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आपराधिक कृत्यों से संबंधित भारत के तीन नए कानून

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, सीमाएँ और संभावनाएँ; नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय)

संदर्भ 

  • दिसंबर 2023 में संसद से पारित भारत के तीन नए आपराधिक कानून 1 जुलाई, 2024 से प्रभावी हो गए हैं।
  • इन तीनों कानूनों को 11 अगस्त, 2023 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में प्रस्तुत किया था।
  • ये नए कानून ‘सजा के बजाए न्याय पर ध्यान केंद्रित’ हैं और इनका उद्देश्य त्वरित न्याय प्रदान करना, न्यायिक व न्यायालय प्रबंधन प्रणाली को मजबूत करना तथा सभी प्रकार से ‘न्याय तक पहुंच’ पर जोर देना है।

क्यों है नए कानूनों की आवश्यकता 

  • स्वतंत्रता के बाद से औपनिवेशिक युग की भारतीय दंड संहिता (IPC : आपराधिक कानून का सार प्रदान करती है), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC : कानून के प्रवर्तन की प्रक्रिया प्रदान करती है) और साक्ष्य अधिनियम में कई संशोधन किए गए हैं। 
  • हालांकि, आपराधिक न्याय प्रणाली में कुछ अंतर्निहित कमियों के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं प्राप्त हुए हैं, जिनमें निम्न स्तरीय जांच एवं अभियोजन, आपराधिक मामलों का अत्यधिक संख्या में लंबित रहना, अदालती कार्यवाही में देरी, मामलों के निपटान में देरी, दोषसिद्धि की निम्न दर और विचाराधीन कैदियों की अधिक संख्या शामिल है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, शीघ्र सुनवाई संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन एवं स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है।
  • इन कमियों को ध्यान में रखते हुए और भारतीय समाज की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने नए आपराधिक कानूनों को पेश किया है।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 

  • भारतीय न्याय संहिता (BNS) ने 164 वर्ष पुरानी भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की जगह ली है। IPC में 511 धाराओं (उपबंधों) के स्थान पर BNS में 358 धाराएं हैं।
  • BNS में IPC की कुछ धाराओं में बदलाव किया गया है, कुछ नई धाराएं जोड़ी गयी हैं और कुछ धाराओं को निरस्त किया गया है। 
  • इसके तहत लगभग 21 नए अपराध भी प्रस्तुत किए गए हैं। इस संहिता के कुछ उल्लेखनीय बिंदु इस प्रकार हैं : 

‘कपटपूर्ण तरीकों’ के माध्यम से संभोग को दंडित करना 

  • इसके अनुसार, यदि कोई भी धोखे से या किसी महिला से विवाह का वादा करके, बिना उसे पूरा करने के इरादे से उसके साथ यौन संबंध बनाता है, तो उसे 10 वर्ष तक की कैद की सज़ा होगी और जुर्माना भी देना होगा।
  • ‘कपटपूर्ण तरीकों’ में नौकरी या पदोन्नति का झूठा वादा, प्रलोभन या पहचान छिपाकर विवाह करना आदि भी शामिल है।
  • हालांकि, आलोचकों का कहना है कि इससे कुछ मामलों में सहमति से बने संबंधों को अपराध माना जा सकता है और ‘लव जिहाद’ की अवधारणा को बढ़ावा मिल सकता है।

इलेक्ट्रॉनिक प्रथम सूचना रिपोर्ट (e-FIRs) के माध्यम से महिलाओं के खिलाफ अपराध रिपोर्टिंग के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण 

  • इससे उन अपराधों की तेजी से रिपोर्टिंग करने में मदद मिलती है जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
  • इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफ़ॉर्म पीड़ितों को कलंक के डर के बिना कानूनी प्रक्रिया को नेविगेट करने के लिए सशक्त बनाने के उद्देश्य से विकसित सामाजिक-कानूनी दृष्टिकोण के साथ संरेखित करता है।
  • हरपाल सिंह केस (1981) सहित अन्य न्यायिक पूर्व उदाहरण रिपोर्टिंग में देरी को प्रभावित करने वाले सामाजिक कारकों को पहचानने के संबंध में प्रकाश डालती हैं।

नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध को बलात्कार के दायरे में लाया जाना

  • IPC ने वैवाहिक बलात्कार के लिए केवल एक अपवाद बनाया था, जो 15 वर्ष से कम आयु की पत्नी के साथ संभोग को संदर्भित करता था।
  • इसी क्रम में वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि 15 वर्ष की यह सीमा पॉक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत बाल बलात्कार कानूनों के विपरीत है।
  • वस्तुतः नया कानून 15-18 वर्ष की विवाहित बालिकाओं के लिए ग्रे एरिया को संबोधित करता है।

पहली बार नस्ल, जाति या समुदाय के आधार पर हत्या एक अलग अपराध के रूप में 

सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में केंद्र सरकार को लिंचिंग के लिए एक अलग कानून पर विचार करने का निर्देश दिया था। अब ऐसे अपराधों के लिए नए कानूनी प्रावधानों को मान्यता मिल गई है।

संगठित अपराध और आतंक जैसे अपराधों को शामिल करना 

  • पहले आतंकवादी गतिविधियों के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) जैसा विशिष्ट व कड़ा कानून था। हालांकि, आतंकवाद के मामले में BNS में UAPA के कई पहलुओं को शामिल किया गया है।
  • संगठित अपराध के अंतर्गत अपहरण, डकैती, वाहन चोरी, जबरन वसूली, भूमि हड़पना, अनुबंध हत्या, आर्थिक अपराध, गंभीर परिणाम वाले साइबर अपराध के साथ-साथ व्यक्ति, ड्रग्स, अवैध वस्तु या सेवाओं व हथियारों की तस्करी, वेश्यावृत्ति या फिरौती के लिए मानव तस्करी रैकेट सहित कोई भी गैरकानूनी गतिविधि को शामिल किया गया है।  
  • हालाँकि, ‘गंभीर परिणाम वाले साइबर अपराध’ जैसे अस्पष्ट विवरणों को संबोधित करना अभी भी महत्वपूर्ण है। 

स्नैचिंग : चोरी से अलग एक नया अपराध 

  • स्नैचिंग को चोरी करने के लिए अपराधी द्वारा अचानक या जल्दी से या जबरन किसी व्यक्ति या उसके कब्जे से कोई चल संपत्ति जब्त करने या लेने या हड़पने या छीन लेने के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • चोरी और स्नैचिंग दोनों के लिए तीन वर्ष तक की जेल की सज़ा का प्रावधान है।

राज्य के खिलाफ अपराध से पहले महिलाओं के खिलाफ अपराध को स्थान देना  

  • IPC के तहत राज्य के खिलाफ अपराध को महिलाओं के खिलाफ अपराध एवं शरीर के खिलाफ अपराध से पहले स्थान दिया गया था। 
  • हालाँकि, BNS में महिलाओं के खिलाफ अपराध को राज्य के खिलाफ अपराध से पहले अध्याय V में शामिल किया गया हैं।

कुछ अपराधों के लिए सजा के विकल्प के रूप में ‘सामुदायिक सेवा’ की शुरूआत 

  • इसमें छोटी-मोटी चोरी, मानहानि और किसी सरकारी अधिकारी को उसके कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने के इरादे से आत्महत्या करने का प्रयास आदि शामिल है।
  • सजा के रूप में सामुदायिक सेवा पहली बार दोषी ठहराए गए लोगों और छोटे अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए लोगों को जेल से बाहर रखती है। 
    • हालांकि, BNS यह परिभाषित नहीं करता है कि सामुदायिक सेवा क्या होती है और इसे न्यायाधीशों के विवेक पर छोड़ दिया गया है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1898-1973 का स्थान लेती है, जो प्रक्रियात्मक कानून से संबंधित है। 
  • CrPC में 484 की तुलना में BNSS में 531 धाराएं हैं। इसमें शामिल कुछ बदलाव इस प्रकार हैं : 

न्यायिक फैसले की अवधि 

  • आपराधिक मामलों में फैसला मुकदमे के पूरा होने के 45 दिनों के भीतर आना चाहिए और पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाने चाहिए।
  • साथ ही, बलात्कार पीड़ितों की जांच करने वाले चिकित्सा विशेषज्ञों को सात दिनों के भीतर जांच अधिकारी को अपनी रिपोर्ट सौंपनी चाहिए।

पुलिस की शक्तियों पर जाँच और संतुलन

  • पुलिस द्वारा गिरफ्तारी से संबंधित प्रावधानों के दुरुपयोग को रोकने के लिए BNSS ने राज्य सरकार पर एक पुलिस अधिकारी को नामित करने का अतिरिक्त दायित्व पेश किया है। 
  • यह अधिकारी सभी गिरफ्तारियों और गिरफ्तार करने वालों के बारे में जानकारी रखने के लिए जिम्मेदार होगा।
  • इसके अनुसार, ऐसी जानकारी को हर पुलिस स्टेशन और जिला मुख्यालय में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाना आवश्यक है।

पुलिस हिरासत की समयसीमा में बढ़ोतरी 

  • BNSS में एक बड़ा बदलाव पुलिस हिरासत में रखने की अवधि की समय सीमा बढ़ाना है। CrPC में 15 दिन की समय सीमा निर्धारित थी, जिसे बढ़ाकर अब 60 दिन कर दिया गया है और कुछ विशेष मामलों में इसे 90 दिन तक कर दिया गया है।

पीड़ित पक्ष को सुनवाई के अवसर 

BNSS के अनुसार जिन मामलों में सज़ा सात वर्ष या उससे अधिक है, उनमें सरकार द्वारा केस वापस लेने से पहले पीड़ित को सुनवाई का मौक़ा दिया जाएगा।

अनुपस्थिति में मुकदमे (Trials in absentia) 

  • अब किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति पर उसकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया जा सकता है और उसे दोषी ठहराया जा सकता है, जैसे कि वह अदालत में मौजूद था एवं उसने सभी अपराधों के लिए निष्पक्ष सुनवाई के अपने अधिकार को छोड़ दिया हो।
  • हालांकि, UAPA के तहत ऐसा प्रावधान पहले से ही मौजूद है, जहाँ आतंकी कृत्य में सबूत का भार आरोपी पर ही होता है; अर्थात स्वयं को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी पर है। 
  • आलोचकों का तर्क है कि सामान्य आपराधिक कानून के तहत अनुपस्थिति में मुकदमे की शुरूआत राज्य को मुकदमे की शुरुआत से पहले आरोपी का ठीक से पता लगाने के अपने कर्तव्य से बचने की अनुमति देता है।

जमानत के संबंध में   

  • BNSS के तहत पहली बार अपराध करने वाले (जिसे पहले कभी किसी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया गया हो) को जमानत पर रिहा किया जाएगा, यदि उसने निर्धारित अधिकतम सजा का एक-तिहाई हिस्सा काट लिया हो।
  • इसके अलावा, यह किसी आरोपी के लिए वैधानिक जमानत भी समाप्त कर देता है, यदि उसके नाम पर एक से अधिक अपराध हैं।

जेलों में भीड़भाड़ कम करना 

    • कुछ परिस्थितियों में पहली बार अपराध करने वाले विचाराधीन कैदियों के लिए हिरासत की अधिकतम अवधि कम कर दी गई है। 
  • साथ ही, जेल अधीक्षक को कानूनी रूप से अभियुक्तों या विचाराधीन कैदियों को जमानत के लिए आवेदन करने में मदद करने का अधिकार दिया गया है।

जीरो एफआईआर (Zero FIR) 

BNSS ‘जीरो एफआईआर' दर्ज करने की भी अनुमति देता है, जिसमें कोई भी व्यक्ति किसी भी पुलिस स्टेशन में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कर सकता है, चाहे उसका क्षेत्राधिकार कुछ भी हो। 

पसंद के व्यक्ति को सूचना का अधिकार 

नए कानून के तहत गिरफ्तारी की स्थिति में व्यक्ति को अपनी पसंद के व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार है। इससे गिरफ्तार व्यक्ति को तत्काल सहायता और सहयोग सुनिश्चित हो सकता है।

इलेक्ट्रॉनिक समन 

BNSS के तहत समन इलेक्ट्रॉनिक रूप से भेजा जा सकता है। यह सभी राज्य सरकारों को गवाह संरक्षण योजना को लागू करने के लिए भी बाध्य करता है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के स्थान पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA), 2023को प्रस्तुत किया गया है। यह साक्ष्य को संसाधित करने के तरीके में बदलाव लाता है।

इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड की अनुमति   

  • इसमें इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है, जिसमें ईमेल, सर्वर लॉग, कंप्यूटर, लैपटॉप या स्मार्टफोन पर संग्रहीत फ़ाइलें, वेबसाइट सामग्री, स्थान डेटा और टेक्स्ट संदेश आदि शामिल हैं। 
  • यह मौखिक साक्ष्य को इलेक्ट्रॉनिक रूप से लेने की भी अनुमति देता है। इसके अतिरिक्त पीड़िता को अधिक सुरक्षा प्रदान करने और बलात्कार के अपराध से संबंधित जांच में पारदर्शिता लाने के लिए पीड़िता का बयान ऑडियो-वीडियो माध्यमों से दर्ज किया जाएगा।

द्वितीयक साक्ष्य दायरे का विस्तार   

  • इस अधिनियम ने मौखिक एवं लिखित स्वीकारोक्ति को शामिल करने के लिए ‘द्वितीयक साक्ष्य’ का भी विस्तार किया है।
  • इसमें कहा गया है कि द्वितीयक साक्ष्य में ‘किसी ऐसे व्यक्ति का साक्ष्य शामिल होगा जिसने किसी दस्तावेज़ की जांच की है, जिसके मूल में कई खाते या अन्य दस्तावेज़ शामिल हैं जिनकी जांच न्यायालय में आसानी से नहीं की जा सकती है और जो ऐसे दस्तावेज़ों की जांच करने में कुशल है’।

नए कानून में शामिल ग्रे क्षेत्र

  • तीनों कानूनों के माध्यम से सरकार द्वारा कहा गया है कि ‘राजद्रोह’ को खत्म कर दिया गया है। 
  • मई 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने राजद्रोह कानून के संचालन को लगभग रोक दिया था और न्यायालय ने इसे ‘प्रथम दृष्टया असंवैधानिक’ माना था। 
  • किंतु, सरकार के दावों के बावजूद BNS ने इस अपराध को एक व्यापक परिभाषा के साथ पेश किया है और हिंदी में कानून का नाम बदलकर राजद्रोह (राजा के खिलाफ विद्रोह) से देशद्रोह (राष्ट्र के खिलाफ विद्रोह) कर दिया है।

आपराधिक कानूनों में सुधार के लिए समितियाँ

  • मलिमथ समिति : इसका गठन आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार लाने के लिए किया गया था।
  • जस्टिस वर्मा पैनल : महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामलों की त्वरित सुनवाई और सज़ा सुनिश्चित करने की सिफारिश की। इसने वर्ष 2013 में अपनी रिपोर्ट दी।
  • रणबीर सिंह समिति : इसका गठन वर्ष 2020 में आपराधिक कानून की तीन संहिताओं की समीक्षा करने के लिए किया गया।
    • भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860
    • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973
    • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872

आलोचनाएँ 

पुरुष के यौन उत्पीड़न के संबंध में सुरक्षा प्रावधान का अभाव 

  • प्रगतिशील दृष्टिकोण के साथ BNS ने IPC की विवादास्पद धारा 377 को पूरी तरह से छोड़ दिया है, जो ‘प्राकृतिक आदेश के खिलाफ शारीरिक संभोग’ को अपराध बनाता है।
  • वर्ष 2018 में इस प्रावधान को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ के फैसले में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। 
    • हालाँकि, धारा 377 को अभी भी असहमति वाले यौन संबंधों को दंडित करने के लिए लागू किया जाता था जो प्राय: पुरुषों के बलात्कार के मामलों में एकमात्र सहारा होता था। 
  • वस्तुतः BNS से इस प्रावधान को बाहर करने और बलात्कार कानूनों को अभी भी लिंग-तटस्थ नहीं बनाए जाने के कारण यौन उत्पीड़न के शिकार पुरुष पीड़ितों के लिए बहुत कम आपराधिक उपबंध हैं।

विवेकाधीन अभियोजन

  • पुलिस अधिकारियों को स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बिना नए कानूनों या UAPA (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) जैसे मौजूदा क़ानूनों के तहत मुकदमा चलाने के बीच चयन करने के लिए व्यापक विवेक दिया जाता है। 
  • यह विवेक असंगत अनुप्रयोग की ओर ले जा सकता है और निष्पक्षता एवं जवाबदेही के बारे में सवाल उठा सकता है।

अस्पष्ट रूप से परिभाषित अपराध 

  • नए कानून आतंकवाद, संगठित अपराध और संप्रभुता को खतरे में डालने वाले कृत्यों से संबंधित अस्पष्ट शब्दों वाले अपराधों को पेश करते हैं। 
  • ऐसी व्यापक परिभाषाएँ मनमाने ढंग से कानून को लागू करने की गुंजाइश छोड़ती हैं और संभावित रूप से वाक् स्वतंत्रता एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकती हैं।

आतंकवाद की विस्तारित परिभाषा 

  • ‘आतंकवाद’ की परिभाषा को मौजूदा UAPA से आगे बढ़ाकर ऐसे कृत्यों को शामिल किया गया है जो ‘सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ते हैं’ या ‘देश को अस्थिर करते हैं’। 
  • इस विस्तारित दायरे से दुरुपयोग का जोखिम बढ़ जाता है और असहमति व विरोध के लिए कानूनी नतीजों के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।

नए कानूनों से भ्रम की स्थिति 

  • कई कानून विशेषज्ञों का कहना है कि नए कानून भ्रम पैदा कर सकते हैं क्योंकि वे पिछली व्यवस्था के तहत आरोपित किए गए मामलों के समानांतर चलेंगे। 
  • वस्तुतः यदि अपराध की तारीख 1 जुलाई, 2024 से पहले की है तो मुकदमा पुराने कानूनों के अनुसार चलेगा और 1 जुलाई, 2024 से/के बाद होने वाले अपराधों के लिए मुकदमा नए कानूनों के तहत चलाए जाएंगे। 

पुलिस को न्यायिक अधिकार 

  • विशेषज्ञों का कहना है कि नए कानून पुलिस को किसी मामले पर निर्णय लेने का अधिकार देते हैं कि कोई मामला सुनवाई के लिए आगे बढ़ सकता है या नहीं। 
  • इसके विपरीत पहले इसका निर्णय न्यायाधीश द्वारा किया जाता था।

नए कानून की आधुनिक प्रकृति 

  • नए कानून को आधुनिक बनाया गया है और गंभीर अपराधों की स्थिति में वीडियो रिकॉर्डिंग की आवश्यकता है। साथ ही, स्वीकार्य डिजिटल साक्ष्य को अपडेट करना भी आवश्यक है।
  • वस्तुतः जानकारों का मानना है कि इन परिवर्तनों से मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे मामलों की संख्या में 30-40% की वृद्धि हो सकती है।

संवैधानिक प्रावधानों और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का उल्लंघन 

कानून विशेषज्ञों के अनुसार, नए कानून संविधान के कम-से-कम चार अनुच्छेदों और सर्वोच्च न्यायालय के कई महत्वपूर्ण निर्णयों का उल्लंघन करते हैं, जो प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों, अवैध हिरासत के खिलाफ सुरक्षा एवं आत्म-अपराध के खिलाफ कानूनों से संबंधित हैं।

वकीलों और पुलिस अधिकारियों में प्रशिक्षण का अभाव 

  • विशेषज्ञों  का मानना है कि अधिकांश वकीलों और पुलिस अधिकारियों के लिए कोई औपचारिक प्रशिक्षण की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।
  • न्यायाधीशों के पास उनके न्यायिक अकादमी में प्रशिक्षण कार्यक्रम होता है। हालाँकि, इसके लिए दिल्ली के अतिरिक्त अन्य राज्यों में कोई उचित तंत्र नहीं है जिसके द्वारा वकीलों को प्रशिक्षित किया जा सके।

उपनिवेशवादी कानून से मुक्ति का तर्क 

वर्तमान में लागू इन नए कानूनों में अधिकांश हिस्सा पुराने दंड संहिता का ही है। इस प्रकार, इन परिवर्तनों से दंड प्रक्रिया संहिता का उपनिवेशवाद समाप्त होने का दावा पूर्णतया सत्य नहीं है।

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