(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र- 3: प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव-विविधता, पर्यावरण, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
संदर्भ
केरल सरकार द्वारा जारी‘केरल में हाथी आबादी अनुमान- 2024’ शीर्षक वाली रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015 से 2023 के बीच हाथियों की मृत्यु दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। केरल में इस अवधि में 845 हाथियों की मौत दर्ज की गई।
यह केरल में हाथियों की आबादी का वार्षिक सर्वेक्षण है जोकि केरल, कर्नाटक एवं तमिलनाडु में समन्वित अंतर-राज्यीय सर्वेक्षण का हिस्सा है। इसका उद्देश्य राज्य की सीमाओं के पार बढ़ते मानव-हाथी संघर्ष की समस्या का समाधान करना है।
रिपोर्ट के महत्वपूर्ण निष्कर्ष
संख्या एवं मौत का खतरा
सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2024 में केरल राज्य में हाथियों की आबादी 1,793 होने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग सात प्रतिशत कम है।
इसके अनुसार युवा हाथी, विशेष रूप से 10 वर्ष से कम आयु के हाथी, मृत्यु दर के उच्चतम जोखिम का सामना करते हैं, जो लगभग 40% की खतरनाक दर के आस- पास है।
शावकों की मृत्यु दर में यह वृद्धि ‘हाथी एंडोथेलियोट्रोपिक हर्पीज वायरस’ (Elephant Endotheliotropic Herpes Viruses : EEHVs) के कारण हुई है।
Elephant Endotheliotropic Herpes viruses : EEHVs
यह एक प्रकार का नया डबल-स्ट्रैंडेड डी.एन.ए. हर्पीस वायरस है, जो किशोर एशियाई एवं अफ्रीकी हाथियों में तीव्र रक्तस्राव का कारण बनता है।
इस वायरस से संबंधित गंभीर मामलों में संक्रमण के 24 घंटे के भीतर मौत हो जाती है।
एशियाई हाथी की लुप्तप्राय स्थिति को देखते हुए यह रोग, संरक्षण प्रयासों के लिए गंभीर खतरा है।
यह बीमारी लाखों वर्षों से हाथियों के साथ सह-अस्तित्व में है। हालांकि, युवा हाथी तुलनात्मक रूप से निम्न ई.ई.एच.वी.-विशिष्ट एंटीबॉडी स्तरों के कारण विशेष रूप से कमजोर हैं।
हाथियों के समक्ष चुनौतियां
इस रिपोर्ट के अनुसार, हाथियों को जलवायु परिवर्तन के कारण सिकुड़ते आवास एवं बढ़ते विखंडन के कारण विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
साथ ही, हाथियों के वितरण पैटर्न को प्रभावित करने वाले कई महत्वपूर्ण कारकों की भी जानकारी दी गई है, जिनमें भूमि उपयोग में परिवर्तन, उच्च तापमान के प्रति संवेदनशीलता और मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न चुनौतियाँ आदि शामिल हैं।
इस रिपोर्ट में 'जैविक आक्रमणों' का हवाला दिया गया है। मुख्य रूप से वन क्षेत्रों में बबूल मैंगियम और नीलगिरी जैसे पौधों की विदेशी प्रजातियों की खेती को इसका प्रमुख कारण बताया गया है।
हाथी जैसे शाकाहारी जानवर चारे की कमी के कारण वन क्षेत्रों के आसपास स्थित खेतों की ओर जा सकते हैं, जिससे मानव-हाथी संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है।
झुंड के आकार में कमी की प्रवृति
यह रिपोर्ट केरल में हाथियों के झुंडों के छोटे होते आकार को भी एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में दर्शाती है :
झुंड का आकार उसके आवास की गुणवत्ता पर निर्भर करता है।
झुंड का छोटा आकार एक व्यक्तिगत हाथी के व्यवहार में भी बदलाव ला सकता है।
वन क्षेत्र में कमी और हाथियों के रहने के लिए अनुकूलतम स्थान का न होना, झुंड के छोटे आकार के लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार हैं।
संरक्षण के लिए सुझाव
इस रिपोर्ट में प्राकृतिक आवासों को बहाल करने और हाथियों के झुंडों के विखंडन को रोकने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है ताकि EEHVs को इस क्षेत्र में एशियाई हाथियों के अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा बनने से रोका जा सके।
हाथियों की मौत कम करने के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण की आवश्यकता को पहचानते हुए इस अध्ययन ने तमिलनाडु के हाथी मृत्यु लेखा परीक्षा ढांचे (EDAF) के समान एक संरचित प्रोटोकॉल की सिफारिश की है।
प्रस्तावित ढांचा हाथियों की मौतों के कारणों की व्यापक जांच की सुविधा प्रदान करने, पैटर्न की पहचान रने, खतरों का आकलन करने और लक्षित संरक्षण उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद करेगा।
इसे भी जानिए!
प्रोजेक्ट एलिफैंट
वर्ष 1992पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा ‘प्रोजेक्ट एलिफैंट’ की शुरुआत की गई।
इसका उद्देश्य हाथियों, उनके आवासों एवं गलियारों की सुरक्षा और मानव-पशु संघर्ष के मुद्दे को सुलझाने के लिए भारत के हाथी रेंज राज्यों को वित्तीय व तकनीकी सहायता प्रदान करना है।
एलिफैंट सेल (हाथी प्रकोष्ठ)
हाथियों के संरक्षण के प्रयासों को मजबूत करने के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से प्रोजेक्ट एलिफैंट प्रभाग के तकनीकी विंग के रूप में भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII), देहरादून में एक ‘हाथी प्रकोष्ठ’ की स्थापना की गई है।
हाथी प्रकोष्ठ भारत में हाथी अभ्यारण्यों के संरक्षित क्षेत्र प्रबंधकों एवं अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों को क्षेत्र-उन्मुख प्रशिक्षण भी प्रदान करता है।
माइक (Monitoring of Illegal Killing of Elephants : MIKE) कार्यक्रम
MIKE कार्यक्रम की स्थापना अंतर्राष्ट्रीय लुप्तप्राय वन्यजीव एवं वनस्पति प्रजाति व्यापार अभिसमय (CITES) द्वारा वर्ष 1997 में COP 10 सम्मेलन में अपनाए गए संकल्प के माध्यम से की गई थी।
वर्ष 2017 में IUCN द्वारा MIKE एशिया कार्यक्रम का संचालन किया
गया।
इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य हाथियों के शवों पर डाटा एकत्र करके और उनका विश्लेषण करके हाथियों की मृत्यु दर में स्थानिक, सामयिक और अन्य प्रवृत्तियों की पहचान करना है।