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 न्यायसंगत चुनावी प्रणाली 

प्रारंभिक परीक्षा- परिसीमन आयोग, 84वां संशोधन अधिनियम, राज्य पुनर्गठन आयोग
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर-2

संदर्भ-

  • भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में सीमित प्रतिनिधित्व भारत की डिफ़ॉल्ट और त्रुटिपूर्ण व्यवस्था है। 

मुख्य बिंदु-

  • न्यायसंगत चुनावी प्रणाली के लिए जरुरी है विधायिका में प्रतिनिधित्व बढाया जाए।
  • वर्तमान में एक भारतीय संसद सदस्य (सांसद) औसतन 25 लाख नागरिकों का प्रतिनिधित्व करता है।  
  • अमेरिकी प्रतिनिधि सभा का एक सदस्य आम तौर पर लगभग 7,00,000 नागरिकों का प्रतिनिधित्व करता है। 
  • पाकिस्तान में नेशनल असेंबली का एक सदस्य लगभग 6,00,000 नागरिकों का प्रतिनिधि होता है, जबकि बांग्लादेश में यह अनुपात लगभग 5,00,000 नागरिकों का प्रतिनिधि होता है। 
  • नवंबर,2023 तक, भारत में विधान सभा के लगभग 4,126 सदस्य, 543 लोकसभा सांसद और 245 राज्यसभा सांसद थे। 
  • भारत में नागरिक कल्याण के लिए जिम्मेदार सांसद/विधानसभा सदस्य की संख्या जनसंख्या के अनुपात में बहुत कम है। 
  • लोकतांत्रिक व्यवस्था में सीमित प्रतिनिधित्व, हमारी त्रुटिपूर्ण व्यवस्था को प्रतिबिंबित करती है।
  • प्रेस सूचना ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, भारत में जमीनी स्तर पर अनेक राजनेता, 50 से 100 वार्डों वाली 1,000 से अधिक नगरपालिका परिषदें/निगम और लगभग 2,38,000 पंचायतें हैं, जिनमें राष्ट्रीय/राज्य स्तर पर औसतन पांच से 30 सदस्य हैं। 
  • महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने और कानून बनाने में सक्षमता के लिए स्पष्ट रूप उनके पर्याप्त प्रतिनिधित्व की कमी है।
  • हमारी राजनीतिक व्यवस्था दुर्भावना से ग्रस्त है, विधायी भार(legislative weight) चुनिंदा राज्यों के नागरिकों की ओर झुका हुआ है। 
  • भारत के विपरीत, संयुक्त राज्य अमेरिका में एक राजनीतिक प्रणाली है जो दुर्भावना को दूर करने का प्रयास करती है, प्रत्येक राज्य को अमेरिकी सीनेट में दो सीनेटर दिए जाते हैं, जिससे कानून पर रोक लग जाती है। शक्ति के अनुपातहीन आवंटन को प्रोत्साहित किया जाता है।
  • द्विदलीय राजनीतिक व्यवस्था वाले एक सजातीय देश में यह आसान है, जहां समान पार्टियां सभी राज्यों में प्रतिस्पर्धा करती हैं। 
  • भारत में विभिन्न राज्यों में अपनी विषम राजनीतिक व्यवस्था के कारण गलत बंटवारे का मतलब चुनिंदा राजनीतिक संगठनों को दूसरों के मुकाबले सशक्त बनाना हो सकता है। 
  • दक्षिण और उत्तर-पूर्व भारत में एक अलग राजनीतिक संस्कृति की भावना बढ़ने के कारण किसी को भी सावधानी से कदम बढ़ाना चाहिए।

परिसीमन की भूमिका-

  • परिसीमन का शाब्दिक अर्थ है- किसी देश या प्रांत में विधायी निकाय वाले क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने की क्रिया या प्रक्रिया। 
  • परिसीमन का काम एक उच्चाधिकार निकाय को सौंपा जाता है। ऐसे निकाय को परिसीमन आयोग या सीमा आयोग के रूप में जाना जाता है। 
  • आनुपातिकता बहाल करने के लिए परिसीमन एक संभावित समाधान हो सकता है। इसका उपयोग अतीत में किया भी गया है। 
  • अतीत में सीटों के पुनर्वितरण के लिए एक स्वतंत्र निकाय के रूप में परिसीमन आयोग का गठन चार बार किया जा चुका है। 
    1. 1952 में परिसीमन आयोग अधिनियम1952के अधीन 
    2. 1963 में परिसीमन आयोग अधिनियम1962 के अधीन 
    3. 1973 में परिसीमन अधिनियम1972 के अधीन 
    4. 2002में परिसीमन अधिनियम2002के अधीन। 
  • वर्ष,1976 में आपातकाल के दौरान चल रही परिवार नियोजन नीतियों के कारण जनसंख्या नियंत्रण उपायों को अपनाने के क्रम में कुछ राज्य स्वयं को ठगा हुआ न महसूस करें लोकसभा सीटों की संख्या को नहीं बढ़ाया गया . अतः परिसीमन का समय 2001 तक के लिए बढ़ा दिया गया।
  • परिसीमन तब तक के लिए रोक दिया गया जब तक सभी राज्य अपनी प्रजनन दर कम न कर दें, जिससे समानता की भावना उत्पन्न हो सके।
  •  फरवरी,2002  के 84वें संशोधन अधिनियम से 2026 (यानी, 2031) के बाद पहली जनगणना तक के लिए लोकसभा सीटों की संख्या को सीमित कर दिया। 
  • 2021 की जनगणना में देरी हुई (अब 2024 में होने की संभावना है, परिणाम 2026 तक प्रकाशित होने की संभावना है) किंतु इसके साथ पहले परिसीमन करने की गुंजाइश भी है। 
  • परिसीमन लागू करने के अपने दुष्परिणाम भी होंगे। 
  • 1971 और 2011 के बीच राजस्थान और केरल की जनसंख्या 1971 में क्रमशः 25 मिलियन और 21 मिलियन थी, जो बढ़कर क्रमशः 68 मिलियन और 33 मिलियन हो गई है। 
  • 2019 के चुनावों में, उत्तर प्रदेश के प्रत्येक सांसद ने लगभग तीन मिलियन मतदाताओं का प्रतिनिधित्व किया, जबकि लक्षद्वीप के एक सांसद ने लगभग 55,000 मतदाताओं का प्रतिनिधित्व किया। 
  • यदि यह मान लें कि संसदीय सीटों की संख्या बढ़कर 753 हो जाती है, तो तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल जैसे राज्यों में सीटों में लगभग 6% की वृद्धि होगी, कर्नाटक में संभावित रूप से 11% की वृद्धि देखी जा सकती है। जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे उत्तरी राज्यों की सीटों में 63% की वृद्धि होगी। 
  • परिसीमन ऐतिहासिक रूप से हिंदी भाषी उत्तरी आबादी के प्रति पूर्वाग्रह पैदा करेगा और कुछ चुनिंदा राष्ट्रीय दलों को सत्ता में आने में सक्षम बनाएगा। 
  • जिन राज्यों ने अपनी जनसंख्या वृद्धि को कम करने में अच्छा प्रदर्शन किया है; जैसे- तमिलनाडु और केरल, वे स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर सकते हैं। 
  • परिसीमन अपरिहार्य है, लेकिन इसके हानिकारक परिणामों को कम करके किया जाए तो बेहतर होगा- 
    1. संसद में सीटों की संख्या में ज्यादा वृद्धि करने की आवश्यकता है (कोई भी राज्य अपनी सीट न खोये, इससे बचने के लिए कम से कम लगभग 848 सीटें), जिससे लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व अनुपात को बढ़ाने में मदद मिलेगी। 
    2. परिसीमन का आधार केवल जनसंख्या नहीं होना चाहिए। भौगोलिक नियतिवाद, आर्थिक उत्पादकता, भाषाई इतिहास और निष्पक्षता की भी भूमिका निभानी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो संसद में सिक्किम की आवाज भी सुनी जानी चाहिए, भले ही बिहार की जनसंख्या अधिक हो। 
    3. राज्यों को भविष्य में परिसीमन के बाद हस्तांतरित होने वाले सीटों के राजकोषीय प्रभाव पर भी पुनर्विचार करने की आवश्यकता होगी।

संघवाद को बढ़ावा -

  • हमारी चुनाव प्रणाली में सुधार किया जाना चाहिए। 
  • संघवाद को बढ़ावा देने की जरूरत है (पिछले दशकों के केंद्रीकरण ने केंद्र-राज्य संबंधों को प्रभावित किया है) , जबकि राज्यों को उनके हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक बेहतर आवाज और मंच देने की जरूरत है।
  • यह भूमिका राज्यसभा निभा सकती है; किंतु वर्तमान में इसके सदस्यों का चुनाव राज्य विधानसभाओं द्वारा किया है, जो बड़े/अधिक आबादी वाले राज्यों को अनुपातहीन रूप से अधिक प्रतिनिधित्व देता है। 
  • प्रत्येक राज्य को समान संख्या में राज्यसभा में सांसद देने के लिए संवैधानिक सुधार की आवश्यकता है। 
  • राज्यसभा सांसदों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव को बढ़ावा दिया जा सकता है और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अधिवास की आवश्यकता जोड़ी जाए और उसका सख्ती से पालन किया जाए।
  • विशेष रूप से लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व पर भी विचार किया जा सकता है। 
  • ऑस्ट्रेलिया में निचले सदन के चुनावों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली अपनाई जाती है। 
  • फ़्रांस में नेशनल असेंबली चुनावों के लिए दोहरी मतपत्र प्रणाली अपनाई जाती है; यदि पहले दौर में कोई उम्मीदवार नहीं जीतता है, तो दूसरे दौर में केवल वही उम्मीदवार प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिन्हें पिछले दौर में कुल वोटों के 1/8वें से अधिक वोट मिले थे। 
  • भारत की फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली शीघ्र चुनाव परिणाम सुनिश्चित कर सकती है। लेकिन इसकी कमी यह है कि एक विधायक अक्सर बहुमत के बिना किसी निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।

राज्यों की संख्या में वृद्धि-

  • भारत में और अधिक राज्यों की जरूरत है। 
  • संयुक्त राज्य अमेरिका के सबसे बड़े राज्य (सर्वाधिक निवासी जनसंख्या) कैलिफ़ोर्निया की जनसंख्या केवल 39 मिलियन है, जबकि औसत राज्य की जनसंख्या लगभग पाँच से छह मिलियन है। लगभग 22 भारतीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की जनसंख्या इससे अधिक है। 
  • राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना 1953 में की गई थी, जिसमें लगभग 14 भाषाई राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए थे। 
  • भारत में और अधिक राज्य (29 से बढ़ाकर 50 या 75 राज्य) करने की आवश्यकता है; उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश जैसा राज्य एक इकाई के रूप में अच्छी तरह से शासित होने के लिए बहुत बड़ा है। 
  • यदि हमारे पास अधिक और छोटे आकार के राज्य हों, तो उत्तर भारतीय या बड़े राज्यों के राजनीति पर प्रभुत्व के बारे में चिंता कम हो जाएगी। 
  • लोकसभा चुनाव,2024 के बाद चुनिंदा राज्यों (उदाहरण के लिए, बुंदेलखण्ड, गोरखालैंड, जम्मू, कारू नाडु, कोंगु नाडु, मिथिला, सौराष्ट्र, तुलु नाडु और विदर्भ) की सामाजिक-आर्थिक और प्रशासनिक व्यवहार्यता का मूल्यांकन करने के लिए एक नया राज्य पुनर्गठन आयोग स्थापित किया जा सकता है। 
  • हमारे पास पर्याप्त भाषाई राज्य हैं. प्रशासनिक दक्षता और लोकतांत्रिक जवाबदेही बढ़ाने के लिए राज्यों को विभाजित या पुन: डिज़ाइन किया जाना चाहिए।
  • भारत में 8,000 से अधिक शहरी बस्तियाँ हैं, लेकिन महापौरों की संख्या अभी भी कम है। 
  • प्रत्यक्ष चुनाव शहरी शासन की दक्षता में सुधार करते हुए लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व बढ़ा सकते हैं। 
  • ऐसे महापौरों को 18 महत्वपूर्ण कार्यों पर निर्णय लेने के लिए सशक्त करना चाहिए - उदाहरण के लिए, शहरी नियोजन, जल आपूर्ति, आग, भूमि उपयोग नियम और झुग्गी सुधार - जैसा कि 74वें संविधान संशोधन अधिनियम में उल्लेख किया गया है। 
  • बिहार और राजस्थान जैसे कुछ राज्यों को शहर-स्तरीय अधिकारियों/कार्यों पर अपनी पकड़ ढीली करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
  • स्थानीय लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व बढ़ाने से भारत के लोकतंत्र को मजबूत करने में मदद मिलेगी। 
  • इस तरह के उपाय भारत के विभिन्न हिस्सों में नागरिकों की चिंताओं को कम करने और लोकतंत्र को मजबूत करने में मदद कर सकते हैं। 
  • भारत के पूर्वोत्तर या दक्षिण का कोई भी बच्चा प्रधानमंत्री बनने की आकांक्षा रख सकता है। 
  • हमारे नीति-निर्माता न्यायसंगत चुनाव प्रणाली सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- 84वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा किस वर्ष तक लोकसभा सीटों की संख्या को सीमित कर दिया गया?

(a) 1985 के बाद पहली जनगणना होने तक

(b) 2005 के बाद पहली जनगणना होने तक

(c) 2018 के बाद पहली जनगणना होने तक

(d) 2026 के बाद पहली जनगणना होने तक

उत्तर- d

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- हमारी राजनीतिक व्यवस्था दुर्भावना से ग्रस्त है, विधायी भार(legislative weight) चुनिंदा राज्यों के नागरिकों की ओर झुका हुआ है। मूल्यांकन कीजिए।

 स्रोत- the hindu         

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