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भारतीय अर्थव्यवस्था: पुनरावलोकन का समय

(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से सम्बंधित विषय)

पृष्ठभूमि

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की वजह से घरेलू माँग में उल्लेखनीय कमी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में संकुचन की ओर धकेल दिया है और इसका प्रभाव आगे भी महसूस किये जाने की सम्भावना है। इसके लिये स्वास्थ्य और आर्थिक दृष्टिकोण से निर्णायक कदम उठाने की आवश्यकता है। इसके लिये 12 मई, 2020 को सरकार द्वारा ₹20 लाख करोड़ का एक कोरोना प्रोत्साहन पैकेज पेश किया गया। हालाँकि, देश के विकास इंजन को पुनर्जीवित करने के लिये और भी बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है।

कोरोना वायरस प्रोत्साहन पैकेज

  • यह प्रोत्साहन पैकेज भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10% है, जो विश्व में सबसे महत्त्वपूर्ण राहत योजनाओं में से एक है।
  • इस पैकेज में गरीबों को मुफ्त खाद्यान्न के साथ-साथ गरीब महिलाओं तथा बुजुर्गों को प्रदान की जाने वाली नकद सहायता के रूप में घोषित 1.7 लाख करोड़ रुपये की सहायता शामिल है। साथ ही रिजर्व बैंक के तरलता उपायों और ब्याज दर में कटौती को भी इसमें शामिल किया गया है।
  • सरकार के प्रोत्साहन पैकेज विशेष रूप से भारत के 60,000 स्टार्टअप के लिये काफी सहायक सिद्ध होंगे, जो तरलता की कमी का सामना कर रहे हैं। वर्तमान स्थिति निवेश को बढ़ावा देने, मौजूदा नौकरियों को बचाने और नई नौकरियाँ पैदा करने के लिये साहसिक कदम उठाने का अवसर प्रस्तुत करती है।
  • उल्लेखनीय है कि ‘कोविड-19 आर्थिक प्रोत्साहन सूचकांक’ के अनुसार, मध्य जुलाई तक सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के अनुपात में जापान द्वारा जारी किया गया राहत पैकेज (जी.डी.पी. का लगभग 21%) सबसे अधिक है। इसके बाद क्रमशः अमेरिका (13%) और स्वीडन का स्थान आता हैं।

आर्थिक उपायों के लिये द्वि-आयामी रणनीति की आवश्यकता

  • भारत को वर्तमान संकट से निपटने और आर्थिक मोर्चे पर दृढ़ता से रिकवरी करने के लिये एक द्विआयामी रणनीति की आवश्यकता है।
  • पहली रणनीति कोविड के कारण हुए नुकसान को कम करने और आर्थिक रिकवरी का रास्ता साफ करने की होनी चाहिये।
  • दूसरी रणनीति व्यापार के परिदृश्यों को विकसित करके नए अवसरों का तुरंत फायदा उठाते हुए भारत को रिबूट (Reboot) और री-इमेज (Re-Image) करने की होनी चाहिये।

इस रणनीति के प्रमुख संचालक

  • इस रणनीति के लिये प्रमुख मंत्र- बड़े और साहसिक निर्णय तथा उनका तेज़ निष्पादन होना चाहिये। इस रणनीति में अर्थव्यस्था के चार प्रमुख संचालकों पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • प्रथम संचालक बड़े व्यावसायिक घराने हैं, जोकि जी.डी.पी. और बड़ी संख्या में रोज़गार सृजन के लिये एक प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं।
  • दूसरे, एम.एस.एम.ई. (MSME), जो देश की जीवन रेखा हैं और मध्यम वर्ग के लिये आय का एक प्रमुख स्रोत हैं।
  • तीसरे हैं स्टार्टअप, जो देश की अर्थव्यवस्था में नवीनता और परिवर्तन लाते हैं।
  • और चौथे, विदेशों में रहने वाले भारतीय हैं, जैसे- एन.आर.आई. और ओ.सी.आई. आदि। ये न केवल भारत के अनौपचारिक राजदूत के रूप में कार्य कर सकते हैं बल्कि भारत में भारी निवेश भी ला सकते हैं।

उपायों को लागू करने के लिये प्रमुख सुझाव

§ कर प्रोत्साहन

1. बड़े व्यावसायिक घरानों को आर्थिक और उत्पादन गतिविधियों को पुनः शुरू करने के लिये सरकार कर प्रोत्साहन या कच्चे माल की खरीद में आसानी के माध्यम से समर्थन दे सकती है।
2. साथ ही सरकार को अन्य वस्तुओं और सेवाओं पर ऋण प्रदान करना चाहिये, जिससे उपभोक्ता माँग में वृद्धि होगी। उपभोक्ता माँग में यह वृद्धि विक्रय व वेंडर गतिविधियों के साथ-साथ एम.एस.एम.ई. क्षेत्र के सहायक उद्योग में तेज़ी लाएगी, जिसमें रोजगार सृजन की बहुत बड़ी सम्भावना है।

§ निर्बाध ऋण प्रवाह की व्यवस्था

1. रिज़र्व बैंक को आवश्यकतानुसार सभी बैंकों द्वारा व्यावसायिक ऋण के पुनर्गठन हेतु ‘सिंगल वन टाइम विंडो’ पर विचार करना चाहिये। साथ ही इस बात की भी अत्यधिक सम्भावना है कि रिज़र्व बैंक द्वारा ऋण स्थगन अवधि (Moratorium) को समाप्त किये जाने के बाद गैर-निष्पादित आस्तियों में वृद्धि हो जाए, अत: साथ में इस पर भी विचार किया जाना चाहिये।
2. सरकार और आर.बी.आई. द्वारा बैंकों को भी तत्काल आश्वस्त किये जाने की आवश्यकता है कि उनके व्यापारिक निर्णयों पर सवाल नहीं उठाया जाएगा, जिससे ऋण प्रवाह को प्रोत्साहित किया जा सके।

§ भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देना

1. सरकार, चीन से भारत में अपने विनिर्माण केंद्रों को स्थानांतरित करने की इक्षुक कम्पनियों के लिये एक पंचवर्षीय योजना तैयार कर सकती है। साथ ही, भारत से वैश्विक व्यापार संचालन स्थापित करने वाली कम्पनियों के लिये एक प्रोत्साहन व्यवस्था को भी तैयार किया जा सकता है।
2. राज्यों को एक ऐसे ‘औद्योगिक शहरों/क्षेत्रों’ की स्थापना के बारे में सोचना चाहिये, जो विनिर्माण, वाणिज्यिक, शैक्षिक, आवासीय और सामाजिक बुनियादी ढाँचों के लिये स्थान उपलब्ध कराते हों।
3. सरकार द्वारा पहचाने गए 10 सेक्टर ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के लिये उपयुक्त हैं। इनमें इलेक्ट्रिकल, फार्मास्युटिकल्स, चिकित्सकीय उपकरण, मोटर वाहन और खनन तथा इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं। साथ ही इसमें भारी इंजीनियरिंग उद्योग, नवीकरणीय ऊर्जा, खाद्य प्रसंस्करण और रसायन तथा टेक्सटाइल्स क्षेत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों में जापान, अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने पहले ही रूचि दिखाई है।

§ सौर-ऊर्जा क्षेत्र को प्रोत्साहन

1. सरकार को भारतीय अर्थव्यवस्था को नया आकार देने के रूप में सौर ऊर्जा के क्षेत्रों, जैसे- बैटरी विनिर्माण (भंडारण प्रणाली) और सौर पैनल निर्माण को भी प्रोत्साहित करना चाहिये।
2. सरकार ‘डीप टेक’ (गहन तकनीक) का प्रयोग करने वाले व्यवसायों को प्रोत्साहन देने पर भी विचार कर सकती है, जैसे- ब्लॉकचेन, रोबोटिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग, ऑगमेंटेड रियलिटी (Augmented Reality), बिग डेटा एनालिटिक्स, साइबर सुरक्षा, आदि। डीप टेक वे प्रौद्योगिकियाँ हैं, जो एंड-यूजर (end-user) सेवाओं पर केंद्रित नहीं होती हैं।

§ स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना

1. भारत वैश्विक स्तर पर शीर्ष स्टार्ट-अप इकोसिस्टम वाले देशों में शामिल है। इनमें से कई स्टार्ट-अप प्री-एंजेल या एंजेल-फंडिंग चरणों में हैं और तरलता की कमी के कारण काफी दबाव में हैं।
2. स्टार्ट-अप नवाचार के साथ-साथ नौकरियों के सृजन में भी अत्यधिक सहायक हैं, जो अर्थव्यस्था के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है। सरकार को स्टार्ट-अप इकोसिस्टम को महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है।

§ऑटो सेक्टर में सुधार की आवश्यकता

1. ऑटो-मोबाइल उद्योग जी.डी.पी. में (लगभग 9%) महत्त्वपूर्ण योगदान करता है, अतः इस क्षेत्र में भी विशेष ध्यान देने की ज़रुरत है।
2. इसके लिये जी.एस.टी. दर को कम करने के अलावा, नए वाहनों की माँग में वृद्धि के लिये कर प्रोत्साहन के साथ-साथ ‘ओल्ड व्हीकल स्क्रैप’ नीति तैयार की जा सकती है।

§ विदेशी निवेश के लिये नए मॉडल की ज़रुरत

1. महाराष्ट्र ने विदेशी निवेशकों के लिये एक ‘प्लग-एंड-प्ले ’मॉडल बनाया है।
2. इसी तरह, अन्य राज्यों को भी अपने अधिनियम को एकीकृत करना चाहिये। इसके लिये भूमि अधिग्रहण, श्रम कानूनों और सामाजिक, पर्यावरण व अन्य बुनियादी ढाँचे पर एक साथ विचार होना चाहिये।
3. सभी आवश्यक पूर्व-मंज़ूरी के साथ परियोजनाओं के लिये भूमि को उपलब्ध कराया जाना चाहिये। इसमें केंद्र (पर्यावरण सहित), राज्य और नगर-निगम के स्तर पर विचार किया जाना चाहिये।

§ श्रम कानून में सुधार

1. फैक्ट्री परिसर के भीतर अनुशासन और उच्च उत्पादकता की माँग करने के लिये कानूनों को सख्ती से लागू करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिये।
2. इसके लिये हाल ही में यू.पी, एम.पी. और गुजरात द्वारा उठाए गए कदम स्वागत योग्य हैं। सरकार द्वारा प्रवासी मजदूरों को स्वास्थ्य बीमा भी प्रदान करना चाहिये।

§ प्रवासी भारतीयों को प्रोत्साहित करना

1. भारत में प्रवासी व अनिवासी भारतीयों के निवेश को भी भारतीय निवासियों की तरह ही देखा जाना चाहिये। उल्लेखनीय है कि चीन की सरकार प्रवासी चीनी नागरिकों को न्यूनतम सरकारी नियंत्रण के साथ चीन में निवेश करने के लिये आमंत्रित करती है, जिन्होंने वहाँ पर बड़े पैमाने पर निवेश किया है।
2. इसी तरह का निवेश भारत में अनिवासियों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, जिनके पास विनिर्माण और प्रौद्योगिकी के लिये संसाधन और विशेषज्ञता है।
3. भारतीय प्रवासियों के प्रत्यक्ष निवेश को एक प्लग-एंड-प्ले मॉडल के द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये की व्यवसाय शुरू करने हेतु अनुमोदन प्राप्त करने में उनको अधिक समय खर्च न करना पड़े।
4. सरकार, अनिवासी भारतीयों के स्वामित्त्व वाली भारत में स्थित संस्थाओं के शेयरों को जारी करने से सम्बंधित मानदंडों में छूट पर विचार कर सकती है।

§ ऑफ-शोर निवेश केंद्र की स्थापना

1. सिंगापुर जैसे ऑफ-शोर निवेश केंद्र मुम्बई में भी खोले जा सकते हैं, जहाँ भारतीय घरेलू कानून और कराधान लागू न हों।
2. मुंबई में ऑफ-शोर सेंटर के माध्यम से बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत में अपने निवेश का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं।
3. घरेलू संस्थानों के साथ विदेशी कानूनी फर्मों और बैंकों को ऑफ-शोर केंद्र में उपस्थिति के लिये आमंत्रित किया जा सकता है।

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