चर्चा में क्यों
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF) की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) ने 28 मई 2024 को होने वाली अपनी बैठक रद्द कर दी, जिसमें इडुक्की जिले के मुल्लापेरियार में एक नए बांध के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन करने के लिए नए संदर्भ की शर्तों (टीओआर) के लिए केरल के अनुरोध पर विचार किया जाना था।
क्या है मुल्ला पेरियार बांध जल विवाद
पृष्ठभूमि
- पेरियार सिंचाई कार्यों के लिए त्रावणकोर के तत्कालीन महाराजा और भारत के सचिव के बीच 29 अक्टूबर 1886 को 999 वर्षों के लिए एक पट्टा समझौता किया गया था।
- इस समझौते के अंतर्गत 1887-1895 के दौरान मुल्ला पेरियार बांध का निर्माण किया गया।
- इस बांध का पूर्ण जलाशय स्तर 152 फीट है और यह 68,558 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई लाभ के लिए तमिलनाडु में वैगई बेसिन को एक सुरंग के माध्यम से पानी प्रदान करता है।
- 1970 में तमिलनाडु को एक समझौते के तहत इस बाँध से बिजली उत्पादन की भी अनुमति दी गई थी।
वर्तमान स्थिति
- मुल्ला पेरियार केरल के इडुक्की जिले में स्थित है और इसका स्वामित्व और संचालन पड़ोसी राज्य तमिलनाडु के पास है।
- यहाँ बांध से संबंधित किसी भी विकास कार्य का दोनों राज्यों द्वारा सभी कानूनी और सरकारी स्तरों पर कड़ा विरोध किया जाता है।
- 128 साल पुराने ढांचे के स्थान पर एक नया बांध बनाने के कार्य की नई संदर्भ शर्तों (Term of Reference) के लिए केरल सरकार व तमिलनाडु सरकार के बीच विवाद जारी है।
भारत में अंतर्राज्यीय जल विवाद
- भारत में राज्यों के बीच अंतर्राज्यीय नदियों के पानी के बँटवारे का मामला, प्रभावित आबादी की पानी की मूलभूत ज़रूरतों, खेती और आजीविका से जुड़ा मामला बन जाता है।
- इससे पडोसी राज्यों के बीच नदी जल बंटवारे को लेकर विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है।
- इन विवादों के निपटारे के लिए संविधान के अनुच्छेद 262 के अंतर्गत संसद द्वारा अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 बनाया गया है।
- अनुच्छेद 262 के अंतर्गत, संसद कानून द्वारा किसी अंतर-राज्यीय नदी या नदी घाटी के पानी के उपयोग, वितरण या नियंत्रण के संबंध में किसी भी विवाद या शिकायत के न्यायनिर्णयन का प्रावधान कर सकती है।
प्रमुख अंतर्राज्यीय नदी विवाद प्राधिकरण इस प्रकार है:-
प्राधिकरण का नाम
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संबंधित राज्य
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निर्माण की तिथि
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वर्तमान स्थिति
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गोदावरी जल विवाद प्राधिकरण
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आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र
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अप्रैल, 1969
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इस विवाद पर अभिकरण का अन्तिम निर्णय जुलाई, 1980 में हुआ था।
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कृष्णा नदी जल विवाद
प्राधिकरण
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आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र
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अप्रैल, 1969
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इस विवाद पर अभिकरण का अन्तिम निर्णय मई, 1976 में हुआ था।
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नर्मदा नदी जल विवाद प्राधिकरण
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मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र
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अक्टूबर, 1969
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इस विवाद पर अभिकरण का अन्तिम निर्णय दिसंबर, 1979 में हुआ था।
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रावी-व्यास का जल विवाद प्राधिकरण
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पंजाब, हरियाणा और राजस्थान
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अप्रैल, 1986
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अभी विचाराधीन है
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कावेरी जल विवाद
प्राधिकरण
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केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और पुडुचेरी
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जून, 1990
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अभी विचाराधीन है।
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कृष्णा नदी जल विवाद प्राधिकरण II
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कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र
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अप्रैल, 2004
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फ़िलहाल मामला विचाराधीन है।
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बसंधरा नदी जल विवाद
प्राधिकरण
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आंध्र प्रदेश और ओडिशा
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फरवरी, 2010
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ट्रिब्यूनल द्वारा रिपोर्ट और निर्णय नहीं दिया गया है।
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महादाई जल विवाद
प्राधिकरण
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गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र
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नवंबर, 2010
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ट्रिब्यूनल द्वारा रिपोर्ट और निर्णय नहीं दिया गया है।
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अंतर्राज्यीय विवादों में सुधार के लिए आवश्यक कदम
- अंतरराज्यीय परिषद में सुधार : यह कार्यान्वयन के लिए संघ सूची की प्रविष्टि 56 में वर्णित रिवर बोर्ड एक्ट, 1956 एक शक्तिशाली कानून है जिसमें संशोधन करने की आवश्यकता है।
- इस एक्ट के अंतर्गत अंतरराज्यीय नदियों एवं इनके बेसिनों के विनियमन एवं विकास हेतु बेसिन आर्गेनाईजेशन को स्थापित किया जा सकता है।
- मध्यस्थता हेतु कदम बढ़ाना : दक्षिण एशिया के संदर्भ में, सिंधु बेसिन की नदियों से जुड़े विवाद का सफलतापूर्वक समाधान करने में विश्व बैंक ने भारत एवं पाकिस्तान के मध्य अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- इसी तरह राज्यों की बीच मध्यस्थता निभाने के लिए कोई भूमिका हो।
- नदियों को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करना : नदियों को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने की मांग लंबे समय से की जा रही है। इससे राज्यों की नदी जल को अपना अधिकार मानने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा।
- जल को समवर्ती सूची में शामिल करना : वर्ष 2014 में तैयार की गई मिहिर शाह रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें जल प्रबंधन हेतु केंद्रीय जल प्राधिकरण की अनुशंसा की गई है। संसदीय स्थायी समिति द्वारा भी इस अनुशंसा का समर्थन किया गया है।
- अंतरराज्यीय जल से संबंधित मुद्दों के लिए संस्थागत मॉडल : राष्ट्रीय स्तर पर एक स्थायी तंत्र या संस्थागत मॉडल की आवश्यकता है जिसके द्वारा न्यायपालिका की सहायता के बिना राज्यों के मध्य उत्पन्न जल विवाद को हल किया जा सके।
- चार आर को अपनाना : जल प्रबंधन के लिए 4R (रिड्यूस, रियूज, रिसाइकिल, रिकवर) का प्रयोग हो।
- राष्ट्रीय जल नीति का पालन करना : राष्ट्रीय जल नीति के तहत जल के उचित उपयोग और जल स्नोतों के संरक्षण हेतु प्रावधान।
- नदियों को जोड़ना : यह बेसिन क्षेत्रों में नदी जल के पर्याप्त वितरण में सहायक हो सकता है।