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भारत का शून्य उत्सर्जन लक्ष्य एवं वन प्रबंधन की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और मौसम परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

  • भारत ने वर्ष 2070 तक शून्य-उत्सर्जन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य की प्राप्ति एवं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील लोगों की सुरक्षा करने और उन्हें सशक्त बनाने में मदद करने के लिए वनों का महत्व अधिक बढ़ गया है।
  • वर्ष 1850 से 2019 तक भारत का ऐतिहासिक संचयी उत्सर्जन पूर्व-औद्योगिक युग (1850 के दशक से पूर्व) से दुनिया के संचयी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के 4% से भी कम है जबकि दुनिया की 17% आबादी यहाँ निवास करती है। 

भारत का शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य (Net Zero Emission Target)

  • नवंबर 2021 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा अभिसमय (UNFCCC) के 26वें सत्र (CoP-26) में भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य प्राप्त करने के अपने लक्ष्य की घोषणा की थी। 
  • पेरिस समझौते (2015) के अनुच्छेद 4 के पैरा 19 को मान्यता देते हुए भारत की दीर्घकालिक निम्न-कार्बन विकास रणनीति को संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा अभिसमय में प्रस्तुत किया गया था और यह वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य तक पहुंचने के लक्ष्य की पुष्टि करता है।
  • भारत की दीर्घकालिक निम्न-कार्बन विकास रणनीति ‘समानता एवं जलवायु न्याय’ के सिद्धांतों (Equity and Climate Justice) और ‘सामान्य किंतु विभेदित जिम्मेदारियों तथा संबंधित क्षमताओं’ के सिद्धांत’ (Common but Differentiated Responsibilities and Respective Capabilities) पर आधारित है।

इसे भी जानिए!

विश्व पर्यावरण दिवस-2024 

  • विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के नेतृत्व में वर्ष 1973 से प्रत्येक वर्ष 5 जून को किया जाता है।
  • इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस का मेजबान देश सऊदी अरब है।
  • 'हमारी भूमि' नारे के तहत इस वर्ष इस दिवस का विषय 'भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण एवं सूखा सहनशीलता' (Land Restoration, Desertification And Drought Resilience) है।

शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्ति के लिए भारत की रणनीति 

  • भारत की दीर्घकालिक निम्न-कार्बन विकास रणनीति सात प्रमुख परिवर्तनों पर आधारित है :
    1. विकास के अनुरूप निम्न-कार्बन बिजली प्रणालियों का विकास 
    2. एक एकीकृत, कुशल एवं समावेशी परिवहन प्रणाली विकसित करना 
    3. शहरी डिजाइन में अनुकूलन को बढ़ावा देना, इमारतों में ऊर्जा एवं सामग्री दक्षता तथा टिकाऊ शहरीकरण। 
    4. अर्थव्यवस्था के विकास को उत्सर्जन से अलग करना और एक कुशल, अभिनव निम्न-उत्सर्जन औद्योगिक प्रणाली का विकास। 
    5. कार्बन डाईऑक्साइड हटाने और संबंधित इंजीनियरिंग समाधानों का विकास। 
    6. सामाजिक-आर्थिक-पारिस्थितिक विचारों के अनुरूप वन एवं वनस्पति आवरण को बढ़ाना। 
    7. निम्न-कार्बन विकास की आर्थिक एवं वित्तीय ज़रूरतें।

भारत वन स्थिति रिपोर्ट, 2021 के प्रमुख बिंदु 

  • देश का कुल वनावरण एवं वृक्षावरण 80.9 मिलियन हेक्टेयर। 
    • यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 24.62% है। इसमें वनावरण क्षेत्र 21.71% और वृक्षावरण क्षेत्र लगभग 2.91% है।
  • देश के कुल वनावरण एवं वृक्षावरण में वर्ष 2019 की तुलना में 2261 वर्ग किमी. की वृद्धि।
  • वन क्षेत्र में सर्वाधिक वृद्धि दर्शाने वाले शीर्ष तीन राज्य : आंध्र प्रदेश > तेलांगना > ओडिशा।
  • क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक वन क्षेत्र वाला राज्य : मध्य प्रदेश > अरुणाचल प्रदेश > छत्तीसगढ़ > ओडिशा > महाराष्ट्र।
  • कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में वनाच्छादन के मामले में शीर्ष पाँच राज्य : मिज़ोरम (84.53%) > अरुणाचल प्रदेश > मेघालय > मणिपुर > नागालैंड।

भारत में वनों की स्थिति 

  • वर्ष 2001 से वर्ष 2023 के बीच भारत में 2.33 मिलियन हेक्टेयर वृक्ष क्षेत्र कम हो गया है। इसके परिणामस्वरूप वृक्ष क्षेत्र में 6% की गिरावट आई और 1.20 गीगाटन CO2 उत्सर्जन हुआ। 
  • विगत दो दशकों में भारत में वनों की अधिक कटाई के कारण 30% से अधिक भूमि का क्षरण हुआ है और 2.33 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो गया है। 
    • वनों की कटाई एवं भूमि क्षरण कृषि उत्पादकता, जल गुणवत्ता व जैव विविधता को प्रभावित करते हैं। यह अंततः भारत में 600 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करता है।
  • इसका प्रमुख कारण मुख्यत: वन भूमि का तेजी से गैर-वनीय उद्देश्यों के लिए प्रयोग है। 
    • भारत ने पिछले पांच वर्षों के दौरान गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए 88,903 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि के विविधीकरण को मंजूरी दी है। 
    • इसमें सर्वाधिक 19,424 हेक्टेयर सड़क निर्माण के लिए है। इसके बाद 18,847 हेक्टेयर खनन के लिए, 13,344 हेक्टेयर सिंचाई परियोजनाओं के लिए, 9,469 हेक्टेयर ट्रांसमिशन लाइनों के लिए और 7,630 हेक्टेयर रक्षा परियोजनाओं के लिए है।
  • ‘वनों’ के नुकसान की भरपाई के लिए भारत का वनीकरण कार्यक्रम वर्तमान में यूकेलिप्टस, बबूल एवं सागौन जैसी गैर-देशी व व्यावसायिक प्रजातियों के बड़े पैमाने पर मोनोकल्चर (एकल) वृक्षारोपण पर केंद्रित है। 
    • इन वृक्षारोपणों में प्राकृतिक वनों की जैव-विविधता, पारिस्थितिक मूल्य एवं दीर्घायु का अभाव है। 
    • इनमें कार्बन सोखने की क्षमता न्यूनतम होती है और लकड़ी को जलाने पर अधिक कार्बन उत्सर्जित होता है।

FSIRशुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्ति के लिए वन प्रबंधन की आवश्यकता 

  • वन ‘स्थलीय कार्बन सिंक’ के रूप में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने के लिए एक शक्तिशाली एवं प्रभावी तरीका प्रदान करते हैं। 
  • विश्व पर्यावरण दिवस, 2024 की थीम में भी वन प्रबंधन एवं संरक्षण की धारणा शामिल है, जो भूमि बहाली एवं सूखे के प्रति लचीलापन व मरुस्थलीकरण से निपटने पर जोर देती है।
  • भारत एक महत्वपूर्ण नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण से गुजर रहा है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करना और अपनी 50% बिजली गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करना है।
    • इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के बावजूद सबसे तेजी से बढ़ते विकासशील देशों में से एक के रूप में भारत को कोयले जैसे पारंपरिक जीवाश्म ईंधन पर निर्भर रहना होगा। 
    • सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की ऊर्जा सांख्यिकी, 2024 रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में कोयले से उत्पन्न ऊर्जा कुल ऊर्जा उत्पादन का लगभग 77.01% थी जबकि वर्ष 2026 तक कोयले से चलने वाली बिजली से 68% मांग पूरी होने की उम्मीद है। 
  • इससे भारत में वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि होने की संभावना है। इसलिए वर्ष 2070 तक नेट-ज़ीरो के लक्ष्य के लिए भारत को विविध वैकल्पिक समाधानों (जैसे- वन प्रबंधन एवं पुनर्नवीकरण) का अनुसरण करना होगा।

आगे की राह 

  • मजबूत नीतिगत ढाँचा : भारत को वन प्रबंधन के लिए एक मजबूत नीतिगत ढाँचा विकसित करना चाहिए जो पारिस्थितिकी एवं जैव-विविधता मूल्यों को बढ़ाते हुए वनों की कटाई को कम करे। 
  • वैज्ञानिक एवं साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण : विशिष्ट भूमि उपयोगों के लिए सहभागी दृष्टिकोण के साथ वैज्ञानिक एवं साक्ष्य-आधारित पद्धतियों का उपयोग करने से सबसे उपयुक्त वृक्ष-आधारित हस्तक्षेपों की पहचान में मदद मिलेगी। 
  • नई मूल्यांकन पद्धति : बड़े पैमाने पर पुनर्नवीकरण अवसर मूल्यांकन पद्धति (Restoration Opportunities Assessment Methodology : ROAM) ढाँचे को लागू करने से स्थानिक, कानूनी एवं सामाजिक-आर्थिक डाटा का गहन विश्लेषण करने में मदद मिल सकती है, जिससे इष्टतम वन पुनर्नवीकरण हस्तक्षेप संभव हो सकता है।
  • प्रभावी कार्यान्वयन तंत्र : एक सफल वन प्रबंधन कार्यक्रम के लिए इसके प्रभावी कार्यान्वयन एवं निधियों की निगरानी के लिए कड़े संस्थागत तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • नई तकनीक अनुप्रयोग : वन प्रबंधन के क्षेत्र में उभरती हुई तकनीकें अपनाकर बेहतर वन संरक्षण किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए, ट्रीविया द्वारा विकसित रिमोट फ़ॉरेस्ट-मॉनीटरिंग सिस्टम जियो-टैगिंग तकनीक ऑनलाइन रिकॉर्डिंग, निगरानी एवं रिसाव को रोकने के साथ-साथ वन परिदृश्यों के कुशल मानचित्रण के लिए एक मूल्यवान उपकरण है।
  • स्थानीय समुदायों का समर्थन : भूमि को पुनर्जीवित करने या वनरोपण के लिए स्थानीय समुदायों के समर्थन की आवश्यकता होती है, जो अनुकूली प्रबंधन प्रथाओं का संचालन एवं देखरेख कर सकते हैं। 
  • सामुदायिक ज्ञान प्रणालियों की पहचान : वन प्रबंधन में सामुदायिक ज्ञान प्रणालियों एवं प्रयासों को पहचानना और औपचारिक बनाना आवश्यक है। 
    • भारत में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) की 'वाडी' परियोजना और फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी की री-ग्रीनिंग ऑफ़ विलेज कॉमन प्रोजेक्ट जैसे मॉडल प्रभावी साबित हुए हैं।
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