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ईरान परमाणु समझौता और अमेरिकी दृष्टिकोण

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की वर्तमान घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत एवं इसके पड़ोसी संबंध, भारत से संबंधित व इसके हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ

हाल ही में, अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज करने वाले डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडन ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा (डेमोक्रेटिक) द्वारा हस्ताक्षरित और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (रिपब्लिकन) द्वारा निरस्त किये गए ईरान परमाणु समझौते को बचाने की इच्छा जताई है। यह विचार अमेरिका के अलावा इस समझौते के अन्य पक्षकारों- ईरान, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, चीन और रूस के विदेश मंत्रियों के बीच एक उच्च स्तरीय सम्मेलन में व्यक्त किया गया। इनका लक्ष्य आर्थिक प्रतिबंधों में ढील के बदले ईरान को परमाणु बम विकसित करने से रोकना है।

क्या है ईरान परमाणु समझौता?

  • ईरान परमाणु समझौते को आधिकारिक रूप से ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’ (JCPOA) के नाम से वियना में जुलाई, 2015 में ईरान और P5 तथा जर्मनी व यूरोपीय संघ के मध्य हस्ताक्षरित किया गया था। P5 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के पाँच स्थाई सदस्य- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस शामिल हैं। यह समझौता जनवरी, 2016 से लागू हुआ।
  • P5+1 को ‘E3+3’ के रूप में भी संदर्भित किया जाता है। इसमें यूरोपीय संघ के तीन देशों (E3 : फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी) के अलावा तीन गैर-यूरोपीय देश (अमेरिका, रूस और चीन) भी शामिल हैं।
  • समझौते के तहत संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और अमेरिका द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों से राहत के बदले ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने पर सहमत हुआ।
  • समझौते में ईरान द्वारा चलाए जाने वाले परमाणु संवर्द्धन संयंत्रों की संख्या को सीमित करने के साथ-साथ उन्हें पुराने मॉडल तक सीमित कर दिया गया। ईरान ने भारी जल के रिएक्टर को भी रीकॉन्फ़िगर किया ताकि वह प्लूटोनियम का उत्पादन न कर सके। साथ ही, ईरान फोरदो स्थित अपने संवर्द्धन संयंत्र को एक अनुसंधान केंद्र में बदलने पर सहमत हो गया।
  • इसके अतिरिक्त, इसने संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था ‘अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी’ (IAEA) को अधिक पहुँच प्रदान करने तथा अन्य साइटों के निरीक्षण की अनुमति प्रदान की।
  • इसके बदले में वैश्विक शक्तियों ने उन आर्थिक प्रतिबंधों को हटा लिया जो ईरान को अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग और वैश्विक तेल व्यापार से रोकता था। साथ ही, ईरान को वाणिज्यिक विमान खरीदने तथा अन्य व्यापारिक सौदे की अनुमति प्रदान की गई और विदेशों में ईरान की संपत्ति को भी अनफ्रीज़ कर दिया गया।
  • समझौते के तहत ईरान के यूरेनियम संवर्द्धन और भंडार की मात्रा संबंधी प्रतिबंध समझौते के 15 वर्ष बाद वर्ष 2031 में समाप्त हो जाएगा।
  • वर्ष 2016 में आई.ए.ई.ए. ने यह स्वीकार कि ईरान ने परमाणु समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा किया है और ईरान पर अधिकाँश प्रतिबंध हटा दिये गए। इस प्रकार, ईरान ने धीरे-धीरे वैश्विक बैंकिंग प्रणाली में प्रवेश किया और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की बिक्री शुरू की।

अमेरिका का समझौते से बाहर होने का कारण

  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने समझौते में ईरान पर बहुत अधिक नरमी दिखाने के साथ-साथ ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम और क्षेत्रीय संघर्षों में उसके शामिल होने जैसे मुद्दों को संबोधित नहीं करने के कारण इसकी आलोचना की थी।
  • तत्पश्चात डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के बाद अमेरिका ने पहले तो ईरान के साथ समझौते पर पुन: बातचीत की कोशिश की परंतु मई 2018 में उसने इस समझौते से बाहर होने का एकतरफा निर्णय ले लिया। इसके बाद से अमेरिका और ईरान के मध्य संबंधों में लगातार गिरावट आई है।
  • ट्रम्प प्रशासन ने पुन: प्रतिबंध आरोपित करने के साथ-साथ इस हाइड्रोकार्बन-समृद्ध राष्ट्र के साथ व्यवसाय करने वाले अन्य देशों को भी चेतावनी दी। ईरान से तेल खरीदने के लिये भारत सहित आठ देशों को प्राप्त अस्थायी छूट भी अप्रैल 2019 में समाप्त हो गई।

समझौते से अमेरिका के बाहर होने के बाद की स्थिति

  • अमेरिका के समझौते से हटने के बावजूद ईरान ने जे.सी.पी.ओ.ए. के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को जारी रखने की बात कही और जून 2018 में ईरान ने समझौते के अनुरूप संवर्द्धन के बुनियादी ढाँचे में विस्तार की घोषणा की।
  • हालाँकि, मई, 2019 में अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान ने कहा कि वह समझौते की कुछ प्रतिबद्धताओं का पालन तब तक नहीं करेगा जब तक कि अन्य सदस्य इसकी आर्थिक माँगों पर सहमत नहीं होते। इसके दो महीने बाद आई.ए.ई.ए. ने पुष्टि की कि ईरान ने अपनी संवर्द्धन सीमा को पार कर लिया है।
  • इस वर्ष जनवरी में ईरान के शीर्ष सुरक्षा और खुफिया कमांडर मेजर जनरल क़स्सीम सोलेमानी की अमेरिकी ड्रोन हमले में हत्या के बाद ईरान ने कहा कि वह परमाणु समझौते को न मानते हुए यूरेनियम संवर्द्धन के लिये लगाई गई सीमाओं का पालन नहीं करेगा। हालाँकि, ईरान ने आई.ए.ई.ए. के साथ सहयोग को जारी रखने की बात कही।
  • दिसंबर में अमेरिका-ईरान संबंधों में उस समय तल्खी और बढ़ गई जब ईरान के वरिष्ठ परमाणु वैज्ञानिक मोहसेन फखरीज़ादेह की हत्या कर दी गई।

निष्कर्ष

हाल की उच्च स्तरीय बैठक में भाग लेने वाले देशों ने समझौते को बचाने के लिये अपनी प्रतिबद्धताओं पर पुनः बल दिया है। साथ ही, जे.सी.पी.ओ.ए. का पूर्ण और प्रभावी कार्यान्वयन सभी पक्षों के साथ-साथ एशिया में शांति के लिये अभी भी महत्त्वपूर्ण बना हुआ है। हालाँकि, समझौते को उसके मूल स्वरूप में पुन: शुरू करने में चुनौती है क्योंकि ईरान वर्तमान में समझौते की कई प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन कर रहा है। यद्यपि ईरान ने स्पष्ट किया है कि यदि अमेरिका और तीनों यूरोपीय देश अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं तो वह तेज़ी से पुरानी स्थिति पर लौट आएगा। हालाँकि फ़खरीज़ादेह की हत्या इस समझौते को पुनर्जीवित करने के लिये बाइडन द्वारा किये जाने वाले प्रयासों को जटिल कर सकती है।

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