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जम्मू-कश्मीर में शत्रु एजेंट अध्यादेश

संदर्भ

हाल ही में, जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (DGP) ने कहा है कि, जो लोग जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों की मदद करते हुए पाए जाते हैं, उन पर शत्रु एजेंट अध्यादेश, 2005 के तहत जांच एजेंसियों द्वारा मुकदमा चलाया जाना चाहिए। इस कानून के तहत आजीवन कारावास या मौत की सजा का प्रावधान है।

शत्रु एजेंट अध्यादेश के बारे में 

  • शत्रु एजेंट अध्यादेश, 2005 को जम्मू और कश्मीर संविधान अधिनियम, 1996 की धारा 5 के तहत प्रख्यापित किया गया था।
  • शत्रु कौन है :  यह अध्यादेश ‘शत्रु’ को “किसी भी ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्णित करता है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, [जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश] में कानून द्वारा स्थापित सरकार को अपदस्थ करने के लिए बाहरी हमलावरों द्वारा किए गए अभियान में भाग लेता है या सहायता करता है”। 
  • शत्रु एजेंट कौन है :  अध्यादेश के अनुसार, शत्रु एजेंट का अर्थ है एक ऐसा व्यक्ति जो शत्रु सशस्त्र बल के सदस्य के रूप में काम नहीं कर रहा है। 
    • हालांकि, वह शत्रु द्वारा नियोजित है या उसके लिए काम करता है या उससे प्राप्त निर्देशों पर कार्य करता है।
  • दंड के प्रावधान :  अध्यादेश के तहत अपराध के लिए मौत या आजीवन कठोर कारावास या 10 साल तक के कठोर कारावास की सजा हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

अध्यादेश का इतिहास 

  • जम्मू-कश्मीर शत्रु एजेंट अध्यादेश पहली बार वर्ष 1917 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन डोगरा महाराजा द्वारा जारी किया गया था। 
    • इसे 'अध्यादेश' कहा जाता है क्योंकि डोगरा शासन के दौरान बनाए गए कानूनों को अध्यादेश कहा जाता था।

विकासक्रम:  

  • वर्ष 1947 में विभाजन के बाद, अध्यादेश को तत्कालीन राज्य में एक कानून के रूप में शामिल किया गया और इसमें संशोधन भी किया गया।
  • वर्ष 2019 में पारित ‘जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम’ के द्वारा पहले से चले आ रहे कई कानूनों को निरस्त कर दिया गया था। 
    • जिन कानूनों को जारी रखा गया है उसमें शत्रु एजेंट अध्यादेश और सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम जैसे सुरक्षा कानून भी शामिल हैं।

जम्मू- कश्मीर में शत्रु एजेंट अध्यादेश के तहत मुक़दमें की प्रक्रिया

  • विशेष न्यायाधीश के समक्ष मुकदमा :  शत्रु एजेंट अध्यादेश के तहत मुकदमा एक विशेष न्यायाधीश द्वारा चलाया जाता है, जिसे “सरकार उच्च न्यायालय के परामर्श से” नियुक्त करती है। 
  • वकील रखने के लिए अदालत की स्वीकृति आवश्यक :  अध्यादेश के तहत, अभियुक्त अदालत की अनुमति के बिना अपने बचाव के लिए वकील नहीं रख सकता है।
  • फैसले के खिलाफ अपील का प्रावधान नहीं :  विशेष अदालत के फैसले के खिलाफ अपील का कोई प्रावधान नहीं है और विशेष न्यायाधीश के फैसले की समीक्षा केवल “सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में से चुने गए व्यक्ति” द्वारा की जा सकती है। 
    • ध्यातव्य है कि,  सरकार द्वारा चुने गए उस व्यक्ति का निर्णय अंतिम होगा।
  • मामले के खुलासे या प्रकाशन पर रोक : अध्यादेश के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो सरकार की पूर्व अनुमति के बिना किसी कार्यवाही के संबंध में या इस अध्यादेश के तहत कार्यवाही किए गए किसी व्यक्ति के संबंध में कोई जानकारी प्रकट या प्रकाशित करता है, उसे दो साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
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