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इजरायली कब्जे के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की राय

(प्रारंभिक परीक्षा : अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की समसामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश)

संदर्भ 

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के अनुसार, वेस्ट बैंक एवं पूर्वी येरुशलम पर इजरायल का कब्जा अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है और फिलिस्तीनी क्षेत्रों में इसकी उपस्थिति को यथाशीघ्र समाप्त किया जाना चाहिए।
  • गौरतलब है कि वर्ष 1967 में हुए छह दिवसीय युद्ध के बाद से इज़राइल ने वेस्ट बैंक एवं पूर्वी येरुशलम पर कब्जा कर लिया है। इससे पहले ये क्षेत्र जॉर्डन के नियंत्रण में थे।

अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार क्या है ‘कब्जा’

  • कब्जे की सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत परिभाषा हेग अभिसमय, 1907 के अनुच्छेद 42 में दी गई है। इसमें कहा गया है कि किसी क्षेत्र को कब्जे के अंतर्गत तब माना जाता है जब वह वास्तव में शत्रु सेना के प्राधिकार में आ जाता है और कब्ज़ा केवल अस्थायी प्रकृति का होता है। साथ ही, ऐसी स्थिति में कब्ज़ा करने वाली शक्ति को संप्रभुता का हस्तांतरण शामिल नहीं होता है।
  • हेग अभिसमय (1907) एवं जिनेवा अभिसमय (1949) के अनुसार, कब्जे वाले क्षेत्र के भीतर के लोगों के प्रति कब्जा करने वाली शक्ति के कुछ दायित्व होते हैं :
    • कब्जे वाले क्षेत्र की आबादी को भोजन एवं चिकित्सा देखभाल प्रदान करना
    • उस क्षेत्र में नागरिक आबादी के स्थानांतरण पर प्रतिबंध लगाना और
    • कब्जे वाले क्षेत्र की आबादी पर बल प्रयोग करना या बल प्रयोग करने की धमकी देने पर रोक लगाना शामिल है।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के बारे में

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) को विश्व न्यायालय के रूप में भी जाना जाता है। यह संयुक्त राष्ट्र (UN) का प्रमुख न्यायिक अंग है।
  • स्थापना : जून 1945 में संयुक्त राष्ट्र के चार्टर द्वारा
    • हालांकि, इसने अप्रैल 1946 में अपना काम शुरू किया। 
  • पहला मामला : मई 1947 में
    • यह कोर्फू चैनल में हुई घटनाओं से संबंधित था, जिसे यूनाइटेड किंगडम द्वारा अल्बानिया के खिलाफ लाया गया था।
  • मुख्यालय : हेग, नीदरलैंड
    • संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से यह एकमात्र ऐसा अंग है जो न्यूयॉर्क (अमेरिका) में स्थित नहीं है।
  • आधिकारिक भाषा : फ्रेंच एवं अंग्रेजी
  • शक्तियाँ एवं कार्य : न्यायालय की भूमिका अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार, राज्यों (राष्ट्रों) द्वारा प्रस्तुत कानूनी विवादों को निपटाने और अधिकृत संयुक्त राष्ट्र अंगों तथा विशेष एजेंसियों द्वारा संदर्भित कानूनी प्रश्नों पर सलाहकारी राय देने की है।
  • विवादास्पद मामले : ऐसे मामलों में केवल देश (संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश और अन्य देश जो न्यायालय के क़ानून के पक्षकार बन गए हैं या जिन्होंने कुछ शर्तों के तहत इसके क्षेत्राधिकार को स्वीकार कर लिया है) पक्षकार हो सकते हैं।
  • ऐसे विवाद विशेष रूप से, स्थलीय सीमाओं, समुद्री सीमाओं, क्षेत्रीय संप्रभुता, बल प्रयोग न करने, अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून के उल्लंघन, राज्यों के आंतरिक मामलों और राजनयिक संबंधों में हस्तक्षेप न करने से संबंधित हो सकते हैं।
    • विवादास्पद मामलों में न्यायालय के निर्णय अंतिम होते हैं और मामले के पक्षों पर अपील के बिना बाध्यकारी होते हैं।
  • सलाहकारी कार्यवाही : न्यायालय की सलाहकारी कार्यवाही केवल संयुक्त राष्ट्र के अंगों और संयुक्त राष्ट्र परिवार या संबद्ध संगठनों की विशेष एजेंसियों के लिए उपलब्ध है।
    • ये राय उन तरीकों को स्पष्ट कर सकती हैं जिनसे ऐसे संगठन वैध रूप से कार्य कर सकते हैं या अपने सदस्य राज्यों के संबंध में अपने अधिकार को मजबूत कर सकते हैं।
    • न्यायालय के सलाहकारी कार्यवाही/राय बाध्यकारी नहीं होती है।

ICJ के न्यायाधीश 

  • इसके 15 न्यायाधीश अलग-अलग देशों से होते हैं। इनको संयुक्त राष्ट्र महासभा एवं सुरक्षा परिषद द्वारा चुना जाता है, जिनका कार्यकाल 9 वर्षों का होता है।
  • न्यायालय के एक-तिहाई न्यायाधीश प्रत्येक तीन वर्ष में चुने जाते हैं और ये पुनर्निर्वाचित हो सकते हैं।
  • न्यायालय के किसी भी सदस्य को तब तक बर्खास्त नहीं किया जा सकता जब तक कि अन्य सदस्यों की सर्वसम्मत राय में, वह आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करता/करती है। 
    • हालांकि, आज तक ऐसा नहीं हुआ है।  
  • यदि किसी न्यायाधीश की उसके कार्यकाल के दौरान मृत्यु हो जाती है या वह इस्तीफा देता है, तो कार्यकाल के शेष भाग के लिए न्यायाधीश को चुनने के लिए यथाशीघ्र एक विशेष चुनाव आयोजित किया जाता है।
  • एक बार निर्वाचित होने के बाद, न्यायालय का सदस्य न तो अपने देश की सरकार का प्रतिनिधि होता है और न ही किसी अन्य देश का।

इजराइल के कब्जे पर ICJ की राय का कारण 

  • दिसंबर 2022 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित किया। इसमें पूर्वी यरुशलम सहित कब्जे वाले फ़िलिस्तीनी क्षेत्र में इज़राइल की नीतियों व प्रथाओं से उत्पन्न होने वाले कानूनी परिणामों पर ICJ की राय मांगी गई थी।
  • इस प्रस्ताव को निकारागुआ ने प्रस्तुत किया गया था, जिसके पक्ष में 87 मत और विरोध में 26 मत पड़े थे। इसके अलावा, 53 देशों ने मतदान में भाग नहीं लिया था। 

प्रस्ताव पर ICJ की राय 

लंबे समय तक कब्जे को लेकर

  • ICJ के अनुसार, किसी कब्जे की कानूनी स्थिति इस बात से निर्धारित नहीं की जा सकती है कि किसी क्षेत्र पर कितने समय से कब्जा है।
    • अंतरराष्ट्रीय कानून किसी कब्जे के लिए कोई अस्थायी सीमा निर्दिष्ट नहीं करता है। 
  • न्यायालय के अनुसार, उक्त कब्जे की वैधता को प्रभावित करने वाले तत्व ‘कब्ज़ा करने वाली शक्ति की नीतियाँ व प्रथाएँ’ और ‘उन्हें वास्तविकता में कार्यान्वित करने के तरीके’ हैं। 

निपटान नीति पर 

  • न्यायालय ने वर्ष 1967 से वेस्ट बैंक एवं पूर्वी येरुशलम में निपटान नीति की जांच की और पाया कि निपटान नीति एवं इज़रायली सैन्य उपायों ने फिलिस्तीनियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध कब्जे वाले क्षेत्रों के कुछ हिस्सों को छोड़ने के लिए प्रेरित किया है, जो जिनेवा अभिसमय (1949) के अनुच्छेद 49 का उल्लंघन है। 
    • इसमें प्रावधान है कि कब्जा करने वाली शक्ति अपनी नागरिक आबादी को कब्जे वाले क्षेत्र में निर्वासित या स्थानांतरित नहीं करेगी। 
  • यह नीति हेग अभिसमय के अनुच्छेद 46 (निजी संपत्ति की सुरक्षा), 52 (नागरिक वस्तुओं की सामान्य सुरक्षा) और 55 (प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा) का उल्लंघन करती है क्योंकि इजरायल ने ‘भूमि के बड़े क्षेत्रों को जब्त या अधिग्रहण करके’ कब्जे वाले क्षेत्रों में अपनी बस्तियों का विस्तार किया है।
  • न्यायालय ने यह भी माना कि इस निपटान नीति के कारण फिलिस्तीनियों के खिलाफ होने वाली हिंसा को रोकने में व जिम्मेदारों को प्रभावी ढंग से दंडित करने में इजरायल विफल रहा है।

फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों के विलय पर 

  • न्यायालय के अनुसार, वेस्ट बैंक एवं पूर्वी येरुशलम में इज़राइल की नीतियां व प्रथाएं अनिश्चित काल तक बने रहने और ज़मीन पर अपरिवर्तनीय प्रभाव उत्पन्न करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में बल प्रयोग पर प्रतिबंध के नियम के विपरीत है और इस प्रकार इज़राइल के निरंतर कब्जे की वैधता प्रभावित होती है।
    • इसके उदाहरणों में शामिल हैं : बस्तियों का रखरखाव व विस्तार, फिलिस्तीन के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, यरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में घोषित करना और पूर्वी यरुशलम तथा पश्चिमी तट में इजरायल के घरेलू कानून को लागू करना।

भेदभावपूर्ण कानून और उपायों पर 

  • न्यायालय के अनुसार, इजरायल की नीतियां कब्जे वाले क्षेत्रों में बसने वालों और फिलिस्तीनियों के बीच ‘लगभग पूर्ण अलगाव’ बनाए रखने के लिए काम करती हैं, जो नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, 1965 के अनुच्छेद 3 (रंगभेद एवं नस्लीय अलगाव की प्रथाओं को समाप्त करने का दायित्व) का स्पष्ट उल्लंघन है।

आत्मनिर्णय पर

इजरायल के कब्जे ने लंबे समय से फिलिस्तीनी लोगों को आत्मनिर्णय के अपने अधिकार से वंचित रखा है और उपरोक्त नीतियों व प्रथाओं का विस्तार भविष्य में इस अधिकार के प्रयोग को और कमजोर करेगा, जो अंतरराष्ट्रीय कानून के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है।

भविष्य की कार्रवाई पर 

  • ICJ ने कहा कि इजरायल का दायित्व है कि वह अपने अवैध कब्जे को तुरंत समाप्त करे, नए बस्तियों की गतिविधियों को रोके और कब्जे वाले क्षेत्रों से लोगों को निकाले। साथ ही, सभी प्रभावित लोगों को हुए नुकसान की भरपाई करे। 
  • इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि अन्य देशों को इजरायल के कब्जे वाले क्षेत्रों को उसका हिस्सा नहीं मानना चाहिए तथा इस कब्जे को बनाए रखने में इजरायल को सहायता प्रदान करने से बचना चाहिए।
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