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क्या सिमलीपाल दावानल सामान्य घटना है ?

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सामायिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 -संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन। आपदा और आपदा प्रबंधन।)

संदर्भ

सिमलीपाल जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (Simlipal Biosphere reserve) में शुष्क मौसम के दौरान दावानलकी घटनाएँ प्रायः देखी जाती हैं। हाल में, इस बायोस्फीयर रिज़र्व में लगभग एक हफ्ते तक उग्र दावानल की घटना देखी गई।

सिमलीपाल बायोस्फीयर

  • सिमलीपाल, जिसका नाम 'सिमुल' (रेशम कपास) के पेड़ से लिया गया है, एक राष्ट्रीय उद्यानव बाघ अभयारण्य है।यह ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के उत्तरी भाग में अवस्थित है।
  • 22 जून 1994 को पूर्वी घाट के पूर्वी छोर पर स्थित सिमलीपालव आस-पास के5,569 वर्ग किमी. क्षेत्र को भारत सरकार द्वारा बायोस्फीयर रिज़र्व घोषित किया गया था।
  • सिमिलिपाल में ऑर्किड की 94 व अन्य पौधों की लगभग 3,000 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। उभयचरों की लगभग 12प्रजातियाँ, सरीसृपों की 29 प्रजातियाँ, पक्षियों की 264 प्रजातियाँ और स्तनधारियों की 42 प्रजातियाँ भी इस क्षेत्र में पाई जाती हैं जो सिमलीपाल की समृद्ध जैव विविधता को दर्शाता है। ‘साल’यहाँ पाया जाने वाला प्रमुख वृक्ष है।

कितना अग्निप्रवण है सिमलीपाल क्षेत्र?

  • आम तौर पर ग्रीष्मकाल की शुरुआत तथा शरद ऋतु के अंत में वन क्षेत्रों में दावानल की की संभावना बनी रहती है। 
  • यद्यपि इस तरह की आग यहाँ हर वर्ष लगती है लेकिन बारिश के कारण प्रायः यह काबू में आ जाती है। ध्यातव्य है कि इस क्षेत्र में जनवरी और फरवरी के महीनों में क्रमशः 10.8 और 21 मिमी.तक बारिश होती है। 
  • दावानल की अंतिम बड़ी घटना वर्ष 2015 में सामने आई थी।
  • जब पर्णपाती वृक्षों के पत्तों के झड़ते हैं तो उनमें प्रायः आग पकड़ लेती है और तीव्र गति से सम्पूर्ण वन क्षेत्र में फ़ैल जाती है।

सिमलीपाल में आग के प्रमुख कारण क्या थे?

  • सामान्यतः प्राकृतिक कारणों जैसे बिजली गिरने या बढ़ते तापमान की वजह से दावानल की घटनाएँ सामने आती हैं लेकिन वनाधिकारियों के अनुसार मानव निर्मित कारक आग के लिये अधिक ज़िम्मेदार हैं।
  • सूखे पत्तों और पेड़ों के तनोंमें हलकी सी चिंगारी की वजह से भी भीषण आग लग सकती है। 
  • क्षेत्र के ग्रामीण,महुआ के फूलों को इकठ्ठा करनेसे पूर्वप्रायः सूखे पत्तों को एकत्रित कर उनमें आग लगा देते हैं। इन फूलों का उपयोग नशीले पेय के निर्माण में किया जाता है।
  • ग्रामीणों का यह भी मानना ​​है कि साल के पेड़ के अवशेषों में आग लगा देने से उनके दुबारा रोपण के बाद उनमें वृद्धि बेहतर होती है।
  • सिमलीपाल के संक्रमण क्षेत्र (transition zone) में लगभग 1,200 गाँव हैं,जिनमें कुल 4.5 लाख लोग रहते हैं, इनमें से आदिवासियों की आबादी लगभग 73% है।

आग लगने के अन्य कारण

  • वनों में जब घास सूख जाती है, तब किसी माचिस या बीड़ी/ सिगरेट आदि की एक छोटी सी चिंगारी के कारण भी भीषण आग लग सकती है।
  • ऐसे लोग जो जंगलों से कुछ खाने/लकड़ी आदि का सामना लेने जाते हैं या अपने पशुओं को चराने के लिये जंगल लेकर जाते हैं कभी-कभी भोजन बनाने के उद्देश्य से अस्थाई रूप से चूल्हे बनाते हैं और भोजनोपरांत उसे वैसे ही सुलगता छोड़ कर चले जाते हैं, जो बाद में आग में बदल सकता है।
  • इसके अलावा, जब लोग अपने खेतों को साफ़ करने के लिये की ठूंठ या सूखी घांस (या पराली) को जला देते हैं तब भी दावानल की संभावना बनी रहती है।
  • अपघटित होने वाले कार्बनिक यौगिक जैसे मिट्टी, लकड़ी, झाड़ियाँ, जड़ें, पीट आदि भी दहन के लिये उत्तरदाई होते हैं।
  • यदि आग के ऊपर पहुँचने की बात की जाय तो सूखे खड़े पेड़, काई, लाइकेन, शुष्क एपिफाइटिक या परजीवी पौधे आदि आग को जंगलों में ऊपर तक फैला सकते हैं। 

दावानल से होने वाले नुकसान

  • दावानल की वजह से वनों की पुनर्जनन क्षमता और उनकी उत्पादकता को बहुत नुकसान पहुँचता है।
  • वन सामान्य रूप से जलधाराओं और झरनों को निरंतर प्रवाह बनाए रखने में सहायक होते हैं और स्थानीय समुदायों के लिये ईंधन की लकड़ी, चारे और अन्य उत्पादों के स्रोत भी होते हैं, अतः आग लगने की दशा में इन सभी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • दावानल से मिट्टी में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों भी नष्ट हो जाते हैं और यह ज़मीन की ऊपरी परत के क्षरण का कारण भी बन सकते हैं।
  • वन्य जीवों के आश्रयस्थल भी दावानल से विशेष रूप से प्रभावित होते हैं।
  • कभी-कभी, जंगल की आग नियंत्रण से बाहर होकर मानव बस्तियों तक फैल जाती है, इस प्रकार मानव जीवन और संपत्ति के लिये भी खतरा उत्पन्न हो सकता है।

दावानल को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?

  • सामान्यतः इस तरह की आग बारिश के द्वारा नियंत्रण में आ जाती है, किंतु कुछ अवसरों पर यह विकराल हो जाती है। 
  • मौसम संबंधी आँकड़ों का उपयोग करते हुए संभावित अग्नि-प्रवण दिनों का पूर्वानुमान लगाना, सूखे बायोमास वाले स्थलों को साफ रखना, जंगल में सूखे कूड़ों को हटाना, अग्नि-सह्य पौधों को लगाना आदि कुछ तरीके हैं जिनसे दावानल की घटनाओं को कम किया जा सकता है।
  • इसके अलावा, क्षेत्र के लोगों को अग्नि शमन उपायों की जानकारी देना,अग्नि -रेखाओं (fire lines) का निर्माण, शिकारियों पर कार्रवाई करना आदि कुछ अन्य उपाय हैं जो स्थानीय प्रशासन द्वारा किये जा सकते हैं।
  • दावानल की दशा में अग्निशामक वाहनों का उचित समय पर पहुँचना भी आवश्यक है।
  • ध्यातव्य है कि कंट्रोल फ़ायर लाइन या फ़ायर लाइन या अग्नि-रेखा, कृत्रिम या प्राकृतिक रूप से निर्मित एक ऐसी सीमा रेखा होती है, जिसके पार आग को नियंत्रित करने व बढ़ने से रोकने के लिये विभिन्न तरीकों का प्रयोग किया जाता है, जैसे अग्निसह्य या अग्निरोधी पौधों व वृक्षों का रोपण आदि।
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