता का लाभ उठा सकता है।
  • साथ ही, भारत को बौद्धिक संपदा अधिकार नीति से संबंधित सुधारों का प्रसार करना चाहिये, ताकि अमेरिका भारत को ‘संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि’ की ‘प्रायोरिटी वॉच लिस्ट’ से बाहर कर सके।

निष्कर्ष

भारत और अमेरिका को आर्थिक संबंधों को मज़बूत करने के लिये पहले से मौजूद आर्थिक तथा व्यापार संबंधी मुद्दों को सुलझाते हुए नए अवसरों को तलाशना होगा। दोनों देशों को अन्य अवसरों में शिक्षा, नवाचार, विकास एवं अनुसंधान, कृषि और प्रौद्योगिकी जैसे मुद्दों पर साझेदारी के माध्यम से द्विपक्षीय सहयोग में वृद्धि करनी चाहिये।

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