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अनौपचारिक एवं अनियोजित शहरीकरण

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1 : समाज- शहरीकरण एवं समस्या) 

संदर्भ

विगत कुछ दशकों से भारत में तीव्र शहरीकरण हो रहा है। भारत में शहरों का विकास काफी हद तक अनियोजित रहा है, जिससे असंख्य चुनौतियाँ एवं शहरी गंदगी पैदा हुई है। इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। 

शहरीकरण संबंधी आँकड़े

वैश्विक परिदृश्य

  • एशियन डेवलपमेंट बैंक की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक शहरी आबादी वर्ष 1950 में 751 मिलियन (कुल वैश्विक आबादी का 30%) से बढ़कर वर्ष 2018 में 4.2 बिलियन (कुल वैश्विक आबादी का 55%) हो गई है।  
  • यह संख्या वर्ष 2030 में 5.2 अरब (कुल वैश्विक आबादी का 60%) और वर्ष 2050 में 6.7 अरब (कुल वैश्विक आबादी का 68%) होने का अनुमान है।

भारतीय परिदृश्य

  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की शहरी आबादी वर्ष 2001 में 27.7% से बढ़कर वर्ष 2011 में 31.1% (377.1 मिलियन) हो गई। 
    • हालाँकि, 1990 के दशक के बाद से शहरीकरण की प्रवृत्ति टियर 1 शहरों से मध्यम आकार के शहरों की ओर स्थानांतरित हो गई है।

अनौपचारिक एवं अनियोजित बस्तियों की समस्या

भारत में शहरी बस्तियों को मोटे तौर पर नियोजित एवं अनियोजित बस्तियों में वर्गीकृत किया गया है। 

  • नियोजित बस्तियाँ का निर्माण व विकास सरकारी एजेंसियों या हाउसिंग सोसाइटियों द्वारा अनुमोदित योजनाओं के अनुसार किया गया है। ऐसी कॉलोनियों को विकसित करते समय भौतिक, सामाजिक एवं आर्थिक कारकों सहित अन्य कारकों पर विचार किया जाता है। 
  • अनियोजित बस्तियों की बसावट सरकारी भूमि या निजी भूमि पर बेतरतीब ढंग से एवं अवैध रूप से होती हैं। इनमें शहर की नालियों, रेलवे पटरियों, बाढ़ संभावित निचले क्षेत्रों, शहर के अंदर एवं आसपास कृषि भूमि व हरित पट्टियों पर कब्जा करने वाली स्थायी, अर्ध-स्थायी व अस्थायी संरचनाएं शामिल हैं।
    • अनौपचारिक व अनियोजित बस्तियां अवैध मानी जाने के कारण जलापूर्ति एवं स्वच्छता सेवाओं आदि से वंचित होती हैं।
    • शहरी अनौपचारिक बस्तियों व अनौपचारिक कार्यबल की वास्तविकता कोविड-19 के दौरान सामने आई, जब बड़े शहरों से गाँवों की ओर प्रवासन (Reverse Migration) देखा गया। 

आनियोजित शहरीकरण के कारण 

  • जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि : आवास, रोजगार एवं अन्य सेवाओं की तलाश में शहरों में जनसंख्या का अधिक संकेंद्रण की ओर प्रवासन।
  • ग्रामीण से शहरी प्रवास : अधिक अवसर एवं उच्च वेतन के लिए शहरी क्षेत्रों की ओर अधिक प्रवासन। 
    • बैंगलोर एवं हैदराबाद जैसे शहरों में आई.टी. उद्योग के विकास ने लोगों को आकर्षित किया है।
    • भारत की वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 2.03 मिलियन लोग मौसमी प्रवासन प्रक्रिया के हिस्से के रूप में दिल्ली पहुँचे।
  • सामाजिक एवं सांस्कृतिक अवसर : बड़े शहरों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं तक पहुंच का प्रभाव।
  • सरकारी नीतियाँ : स्मार्ट सिटी पहल जैसी विभिन्न सरकारी योजनाओं से शहरीकरण को बढ़ावा।
  • प्राकृतिक आपदा : पहाड़ी राज्यों (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश आदि) एवं तटीय राज्यों (ओडिसा आदि) के गांवों में आंतरिक व बाह्य पलायन में वृद्धि। 
  • बुनियादी ढांचे का विकास : बेहतर परिवहन एवं संचार प्रणालियों के कारण शहरों की ओर प्रस्थान में सुगमता 
    • इससे शहरी क्षेत्रों में भी जीवन की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
  • शहर में अनियमित तरीके से बढ़ती आबादी और नीतिगत व राजनीतिक मुद्दों के कारण आनियोजित शहरीकरण में वृद्धि हो रही है। स्थानीय निकायों, निजी एवं व्यावसायिक बिल्डर्स नियोजित शहरीकरण के नियमों व विनियमों का पालन नहीं करते हैं। 

नियोजित शहरीकरण की विफलता के कारण 

  • स्वतंत्रता के बाद से प्रत्येक राज्य एवं शहर में शहरी विकास प्राधिकरणों की स्थापना के माध्यम से भारत में औपचारिक शहरी नियोजन व नियोजित शहरीकरण किया गया है। 
    • दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) को वर्ष 1957 में संसद के एक अधिनियम द्वारा ऐसे पहले निकायों में से एक के रूप में बनाया गया था।
  • सिटी मास्टर प्लान जैसे शहरी नियोजन मानदंडों के उल्लंघन के साथ निजी बिल्डर्स द्वारा मूल्यवान भूमि उच्च वाणिज्यिक एवं आवासीय उपयोग भूमि में परिवर्तित हो गई।  
    • सिटी मास्टर प्लान एक शहर के सभी निवासियों को उस शहर के विकास अधिकारों और लाभों तक पहुंचने के लिए एक वैधानिक कानूनी अधिकार प्रदान करता है। कल्याणकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों के विपरीत इसे कानूनी रूप से लागू किया जा सकता है।
  • शहरों में निम्न-आय समूहों व गरीबों की जरूरतों की अनदेखी करते हुए शहरीकरण के लिए भूमि-उपयोग योजना के अत्यधिक आदर्शवादी दृष्टिकोण को अपनाया जाता है।
    • 1990 के दशक में 'बुर्जुआ पर्यावरणवाद' के उद्भव के कारण वायु प्रदूषण को कम करने और यमुना नदी की सफाई के बहाने दिल्ली में अनौपचारिक श्रमिकों व अनौपचारिक बस्तियों दोनों को हटा दिया गया।
  • बुनियादी ग्रिड-आधारित भूमि उपयोग के रूप में राज्य एजेंसियों द्वारा न्यूनतम शहरी नियोजन के साथ अप्रतिबंधित शहरी विकास, विभिन्न उद्देश्यों के लिए भूमि के आवंटन पर कोई प्रतिबंध न होने और निर्माण पर न्यूनतम बाधाएं शहरीकरण के एक नव-उदारवादी बाजार-आधारित मॉडल का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो शहरीकरण विफलता का रूप है।

चुनौतियाँ

  • अत्यधिक बोझ वाला बुनियादी ढांचा : जलापूर्ति, स्वच्छता, परिवहन एवं विद्युत् जैसी बुनियादी सुविधाएं बढ़ती आबादी की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए संघर्ष करती हैं। 
    • इससे अत्यधिक बोझ वाला बुनियादी ढांचा निवासियों की जरूरतों को पूरा करने में विफल हो जाता है, जिससे भीड़भाड़ में वृद्धि, सेवाओं में समस्या और जीवन की गुणवत्ता में कमी आती है।
  • यातायात एवं प्रदूषण में वृद्धि 
    • सीमित सड़क नेटवर्क एवं वाहनों की अनियंत्रित संख्या से कई शहरों में आवागमन एक दैनिक संघर्ष बन गया है। 
    • ट्रैफिक जाम से समय के साथ-साथ ईंधन की बर्बादी होती है और पर्यावरण प्रदूषण व स्वास्थ्य संबंधी खतरों में भी वृद्धि होती है। 
    • व्यापक सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों का अभाव समस्या को अधिक बढ़ा देता है।
  • आवास संबंधी चुनौतियाँ : शहरों में लोगों की तीव्र आमद के परिणामस्वरूप किफायती आवास की भारी कमी हो गई है। 
    • परिणामस्वरूप, विभिन्न शहरी क्षेत्रों में मलिन बस्तियाँ और अनौपचारिक बस्तियाँ पनप गई हैं, जिससे निम्न स्तरीय जीवन शैली व सामाजिक असमानताएँ विकसित हो रही हैं। 
    • इसके अलावा, उचित नियोजन की कमी के कारण प्राय: मूल्यवान भूमि का अतिक्रमण होता है, जिससे आवास संकट बढ़ता है और शहरी गरीबी जारी रहती है।
  • पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव : जंगलों एवं आर्द्रभूमि जैसे प्राकृतिक आवासों पर अतिक्रमण से जैव विविधता का नुकसान होता है और पारिस्थितिक तंत्र में व्यवधान उत्पन्न होता है। 
    • अनियंत्रित निर्माण, अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन एवं अनियंत्रित औद्योगिक प्रदूषण, मृदा क्षरण व पानी की कमी का कारण बनते हैं। 
  • सामाजिक असमानता में वृद्धि : समावेशी योजना का अभाव एवं बुनियादी सेवाओं तक पहुंच की कमी हाशिए पर स्थित समुदायों को असंगत रूप से प्रभावित करती है। 
    • शहरी गरीब प्राय: स्वयं को स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं आजीविका के अवसरों तक सीमित पहुंच के साथ अनौपचारिक बस्तियों में निवास करते हैं। 

सुझाव 

  • बहुआयामी दृष्टिकोण से टिकाऊ शहरी नियोजन, बुनियादी ढांचे के विकास एवं सामाजिक कल्याण पहल को एकीकृत करना। 
  • नीति निर्माताओं, शहरी योजनाकारों को भारत के लिए एक स्थायी एवं समावेशी शहरी भविष्य निर्माण की दिशा में सहयोग करके योजनाओं का क्रियान्वयन करना।
  • कम विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को विधायी अधिकार प्रदान करना। 
  • औपचारिक शहरी नियोजन में न केवल शहर स्तर पर बल्कि क्षेत्रीय योजना स्तर पर भी जलापूर्ति, अपशिष्ट जल एवं वर्षा जल प्रबंधन पर एक पुनर्कल्पित परिप्रेक्ष्य शामिल करने की आवश्यकता।
  • पारिस्थितिक प्रभाव को कम करने और भारत की प्राकृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए सतत शहरी विकास को प्राथमिकता देने की आवश्यकता।
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